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सांविधानिक विधि

उपर्युक्त में से कोई नहीं (NOTA)

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 22-Apr-2024

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स  

परिचय:

चूँकि वर्ष 2024 के आम चुनावों का पहला चरण 19 अप्रैल 2024 से प्रारंभ हो गया है, इसलिये इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) पर "उपरोक्त में से कोई नहीं" (NOTA) विकल्प से संबंधित चर्चाएँ सुर्खियों में हैं। NOTA के माध्यम से मतदाता, अपने निर्वाचन क्षेत्र या निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव लड़ रहे सभी उम्मीदवारों को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर देते हैं। इसका उद्देश्य लोगों को चुनाव का बहिष्कार करने के अतिरिक्त एक विकल्प देकर मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाना भी है।

NOTA की पृष्ठभूमि क्या है?

  • NOTA का इतिहास:
    • वर्ष 1999 में अपनी 170वीं रिपोर्ट में, विधि आयोग ने 50%+1 मतदान प्रणाली के साथ-साथ नकारात्मक मतदान की अवधारणा की खोज की, लेकिन व्यावहारिक चुनौतियों के कारण इस विषय पर कोई अंतिम सिफारिश नहीं की गई।
  • भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की भूमिका:
    • ECI ने EVM के कारण मतदाता गोपनीयता के बारे में चिंताओं की प्रतिक्रिया के रूप में वर्ष 2001 एवं 2004 में NOTA का समर्थन किया। उन्होंने इसे संबोधित करने के लिये एक विकल्प के रूप में "NOTA" को जोड़ने का प्रस्ताव रखा।

NOTA से संबंधित महत्त्वपूर्ण मामले क्या हैं?

  • लिली थॉमस बनाम अध्यक्ष, लोकसभा (1993):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि "मतदान, किसी विषय या मुद्दे पर अधिकार का प्रयोग करने के अधिकारी व्यक्ति की इच्छा या राय की एक औपचारिक अभिव्यक्ति है" तथा मतदान के अधिकार का अर्थ है, “प्रस्ताव के पक्ष या विपक्ष में उपर्युक्त अधिकार का प्रयोग करने का अधिकार"। इस तरह के अधिकार से तात्पर्य तटस्थ रहने का अधिकार भी है।”
  • पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य (2013):
    • वर्ष 2004 में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने एक जनहित याचिका दायर की।
    • उच्चतम न्यायालय ने गोपनीयता बनाए रखते हुए मतदाताओं को चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के प्रति असंतोष व्यक्त करने की अनुमति देने के लिये EVM पर "उपर्युक्त में से कोई नहीं" (NOTA) बटन के प्रावधान को अनिवार्य कर दिया।
    • यह निर्णय मतदाताओं को सशक्त बनाना एवं निष्पक्ष चुनाव को बढ़ावा देकर लोकतंत्र को समृद्ध करने हेतु आया है।
    • चुनाव आयोग को जागरूकता कार्यक्रम चलाने के साथ-साथ सरकारी सहायता से इस प्रावधान को लागू करने का निर्देश दिया गया।
  • शैलेश मनुभाई परमार बनाम भारतीय चुनाव आयोग (2018) (मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य के माध्यम से:
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि "प्रत्यक्ष चुनावों में NOTA का विकल्प, अमृत के रूप में काम कर सकता है, लेकिन राज्यों की परिषद के चुनाव के संबंध में, जो अन्य चुनावों से अलग है, यह न केवल लोकतंत्र की पवित्रता को कमज़ोर करेगा, बल्कि दलबदल एवं भ्रष्टाचार की अवधारणा को बल मिलेगा।
    • इसलिये न्यायालय ने राज्यसभा चुनाव से NOTA को हटा दिया

NOTA से संबंधित विधिक प्रावधान क्या हैं?

  • मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा का अनुच्छेद 21:
    • यह मतदान में गोपनीयता प्रदान करता है।
    • लेख में कहा गया है कि लोगों की इच्छा सरकार के अधिकार का आधार होगी, यह इच्छा आवधिक और वास्तविक चुनावों में व्यक्त की जाएगी, जो सार्वभौमिक एवं समान मताधिकार द्वारा होंगे तथा यह गुप्त मतदान या समकक्ष स्वतंत्र मतदान प्रक्रियाओं द्वारा आयोजित किये जाएंगे।
  • नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध की धारा 25(b):
    • इसमें कहा गया है कि प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भेदभाव एवं अनुचित प्रतिबंध के वोट देने और वास्तविक तथा आवधिक चुनावों में चुने जाने का अधिकार व अवसर होगा, जो सार्वभौमिक एवं समान मताधिकार द्वारा होगा तथा गुप्त मतदान द्वारा आयोजित किया जाएगा, जो कि मतदाताओं की इच्छा की अभिव्यक्ति स्वतंत्र होने की गारंटी देता है।
  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में धारा 79(d):
    • "चुनावी अधिकार" का अर्थ है किसी व्यक्ति का चुनाव में खड़े होने या न खड़े होने, या उम्मीदवार बनने से पीछे हटने या न हटने, या वोट देने या वोट देने से परहेज़ करने का अधिकार।

निष्कर्ष:

  • NOTA, मतदाताओं के लिये मतदान में भाग लेने का एक माध्यम है तथा चुनाव का पूरी तरह से बहिष्कार किये बिना किसी भी उम्मीदवार को चुनने से रोकता है। इसका उद्देश्य विरोधी वोटों को औपचारिक रूप से मतगणना योग्य बनाना है। यह राजनीतिक दलों द्वारा उम्मीदवारों को चुनाव में उतारने को लेकर लोकप्रिय असंतोष की डिग्री का संकेत देता है।