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सांविधानिक विधि

केंद्रीय अंवेषण ब्यूरो

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 17-Jul-2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

परिचय:

भारत के उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार के विरुद्ध पश्चिम बंगाल के वाद की वैधता को यथावत् रखा है। इस वाद में केंद्र पर "संवैधानिक अतिक्रमण" का आरोप लगाया गया है, क्योंकि उसने सहमति वापस लेने के बावजूद राज्य में CBI को कार्य करने की अनुमति दी है। न्यायालय ने केंद्र की आपत्तियों को खारिज करते हुए निर्णय दिया कि सरकार वास्तव में CBI को नियंत्रित करती है।

पश्चिम बंगाल राज्य बनाम भारत संघ, 2021 के मामले में पृष्ठभूमि एवं न्यायालय की टिप्पणी क्या है?

  • पृष्ठभूमि:
    • नवंबर 2018 में, पश्चिम बंगाल सरकार ने अपनी सामान्य सहमति वापस ले ली, जिसके अंतर्गत केंद्रीय अंवेषण ब्यूरो (CBI) को राज्य में काम करने की अनुमति दी गई थी।
    • इस वापसी के बावजूद, CBI ने पश्चिम बंगाल में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करना और जाँच करना जारी रखा।
    • प्रत्युत्तर में, राज्य सरकार ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 131 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय में केंद्र सरकार के विरुद्ध वाद संस्थित किया।
    • इस वाद में केंद्र पर बिना सहमति के राज्य में CBI को कार्य करने की अनुमति देकर "संवैधानिक अतिक्रमण" करने का आरोप लगाया गया।
    • इस विधिक कार्यवाही का उद्देश्य सामान्य सहमति के निरस्तीकरण के बाद पश्चिम बंगाल में CBI के संचालन के अधिकार को चुनौती देना था, जिससे राज्य एवं केंद्र सरकार के मध्य एक महत्त्वपूर्ण संघीय विवाद की स्थिति बन गई।
  • न्यायालयी टिप्पणी:
    • उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार के विरुद्ध पश्चिम बंगाल के वाद की वैधता को यथावत् रखा।
    • पीठ ने केंद्र की प्रारंभिक आपत्तियों को खारिज कर दिया, जिसमें यह तर्क भी शामिल था कि CBI एक स्वतंत्र एजेंसी है।
    • न्यायालय ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE) अधिनियम, 1946 के प्रावधानों का हवाला देते हुए निर्णय दिया कि CBI केंद्र सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण में है।
    • पीठ ने कहा कि यह वाद सामान्य सहमति वापस लेने के बाद FIR दर्ज करने एवं मामलों की जाँच करने के CBI के अधिकार के विषय में एक वैध विधिक मुद्दा उठाता है।
    • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उसके वर्तमान निष्कर्ष केवल स्थिरता निर्धारित करने के लिये हैं तथा इससे वाद पर अंतिम निर्णय पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

पश्चिम बंगाल राज्य बनाम भारत संघ के मामले में "इस संविधान के प्रावधानों के अधीन" का निर्वचन:

  • न्यायालय ने पूर्व निर्णयों से यह निष्कर्ष निकाला कि सक्षम प्राधिकारियों द्वारा बनाया गया संविधान-पूर्व विधि तब तक लागू रहेगी जब तक कि वह संविधान के किसी अन्य प्रावधान का उल्लंघन न करती हो।
  • उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 131 के संबंध में न्यायालय केवल उसी मामले पर विचार कर सकता है जहाँ विवाद समान पक्षों के मध्य हो, इसे और स्पष्ट करने के लिये उसने अनुच्छेद 262 का संदर्भ दिया।
    • यह कहा गया कि अनुच्छेद 262 के अंतर्गत आने वाले मामलों को अनुच्छेद 131 के अंतर्गत नहीं निपटान किया जाएगा, जैसा कि “इस संविधान के प्रावधानों के अधीन” पढ़ा गया है।
    • उच्चतम न्यायालय ने आगे कहा कि अनुच्छेद 32 एवं अनुच्छेद 136 भारत के संविधान के अंतर्गत ‘किसी भी पक्ष’ को प्रदान किये गए उपचार हैं।

CBI क्या है?

  • केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) भारत की प्रमुख जाँच पुलिस एजेंसी है।
    • यह केंद्रीय सतर्कता आयोग एवं लोकपाल को सहायता प्रदान करता है।
  • यह कार्मिक विभाग, कार्मिक, पेंशन एवं लोक शिकायत मंत्रालय, भारत सरकार के अधीक्षण के अधीन कार्य करता है- जो प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत आता है।
    • हालाँकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अधीन अपराधों की जाँच के लिये इसका अधीक्षण केंद्रीय सतर्कता आयोग के पास है।
  • यह भारत में नोडल पुलिस एजेंसी भी है जो इंटरपोल सदस्य देशों की ओर से जाँच का समन्वय करती है।
  • इसकी सज़ा दर 65 से 70% तक है तथा यह दुनिया की सर्वश्रेष्ठ जाँच एजेंसियों के बराबर है।
  • CBI एक सांविधिक निकाय नहीं है, बल्कि केंद्र की एक जाँच एजेंसी है।
  • उन्होंने तर्क दिया कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना, 1946 (DSPE अधिनियम) के अंतर्गत, CBI की निगरानी केवल भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम से संबंधित अपराधों के संबंध में केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के पास है तथा अन्य सभी मामलों के लिये यह केंद्र सरकार के अधीन है।

CBI का गठन?

  • CBI की जड़ें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1941 में युद्ध से संबंधित भ्रष्टाचार की जाँच के लिये गठित विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (एसपीई) से जुड़ी हैं।
  • दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (DSPE) अधिनियम, 1946 ने भारत सरकार में भ्रष्टाचार की जाँच के लिये इस एजेंसी को औपचारिक रूप दिया।
  • CBI एक सनिधिक निकाय नहीं है, लेकिन DSPE अधिनियम, 1946 से इसकी जाँच शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
  • भ्रष्टाचार निवारण पर संथानम समिति (1962-1964) ने CBI के स्थापना की अनुशंसा की।
  • वर्ष 1963 में, भारत सरकार ने गंभीर अपराधों की जाँच के लिये CBI की स्थापना की, जिसमें शामिल हैं:
    • राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा
    • उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार
    • बड़ी धोखाधड़ी एवं गबन
    • जमाखोरी एवं कालाबाज़ारी जैसे सामाजिक अपराध
    • अखिल भारतीय एवं अंतर्राज्यीय निहितार्थ वाले मामले
  • समय के साथ, CBI का दायरा बढ़कर इसमें पारंपरिक अपराध जैसे हत्या, अपहरण, विमान अपहरण एवं चरमपंथी गतिविधियाँ भी शामिल हो गईं।

DSPE अधिनियम में सामान्य सहमति क्या है?

  • DSPE अधिनियम की धारा 6 के अनुसार CBI को जाँच के लिये राज्य की सहमति प्राप्त करनी होगी।
  • सामान्य सहमति, CBI को संचालन के लिये राज्यों से मिलने वाली व्यापक अनुमति है।
  • यह CBI को मामले के अनुसार स्वीकृति के बिना जाँच करने की अनुमति देता है।
  • सहमति दो प्रकार की होती है- सामान्य सहमति एवं विशिष्ट सहमति।
    • जब कोई राज्य सामान्य सहमति देता है, तो CBI को प्रत्येक मामले के लिये अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती है।
    • हालाँकि अगर सामान्य सहमति वापस ले ली जाती है, तो CBI को राज्य से मामले के हिसाब से विशिष्ट सहमति लेने की आवश्यकता होती है।
  • कई विपक्षी शासित राज्यों ने CBI जाँच के लिये अपनी सामान्य सहमति वापस ले ली है, जिससे उन राज्यों में केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों की स्वतंत्र रूप से जाँच करने की CBI की क्षमता में बाधा उत्पन्न हुई है।
    • जिन राज्यों ने सामान्य सहमति वापस ले ली है, वे हैं- मिज़ोरम, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं फिर पंजाब, महाराष्ट्र, राजस्थान, केरल व झारखंड (2020)।
    • तेलंगाना, तमिलनाडु एवं मेघालय ने वर्ष 2022 में सामान्य सहमति वापस ले ली।
  • सामान्य सहमति से केंद्र सरकार के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार की जाँच में सहायता मिलती है।
  • केंद्रशासित प्रदेशों या रेलवे क्षेत्रों के लिये सहमति की आवश्यकता नहीं है।
  • राज्य अपनी इच्छानुसार सामान्य सहमति दे सकते हैं या वापस ले सकते हैं।
  • वापसी के लिये CBI को प्रत्येक मामले के लिये विशिष्ट अनुमति लेनी होगी।
  • वर्ष 2015 से कई राज्यों ने दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए सहमति रद्द कर दी है।
  • निरस्तीकरण से उन राज्यों में नए मामले शुरू करने की CBI की क्षमता पर काफी हद तक प्रतिबंध लग जाता है।
  • आम सहमति के अभाव के बावजूद उच्च न्यायालय अभी भी CBI जाँच का निर्देश दे सकते हैं।
  • यह प्रावधान केंद्रीय जाँच शक्तियों को राज्य की स्वायत्तता के साथ संतुलित करता है।

