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आपराधिक कानून

भारत में साइबर अपराध

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 09-Oct-2023

परिचय

साइबर सुरक्षा कंप्यूटर, सर्वर, मोबाइल डिवाइस, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम, नेटवर्क और डेटा को दुर्भावनापूर्ण हमलों से बचाने की प्रथा है और इन दिनों साइबर सुरक्षा संबंधी खतरों में वृद्धि हो रही है।

प्रौद्योगिकी के विकास के साथ साइबर अपराधों में तीव्रता आई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, पंजीकृत मामलों की संख्या वर्ष 2016 में 12,317 थी, जो बढ़कर वर्ष 2020 में 50,035 मामलों तक पहुँच गई, जबकि वर्ष 2021 में बढ़कर 52975 हो गई।

झारखंड का जामताड़ा पहले साइबर अपराध का केंद्र था, लेकिन वर्तमान में यह अपराध संपूर्ण भारत में वृहद स्तर पर विसरित हो गया है।

साइबर अपराध, जिसे वैकल्पिक रूप से कंप्यूटर अपराध के रूप में जाना जाता है, का अर्थ है, अवैध उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिये एक उपकरण के रूप में कंप्यूटर का उपयोग करना, जैसे धोखाधड़ी करना, चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी और बौद्धिक संपदा में दुर्व्यापार, पहचान चोरी करना या गोपनीयता का उल्लंघन करना, आदि।

भारत में साइबर अपराध के विभिन्न रूप

  • भारत में विभिन्न रूपों में साइबर अपराधों में वृद्धि देखी गई है, जिनमें से कुछ का विवरण नीचे दिया गया है:
    • लोगों को वीडियो कॉल आती हैं और फिर बाद में उन्हें ऐसी तस्वीरों और वीडियो पर अपना चेहरा लगा हुआ अश्लील तस्वीरें और वीडियो मिलते हैं।
    • जबकि कई बार तो ऐसा होता है कि पीड़ित ने कुछ किया भी नहीं होता है, फिर भी वह साइबर अपराध का शिकार हो जाता है। ऐसा सोशल मीडिया पर किसी के नाम से एक फर्जी प्रोफ़ाइल बनाकर और फिर उस प्रोफ़ाइल के माध्यम से धन या दान की मांगकर किया जा सकता है।
    • लोगों को ऑनलाइन धोखा देने का एक अन्य प्रचलित तरीका वित्तीय धोखाधड़ी या अन्य आपराधिक गलतियाँ करने के लिये खरीदे गए सिम कार्ड को सक्रिय करने के लिये अपना मोबाइल नंबर प्रदान करना है।
  • संचालन में आसानी के कारण ऑनलाइन धोखाधड़ी का दायरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है क्योंकि उद्यम शुरू करने के लिये किसी को मात्र एक स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्शन की आवश्यकता होती है।
  • हालाँकि यह आश्चर्य वाली बात है, कि इन धोखेबाजों को फोन नंबर कहाँ से मिलते हैं, लेकिन यह जानकर काफी हैरानी होती है, कि हाल ही में पुलिस ने 24 राज्यों और 8 मेट्रो शहरों में 669 मिलियन लोगों के संवेदनशील डेटा को हैक करने और बेचने के आरोप में फरीदाबाद के एक व्यक्ति को पकड़ा है।

