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आपराधिक कानून
भारत में अंग प्रत्यारोपण से संबंधित कानून
« »12-Jan-2024
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
परिचय:
हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने जीवित दाताओं से अंगों के प्रत्यारोपण की प्रक्रिया को पूरा करने के लिये 6 से 8 सप्ताह की उपयुक्त समयसीमा निर्धारित की है।
- न्यायालय ने सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि अंग दान आवेदनों पर विचार करने की प्रक्रिया के सभी चरणों के लिये मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 तथा नियम 2014 के अधीन समयसीमा निर्धारित की जाए।
दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष क्या मामला था?
- अमर सिंह भाटिया एवं अन्य बनाम सर गंगा राम अस्पताल एवं अन्य मामले में, एक सेवानिवृत्त भारतीय वायु सेना अधिकारी द्वारा एक याचिका दायर की गई थी, जिसे वर्ष 2017 में गुर्दे खराब होने के बारे में पता चला था।
- वर्ष 2019 तक दो अस्पतालों ने उन्हें गुर्दा प्रत्यारोपण कराने की सलाह दी थी।
- जून 2019 में याचिकाकर्त्ता ने प्रत्यारोपण के लिये मंज़ूरी प्राप्त करने का प्रयास किया, जिसे नई दिल्ली के आर्मी अस्पताल में अस्वीकार कर दिया गया। नज़दीकी संबंधी दाता की अनुपलब्धता के कारण आवश्यक प्रत्यारोपण से इनकार कर दिया गया था।
- वर्ष 2020 में याचिकाकर्त्ता ने प्रत्यारोपण की मांग को लेकर उच्च न्यायालय में अपील की।
- फरवरी 2021 में, उच्च न्यायालय ने प्राधिकरण समिति को याचिकाकर्त्ता के आवेदन पर 2 सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया।
- अक्तूबर 2021 में याचिकाकर्त्ता का निधन हो गया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने कहा कि साक्षात्कार से लेकर प्रक्रियात्मक प्रपत्रों और निर्णय लेने तक सब कुछ विस्तारित तरीके से नहीं बल्कि निश्चित समयसीमा के भीतर किया जाना चाहिये।
- न्यायालय ने आगे कहा कि निवेदन करने से लेकर निर्णय तक की पूरी प्रक्रिया उपयुक्त रूप से 6 से 8 सप्ताह से अधिक नहीं होनी चाहिये।
भारत में अंग प्रत्यारोपण से संबंधित कानून क्या हैं?
- भारत में अंग दान व प्रत्यारोपण से संबंधित प्राथमिक कानून मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम है, जिसे वर्ष 1994 में पारित किया गया था।
- प्रस्तावना के अनुसार इस अधिनियम के उद्देश्य इस प्रकार हैं:
- मानव अंगों और ऊतकों को निकालने, भंडारण व प्रत्यारोपण में शामिल प्रक्रियाओं के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करना, यह सुनिश्चित करना कि ये गतिविधियाँ चिकित्सीय उद्देश्यों के लिये आयोजित की जाती हैं।
- एक महत्त्वपूर्ण पहलू मानव अंगों और ऊतकों में वाणिज्यिक लेनदेन को रोकना है। इसका उद्देश्य अंग और ऊतक प्रत्यारोपण से संबंधित किसी भी प्रकार के अवैध व्यापार या शोषण पर अंकुश लगाना है।
- यह सुनिश्चित करता है कि अंग और ऊतक प्रत्यारोपण की प्रक्रिया दाताओं एवं प्राप्तकर्त्ताओं दोनों के अधिकारों और कल्याण की रक्षा करते हुए नैतिक व कानूनी रूप से अनुपालनशील तरीके से की जाती है।
- यह इस बात पर ज़ोर देता है कि अंगों और ऊतकों को निकालना तथा उनका प्रत्यारोपण पूरी तरह से चिकित्सीय उद्देश्यों के लिये होना चाहिये, जो चिकित्सा और नैतिक मानकों के अनुरूप हो।
- इस अधिनियम के प्रमुख उपबंधों में निम्नलिखित पहलू शामिल हैं:
- यह अधिनियम दाता, प्राप्तकर्त्ता, अस्पताल और मस्तिष्क मृत्यु(मस्तिष्क की गतिविधि की स्थायी हानि) जैसे महत्त्वपूर्ण शब्दों को परिभाषित करता है।
- यह इसकी प्रयोज्यता को रेखांकित करता है, जिसमें अंग और ऊतक प्रत्यारोपण के पहलुओं को शामिल किया गया है, इसमें वे स्थितियाँ भी शामिल हैं जिनके तहत जीवित या मृत व्यक्तियों के अंगों को निकाला जा सकता है।
- विशिष्ट उपबंध, जैसे अधिनियम की धारा 3-9, जीवित और मृत दोनों दाताओं से अंगों या ऊतकों को निकालने का उपबंध करते हैं। इसमें ऐसे परिदृश्य शामिल होते हैं जहाँ दाता मस्तिष्क मृत है, अवयस्क है, या अस्पताल में मौजूद लावारिस शव है। सहमति प्रक्रियाएँ विस्तृत होती हैं, जिनमें स्वैच्छिक और सूचित सहमति की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
- धारा 10-12 आदेश देती है कि अंग या ऊतक निकालने, भंडारण, या प्रत्यारोपण करने वाले अस्पतालों को पंजीकृत होना चाहिये। यह आवश्यक बुनियादी ढाँचे, सुविधाओं और योग्य कर्मियों सहित पंजीकरण के लिये शर्तें निर्दिष्ट करता है।
- इस अधिनियम की धारा 13-13D के तहत प्रत्येक राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के लिये एक उपयुक्त प्राधिकरण की स्थापना की गई है। उक्त प्राधिकरण अस्पतालों को पंजीकरण देने, अधिनियम के उपबंधों को लागू करने और निरीक्षण करने के लिये ज़िम्मेदार होता है।
- इस अधिनियम की धारा 13A उपयुक्त प्राधिकारी की सहायता के लिये सलाहकार समितियों की स्थापना का उपबंध करती है। चिकित्सा और कानूनी विशेषज्ञों वाली ये समितियाँ प्रत्यारोपण से संबंधित तकनीकी, नैतिक एवं कानूनी मुद्दों पर सलाह देती हैं।
- इस अधिनियम के महत्त्वपूर्ण पहलुओं में से एक मानव अंगों में वाणिज्यिक लेनदेन पर सख्त प्रतिबंध है, जैसा कि धारा 19 और 19 A में उल्लिखित है।
- यह मानव अंगों के क्रय-विक्रय को अपराध मानता है, जिसमें अंगों के विक्रय के लिये विज्ञापन भी शामिल हैं। यह उल्लंघन कारावास और ज़ुर्माने से दंडनीय है।
- इस अधिनियम की धारा 24 केंद्र सरकार को इसके उपबंधों के कार्यांवयन के लिये नियम बनाने का अधिकार देती है। इस प्रावधान से सशक्त होकर केंद्र सरकार ने 2014 नियमावली बनायी है।