महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 2024
Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है









होम / एडिटोरियल

आपराधिक कानून

महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 2024

    «    »
 22-Jul-2024

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम नामक एक नया विधान प्रस्तावित किया है। इस विवादास्पद विधेयक का उद्देश्य अधिकारियों को संगठनों को अविधिक घोषित करने और कथित राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के लिये लोगों को गिरफ्तार करने के व्यापक अधिकार देकर सरकार द्वारा कथित "शहरी नक्सलवाद" से निपटना है। माओवादी विद्रोह से प्रभावित कुछ अन्य भारतीय राज्यों में भी इसी तरह के विधान पहले से ही मौजूद हैं।

  • माओवाद प्रभावित राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और ओडिशा ने अविधिक गतिविधियों को रोकने के लिये पहले ही सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम लागू कर दिये हैं।

शहरी नक्सलवाद क्या है?

  • शहरी नक्सलवाद से तात्पर्य शहरी क्षेत्रों में नक्सलियों या CPI (माओवादी) की उपस्थिति और गतिविधियों से है।
  • माओवादी रणनीति के अनुसार, शहरी आंदोलन उनके "जनयुद्ध" के लिये कार्यकर्त्ताओं की भर्ती और नेतृत्व के लिये एक महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करता है।
  • शहरी नेटवर्क ग्रामीण विद्रोह को समर्थन देने के लिये आपूर्ति, प्रौद्योगिकी, विशेषज्ञता और सूचना उपलब्ध कराने के लिये उत्तरदायी है।
  • माओवादी शहरी अभियान के तीन मुख्य उद्देश्य हैं:
    • जनता को संगठित और लामबंद करना
    • जन संगठनों के माध्यम से संयुक्त मोर्चा का निर्माण
    • सैनिक क्षमता का निर्माण करना
  • शहरी नक्सलियों की प्रमुख गतिविधियों में शामिल हैं:
    • अपने नेताओं और कार्यकर्त्ताओं के लिये सुरक्षित आवास बनाना
    • भूमिगत दस्तों को रसद सहायता प्रदान करना
    • विभिन्न क्षेत्रों से युवाओं, छात्रों और श्रमिकों की भर्ती
  • शहरी क्षेत्र, नक्सली कार्यकर्त्ताओं के लिये पारगमन बिंदु, बैठक स्थल और विश्राम स्थल के रूप में काम करते हैं।

महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम की क्या आवश्यकता है?

  • नक्सलवाद का शहरी विस्तार: अग्रणी संगठन नक्सल प्रभाव को शहरों तक फैला रहे हैं तथा सशस्त्र कार्यकर्त्ताओं को सहायता प्रदान कर रहे हैं।
  • वर्तमान विधानों की सीमाएँ: शहरी क्षेत्रों में विकसित हो रही नक्सली रणनीतियों से निपटने के लिये मौजूदा विधान अपर्याप्त माने जाते हैं।
  • अन्य राज्यों का अनुसरण: नक्सलवाद से प्रभावित पड़ोसी राज्यों ने भी छद्म संगठनों से निपटने के लिये इसी प्रकार के विधान लागू किये हैं।
  • विधिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना: नए विधान का उद्देश्य UAPA जैसे मौजूदा विधानों के अधीन अभियोजन में होने वाले विलंब को दूर करना है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: गढ़चिरौली ज़िले में हुए हालिया नक्सली हमले सार्वजनिक सुरक्षा के लिये जारी खतरे को प्रकट करते हैं।

महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम का उद्देश्य क्या है?

