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सांविधानिक विधि
भारत में एक राष्ट्र एक मतदान
« »26-Sep-2023
स्रोत: द हिंदू
परिचय
"एक राष्ट्र, एक चुनाव" एक अवधारणा है जो किसी देश में सरकार के सभी स्तरों के लिये एक साथ चुनाव कराने के विचार को संदर्भित करती है। भारत सहित कई लोकतंत्रों में सरकार के विभिन्न स्तरों, जैसे राष्ट्रीय, राज्य तथा स्थानीय निर्वाचन के लिये अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं। यह अवधारणा एक ऐसे परिदृश्य की चर्चा करती है, जहाँ सभी राज्यों के चुनाव प्रत्येक पाँच वर्ष में होते हैं, जिसमें लोकसभा के आम चुनाव भी शामिल हैं। ऐसे में विचार करने योग्य बात यह है, कि चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जाना चहिये और साथ ही चुनावों की बारंबारता को कम किया जाना चाहिये, जिससे समय और संसाधन दोनों की बचत हो सके।
यदि मध्यावधि में बहुमत एक पार्टी से दूसरी पार्टी में हस्तांतरित हो जाए ?
- यदि पार्टियों में विभाजन, दल-बदल या ऐसे उदाहरणों के कारण बहुमत एक पार्टी से दूसरे पार्टी में हस्तांतरित हो जाता है, जहाँ सत्तारूढ़ दल के कुछ संसद सदस्य अथवा विधानसभा के सदस्य सरकार के समर्थन को अस्वीकार कर देते हैं, तो मध्यावधि चुनाव कराने में बाधा उत्पन्न होगी।
- यदि सभी चुनाव एक साथ होंगे तो ऐसे परिदृश्य का प्रबंधन करना एक चुनौती होगी।
- ऐसी स्थिति में या तो अल्पसंख्यक सरकार, जिसके प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री ने विश्वास मत खो दिया है, को शेष कार्यकाल के लिये नेतृत्व करना पड़ सकता है, अथवा सभी राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ सकता है।
- सरकार के संसदीय स्वरूप को अध्यक्षीय स्वरूप में स्थानांतरित करने से ऐसे परिदृश्य परिवर्तित कर सकते हैं।
- सरकार के स्वरूप में इस तरह के परिवर्तनों के लिये कई अनुच्छेदों में संवैधानिक संशोधन की भी आवश्यकता होगी।
संविधान में बदलावों की आवश्यकता
- भाग V (संघ) के अध्याय I (कार्यकारी) के तहत निहित अनुच्छेद 52-78 में भाग V के अध्याय III के साथ राष्ट्रपति की कार्यकारी तथा विधायी शक्तियाँ शामिल हैं, इसमें संशोधन की आवश्यकता होगी।
- इसी प्रकार राज्यपाल की कार्यकारी शक्तियों को भाग VI (राज्यों) के अध्याय II के अनुच्छेद 153-167 के साथ-साथ राज्यपाल की विधायी शक्ति को समाहित करने वाले अध्याय IV में संशोधन की आवश्यकता होगी।
- मौज़ूदा संविधान में राष्ट्रपति, राज्यपालों, मंत्रिपरिषद् की नई शक्तियों को शामिल करते हुए कई नए प्रावधानों को शामिल करने की भी आवश्यकता होगी।
सरकार की राष्ट्रपति शासन प्रणाली
- अवधारणा:
- राष्ट्रपति शासन प्रणाली, सरकार की एक प्रणाली है जिसमें राष्ट्रपति की अध्यक्षता वाली कार्यकारी शाखा, विधायी शाखा से भिन्न होती है।
- इस प्रणाली में, राष्ट्रपति, राज्य और सरकार का प्रमुख होता है, जिसे आमतौर पर लोगों द्वारा एक निश्चित अवधि के लिये चुना जाता है।
- राष्ट्रपति की शक्तियाँ और अधिकार संवैधानिक रूप से परिभाषित हैं, यह विधायिका से स्वतंत्र हैं, जिसकी एक प्रमुख विशेषता यह है, कि वे इसे सरकार की संसदीय प्रणालियों से पृथक करती है।
- राष्ट्रपति शासन प्रणाली में विधायिका के पास सीमित शक्तियाँ होती हैं।
- वैश्विक परिदृश्य:
- संयुक्त राज्य अमेरिका, विश्व की सबसे पुरानी राष्ट्रपति शासन प्रणाली है, जो एक सुचारु राष्ट्रपति शासन प्रणाली का एक प्रमुख उदाहरण भी है।
- इसके अतिरिक्त, ब्राज़ील, मैक्सिको, अर्जेंटीना तथा कोलंबिया जैसे देशों में भी राष्ट्रपति शासन प्रणाली है।
- नाइजीरिया तथा केन्या जैसे अफ्रीकी देशों में राष्ट्रपति शासन प्रणाली है, लेकिन उन्हें जातीय विविधता और राजनैतिक स्थिरता से संबंधित अद्वितीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- इन प्रणालियों की विशेषता कार्यकारी, विधायी एवं न्यायिक शाखाओं के बीच शक्तियों का पृथक्करण है, जिसमें राष्ट्रपति की एक विशिष्ट और शक्तिशाली भूमिका होती है।
एक राष्ट्र एक चुनाव पर विधि आयोग के सुझाव:
- भारत के 21वें विधि आयोग ने 30 अगस्त, 2018 को न्यायाधीश बी.एस. चौहान की अध्यक्षता में एक राष्ट्र एक चुनाव पर एक प्रारूप की सिफारिश की गई।
- इसमें सुझाव दिया गया कि मौज़ूदा ढाँचे में एक साथ चुनाव संभव कराना नहीं है।
- इसके लिये संविधान, जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की प्रक्रिया के नियम, दल-बदल विरोधी कानून आदि में संशोधन की आवश्यकता होगी।
- अविश्वास प्रस्ताव के स्थान पर 'रचनात्मक अविश्वास मत' लाने का सुझाव दिया गया।
- प्रारूप की सिफारिश के अनुसार, अविश्वास प्रस्ताव के आन्वयिक मतदान में, सरकार को केवल तभी हटाया जा सकता है, जब एक वैकल्पिक सरकार में विश्वास हो।
राष्ट्रपति शासन प्रणाली अंगीकृत करने के परिणाम:
- सरकार का संसदीय स्वरूप बुनियादी ढाँचा सिद्धांत का एक भाग माना जाता है। जिसमें सरकार का स्वरूप परिवर्तित होने के कारण संविधान के बुनियादी ढाँचे के सिद्धांत का उल्लंघन हो सकता है।
- नाइज़ीरिया तथा केन्या जैसे देश जातीय विविधता एवं राजनीतिक अस्थिरता जैसे कारणों से राष्ट्रपति शासन प्रणाली में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, विविध और अधिक आबादी वाले भारत में ऐसे ढाँचे को लागू करना चुनौतीपूर्ण होगा।
निष्कर्ष:
वर्तमान ढाँचे में एक साथ चुनाव कराने के लिये कई राज्यों में विधानसभाओं की अवधि को कम करना आवश्यक होगा, जहाँ लोकसभा चुनाव की अवधि में उनका कार्यकाल समाप्त नहीं हुआ है।