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अंतर्राष्ट्रीय नियम
अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों की हत्या
« »16-Jul-2024
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
परिचय
हाल ही में पेंसिल्वेनिया में एक पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति की रैली में हुई गोलीबारी ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस दुखद घटना में पूर्व राष्ट्रपति और कई उपस्थित लोग घायल हो गए तथा एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई। यह सार्वजनिक हस्तियों की सुरक्षा और राजनीतिक सभाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में आने वाली चुनौतियों को प्रकट करता है।
अमेरिकी इतिहास में महत्त्वपूर्ण हत्या की घटनाएँ क्या हैं?
- संयुक्त राज्य अमेरिका में सबसे उल्लेखनीय हत्या की घटना 22 नवंबर 1963 को टेक्सास के डलास में राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की हत्या थी।
- कैनेडी को डेली प्लाज़ा से गुज़रते समय राष्ट्रपति के काफिले में सवार व्यक्ति ने गोली मार दी थी।
- इस हत्या के लिये ली हार्वे ओसवाल्ड को गिरफ्तार किया गया था, परंतु दो दिन बाद जैक रूबी ने उसे भी मार डाला, जिसके कारण दशकों तक षड्यंत्र कथाएँ प्रचलित रहीं।
- अब्राहम लिंकन (1865): वाशिंगटन डी.सी. के फोर्ड थियेटर में जॉन विल्क्स बूथ द्वारा गोली मारी गई।
- रॉबर्ट एफ. कैनेडी (1968): राष्ट्रपति पद के लिये चुनाव प्रचार के दौरान लॉस एंजिल्स में सरहान द्वारा गोली मारी गई।
- मार्टिन लूथर किंग जूनियर (1968): टेनेसी के मेम्फिस में जेम्स अर्ल रे द्वारा गोली मार दी गई।
- जेम्स ए. गारफील्ड (1881): चार्ल्स जे. गुइटो द्वारा वाशिंगटन डी.सी. के एक रेलवे स्टेशन पर गोली मारी गई।
- विलियम मैककिनले (1901): न्यूयॉर्क के बफेलो में पैन-अमेरिकन एक्सपोज़िशन में लियोन कोज़ोलगोज़ द्वारा गोली मारी गई।
संयुक्त राज्य अमेरिका की सीक्रेट सर्विस क्या है?
- वर्ष 1865 में स्थापित संयुक्त राज्य अमेरिका की सीक्रेट सर्विस, जालसाज़ी रोकथाम एजेंसी के रूप में अपनी प्रारंभिक भूमिका से वृद्धि होकर देश के सर्वोच्च अधिकारियों के लिये प्रमुख सुरक्षा सेवा बन गई है।
- इस ढाँचे को ऐतिहासिक घटनाओं द्वारा आकार दिया गया है, जिनमें सबसे उल्लेखनीय वर्ष 1963 में राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की हत्या है, जिसके कारण एजेंसी के सुरक्षात्मक अधिदेश में महत्त्वपूर्ण विस्तार हुआ।
- सीक्रेट सर्विस को राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उनके निकटतम परिजनों, पूर्व राष्ट्रपतियों एवं अन्य निर्दिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा करने का अधिकार है।
- यह अधिदेश आम चुनाव के 120 दिनों के भीतर प्रमुख राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों पर लागू होता है।
- एजेंसी के पास वित्तीय अपराधों, साइबर अपराध और संरक्षित व्यक्तियों के विरुद्ध खतरों से संबंधित व्यापक जाँच शक्तियाँ हैं। यह दोहरा मिशन सुरक्षा के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की अनुमति देता है।
- राष्ट्रपति और विदेश यात्रा पर गए अन्य अधिकारियों की सुरक्षा के लिये सीक्रेट सर्विस का अधिकार अमेरिकी सीमाओं से परे तक विस्तारित हुआ है, जिसके लिये जटिल अंतर्राष्ट्रीय समन्वय की आवश्यकता होती है।
- संवैधानिक सीमाओं और एजेंसी के दिशा-निर्देशों के अधीन, एजेंटों को अपने कर्त्तव्यों के निष्पादन में उचित बल प्रयोग करने की अनुमति है।
- यह अपने सुरक्षात्मक मिशन को पूरा करने के लिये अन्य संघीय, राज्य और स्थानीय विधि प्रवर्तन एजेंसियों के साथ सहयोग को अनिवार्य बनाता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका की सीक्रेट सर्विस का इतिहास क्या है?