  • शहरी क्षेत्रों में नक्सलवाद के प्रसार को अग्रिम संगठनों के माध्यम से रोकना।
  • सशस्त्र नक्सली कैडरों को रसद और सुरक्षित शरण प्रदान करने वाले समर्थन नेटवर्क को बाधित करना।
  • संवैधानिक अधिदेश के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह की विचारधाराओं का प्रचार करने वाले संगठनों की गतिविधियों को नियंत्रित करना और रोकना।
  • अविधिक गतिविधियों से निपटने के लिये अधिक प्रभावी विधिक साधन उपलब्ध कराना, क्योंकि मौजूदा विधान अपर्याप्त माने जा रहे हैं।
  • महाराष्ट्र के नक्सल विरोधी उपायों को उन पड़ोसी राज्यों के अनुरूप बनाना, जहाँ पहले से ही समान विधान उपलब्ध हैं।
  • सरकार को संगठनों को अविधिक घोषित करने और उनके विरुद्ध कार्यवाही करने के लिये व्यापक अधिकार प्रदान करना।

महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक, 2024 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

  • अविधिक संगठनों की घोषणा:
    • राज्य सरकार को किसी संगठन को "अविधिक" घोषित करने का अधिकार है।
    • इस घोषणा की समीक्षा तीन योग्य व्यक्तियों के एक सलाहकार बोर्ड द्वारा की जाएगी, जो या तो वर्तमान या पूर्व उच्च न्यायालय के न्यायाधीश होंगे, या जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने के योग्य होंगे।
  • अविधिक गतिविधियों की परिभाषा:
    • ऐसी गतिविधियाँ जो सार्वजनिक व्यवस्था, शांति और सौहार्द को खतरा पैदा करती हैं।
    • विधिक प्रशासन में हस्तक्षेप और लोक सेवकों के कार्य में बाधा डालना।
    • हिंसा, बर्बरता, आग्नेयास्त्रों, विस्फोटकों का प्रयोग तथा परिवहन में बाधा।
    • विधि और स्थापित संस्थाओं की अवज्ञा को प्रोत्साहित करना।
    • अविधिक गतिविधियों के लिये धन या सामान एकत्र करना।
  • अपराध की प्रकृति:
    • इस विधान के अधीन सभी अपराध संज्ञेय और गैर-ज़मानती हैं।
    • जाँच उप-निरीक्षक या उससे ऊपर के स्तर के पुलिस अधिकारियों द्वारा की जानी चाहिये।
  • दण्ड:
    • अविधिक संगठनों के सदस्य: 3 वर्ष तक का कारावास और 3 लाख रुपए तक का अर्थदण्ड।
    • गैर-सदस्यों द्वारा अविधिक संगठनों को योगदान देना या सहायता प्रदान करना: 2 वर्ष तक का कारावास और 2 लाख रुपए तक का अर्थदण्ड।
    • अविधिक संगठनों का प्रबंधन या प्रचार: 3 वर्ष तक का कारावास और 3 लाख रुपए तक का अर्थदण्ड।
    • अविधिक गतिविधियों को अंजाम देना, बढ़ावा देना या योजना बनाना: 7 वर्ष तक का कारावास और 5 लाख रुपए तक का अर्थदण्ड।
  • अभिग्रहण एवं समपहरण :
    • एक बार किसी संगठन को अविधिक घोषित कर दिया जाए तो ज़िला मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त अविधिक गतिविधियों के लिये उपयोग किये जाने वाले स्थानों को अपने कब्ज़े में ले सकते हैं।
    • सरकार के पास अविधिक संगठनों द्वारा उपयोग के लिये रखे गए धन और परिसंपत्तियों को ज़ब्त करने का अधिकार है।
  • विधिक समीक्षा प्रक्रिया:
    • सलाहकार बोर्ड को किसी संगठन को अविधिक घोषित करने की समीक्षा छह सप्ताह के भीतर करनी होगी।
    • बोर्ड को तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
    • उच्च न्यायालय पुनरीक्षण याचिकाओं के माध्यम से सरकारी कार्यों की समीक्षा कर सकते हैं।

प्रस्तावित महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा (MSPS) अधिनियम और मौजूदा अविधिक गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) तथा महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) के बीच तुलना क्या है?

