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सांविधानिक विधि

भारत में एक साथ चुनाव के प्रस्ताव की जाँच करना

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 31-Jan-2024

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

सितंबर, 2023 में, भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व में एक उच्च-स्तरीय समिति (HLC) के गठन के साथ भारतीय राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया गया था। HLC का प्राथमिक कार्य सभी राज्यों में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं एवं स्थानीय निकायों के लिये एक साथ चुनाव कराने की साध्यता और निहितार्थ की जाँच करना था। इस कदम ने राजनीतिक क्षेत्रों और नागरिक समाज में चर्चा एवं बहस छेड़ दी है।

इसका ऐतिहासिक संदर्भ क्या है?

  • एक साथ चुनाव का विचार नया नहीं है। वर्ष 1952 व वर्ष 1967 के बीच प्रारंभिक दौर में चार आम चुनाव चक्रों के दौरान, लोकसभा और राज्य विधान सभा चुनाव एक साथ हुए थे।
    • हालाँकि, बाद में समय से पूर्व विघटन और विभिन्न राज्य-विशिष्ट परिस्थितियों के कारण, चुनाव अलग-अलग अंतराल पर होते रहे हैं।
  • वर्ष 2019 में, केवल चार राज्यों ने अपने विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनावों के साथ संरेखित किया।

एक साथ चुनाव के पक्ष में क्या तर्क है?

  • एक साथ चुनाव के समर्थक कई लाभ बताते हैं।
  • इनमें से प्रमुख हैं लागत में कमी, बेहतर शासन दक्षता, प्रशासनिक सहजता और सामाजिक संलग्नता को बढ़ावा देना।
    • चुनावों का वित्तीय बोझ न केवल सरकार के लिये बल्कि राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिये भी अधिक होता है।
  • चुनावों को समेकित करके, धन एवं संसाधनों की महत्त्वपूर्ण बचत की जा सकती है।
  • इसके अतिरिक्त, निरंतर चुनाव चक्र अक्सर राजनीतिक दलों द्वारा अपनाए जाने वाले सतत् प्रचार मोड के कारण नीति निर्माण और कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करते हैं।

एक साथ चुनाव की चुनौतियाँ और विचारणाएँ क्या हैं?

  • हालाँकि एक साथ चुनाव के लाभ स्पष्ट हैं, लेकिन इसकी कुछ विकट चुनौतियाँ और विचारणाएँ हैं, जिन्हें संबोधित किया जाना चाहिये।
  • भारत की संघीय संरचना क्षेत्रीय मुद्दों की विविधता और राज्य सरकारों की स्वायत्तता पर ज़ोर देती है।
  • चुनावों को एक साथ कराने से राष्ट्रीय एजेंडे के साथ स्थानीय चिंताएँ प्रभावित हो सकती हैं, जिससे संभावित रूप से संघवाद का सार कमज़ोर हो सकता है।
  • इसके अलावा, विधायी निकायों के कार्यकाल को फिर से परिभाषित करने और विश्वास तथा विघटन के मुद्दों को संबोधित करने के लिये संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है।

पूर्व सिफारिशें एवं पूर्व प्रयास क्या हैं?

  • वर्ष 1999 में विधि आयोग और वर्ष 2015 में स्थायी संसदीय समिति (Parliamentary Standing Committee) सहित कई रिपोर्टों ने एक साथ चुनावों की जटिलताओं पर प्रकाश डाला है।
  • विभिन्न स्तरों के चुनावों के लिये चरणबद्ध चक्र से लेकर अविश्वास प्रस्ताव और समयपूर्व विघटन परिदृश्यों के प्रबंधन के तंत्र तक की सिफारिशें की गई हैं।
  • दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन और जर्मनी जैसे संसदीय लोकतंत्रों के साथ समानताएँ बनाना, जहाँ निश्चित कार्यकाल आदर्श हैं, व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रदान करता है।

मध्य मार्ग तक पहुँचने के लिये क्या सुझाव हैं?

  • भिन्न-भिन्न राय के बीच एक मध्य मार्ग निकालना ज़रूरी हो जाता है।
  • एक प्रस्ताव में एक चक्र में लोकसभा चुनाव और दूसरे में राज्य विधानसभा चुनाव, दोनों के बीच अंतराल रखकर आयोजित करने का सुझाव दिया गया है।
  • इस समझौते का उद्देश्य क्षेत्रीय विविधता और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को समायोजित करते हुए संकालन के लाभों को महसूस करना है।
  • ऐसे सुधारों को धीरे-धीरे लागू करने के लिये राजनीतिक दलों के बीच सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक हैं।

निष्कर्ष:

भारत में एक साथ चुनाव को लेकर चर्चा एक विविध राष्ट्र में लोकतांत्रिक शासन की जटिलता को दर्शाती है। जबकि संभावित लाभ आकर्षक हैं, संवैधानिक, राजनीतिक एवं तार्किक चुनौतियों से निपटने के लिये विचारशील विचार-विमर्श और आम सहमति बनाने की आवश्यकता है। जैसे-जैसे भारत अपनी दिशा आगे बढ़ाता है, उसे लोकतांत्रिक लोकाचार और संघीय मूल्यों के संरक्षण के साथ दक्षता के लक्ष्य को संतुलित करना होगा।