- नकली मुद्रा से निपटने के लिये वर्ष 1865 में स्थापित अमेरिकी सीक्रेट सर्विस, समय के साथ काफी विकसित हो गई है।
- 1865-1901: प्रारंभ में वित्तीय अपराधों पर ध्यान केंद्रित किया गया, धीरे-धीरे अन्य संघीय जाँचों तक विस्तार किया गया।
- 1901: राष्ट्रपति मैककिनले की हत्या के बाद राष्ट्रपति सुरक्षा का दायित्व संभाला।
- 1922: व्हाइट हाउस पुलिस बल (अब वर्दीधारी डिवीज़न) का गठन किया गया, जिसे वर्ष 1930 तक सीक्रेट सर्विस की निगरानी में रखा गया।
- 1994-2002: गुप्त सेवा प्राधिकरण का विस्तार करने वाले कई अधिनियम पारित किये गए, जिनमें शामिल हैं:
- वर्ष 1994 का अंतर्राष्ट्रीय जालसाज़ी से निपटने वाला अपराध विधेयक
- टेलीमार्केटिंग धोखाधड़ी और पहचान की चोरी पर वर्ष 1998 का विधान
- वर्ष 2000 का राष्ट्रपति खतरा संरक्षण अधिनियम
- वर्ष 2001 का देशभक्ति अधिनियम
- 2002: ट्रेजरी विभाग से नव-निर्मित होमलैंड सुरक्षा विभाग में स्थानांतरित किया गया।
हत्या-विरोधी विधान और सुरक्षात्मक सेवाओं पर वैश्विक परिप्रेक्ष्य क्या है?
- संयुक्त राज्य: यद्यपि अमेरिकी सीक्रेट सर्विस संभवतः सबसे प्रसिद्ध सुरक्षा एजेंसी है, तथापि कई देशों ने राजनीतिक हत्याओं को रोकने के लिये समान संस्थाएँ एवं विधिक ढाँचे स्थापित किये हैं।
- यूनाइटेड किंगडम: मेट्रोपॉलिटन पुलिस सेवा की रॉयल्टी और स्पेशलिस्ट प्रोटेक्शन (RaSP) इकाई शाही परिवार, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों तथा यात्रा पर आने वाले राष्ट्राध्यक्षों को सुरक्षा प्रदान करती है।
- हत्या की रोकथाम के लिये ब्रिटेन का विधिक दृष्टिकोण व्यापक आतंकवाद-रोधी और सार्वजनिक व्यवस्था विधि में अंतर्निहित है।
- रूस: संघीय सुरक्षा सेवा (FSO) उच्च पदस्थ रूसी अधिकारियों की सुरक्षा के लिये उत्तरदायी है। रूसी विधान FSO को व्यापक अधिकार प्रदान करता है, जिसमें जाँच करने और सुरक्षात्मक कार्यों में बल प्रयोग करने का अधिकार भी शामिल है।
- इज़रायल: इज़रायल की आंतरिक सुरक्षा सेवा शिन बेट के पास एक समर्पित वीआईपी सुरक्षा इकाई है। इज़रायली विधान हत्या के खतरों के मद्देनज़र सुरक्षा सेवाओं को व्यापक अधिकार देता है।
- फ्राँस: रिपब्लिक ऑफ द प्रेसीडेंसी के लिये बना सुरक्षा समूह (GSPR) फ्राँसीसी राष्ट्रपति की सुरक्षा करता है, जबकि अन्य अधिकारियों को विभिन्न पुलिस और जेंडरमेरी इकाइयों द्वारा सुरक्षा दी जाती है। फ्राँसीसी विधान सार्वजनिक अधिकारियों को खतरों से बचाने के लिये राज्य के उत्तरदायित्व पर ज़ोर देता है।
विधिक ढाँचे एवं सुरक्षात्मक सेवाओं के लिये भारतीय परिप्रेक्ष्य क्या हैं?
- विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत को अपने पूरे इतिहास में हत्या की गंभीर धमकियों का सामना करना पड़ा है।
- विशेष सुरक्षा समूह (SPG): विशेष सुरक्षा समूह अधिनियम, 1988 द्वारा स्थापित, SPG भारत के प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके निकट परिजनों की सुरक्षा के लिये उत्तरदायी है।
- यह अधिनियम SPG अधिकारियों को व्यापक शक्तियाँ प्रदान करता है, जिसमें तलाशी लेने, अभिरक्षा में लेने तथा अपने कर्त्तव्यों के निष्पादन में उचित बल प्रयोग करने का अधिकार भी शामिल है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG): यह विशिष्ट बल, केंद्र सरकार द्वारा नामित उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करता है। NSG, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड अधिनियम, 1986 के अधीन काम करता है, जो इसकी संरचना, शक्तियों और प्रतिरक्षा को रेखांकित करता है।
- इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB): मुख्य रूप से एक गुप्तचर एजेंसी होने के बावजूद, IB संकट का आकलन करने और हत्याओं की रोकथाम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके संचालन को विशिष्ट विधान के स्थान पर कार्यकारी आदेशों द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
- विधान: हत्या की रोकथाम के लिये भारत का दृष्टिकोण विभिन्न विधानों में अंतर्निहित है, जिनमें शामिल हैं:
- भारतीय दण्ड संहिता, 1860: धाराएँ 115, 116, 117, 118 और 120B राज्य के विरुद्ध षड्यंत्र और अपराध के लिये उकसाने से संबंधित हैं।
- अविधिक गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967: यह अधिनियम हत्या के प्रयासों सहित आतंकवादी गतिविधियों का मुकाबला करने के लिये विधिक आधार प्रदान करता है।
- आपराधिक विधि संशोधन अधिनियम, 1961: राज्य और सार्वजनिक शांति के विरुद्ध किये गए अपराधों के लिये दण्ड देता है।
- न्यायिक व्याख्या: भारतीय न्यायालयों ने नागरिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाते हुए सार्वजनिक अधिकारियों की सुरक्षा करने के राज्य के कर्त्तव्य को यथावत् रखा है।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और विधिक चुनौतियाँ क्या हैं?
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
- इंटरपोल रेड नोटिस: यह अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी वांछित व्यक्तियों की पहचान और गिरफ्तारी में सहायता करती है, जिनमें हत्या की योजना बनाने के संदिग्ध व्यक्ति भी शामिल हैं।
- पारस्परिक विधिक सहायता संधियाँ (MLATs): ये संधियाँ देशों को हत्या के षड्यंत्रों सहित आपराधिक जाँच से संबंधित सूचना एवं साक्ष्य साझा करने में सक्षम बनाती हैं।
- प्रत्यर्पण संधियाँ: ये संधियाँ, संदिग्धों को विभिन्न न्यायक्षेत्रों के बीच स्थानांतरित करने की अनुमति देती हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों की हत्या के प्रयासों के अभियोजन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव: UNSCR 1373 (2001) जैसे प्रस्ताव सदस्य देशों को राजनीतिक हत्याओं सहित आतंकवादी कृत्यों के वित्तपोषण और तैयारी को रोकने के लिये बाध्य करते हैं।
- विधिक चुनौतियाँ:
- संप्रभुता संबंधी चिंताएँ: विदेशी धरती पर सुरक्षात्मक कार्यवाही से क्षेत्राधिकार संबंधी गंभीर मुद्दे उत्पन्न हो सकते हैं।
- राजनयिक प्रतिरक्षा: राजनयिक संबंधों पर वियना कन्वेंशन, 1961, हत्या के षड्यंत्र में शामिल राजनयिकों के अभियोजन को जटिल बना सकता है।
- परिभाषा संबंधी अस्पष्टताएँ: "हत्या" की सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत विधिक परिभाषा का अभाव अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- मानवाधिकार संबंधी विचार: मानवाधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता के सम्मान के साथ सुरक्षा उपायों को संतुलित करना एक सतत् चुनौती बनी हुई है।
निष्कर्ष:
हाल ही में एक पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति से जुड़ी घटना ने हमें याद दिलाया है कि खतरा सदैव बना रहता है। यह चुनौती, लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ प्रभावी सुरक्षा को संतुलित करने, सार्वजनिक हस्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और खुले राजनीतिक संवाद को बनाए रखने की है। अंततः ऐसे खतरों का सामना करने में एक राष्ट्र की दृढ़ता, उसके लोकतांत्रिक संस्थानों के प्रभाव और उसके लोगों की एकता से प्रदर्शित होती है।