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सांविधानिक विधि

पारिवारिक सहयोजन विलेख

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 24-Nov-2023

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

मद्रास उच्च न्यायालय ने हाल ही में सुषमा बनाम राज्य (2023) मामले में समलैंगिक विवाह को संरक्षित करते हुए एक निर्णय दिया। इस मामले में याचिकाकर्त्ता ने न्यायालय से इस समुदाय का हिस्सा बनने वाले व्यक्तियों के मूल अधिकारों की रक्षा के लिये LGBTQAI+ भागीदारों के बीच हुए नागरिक संघ को मान्यता देते हुए ''पारिवारिक सहयोजन के विलेख'' को मान्यता देने के लिये उचित आदेश जारी करने का अनुरोध किया।

पारिवारिक सहयोजन विलेख क्या है?

  • LGBTQAI+ समुदाय के भीतर पारिवारिक संबंधों की मान्यता की आवश्यकता को संबोधित करने के लिये एक प्रस्तावित समाधान 'पारिवारिक सहयोजन विलेख (DFA)' की शुरुआत है। जिसमें समुदाय के व्यक्ति, उनके साथी और वे लोग शामिल हैं जो उनके साथ परिवार शुरू करना या जारी रखना चुनते हैं।
  • यह एक समझौता होगा जिसे यदि लागू किया जाता है व पंजीकरण के लिये उपलब्ध कराया जाता है, तो यह समझौता LGBTQAI+ सदस्यों और उनके चुने हुए परिवारों के सामाजिक एकीकरण में योगदान दे सकता है, साथ ही इन परिवार इकाइयों के लिये आवश्यक सुरक्षा उपाय भी प्रदान कर सकता है।
    • DFA को पंजीकरण के माध्यम से भागीदारों एवं विधिक आयु के उनके चयनित परिवार के सदस्यों की विधिक स्थिति की पुष्टि करनी चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त, इसे उत्पीड़न, हिंसा, भेदभाव जैसे कई कृत्यों के खिलाफ निवारक के रूप में कार्य करना चाहिये।
  • पारिवारिक सहयोजन विलेख पर न्यायालय द्वारा क्या सुझाव दिये गए हैं?
    • पारिवारिक सहयोजन विलेख याचिकाकर्त्ता द्वारा केवल उन अधिकारों की रक्षा के लिये प्रस्तावित किया गया है जिनकी गारंटी भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई है।
    • संभवतः यह समलैंगिक संबंधों को कुछ सम्मान और दर्जा देगा।
    • HC ने सुझाव दिया कि राज्य पारिवारिक सहयोजन के ऐसे विलेख के पंजीकरण और ऐसे विलेख के दायरे के लिये एक प्रक्रिया ला सकता है।
    • यदि ऐसा किया जाता है, तो राज्य उन व्यक्तियों को अपनी स्वीकृति दर्शाने में सक्षम होगा, जो समुदाय में किसी संबंध में हैं और इससे काफी हद तक समाज में ऐसे व्यक्तियों की स्थिति में वृद्धि होगी।

सुषमा बनाम राज्य (2023) फैसले पर विधिशास्त्र का क्या प्रभाव है?

  • हेनरी मेन (Henry Maine) और ग्रेवसन (Graveson) के विचार विधिशास्त्र के अंतर्गत आते हैं, जो स्थिति से लेकर अनुबंध तक तथा फिर विधि तक कानून के विकास पर ज़ोर देते हैं।
  • "अनुबंध की स्थिति" को न्यायविद् हेनरी मेन एंशिएंट लॉ (1861) के कार्य के अध्याय V से अपनाया गया है।
    • मेन ने एक निश्चित सामाजिक स्थिति को लेकर पारस्परिक रूप से सहमत व्यवस्था (अनुबंध) के दौरान उन्नत समाजों में संक्रमण का वर्णन किया।
  • बाद में यह प्रतिपादित किया गया कि अनुबंध, कानून बन जाता है।
  • हालाँकि सुप्रियो बनाम भारत संघ (2023) में उच्चतम न्यायालय के फैसले में कहा गया है कि संविधान और विवाह कानूनों सहित कुछ कानून पर भरोसा नहीं किया जा सकता है, इसलिये मद्रास HC के फैसले ने कानून के संविदात्मक पहलू को महत्त्व दिया।

सुषमा बनाम राज्य (2023) फैसले के संबंध में तमिलनाडु सरकार को अब क्या करना चाहिये?

  • राज्य सरकार के पास नागरिक संघों की अवधारणा को स्थापित करने और समलैंगिक युगलों को ऐसी मान्यता देने वाले कानून पारित करने का अधिकार है।
  • उच्चतम न्यायालय के मुताबिक यह विधायिका के दायरे में आता है।
  • इसके अलावा, विवाह, तलाक, विरासत, उत्तराधिकार, अवयस्क, दत्तक ग्रहण आदि से संबंधित विभिन्न कानून संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में सूचीबद्ध हैं, इसलिये राज्य सरकार कानून बनाने के लिये अधिकृत है।

निष्कर्ष:

मद्रास उच्च न्यायालय का निर्णय अधिक समावेशी और अधिकारों की पुष्टि करने वाले विधिक परिदृश्य को संभव बनाता है तथा अब यह राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह इस प्रगतिशील दृष्टिकोण को मूर्त विधिक ढाँचे में परिवर्तित करे जो LGBTQAI+ समुदाय के सभी सदस्यों को समान सुरक्षा एवं मान्यता प्रदान करे।