शत्रु एजेंट अध्यादेश, 2005
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आपराधिक कानून

शत्रु एजेंट अध्यादेश, 2005

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 27-Jun-2024

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस  

परिचय:

जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक ने क्षेत्र में आतंकवाद विरोधी अभियान के लिये अधिक कठोर दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया है। उन्होंने प्रस्ताव दिया कि आतंकवादियों की सहायता करने वाले व्यक्तियों पर वर्ष 2005 के शत्रु एजेंट अध्यादेश के तहत वाद चलाया जाना चाहिये, जो कि सामान्यतः  प्रयोग किये जाने वाले अविधिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) से कहीं अधिक कठोर विधि है।

  • यह अध्यादेश दोषी पाए गए लोगों के लिए आजीवन कारावास या मृत्युदण्ड की अनुमति देता है। पुलिस महानिदेशक ने अपने बयान में स्पष्ट कहा कि सक्रिय आतंकवादियों पर वाद चलाने के बजाय "गोली मार दी जानी चाहिये", जबकि उनका समर्थन करने वालों के साथ शत्रुओं के एजेंट जैसा व्यवहार किया जाएगा। यह दृष्टिकोण जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद तथा उसके समर्थकों से निपटने में कठोर उपायों के प्रयोग की ओर संभावित झुकाव का संकेत देता है।

शत्रु एजेंट अध्यादेश, 2005 क्या है?

  • परिचय:
    • मूलतः जम्मू-कश्मीर के डोगरा महाराजा द्वारा वर्ष 1917 में जारी किया गया यह अध्यादेश वर्तमान में भी प्रभावी है।
    • इसमें शत्रुओं की सहायता करने या भारतीय सैन्य अभियानों में बाधा डालने पर कठोर दण्ड का प्रावधान किया गया है, जिसमें मृत्युदण्ड, आजीवन कारावास या अर्थदण्ड के साथ 10 वर्ष तक का कठोर कारावास शामिल है।
    • विधि में "शत्रु एजेंटों" को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है, जिसमें वे व्यक्ति शामिल हैं जो शत्रुओं की सहायता करते हैं या भारतीय सुरक्षाबलों के लिये शत्रुतापूर्ण गतिविधियों में संलग्न होते हैं।
    • भारत के विभाजन और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन सहित महत्त्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तनों के उपरांत भी इसे यथावत् रखा गया है।
    • इस अध्यादेश को UAPA जैसे अन्य आतंकवाद विरोधी विधियों की तुलना में अधिक कठोर माना जा रहा है।
  •  जम्मू-कश्मीर शत्रु एजेंट अध्यादेश का इतिहास:
    • वर्ष 1917 में डोगरा शासन के दौरान अधिनियमित इस विधि को, विधियों के नामकरण की परंपरा के अनुसार "अध्यादेश" कहा जाता था।
    • वर्ष 1947 में भारत के विभाजन के उपरांत, इस अध्यादेश को नवगठित जम्मू और कश्मीर राज्य के विधिक ढाँचे में शामिल कर लिया गया।
    • क्षेत्र की बदलती राजनीतिक और सुरक्षा स्थितियों के अनुरूप विधियों में समय-समय पर संशोधन किये गए।
    • वर्ष 2019 में, जब भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया गया, तो उसके उपरांत हुए व्यापक विधिक पुनर्गठन में अध्यादेश को यथावत् रखा गया।
    • जबकि कई राज्य-विशिष्ट विधियों को भारतीय राष्ट्रीय विधियों से प्रतिस्थापित कर दिया गया, परंतु जम्मू-कश्मीर शत्रु एजेंट अध्यादेश को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम जैसे अन्य सुरक्षा-संबंधी विधियों के साथ यथावत् रखा गया।

शत्रु एजेंट अध्यादेश, 2005 का अवलोकन:

  • परिभाषा:
    • अधिनियम की धारा 2 परिभाषाओं से संबंधित है।
    • "शत्रु" का तात्पर्य ऐसे किसी भी व्यक्ति से है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राज्य में विधि द्वारा स्थापित सरकार को विस्थापित करने के लिये विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा किये गए आक्रमण में भाग ले रहा है अथवा सहायता कर रहा है।
    • "शत्रु एजेंट" से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है, जो शत्रु के सशस्त्र बल के सदस्य के रूप में कार्य नहीं करता है, परंतु जो शत्रु द्वारा नियोजित है, या उसके लिये काम करता है, या उससे प्राप्त निर्देशों पर कार्य करता है।
  • दण्ड:
    • अधिनियम की धारा 3 शत्रु की सहायता करने पर दण्ड से संबंधित है।
    • इसमें कहा गया है कि जो कोई शत्रु का एजेंट है या शत्रु की सहायता करने के आशय से किसी अन्य व्यक्ति के साथ मिलकर ऐसा कोई कार्य करता है, करने का प्रयास करता है या करने का षड़यंत्र रचता है, जिसका उद्देश्य शत्रु की सैन्य या हवाई कार्यवाहियों में सहायता करना या भारतीय सेनाओं की सैन्य या हवाई कार्यवाहियों में बाधा डालना या सुरक्षा बलों के जीवन को खतरे में डालना या आगजनी करना है, तो उसे मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की अवधि के कठोर कारावास से दण्डित किया जाएगा और साथ ही अर्थदण्ड भी देना होगा।
    • इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि कोई व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत अपराध का दोषी होगा, यदि वह यह जानते हुए भी कि जासूसी या तोड़फोड़ के लिये उपयोग किये जाने वाले हथियार और विस्फोटक या कोई उपकरण आक्रमणकारी या शत्रु एजेंट द्वारा फेंक दिया गया है या छोड़ दिया गया है परंतु वह व्यक्ति, यह जानते हुए भी निकटतम मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को फेंके गए या छोड़े गए हथियारों, गोलाबारूद या उपकरण के विषय में सूचित नहीं करता है।
  • इस अध्यादेश के अंतर्गत विचारणीय अपराध:
    • अधिनियम की धारा 4 इस अध्यादेश के अंतर्गत विचारणीय अपराधों से संबंधित है।
    • इसमें कहा गया है कि जहाँ किसी व्यक्ति पर धारा 3 के अधीन दण्डनीय अपराध के लिये विशेष न्यायाधीश के समक्ष आरोप लगाया जाता है, उस पर किसी अन्य अपराध के लिये उसी विचारण में आरोप लगाया जा सकता है एवं विचारण किया जा सकता है, जिसके लिये उस पर दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1989 के अधीन विचारण किया जा सकता था और इस अध्यादेश की प्रक्रिया किसी भी ऐसे अन्य अपराध के विचारण पर प्रयुक्त होगी।
  • अपील और समीक्षा:
    • यह अध्यादेश, निर्णय के विरुद्ध अपील को प्रतिबंधित करता है। निर्णयों की समीक्षा सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में से चुने गए एक नामित व्यक्ति तक सीमित है, जिसका निर्णय अंतिम होता है।

