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सांविधानिक विधि

संविधान के अंतर्गत शपथ

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 08-Jul-2024

परिचय:

भारतीय संविधान, 1950 की अनुसूची 3 में कई संवैधानिक पदाधिकारियों की शपथ एवं प्रतिज्ञान के प्रकार का प्रावधान है।

संविधान के अंतर्गत संसद सदस्य के संबंध में शपथ के प्रावधान क्या हैं?

  • भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 99 में यह प्रावधान है कि संसद के किसी भी सदन का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिये निर्धारित प्रारूप के अनुसार शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा तथा उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।

न्यायाधीशों को क्या शपथ दिलाई जाती है?  

  • संविधान की तीसरी अनुसूची में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को शपथ दिलाने का प्रावधान है।
  • इस शपथ में न्यायपालिका की स्वतंत्रता की कार्यशील परिभाषा की संक्षिप्त व्याख्या की गई है, जो कि न्यायपालिका को अंदर से (वर्तमान एवं सेवानिवृत्त न्यायाधीश, वादी एवं अधिवक्ता) तथा बाहर से (राज्य एवं अर्थव्यवस्था से) उत्पन्न होने वाले खतरों से सुरक्षा प्रदान करती है।
  • इस प्रकार, न्यायाधीशों को अपने विश्वास और राय के आधार पर कार्य नहीं करना चाहिये, बल्कि अपने “ज्ञान और निर्णय” के आधार पर कार्य करना चाहिये।
    • यहाँ "ज्ञान" से तात्पर्य न्यायालयीय प्रक्रिया और न्याय के आधारभूत मूल्यों की संस्थागत स्मृति से है तथा "निर्णय" से तात्पर्य व्याख्या के मूल सिद्धांतों के प्रति निष्ठा से है।

शपथ किस भाषा में दिलाई जा सकती है?

  • सदस्य, अंग्रेज़ी में या आठवीं अनुसूची में निर्दिष्ट भाषाओं में शपथ ले सकते हैं और उस पर हस्ताक्षर कर सकते हैं।
  • संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएँ शामिल हैं।

शपथ या प्रतिज्ञान लेने की प्रक्रिया क्या है?

  • नवनिर्वाचित सदन की पहली बैठक सामान्यतः सदस्यों द्वारा शपथ और प्रतिज्ञान के लिये समर्पित होती है।
  • सदस्यों का शपथ ग्रहण एक पवित्र अवसर है।
  • यह अपेक्षित है कि शपथ ग्रहण के समय सदस्यों द्वारा सदन की कार्यवाही में बाधा डालने या व्यवधान उत्पन्न करने वाला कोई कार्य न किया जाए।
  • महासचिव द्वारा नाम पुकारे जाने पर सदस्य शपथ लेते हैं और उस पर हस्ताक्षर करते हैं।

संवैधानिक पदाधिकारी

दिलाई गई शपथ

सदन के सदस्य

मैं, अमुक, राज्य सभा (या लोक सभा) का सदस्य निर्वाचित (या नामनिर्देशित) हुआ हूँ, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, मैं भारत की प्रभुता तथा  अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा एवं मैं उस कर्त्तव्य का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करूँगा जिसे मैं ग्रहण करने वाला हूँ।

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश

मैं, अमुक, भारत के उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश (या न्यायाधीश) नियुक्त हुआ हूँ, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, मैं भारत की प्रभुता एवं अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा, मैं सम्यक रूप से और निष्ठापूर्वक तथा अपनी सर्वोत्तम योग्यता, ज्ञान एवं विवेक से भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना अपने पद के कर्त्तव्यों का पालन करूँगा तथा मैं संविधान और विधियों की मर्यादा बनाए रखूँगा।”

निष्कर्ष:

संवैधानिक पदाधिकारियों को दिलाई जाने वाली शपथ में यह सुनिश्चित करने के लिये ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है कि पदाधिकारी देश की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखेंगे। इस प्रकार, शपथ उन सिद्धांतों को दर्शाती है जिन्हें पदाधिकारियों को बनाए रखना चाहिये।