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सांविधानिक विधि
निजी संस्थाओं को आधार-आधारित प्रमाणीकरण करने की अनुमति
« »12-Oct-2023
परिचय
हाल ही में, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने अपने मंत्रालयों और विभागों द्वारा आधार प्रमाणीकरण के उपयोग को विस्तारित करते हुए राज्य सरकारों तथा निजी संगठनों को विभिन्न सेवाओं के लिये आधार प्रमाणीकरण का उपयोग करने की अनुमति देने की सिफारिश की है।
मुद्दे की पृष्ठभूमि:
- जस्टिस के.एस. में पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) और अन्य बनाम भारत संघ (2017) वाद में उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ, जिसमें तत्कालीन न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और जस्टिस ए.के. सीकरी, ए.एम. खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और अशोक भूषण शामिल थे, ने 4:1 के फैसले के साथ आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम, 2016 की संवैधानिकता को बरकरार रखा।
- न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने विसम्मत राय प्रस्तुत की।
- उच्चतम न्यायालय ने निजी कंपनियों द्वारा सेवाएँ प्रदान करने के लिये आधार प्रमाणीकरण और E-KYC का उपयोग की अनुमति देने वाली कुछ धाराओं को रद्द कर दिया।
- वर्ष 2020 में, संसद ने सुशासन के लिये आधार अधिप्रमाणन (समाज कल्याण, नवाचार, ज्ञान) नियम 2020 पेश किया जिसका नियम 3 आधार प्रमाणीकरण के स्वैच्छिक उपयोग से संबंधित है, इसमें निन्मलिखित शामिल हैं:
- सुशासन सुनिश्चित करने के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग।
- सामाजिक कल्याण लाभों के अपव्यय को रोकना।
- नवाचार को सक्षम बनाना और ज्ञान का प्रसार करना।
आधार(Aadhaar)
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आधार-आधारित प्रमाणीकरण के विस्तार हेतु प्रस्तावित संशोधन:
- आधार-आधारित प्रमाणीकरण के विस्तार हेतु संशोधन का प्रस्ताव सुशासन के लिये आधार अधिप्रमाणन (समाज कल्याण, नवाचार, ज्ञान) नियम 2020 के तहत किया गया है।
- यह संशोधन देश के निवासियों के जीवन को सुलभ बनाने और उनके लिये सेवाओं तक आसान पहुँच सुनिश्चित करने में निजी संस्थाओं और राज्य सरकारों द्वारा आधार प्रमाणीकरण के उपयोग की सुविधा प्रदान करेगा।
आधार-आधारित प्रमाणीकरण के विस्तार से संबंधित चिंताएँ:
- आधार-आधारित प्रमाणीकरण के विस्तार करने का निर्णय गोपनीयता के के लिये जोखिमपूर्ण हो सकता है।
- इसका व्यक्तिगत स्वतंत्रता, संवैधानिक नैतिकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- इसमें अनधिकृत प्रमाणीकरण करके धोखाधड़ी की अधिक संभावना शामिल है।
- इससे भारत में साइबर अपराध की दर में वृद्धि हो सकती है।
आधार से संबंधित कानूनी प्रावधान:
- वर्ष 2016 में विधायिका ने आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम पारित किया गया था।
- भारत में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को एक विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान करते हुए यह अधिनियम सुशासन को बनाए रखते हुए सब्सिडी, लाभ और सेवाओं के प्रभावी, पारदर्शी और लक्षित वितरण की सुविधा प्रदान करता है। इन सेवाओं के लिये भारत की संचित निधि से भुगतान किया जाता है।
- वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय ने इस अधिनियम की वैधता को बरकरार रखा किंतु धारा 32(2), 47 और 57 को रद्द कर दिया।
- आधार अधिनियम की धारा 32(2) के अनुसार, ज़िला न्यायाधीश से कम रैंक का कोई न्यायालय पहचान की जानकारी या प्रमाणीकरण डेटा सहित जानकारी के प्रकटीकरण का आदेश नहीं दे सकता है।
- आधार अधिनियम की धारा 47 अपराधों के संज्ञान से संबंधित है।
- आधार अधिनियम की धारा 57 में किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के लिये किसी कॉर्पोरेट अथवा व्यक्ति द्वारा आधार डेटा के उपयोग का उल्लेख है।
- सरकार ने वर्ष 2019 में केवल बैंकिंग और दूरसंचार कंपनियों को KYC आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु आधार प्रमाणीकरण करने की अनुमति देने के लिये आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम 2016 में संशोधन किया।
- जस्टिस के.एस. में पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) और अन्य बनाम भारत संघ (2017) वाद में उच्चतम न्यायालय ने आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम 2016 को संवैधानिक घोषित किया। साथ ही धारा 32(2) और 47 और 57 को असंवैधानिक करार दिया।
- ये धाराएँ निजी कंपनियों को सेवाएँ प्रदान करने हेतु किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के लिये आधार प्रमाणीकरण और E-KYC के उपयोग की अनुमति देती हैं।
- उच्चतम न्यायालय ने आगे कहा कि भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के तहत गोपनीयता एक मौलिक अधिकार है।
- उपर्युक्त निर्णय में निम्नलिखित सिद्धांत घोषित किये गए:
- यदि संसद मौलिक अधिकारों को कम करने का प्रयास करती है, तो उसे ऐसा करने का उद्देश्य घोषित करना होगा।
- राज्य को यह दर्शाना होगा कि उक्त उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये उसके पास कोई वैकल्पिक तरीका नहीं है।
- राज्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह व्यक्तियों के अधिकारों में कम से कम हस्तक्षेप करे।
निष्कर्ष
यदि कोई कानून गोपनीयता मामले में निर्धारित सिद्धांतों पर उचित विचार किये बिना पारित कर दिया जाता है, तो ऐसे कानून से उच्चतम न्यायालय के फैसले का उल्लंघन होने का जोखिम हो सकता है। इसलिये विधि निर्माताओं के लिये यह आवश्यक है कि वे जल्दबाजी में व्यक्तियों की गोपनीयता को जोखिम में डालने वाले फैसले लेने से बचें।