भारत में साइबर अपराधों के संबंध में कानूनी प्रावधान

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000

  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 17 अक्तूबर, 2000 को लागू हुआ।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत अपराध इस प्रकार हैं:
    • धारा 65 - कंप्यूटर स्रोत दस्तावेज़ों के साथ छेड़छाड़ - यदि कोई व्यक्ति किसी कंप्यूटर, कंप्यूटर प्रोग्राम, कंप्यूटर सिस्टम या कंप्यूटर नेटवर्क के लिये उपयोग किये जाने वाले किसी भी कंप्यूटर स्रोत संबंधी कोड को जानबूझकर छुपाता है, नष्ट करता है या बदलता है या जानबूझकर किसी अन्य को छिपाने, नष्ट करने या बदलने का कारण बनता है। जब कंप्यूटर स्रोत कोड को कुछ समय के लिये लागू कानून द्वारा बनाए रखा जाना आवश्यक हो।
      दंड- तीन वर्ष तक की कैद या/और 200,000 रुपये तक का ज़ुर्माना।
    • धारा 66 - कंप्यूटर सिस्टम की हैकिंग - यदि कोई व्यक्ति जनता या किसी अन्य व्यक्ति को अनुचित तरीके से हानि या क्षति पहुँचाने के आशय से या यह जानते हुए कि वह कंप्यूटर में मौज़ूद किसी भी जानकारी को नष्ट कर देता है या हटा देता है या बदल देता है या उसका मूल्य कम कर देता है या उपयोगिता या किसी भी माध्यम से इसे हानिकारक रूप से प्रभावित करता है, हैक करता है।
      दंड - तीन वर्ष तक की कैद, या/और 500,000 रुपये तक का ज़ुर्माना।
    • धारा 66B - चोरी हुए कंप्यूटर या संचार उपकरण को प्राप्त करना - कोई व्यक्ति ऐसे कंप्यूटर या संचार उपकरण को प्राप्त करता है या अपने पास रखता है जिसके चोरी होने की जानकारी है या व्यक्ति को यह पता है कि उक्त कंप्यूटर या संचार उपकरण चोरी हो गया है।
      दंड- तीन वर्ष तक की कैद, या/और 100,000 रुपये तक का ज़ुर्माना।
    • धारा 66C - किसी अन्य व्यक्ति के पासवर्ड का उपयोग करना - कोई व्यक्ति धोखाधड़ी से किसी अन्य व्यक्ति के पासवर्ड, डिजिटल हस्ताक्षर या अन्य विशिष्ट पहचान का उपयोग करता है।
      दंड - तीन वर्ष तक की कैद या/और 100,000 रुपये तक का ज़ुर्माना।
    • धारा 66D - कंप्यूटर का उपयोग करके छल - यदि कोई व्यक्ति कंप्यूटर या संचार उपकरण का उपयोग करके किसी के साथ छल करता है।
      दंड - तीन वर्ष तक की कैद या/और 100,000 रुपये तक का ज़ुर्माना।
    • धारा 66E - दूसरों की निज़ी तस्वीरें प्रकाशित करना - यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की सहमति या जानकारी के बिना उसकी निज़ी तस्वीरें खींचता है, प्रसारित करता है या प्रकाशित करता है।
      दंड - तीन वर्ष तक की कैद, या/और 200,000 रुपये तक का ज़ुर्माना।
    • धारा 66F - साइबर आतंकवाद का अधिनियम - यदि कोई व्यक्ति भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता या संरक्षण को खतरे में डालने के आशय से किसी कंप्यूटर तक अधिकृत कर्मियों की पहुँच बनाता है, संरक्षित प्रणाली तक पहुँच बनाता है या किसी प्रणाली में संदूषक का प्रयोग करता है, तो वह साइबर आतंकवाद गतिविधियों से संबंधित माना जाता है।
      दंड - आजीवन कारावास।
    • धारा 67 - ऐसी जानकारी का प्रकाशन जिसे ई-प्ररूप में अश्लील माना जाता हो - यदि कोई व्यक्ति इलेक्ट्रॉनिक प्ररूप में कोई ऐसी सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करता है या प्रकाशित करवाता है जो अश्लील है या स्वार्थी हित को आकर्षित करती है या यदि उसका प्रभाव गलत है। ऐसे दुराचारी और भ्रष्ट व्यक्ति, जो सभी प्रासंगिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, उसमें निहित या सन्निहित मामले को पढ़ने, देखने या सुनने की संभावना रखते हैं।
      दंड - पाँच वर्ष तक की कैद, या/और 1,000,000 रुपये तक का ज़ुर्माना।
    • धारा 67A - यौन कृत्यों वाली छवियों/तस्वीरों को प्रकाशित करना - यदि कोई व्यक्ति स्पष्ट यौन कृत्य या आचरण वाली छवियों को प्रकाशित या प्रसारित करता है।
      दंड - सात वर्ष तक की कैद, या/और 1,000,000 रुपये तक का ज़ुर्माना।
    • धारा 67B - बाल अश्लीलता प्रकाशित करना या बच्चों को ऑनलाइन शिकार बनाना - यदि कोई व्यक्ति स्पष्ट यौन कृत्य या आचरण में किसी बच्चे की तस्वीरें खींचता है, प्रकाशित करता है या प्रसारित करता है। यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे को यौन क्रिया के लिये प्रेरित करता है। यहाँ बच्चे को 18 वर्ष से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है।
      दंड - पहली बार दोषी पाए जाने पर पाँच वर्ष तक की कैद, या/और 1,000,000 रुपये तक का ज़ुर्माना। दूसरी बार दोषी पाए जाने पर सात वर्ष तक की कैद या/और 1,000,000 रुपये तक का ज़ुर्माना।
    • धारा 67C - रिकॉर्ड के रखरखाव में विफलता - मध्यस्थ समझे जाने वाले व्यक्तियों (जैसे कि ISP) को निर्धारित समय के लिये आवश्यक रिकॉर्ड बनाए रखना होगा। विफलता एक अपराध है।
      दंड - तीन वर्ष तक की कैद, या/और ज़ुर्माना।
    • धारा 68 - आदेशों का अनुपालन करने में विफलता/इंकार - नियंत्रक, आदेश के माध्यम से प्रमाणन प्राधिकारी या ऐसे प्राधिकरण के किसी भी कर्मचारी को ऐसे उपाय करने या आदेश में निर्दिष्ट ऐसी गतिविधियों को बंद करने का निर्देश दे सकता है, यदि वे अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हों। इस अधिनियम, नियमों या इसके तहत बनाए गए किसी भी विनियम के प्रावधानों के साथ, कोई भी व्यक्ति जो ऐसे किसी भी आदेश का पालन करने में विफल रहता है, अपराध का दोषी होगा।
      दंड - तीन वर्ष तक की कैद, या/और 200,000 रुपये तक का ज़ुर्माना।
    • धारा 69 - डेटा को डिक्रिप्ट करने में विफलता- यदि नियंत्रक संतुष्ट है, कि भारत की संप्रभुता या अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध या सार्वजनिक व्यवस्था या उसके हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है। किसी भी संज्ञेय अपराध को करने के लिये, उकसाने से रोकने के लिये कारणों को लिखित रूप में दर्ज करके, आदेश के माध्यम से सरकार की किसी भी अभिकरण को किसी भी कंप्यूटर के माध्यम से प्रसारित करके किसी भी जानकारी को रोकने का निर्देश दे सकता है। अभिदाता या कंप्यूटर का प्रभारी कोई भी व्यक्ति, किसी भी अभिकरण द्वारा बुलाए जाने पर, जिसे निर्देशित किया गया है, जानकारी को डिक्रिप्ट करने के लिये सभी सुविधाएँ और तकनीकी सहायता प्रदान करेगा। ग्राहक या कोई भी व्यक्ति जो संदर्भित अभिकरण की सहायता करने में विफल रहता है, उसे अपराध माना जाता है।
      दंड - सात वर्ष तक की कैद और संभावित ज़ुर्माना।
    • धारा 70 - संरक्षित प्रणाली तक पहुँच सुनिश्चित करना - उपयुक्त सरकार, आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से किसी भी कंप्यूटर, कंप्यूटरीकृत प्रणाली या कंप्यूटर नेटवर्क को एक संरक्षित प्रणाली घोषित कर सकती है। उपयुक्त सरकार लिखित आदेश के द्वारा उन व्यक्तियों को अधिकृत कर सकती है, जो संरक्षित प्रणालियों तक पहुँचने के लिये अधिकृत हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी संरक्षित प्रणाली तक पहुँच सुरक्षित करता है या उस तक पहुँच सुनिश्चित करने का प्रयास करता है, तो वह अपराध कर रहा है।
      दंड - दस वर्ष तक की कैद, या/और ज़ुर्माना।
    • धारा 71 - गलत बयानबाज़ी - यदि कोई व्यक्ति लाइसेंस या डिज़िटल हस्ताक्षर प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिये नियंत्रक या प्रमाणन प्राधिकारी के समक्ष कोई गलत बयानबाज़ी करता है, या किसी भी महत्त्वपूर्ण तथ्य को छुपाता है।
      दंड - तीन वर्ष तक की कैद, या/और 100,000 रुपये तक का ज़ुर्माना।
  • श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (वर्ष 2015) मामले में शीर्ष न्यायालय द्वारा उपरोक्त अधिनियम की धारा 66A को असांविधिक करार दिया गया था।
    • इस धारा में संचार सेवा आदि के माध्यम से आपत्तिजनक संदेश भेजने पर सजा का प्रावधान था।

