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सांविधानिक विधि
बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा हिजाब पर प्रतिबंध
« »01-Jul-2024
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
परिचय:
जून 2024 में, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने मुंबई के चेंबूर में एक कॉलेज के नौ छात्राओं द्वारा ड्रेस कोड को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। कॉलेज के परिसर में ड्रेस कोड के रूप में हिजाब, नकाब, बुर्का, स्टोल एवं टोपी पहनने पर प्रतिबंध था। न्यायमूर्ति ए. एस. चंदुरकर एवं न्यायमूर्ति राजेश एस. पाटिल की खंडपीठ ने निर्णय दिया कि ड्रेस कोड छात्रों के "व्यापक शैक्षणिक हित" में था।
- न्यायालय ने कॉलेज के निर्णय को यथावत् रखते हुए कहा कि ड्रेस कोड का उद्देश्य छात्रों की धार्मिक पहचान के प्रकटीकरण को रोकना है तथा यह कॉलेज परिसर तक ही सीमित है, इसलिये यह परिसर के बाहर छात्रों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं करता है।
जैनब अब्दुल कय्यूम चौधरी एवं अन्य बनाम चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसायटी के एन. जी. आचार्य एवं डी. के. मराठे कॉलेज एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- एक कॉलेज ने अपने द्वितीय एवं तृतीय वर्ष के स्नातक पाठ्यक्रमों में पढ़ने वाले छात्रों के लिये ड्रेस कोड लागू किया।
- ड्रेस कोड में यह निर्धारित किया गया था कि छात्रों की पोशाक औपचारिक एवं सभ्य होनी चाहिये तथा धार्मिक संबद्धता को प्रकट नहीं करना चाहिये। इसमें परिसर में हिजाब, नकाब, बुर्का, स्टोल, टोपी आदि पहनने पर प्रतिबंध शामिल थे।
- कुछ छात्रों ने इस ड्रेस कोड को चुनौती दी, दावा किया कि यह उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि ड्रेस कोड था:
- मनमाना एवं भेदभावपूर्ण
- उनके परिधान चुनने के अधिकार का उल्लंघन करने वाला
- उनके निजता के अधिकार का उल्लंघन करने वाला
- अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत उनकी अभिव्यक्ति के अधिकार को प्रतिबंधित करने वाला
- संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत उनके धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार को सीमित करने वाला
- कॉलेज ने प्रत्युत्तर दिया कि:
- ड्रेस कोड सभी छात्रों पर समान रूप से लागू होता है
- इसका उद्देश्य अनुशासन बनाए रखना था
- इसका उद्देश्य छात्रों की धार्मिक पहचान को उनके पहनावे के माध्यम से प्रकटित होने से रोकना था
- न्यायालय ने पूर्व के समान मामलों का हवाला दिया:
- फातिमा हुसैन बनाम भारत एजुकेशन सोसायटी और अन्य, (2003) जिसमें सिर पर स्कार्फ़ पहनने पर प्रतिबंध को यथावत् रखा गया था।
- फातिमा थानसीम (नाबालिग) बनाम केरल राज्य, (2019) जिसमें स्कूल के ड्रेस कोड निर्धारित करने के अधिकार का समर्थन किया गया था।
- याचिकाकर्त्ताओं ने दावा किया कि ड्रेस कोड उनके धर्म का पालन करने, निजता के अधिकार एवं पसंद के अधिकार के मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- उन्होंने कॉलेज की कार्यवाही को "मनमाना, अनुचित, विधिविरुद्ध एवं विकृत" बताया।
न्यायालय का अवलोकन क्या है?
- न्यायालय ने पाया कि ड्रेस कोड संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) या अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं करता है। ड्रेस कोड धार्मिक पहचान के बजाय शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करके वैध शैक्षणिक हित की सेवा करता है।
- याचिकाकर्त्ता यह सिद्ध करने में विफल रहे कि हिजाब या नकाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है।
- अनुशासन बनाए रखने का संस्थागत अधिकार कॉलेज परिसर में व्यक्तिगत छात्रों के पोशाक चुनने के अधिकार से अधिक महत्त्वपूर्ण है।
- ड्रेस कोड, समान रूप से लागू होने के कारण, उच्च शिक्षा में समानता पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) (उच्च शिक्षण संस्थानों में साम्यता को बढ़ावा देना) विनियम, 2012 के दिशा-निर्देशों का अनुपालन करता है।
- कॉलेज द्वारा ड्रेस कोड लागू करना अनुच्छेद 19(1)(g) के अंतर्गत अपने मामलों का प्रबंधन करने के संवैधानिक अधिकार के अंतर्गत आता है।
- ड्रेस कोड का दायरा कॉलेज परिसर तक सीमित है, लेकिन यह परिसर की सीमाओं से परे छात्रों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अनुचित रूप से प्रतिबंधित नहीं करता है।
COI का अनुच्छेद 19(1)(a) क्या है?
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में कहा गया है कि सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा।
- इस अनुच्छेद के पीछे का दर्शन संविधान की प्रस्तावना में निहित है, जहाँ सभी नागरिकों को विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने का गंभीर संकल्प किया गया है।
- अनुच्छेद 19(1)(a) में निम्नलिखित पहलू शामिल हैं:
- प्रेस की स्वतंत्रता
- व्यावसायिक भाषण की स्वतंत्रता
- प्रसारण का अधिकार
- सूचना का अधिकार
- आलोचना का अधिकार
- राष्ट्रीय सीमाओं से परे अभिव्यक्ति का अधिकार
- न बोलने का अधिकार या मौन रहने का अधिकार
- अनुच्छेद 19(1)(a), COI के आवश्यक तत्त्व
- यह अधिकार केवल भारत के नागरिक को ही उपलब्ध है, विदेशी नागरिकों को नहीं।
- इसमें किसी भी मुद्दे पर किसी भी माध्यम से अपने विचार एवं राय व्यक्त करने का अधिकार शामिल है, जैसे मौखिक रूप से, लिखित रूप में, मुद्रण, चित्र, फिल्म, चलचित्र आदि के माध्यम से।
- हालाँकि यह अधिकार पूर्ण नहीं है तथा यह सरकार को उचित प्रतिबंध लगाने के लिये विधि निर्माण की अनुमति देता है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 क्या है?
