राज्यपाल पर मामले और आयोग
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सांविधानिक विधि

राज्यपाल पर मामले और आयोग

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 04-Jan-2024

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

ऐसी कई घटनाएँ थीं जहाँ विपक्ष शासित राज्यों के राज्यपालों की आलोचना की गई थी। हाल ही में केरल के राज्यपाल को तब विवाद का सामना करना पड़ा जब कालीकट विश्वविद्यालय के दौरे के दौरान उन्होंने अपनी आलोचना वाले पोस्टर हटाने का आदेश दिया। स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के कार्यकर्त्ताओं को "अपराधी" करार देते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री पर उनका समर्थन करने का आरोप लगाया। इसके बाद, उन्होंने बिना किसी पूर्व सूचना के कोझिकोड का दौरा किया, जिससे विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपालों के आचरण के बारे में चिंताएँ बढ़ गईं, जिससे ऐसे कार्यों के विधिक निहितार्थों का आकलन करने की आवश्यकता महसूस हुई।

  • उच्चतम न्यायालय ने कई मौकों पर राज्यपालों के कृत्यों पर चर्चा की। कई आयोगों ने भी इस पर टिप्पणी की।

राज्यपालों द्वारा अनैतिक कृत्यों के प्रमुख मामले क्या हैं?

  • रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006):
    • SC ने माना कि अनुच्छेद 361 के संदर्भ में राज्यपाल को पूर्ण छूट प्राप्त है।
    • राज्यपाल अपने कार्यालय की शक्तियों और कर्त्तव्यों के प्रयोग एवं प्रदर्शन हेतु या उन शक्तियों व कर्त्तव्यों के प्रयोग में उनके द्वारा किये गए या किये जाने वाले किसी कार्य के लिये किसी भी न्यायालय के प्रति जवाबदेह नहीं है।
      • हालाँकि, इस तरह की छूट दुर्भावना के आधार पर कार्रवाई की वैधता की जाँच करने की न्यायालय की शक्ति को सीमित नहीं करती है।
  • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली बनाम भारत संघ (2018):
    • उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने संवैधानिक संस्कृति की अवधारणा के माध्यम से "संविधान के नैतिक सिद्धांतों" को समझने के महत्त्व को रेखांकित किया।
    • इसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि "संवैधानिक नैतिकता संवैधानिक पदों एवं कार्यालयों पर बैठे व्यक्तियों पर दायित्व और ज़िम्मेदारियाँ आरोपित करती है"।
  • कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 19(2) के सख्त मापदंडों को ध्यान में रखते हुए और भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत स्वतंत्रता को ध्यान में रखते हुए, सामान्य रूप से नागरिकों एवं विशेष रूप से लोक पदाधिकारियों को साथी नागरिकों के खिलाफ अपमानजनक या कटु टिप्पणी करने से रोकने के लिये कानून या संहिता तैयार करना संसद के विवेक पर निर्भर करता है ।

राज्यपाल की शक्तियों पर प्रमुख आयोग क्या हैं?

  • सरकारिया आयोग (1988):
    • आयोग ने कहा कि "कुछ राज्यपाल उनसे अपेक्षित निष्पक्षता एवं दूरदर्शिता के गुणों को प्रदर्शित करने में विफल रहे हैं"।
    • इसमें आगे उल्लेख किया गया है कि "कई राज्यपाल, जो अपने कार्यकाल के बाद संघ के तहत आगे कार्यालय या राजनीति में सक्रिय भूमिका की आशा रखते थे, स्वयं को संघ के अभिकर्त्ता/एजेंट के रूप में मानने लगे"।
  • पुंछी आयोग (2010):
    • इसमें बताया गया कि संवैधानिक दायित्वों का निष्पक्ष रूप से निर्वहन करने में सक्षम होने के लिये, राज्यपाल को उन पदों एवं शक्तियों को प्रभावी नही करना चाहिये जो संविधान द्वारा परिकल्पित नहीं हैं।

निष्कर्ष:

इन मामलों और आयोगों के आलोक में, यह स्पष्ट है कि विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपालों की शक्तियों एवं आचरण की निरंतर जाँच की आवश्यकता है। राज्यपाल के पद की अखंडता को बनाए रखने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिये संवैधानिक प्रतिरक्षा, नैतिक सिद्धांतों व निष्पक्षता के बीच सही संतुलन बनाना महत्त्वपूर्ण है।