  • समानताएँ:
    • MSPS अधिनियम और UAPA दोनों ही राज्य को संगठनों को 'अविधिक संघों' के रूप में वर्गीकृत करने की अनुमति देते हैं।
    • दोनों विधानों का उद्देश्य नक्सलवाद और आतंकवाद सहित चरमपंथी गतिविधियों से निपटना है।
    • दोनों में संज्ञेय और गैर-ज़मानती अपराधों का प्रावधान है।
  • मुख्य अंतर:
    • पुनरावलोकन प्रक्रिया:
      • MSPS अधिनियम: उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने के लिये योग्य तीन व्यक्तियों का एक सलाहकार बोर्ड पुष्टि प्रक्रिया की देखरेख करता है।
      • UAPA: उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक न्यायाधिकरण राज्य की घोषणा का सत्यापन करता है।
    • विस्तार:
      • MSPS अधिनियम: विशेष रूप से महाराष्ट्र में 'शहरी नक्सलवाद' और उससे संबंधित गतिविधियों को लक्षित करता है।
      • UAPA: इसका राष्ट्रीय दायरा व्यापक है तथा इसमें विभिन्न प्रकार के आतंकवाद और अविधिक गतिविधियाँ शामिल हैं।
  • MSPS अधिनियम के तहत अतिरिक्त शक्तियाँ:
    • बिना वारंट के गिरफ्तारी की अनुमति देता है।
    • इससे व्यक्ति को आरोपों की तुरंत सूचना दिये बिना ही गिरफ्तारी की जा सकती है।
    • इसमें अविधिक संगठनों द्वारा उपयोग की गई संपत्ति को ज़ब्त करने और अभिग्रहित करने का प्रावधान है।
  • MCOCA से संबंध:
    • महाराष्ट्र में कथित 'शहरी नक्सलियों' से जुड़े गंभीर मामलों में MCOCA पहले से ही लागू है।
    • MSPS अधिनियम ऐसे मामलों में विधि प्रवर्तन के लिये अतिरिक्त उपकरण प्रदान करेगा।
  • संभावित प्रभाव:
    • यदि MSPS अधिनियम पारित हो गया तो इससे महाराष्ट्र में पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की शक्तियों में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
    • इससे संदिग्ध नक्सली गतिविधियों से संबंधित अधिक गिरफ्तारियाँ और संपत्ति ज़ब्त हो सकती है।
    • इस अधिनियम को नागरिक स्वतंत्रता पर संभावित उल्लंघन के आधार पर जाँच का सामना करना पड़ सकता है।
  • विधिक सुरक्षा:
    • MSPS अधिनियम और UAPA दोनों में समीक्षा तंत्र शामिल हैं, यद्यपि उनकी संरचना भिन्न है।
    • दोनों अधिनियमों में उच्च न्यायालय की निगरानी बनी रहती है, जिससे कुछ विधिक उपाय करने की अनुमति मिलती है।

सार्वजनिक सुरक्षा के संबंध में अन्य राज्यों का विधान क्या है?

