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आपराधिक कानून
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को नियंत्रित करने वाले कानून
« »22-Sep-2023
परिचय
इस युग में भी जहाँ दुनिया लैंगिक समता के बीच समानता को मान्यता देने की दिशा में आगे बढ़ चुकी है,ऐसे में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायतों में लगातार वृद्धि देखी जा सकती है।
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न
- किसी भी प्रकार की अवांछित यौन अग्रगमन (advances), यौन अनुग्रह के लिये अवांछित अनुरोध या यौन प्रकृति का कोई अन्य अवांछित आचरण जो किसी व्यक्ति को नाराज, अपमानित या डरा हुआ महसूस कराता है, उसे यौन उत्पीड़न माना जा सकता है।
- कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के लिये कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निदान) अधिनियम 2013, (POSH ACT) लागू होता है।
- जहाँ यौन अपराध की पीड़िता नाबालिग है, वहाँ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO), 2012 लागू होता है।
विशाखा दिशा-निर्देश-
- विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य (1997) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने विशाखा दिशा-निर्देश निर्धारित किये, जिनका यौन उत्पीड़न की शिकायतों से निपटने में प्रतिष्ठानों द्वारा पालन किया जाना है।
- इस मामले में पारित दिशा-निर्देश इस प्रकार हैं:
- प्रत्येक महिला कर्मचारी को सुरक्षा की भावना प्रदान करना प्रत्येक नियोक्ता का कर्त्तव्य है।
- सरकार को यौन उत्पीड़न पर रोक लगाने के लिये सख्त कानून और विनियम बनाने चाहिये।
- इस तरह के किसी भी कृत्य के परिणामस्वरूप अनुशासनात्मक कार्रवाई होनी चाहिये और दोषकर्त्ता के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही भी की जानी चाहिये।
- पीड़ित द्वारा की गई शिकायतों के निवारण के लिये संगठन के पास एक शिकायत करने हेतु सुव्यवस्थित क्रिवाविधि होना चाहिये और उसे उचित समय-सीमा के अधीन होना चाहिये।
- इस शिकायत क्रियाविधि को शिकायत समिति के रूप में होना चाहिये जिसकी अध्यक्षता एक महिला सदस्य द्वारा की जानी चाहिये, समिति में कम से कम 50% सदस्य महिलाएँ होनी चाहिये ताकि पीड़ित अपनी समस्याएँ बताते समय असहज महसूस न करें।
- इस शिकायत समिति में एक NGO या अन्य निकाय के रूप में तीसरे पक्ष की भागीदारी भी होनी चाहिये जो इस मुद्दे से परिचित हो।
- इस समिति के कामकाज में पारदर्शिता की आवश्यकता है और इसके लिये सरकार को वार्षिक रिपोर्ट सौंपने की आवश्यकता है।
- कार्यकर्त्ताओं की बैठक में यौन उत्पीड़न से संबंधित मुद्दे वर्जित नहीं होने चाहिये और उन पर सकारात्मक चर्चा होनी चाहिये।
- प्रतिष्ठान का यह कर्त्तव्य है कि वह महिला कर्मचारियों को जारी किये गए नवीन दिशा-निर्देश और पारित कानून के बारे में नियमित रूप से सूचित कर उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करे।
- नियोक्ता या प्रभारी व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि वह तीसरे पक्ष के कृत्य या लोप के कारण होने वाले यौन उत्पीड़न की पीड़िता को सहायता प्रदान करने के लिये आवश्यक और उचित कदम उठाए।
- ये दिशा-निर्देश केवल सरकारी नियोक्ताओं तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि निजी क्षेत्रों के नियोक्ताओं को भी इसका पालन करना चाहिये।
- मेधा कोटवाल लेले और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (वर्ष 2012) के मामले ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आवश्यक कदम उठाने के लिये नोटिस जारी करके विशाखा के मामले में तैयार दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन में सहायता की।
विधिक प्रावधान
यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण (POSH) अधिनियम, 2013
- भारत सरकार द्वारा वर्ष 2013 में लागू किये गए इस अधिनियम ने विशाखा दिशा-निर्देशों को अतिष्ठित (superseded) कर दिया है।
- इसका उद्देश्य महिलाओं के लिये एक सुरक्षित और अनुकूल कार्य वातावरण का निर्माण करना और यौन उत्पीड़न के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करना है।
- इस अधिनियम की धारा 2(n) यौन उत्पीड़न शब्द को परिभाषित करती है। इसमें कहा गया है कि यौन उत्पीड़न में निम्नलिखित में से कोई एक या अधिक अवांछित कार्य या व्यवहार (चाहे प्रत्यक्ष रूप से या विवक्षा से) शामिल हैं: -
- शारीरिक संपर्क और अग्रगमन (advances) ; या
- लैंगिक अनुकूलता की मांग या अनुरोध करना; या
- लैंगिक आधारित टिप्पणियाँ करना; या
- अश्लील साहित्य दिखाना; या
- यौन प्रकृति का कोई अन्य अवांछित शारीरिक, मौखिक या अमौखिक आचरण करना।
- अधिनियम की धारा 3(2) में उन परिस्थितियों का उल्लेख है, जो यौन उत्पीड़न का कारण बनती हैं। धारा के अनुसार,अन्य परिस्थितियों के अतिरिक्त निम्नलिखित परिस्थितियाँ, यदि वह यौन उत्पीड़न के किसी कार्य या व्यवहार के साथ घटित होती हैं या उससे जुड़ी हुई हैं, तो यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आ सकती हैं -
- इसके नियोजन में अधिमानी व्यवहार का निहित या स्पष्ट शब्द बोलना; या
- इसके नियोजन में अहितकर व्यवहार की अंतर्निहित या स्पष्ट धमकी देना; या
- इसके वर्तमान या भावी नियोजन स्थिति के बारे में स्पष्ट धमकी देना; या
- इसके काम में हस्तक्षेप करना या इसके लिये डराने वाला या आक्रामक या प्रतिकूल कार्य वातावरण सृजित करना; या
- इसके स्वास्थ्य या सुरक्षा को प्रभावित करने की संभावनामय व्यवहार करना।
- उक्त कानून की धारा 4 और 6 क्रमशः आंतरिक शिकायत समिति और स्थानीय शिकायत समिति के गठन का प्रावधान करती हैं।
- धारा 26 के अनुसार,अधिनियम के प्रावधानों का किसी भी प्रकार का अनुपालन न करने पर 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जायेगा और बार-बार उल्लंघन करने पर अधिक जुर्माना और लाइसेंस रद्द किया जा सकता है।
निष्कर्ष
प्राधिकार के व्यापक दुरुपयोग को समाप्त करने की आवश्यकता है, वर्तमान निवारण तंत्र इसके लिये पर्याप्त नहीं लगता। यह समस्या तभी समाप्त हो सकती है जब महिला तथा पुरुषों के बीच शक्तियों का समान रूप से वितरण हो। वर्तमान समय को ऐसी महिलाओं की आवश्यकता है जो लैंगिक असमानता के अंतर को कम करने के लिये उनके विरुद्ध आवाज उठाती हैं और उनके लिये कार्य करती हैं।