उच्चतम न्यायालय  CBI के केंद्र सरकार के साथ संबंधों को किस प्रकार देखता है?

  • उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि CBI पूरी तरह से स्वतंत्र एजेंसी नहीं है।
  • CBI की स्थापना, संचालन एवं अधिकारिता दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE) अधिनियम, 1946 के अधीन की गई है।
  • अधिकांश अपराधों के लिये CBI पर केंद्र सरकार का नियंत्रण होता है।
  • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अधीन मामलों के लिये, केंद्रीय सतर्कता आयोग के पास अधीक्षण है।
  • केंद्र सरकार CBI के कार्यों एवं संचालन में निकटता से शामिल है।
  • यह निर्णय पुष्टि करता है कि CBI केंद्र सरकार के महत्त्वपूर्ण नियंत्रण में है, जो पूर्ण स्वतंत्रता के दावों के विपरीत है।

 CBI निदेशक की नियुक्ति कौन करता है?

  • CBI निदेशक दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान के पुलिस महानिरीक्षक के रूप में संगठन के प्रशासन के लिये उत्तरदायी हैं।
  • वर्ष 2014 तक, नियुक्तियाँ DSPE अधिनियम, 1946 पर आधारित थीं।
  • वर्ष 2003 में, विनीत नारायण मामले में उच्चतम न्यायालय की अनुशंसा के बाद DSPE अधिनियम को संशोधित किया गया था।
  • वर्ष 2014 के लोकपाल अधिनियम ने एक नई नियुक्ति समिति की स्थापना की: प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), विपक्ष के नेता एवं भारत के मुख्य न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश।
  • गृह मंत्रालय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को पात्र उम्मीदवारों की एक सूची प्रदान करता है, जो वरिष्ठता, सत्यनिष्ठा एवं भ्रष्टाचार विरोधी जाँच के अनुभव के आधार पर उम्मीदवारों को अंतिम रूप देता है।
  • CVC अधिनियम, 2003 CBI निदेशक के लिये दो वर्ष के कार्यकाल की अवधि प्रदान करता है।
  • वर्ष 2021 में, राष्ट्रपति के अध्यादेशों ने CBI एवं ED निदेशकों के कार्यकाल को दो वर्ष से बढ़ाकर पाँच वर्ष करने की अनुमति दी।
  • DSPE अधिनियम संशोधन समिति की अनुशंसा एवं सार्वजनिक हित के आधार पर एक वर्ष के विस्तार की अनुमति देता है, जो कुल पाँच वर्ष तक हो सकता है।

निष्कर्ष:

पश्चिम बंगाल के वाद पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय इस तथ्य की पुष्टि करता है कि CBI पर केंद्र सरकार का DSPE अधिनियम के अधीन महत्त्वपूर्ण नियंत्रण है, भले ही एजेंसी की स्वतंत्रता के दावे किये जाते हों। यह निर्णय जाँच शक्तियों से संबंधित संघीय-राज्य संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ को चिह्नित करता है, जिसका भारत में राज्यों की स्वायत्तता एवं न्याय प्रशासन पर प्रभाव पड़ता है।