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सांविधानिक विधि
अनुच्छेद 15 के अंतर्गत दिव्यांग व्यक्तियों को सम्मिलित करना
« »24-Apr-2024
स्रोत: द हिंदू
परिचय:
हाल ही में दो राजनीतिक दलों ने भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 15 के अंतर्गत दिव्यांगता को भेदभाव के लिये एक विशिष्ट आधार के रूप में सम्मिलित करने का संकल्प लिया। उनके चुनावी घोषणा-पत्र ने दिव्यांगता अधिकार आंदोलन को लेकर आशा की नई उम्मीद जगाई है।
दिव्यांग व्यक्तियों की मौजूदा मांग की स्थिति क्या थी?
- दिव्यांगता अधिकार आंदोलन में अनुच्छेद 15 के अंतर्गत दिव्यांगता को एक आधार के रूप में जोड़ने एवं सुधारने के लिये संवैधानिक संशोधन की मांग लगातार होती रही है।
- इस आह्वान को वर्ष 2019 में दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों को लेकर संयुक्त राष्ट्र समिति द्वारा प्रबलित किया गया था।
दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार, केवल एक वैधानिक अधिकार कैसे हैं?
- दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 को 27 दिसंबर 2016 को दिव्यांग व्यक्तियों (समान अवसर, अधिकारों की सुरक्षा एवं पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 के स्थान पर अधिनियमित किया गया था।
- यह अधिनियम 19 अप्रैल 2017 को लागू हुआ, जिससे भारत में दिव्यांग व्यक्तियों (PWDs) के अधिकारों एवं मान्यता के एक नए युग की शुरुआत हुई।
- यह अधिनियम शारीरिक, बौद्धिक, मानसिक एवं संवेदी (मस्तिष्क संबंधी) हानि सहित 21 स्थितियों को शामिल करने के लिये दिव्यांगता के दायरे को विस्तृत करता है।
- जबकि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 ने भेदभाव के कुछ पहलुओं को संबोधित किया, यह केवल समानता की एक सीमित धारणा का प्रस्ताव करता है।
- हालाँकि, इस अधिनियम में संशोधन करने वाला अधिनियम, अभी भी दिव्यांगता अधिकारों को संवैधानिक की जगह वैधानिक बना देगा।
- अनुच्छेद 15, सामाजिक पदानुक्रमों की पहचान करता है तथा इसका उद्देश्य बहिष्करणीय प्रथाओं को संबोधित करना है, जिससे ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने के लिये दिव्यांगता को शामिल करना आवश्यक हो जाता है।
दिव्यांगता पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय क्या था?
- नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018) में उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने अनुच्छेद 15 की सुरक्षा को 'यौन अभिविन्यास' तक बढ़ा दिया, जिससे दिव्यांगता को एक समान आधार के रूप में मानने के लिये एक मिसाल कायम की गई।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि "LGBT समुदाय एक यौन अल्पसंख्यक है, जो अनुचित एवं अनावश्यक शत्रुतापूर्ण भेदभाव से पीड़ित है तथा अनुच्छेद 15 द्वारा प्रदत्त सुरक्षा का समान रूप से अधिकारी है"।
निष्कर्ष:
- जबकि भारत में चुनावी वादे अक्सर अधूरे रह जाते हैं, दिव्यांगता अधिकारों पर हालिया केंद्रित राजनीतिक दृष्टिकोण में संभावित बदलाव का संकेत देता है। संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता को पहचानकर, भारत समावेशिता एवं समानता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि कर सकता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि कोई भी नागरिक पीछे न छूटे।