भारतीय दंड संहिता, 1860

  • भारतीय दंड संहिता, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत साइबर अपराध संबंधी अपराधियों को दंडित करने में सहायता करती है।
  • साइबर धोखाधड़ी के निवारण हेतु कुछ प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:
    • धारा 463 - जालसाजी/कूटरचना - जो कोई जनता या किसी व्यक्ति को नुकसान या चोट पहुँचाने के आशय से, या किसी दावे या शीर्षक का समर्थन करने के आशय से कोई गलत दस्तावेज़ या गलत इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का हिस्सा बनाता है, या किसी व्यक्ति को संपत्ति से अलग करने के लिये प्रेरित करने या किसी निहित अनुबंध में प्रवेश करने या धोखाधड़ी करने के आशय से या छल करता है, जालसाजी करता है।
    • धारा 465 - जालसाजी के लिये सजा - जो भी जालसाजी करेगा उसे दो वर्ष तक की कैद या ज़ुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।
    • धारा 468 - छल के उद्देश्य से जालसाजी -जो कोई इस आशय से जालसाजी करेगा कि जाली दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का उपयोग छल के प्रयोजन हेतु किया जाएगा, उसे निश्चित अवधि के लिये कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और ज़ुर्माने के लिये भी उत्तरदायी होगा।

साइबर अपराध रोकने के उपाय

  • नीचे दिये गए कुछ चरणों का पालन करके साइबर अपराधों को रोका जा सकता है:
    • सख्त सुरक्षा प्रवर्तित करना और उसे अद्यतन रखना।
    • किसी अजनबी को व्यक्तिगत जानकारी न देना
    • अद्यतन एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर का उपयोग करना।
    • अनधिकृत वेबसाइटों पर जाते समय अपनी जानकारी सुरक्षित रखना

निष्कर्ष

हम डिजिटल युग में रह रहे हैं, जहाँ साइबरस्पेस  सीमित नहीं है, बल्कि यह संपूर्ण विश्व को कवर करता है। परिणामस्वरूप न केवल भारत बल्कि संपूर्ण विश्व में साइबर क्राइम दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। उक्त समस्या, आधुनिक प्रौद्योगिकी का परिणाम है, जो हमारी सुरक्षा हेतु बनाई गई थी, लेकिन वर्तमान में इसका उल्टा हो गया है, इसके उपभोक्ता के रूप में हमें सुरक्षित रहने के लिये सतर्कता बरतनी चाहिये।