- यह अनुच्छेद अंतःकरण की स्वतंत्रता तथा धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
(1) लोक व्यवस्था, नैतिकता एवं स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता तथा धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने एवं प्रचार करने का समान रूप सेअधिकार है।
(2) इस अनुच्छेद का कोई प्रावधान किसी वर्त्तमान विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या राज्य को कोई विधि निर्माण करने से नहीं रोकेगी।
(क) किसी भी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या अन्य धर्मनिरपेक्ष गतिविधि को विनियमित या प्रतिबंधित करना जो धार्मिक आचरण से जुड़ी हो सकती है।
(ख) सामाजिक कल्याण एवं सुधार या हिंदुओं के सभी वर्गों व उपवर्गों के लिये सार्वजनिक प्रकृति की हिंदू धार्मिक संस्थाओं को खोलने की व्यवस्था करना।
- स्पष्टीकरण I - कृपाण पहनना एवं ले जाना सिख धर्म के पालन में शामिल माना जाएगा।
- स्पष्टीकरण II - खंड के उपखंड (ख) में हिंदुओं के संदर्भ को सिख, जैन या बौद्ध धर्म को मानने वाले व्यक्तियों के संदर्भ के रूप में समझा जाएगा तथा हिंदू धार्मिक संस्थानों के संदर्भ को तद्नुसार समझा जाएगा।
उच्च शिक्षा में समानता एवं शिक्षा संस्थान में ड्रेस कोड के संबंध में क्या दिशा-निर्देश हैं?
- UGC (उच्च शिक्षण संस्थानों में साम्यता को बढ़ावा देना) विनियम, 2012, इसके खंड 3 के अंतर्गत, उच्च शिक्षण संस्थान को भेदभाव के विरुद्ध कदम उठाने की आवश्यकता होती है। जाति, पंथ, धर्म एवं भाषा के आधार पर भेदभाव निषिद्ध है।
- राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान का उद्देश्य पहुँच एवं समानता पर ध्यान केंद्रित करते हुए उच्च शिक्षा के मानकों में सुधार करना है।
- राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान का उद्देश्य उच्च शिक्षा के मानकों में सुधार लाना है, जिसमें पहुँच एवं समानता पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रकाशित परिसरों में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपाय एवं लैंगिक संवेदनशीलता के कार्यक्रम विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में लैंगिक संवेदनशीलता के मुद्दे से निपटते हैं।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य अन्य उद्देश्यों के साथ-साथ उच्च शिक्षा में समानता एवं समावेशन है।
- इसी तरह, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा तैयार उच्च शिक्षण संस्थानों में सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों के लिये समान अवसर प्रदान करने के लिये दिशा-निर्देशों का उद्देश्य उच्च शिक्षण संस्थानों को सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों के लिये समावेशी, न्यायसंगत एवं संवेदनशील बनाना है।
- उपरोक्त सभी दिशा-निर्देश एवं अनुदेश उच्च शिक्षण संस्थानों में भेदभावरहित वातावरण को प्रोत्साहन देने का प्रयास करते हैं।
- वर्तमान मामले में कॉलेज द्वारा जारी किये गए निर्देश सभी छात्रों पर लागू होते हैं, चाहे उनकी जाति, पंथ, धर्म या भाषा कुछ भी हो।
- निर्देशों का उद्देश्य छात्रों को उनके पहनावे के माध्यम से उनके धर्म का प्रकटन करने से रोकना है।
- इसका उद्देश्य किसी भी तरह के भेदभाव को हतोत्साहित करना है।
- न्यायालय को यह नहीं लगता कि कॉलेज द्वारा जारी निर्देशों द्वारा इन दिशा-निर्देशों एवं अनुदेशों का उल्लंघन कैसे किया जाता है।
- इस प्रकार जारी किये गए निर्देश विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा जारी किये गए उपरोक्त दिशा-निर्देशों एवं अनुदेशों की भावना व उद्देश्य के विरुद्ध नहीं हैं।
निष्कर्ष:
जून 2024 में बॉम्बे उच्च न्यायालय के निर्णय ने कॉलेज में ड्रेस कोड को यथावत् रखा, जिसके अंतर्गत कैंपस में धार्मिक पोशाक पहनने पर रोक थी। न्यायालय ने पाया कि ड्रेस कोड एक वैध शैक्षणिक हित को पूरा करता है तथा उच्च शिक्षा में समानता पर संवैधानिक अधिकारों या UGC दिशा-निर्देशों का उल्लंघन नहीं करता है। न्यायाधीशों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ड्रेस कोड सभी छात्रों पर समान रूप से लागू होता है तथा कॉलेज परिसर तक ही सीमित है, इस प्रकार छात्रों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अनुचित रूप से प्रतिबंधित नहीं करता है। यह निर्णय इसी तरह के मामलों पर पिछले निर्णय के अनुरूप है, जो भेदभावरहित शैक्षणिक वातावरण निर्माण करने के उद्देश्य से शैक्षणिक संस्थानों के ड्रेस कोड लागू करने के अधिकार को बल प्रदान करता है।