अध्यादेश के अंतर्गत परीक्षण प्रक्रियाएँ क्या हैं?

  • विशेष न्यायाधीश की नियुक्ति:
    • सरकार उच्च न्यायालय के परामर्श से वाद के संचालन हेतु एक विशेष न्यायाधीश की नियुक्ति करती है।
  • कार्यवाही का प्रारंभ:
    • अभियुक्त को अध्यादेश के अंतर्गत लगाये गए आरोपों का सामना करने के लिये विशेष न्यायाधीश के समक्ष लाया जाता है।
  • विधिक प्रतिनिधित्व:
    • स्वतः रूप से, अभियुक्त को अधिवक्ता नियुक्त करने की अनुमति नहीं होती।
    • न्यायालय अपने विवेकानुसार विधिक प्रतिनिधित्व की अनुमति दे सकता है।
  • विचारण प्रक्रिया:
    • विशेष न्यायाधीश अध्यादेश के प्रावधानों के अनुसार विचारण करता है।
    • कार्यवाही का विवरण गोपनीय रखा जाता है।
  • निर्णय एवं दण्ड:
    • विशेष न्यायाधीश निर्णय देता है तथा दोषी पाए जाने पर दण्ड निर्धारित करता है।
    • दण्ड में मृत्युदण्ड, आजीवन कारावास या अर्थदण्ड के साथ 10 वर्ष तक का कारावास शामिल हो सकता है।
  • पुनरीक्षण प्रक्रिया:
    • निर्णय के विरुद्ध अपील का कोई प्रावधान नहीं है।
    • सरकार विशेष न्यायाधीश के निर्णय की समीक्षा के लिये उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का चयन कर सकती है।
    • समीक्षा न्यायाधीश का निर्णय अंतिम एवं बाध्यकारी होता है।
  • गोपनीयता:
    • कार्यवाही या अभियुक्त के विषय में किसी भी सूचना का अनधिकृत प्रकटीकरण या प्रकाशन निषिद्ध है।
    • इस गोपनीयता का उल्लंघन करने पर दो वर्ष तक का कारावास, अर्थदण्ड या दोनों हो सकते हैं।

जम्मू-कश्मीर शत्रु एजेंट अध्यादेश के अधीन किस पर वाद चलाया गया है?

  • शत्रु एजेंट अध्यादेश का जम्मू-कश्मीर की विधिक व्यवस्था में सक्रिय रूप से उपयोग किया गया है। 
  • इस विधि के अधीन अनेक कश्मीरियों को वाद एवं दण्ड का सामना करना पड़ा है, जबकि इस विधि की सार्वजनिक छवि अन्य विधियों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है।  
  • एक उल्लेखनीय मामला जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के संस्थापक मकबूल भट से जुड़ा है, जिस पर इस अध्यादेश के अधीन आरोप लगाए गए थे। भट का मामला, जिसकी परिणति वर्ष 1984 में तिहाड़ जेल में उसे फाँसी दिये जाने के रूप में हुई, उच्च-स्तरीय राजनीतिक मामलों में अध्यादेश के प्रयोग का प्रकटन करता है। 
  • हालाँकि विधि के गोपनीयता प्रावधानों के कारण वादों की सही संख्या स्पष्ट नहीं है, परंतु "बड़ी संख्या में कश्मीरियों" का उल्लेख इस क्षेत्र में इसके महत्त्वपूर्ण एवं निरंतर उपयोग का संकेत देता है, विशेष रूप से अलगाववाद या राज्य की सुरक्षा के लिये कथित खतरों से संबंधित मामलों में।

निष्कर्ष:  

जम्मू-कश्मीर शत्रु एजेंट अध्यादेश, 2005 क्षेत्र के आतंकवाद विरोधी प्रयासों में एक कठोर विधिक उपाय का प्रतिनिधित्व करता है, जिसकी स्थापना वर्ष 1917 में हुई है। पुलिस महानिदेशक द्वारा हाल ही में इसका आह्वान आतंकवाद तथा उसके समर्थकों के प्रति कड़ा दृष्टिकोण होने का संकेत देता है। अध्यादेश के कठोर दण्ड, सीमित विधिक प्रतिनिधित्व और अपील प्रावधानों की कमी, उचित प्रक्रिया एवं मानवाधिकारों के विषय में महत्त्वपूर्ण चिंताएँ उत्पन्न करती हैं।