  • छत्तीसगढ़ विशेष लोक सुरक्षा अधिनियम, 2005:
    • उद्देश्य: छत्तीसगढ़ में नक्सली गतिविधियों से निपटने के लिये अधिनियमित किया गया।
    • प्रमुख प्रावधान:
      • राज्य को नक्सल संगठनों को अविधिक घोषित करने की अनुमति देता है।
      • इसमें अविधिक गतिविधियों को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है, जिसमें सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने वाली गतिविधियाँ भी शामिल हैं।
      • अविधिक संगठनों की सदस्यता के लिये दण्ड का प्रावधान करता है।
      • यह विधेयक अविधिक गतिविधियों के लिये प्रयोग की गई संपत्ति को ज़ब्त करने में सक्षम बनाता है।
    • विवादास्पद पहलू:
      • संभावित रूप से व्यापक व्याख्या और अनुप्रयोग के लिये आलोचना की गई।
      • कार्यकर्त्ताओं और असहमत लोगों के विरुद्ध संभावित दुरुपयोग के विषय में चिंता व्यक्त की गई।
    • प्रभाव: कथित नक्सलवादियों और उनके समर्थकों के विरुद्ध कई मामलों में इसका प्रयोग किया गया है।
  • तेलंगाना राज्य सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 2019:
    • पृष्ठभूमि: तेलंगाना के गठन के बाद आंध्र प्रदेश लोक सुरक्षा अधिनियम, 1992 को प्रतिस्थापित किया गया।
    • प्रमुख विशेषताएँ:
      • यह अविधिक संगठनों को नामित करने की अनुमति देता है।
      • ऐसे पदनामों की समीक्षा के लिये एक सलाहकार बोर्ड का प्रावधान है।
      • यह विधेयक अविधिक संगठनों की सदस्यता और समर्थन को अपराध घोषित करता है।
      • संपत्ति अधिग्रहण और समपहरण को सक्षम बनाता है।
    • कार्यक्षेत्र: वामपंथी उग्रवाद सहित उग्रवाद के विभिन्न रूपों पर लक्षित।
    • विधायी सुरक्षा: इसमें सरकारी कार्यों की न्यायिक समीक्षा के प्रावधान शामिल हैं।
    • अनुप्रयोग: नक्सली गतिविधियों और अन्य कथित सुरक्षा खतरों से संबंधित मामलों में इसका उपयोग किया जाता है।
  • आंध्र प्रदेश लोक सुरक्षा अधिनियम, 2020:
    • आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के विभाजन के बाद अधिनियमित।
    • मुख्य प्रावधान:
      • राज्य को संगठनों को अविधिक घोषित करने का अधिकार देता है।
      • सार्वजनिक व्यवस्था को खतरे में डालने वाली गतिविधियों सहित विभिन्न अविधिक गतिविधियों को परिभाषित करता है।
      • अविधिक संगठनों में भागीदारी और उनका समर्थन करने के लिये दण्ड निर्धारित करता है।
      • संपत्ति के अधिग्रहण और समपहरण की अनुमति देता है।
    • इसमें अविधिक संगठनों की घोषणाओं की समीक्षा के लिये एक सलाहकार बोर्ड शामिल है।
    • दण्ड: विभिन्न अपराधों के लिये कारावास और अर्थदण्ड का प्रावधान है।
    • दायरा: वामपंथी उग्रवाद और अन्य सुरक्षा खतरों को संबोधित करने के उद्देश्य से।
  • क्षेत्रीय दृष्टिकोण:
    • कई राज्यों में इन विधानों का अस्तित्व कथित सुरक्षा खतरों से निपटने के लिये एक क्षेत्रीय दृष्टिकोण का संकेत देता है।
    • उल्लेखित सभी राज्यों का नक्सल या माओवादी गतिविधियों से निपटने का इतिहास रहा है।
  • विधायी प्रवृत्ति:
    • महाराष्ट्र विधेयक को वर्ष 2024 में प्रस्तुत किया जाना राज्यों द्वारा ऐसे विधान अपनाने की प्रवृत्ति को जारी रखने का संकेत देता है।
    • यह दर्शाता है कि महाराष्ट्र इस मुद्दे पर पड़ोसी राज्यों के साथ अपने विधायी ढाँचे को संरेखित करने में सहमत है।
  • मानकीकरण की संभावना:
    • विभिन्न राज्यों में इन विधानों में समानता के कारण कुछ सुरक्षा मुद्दों से निपटने के लिये अधिक मानकीकृत दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है।
    • इससे नक्सल-संबंधी गतिविधियों से निपटने में अंतर्राज्यीय सहयोग पर प्रभाव पड़ सकता है।

निष्कर्ष:

महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 2024, शहरी नक्सलवाद और उससे जुड़ी गतिविधियों से निपटने के लिये कड़े विधान बनाने की क्षेत्रीय प्रवृत्ति को जारी रखता है। जबकि सरकार का तर्क है कि यह प्रभावी विधान प्रवर्तन के लिये आवश्यक है, यह अधिनियम नागरिक स्वतंत्रता पर संभावित दुरुपयोग और उल्लंघन के विषय में महत्त्वपूर्ण चिंताएँ व्यक्त करता है। अन्य राज्यों में इसी तरह के विधानों की तरह, MSPS अधिनियम के कार्यान्वयन और प्रभाव की बारीकी से जाँच की जाएगी, जिससे लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की सुरक्षा के विरुद्ध सुरक्षा आवश्यकताओं को संतुलित किया जा सके।