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सिविल कानून
POSH अधिनियम, 2013
« »19-Jun-2024
स्रोत: द हिंदू
परिचय:
समय के साथ अग्रणी कॉर्पोरेट फर्मों में महिलाओं का अनुपात काफी बढ़ गया है। हालाँकि, इस प्रगति के बावजूद, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में नौकरी छोड़ने की दर अधिक बनी हुई है। महिलाएँ विवाह के उपरांत सामाजिक अपेक्षाओं जैसे विभिन्न कारकों के कारण संगठन छोड़ती हैं, जिसका सामना सामान्यतः पुरुषों को नहीं करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, कार्यस्थल पर उत्पीड़न, चाहे मौखिक हो, यौन हो या अन्यथा, भी महिलाओं को अपनी नौकरी छोड़ने में योगदान देता है। कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH अधिनियम) के अधीन रिपोर्ट किये गए ऐसे उत्पीड़न के मामले एक चिंताजनक प्रवृत्ति दिखाते हैं, जिसमें महामारी से संबंधित गिरावट के बाद फिर से रिपोर्ट किये गए मामलों में वृद्धि हो रही है।
POSH अधिनियम 2013 क्या है?
- POSH अधिनियम 2013 में भारत सरकार द्वारा कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न से निपटने के लिये बनाया गया एक विधान है।
- इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कार्यस्थल महिलाओं के लिये सुरक्षित हों तथा उन्हें यौन उत्पीड़न से बचाया जा सके।
- अधिनियम के अनुसार, यौन उत्पीड़न में अवांछित शारीरिक संपर्क या प्रलोभन, यौन अनुग्रह की मांग करना, अनुचित यौन टिप्पणी करना, अश्लील साहित्य दिखाना या यौन प्रकृति का कोई अन्य अवांछित व्यवहार शामिल हो सकता है, चाहे वह मौखिक हो, लिखित हो या यहाँ तक कि इशारों से भी किया गया हो।
- कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से निपटने के लिये विधायी अधिनियम बनाया गया है- कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 (POSH ACT)।
- जहाँ यौन अपराध का पीड़ित अल्पवयस्क है, वहाँ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) लागू होता है।
- अधिनियम में नियोक्ता के लिए दायित्व निर्धारित किये गए हैं, जिनमें सेवा नियमों के अधीन यौन उत्पीड़न को "कदाचार" के रूप में मान्यता देना और 10 या अधिक श्रमिकों वाले कार्यस्थलों पर आंतरिक शिकायत समिति (ICC) स्थापित करना शामिल है।
इस अधिनियम की पृष्ठभूमि क्या थी?
- विशाखा एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य 1997 मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने ‘विशाखा दिशा-निर्देश’ दिये थे।
- ये दिशा-निर्देश कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 का आधार बने।
- उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनेक प्रावधानों से भी अपनी शक्ति प्राप्त की, जिनमें अनुच्छेद 15 (केवल धर्म, नस्ल, जाति, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव के विरुद्ध) शामिल है, तथा प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और मानदंडों से भी प्रेरणा ली, जैसे कि महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन की सामान्य अनुशंसाएँ (CEDAW), जिसका भारत ने 1993 में अनुमोदन किया था।
विशाखा दिशा-निर्देश क्या हैं?
- विशाखा एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य (1997) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने विशाखा दिशा-निर्देश निर्धारित किये थे, जिनका पालन, यौन उत्पीड़न की शिकायतों से निपटने हेतु प्रतिष्ठानों द्वारा किया जाना है।
- इस मामले में पारित दिशा-निर्देश इस प्रकार हैं:
- प्रत्येक नियोक्ता का यह कर्त्तव्य है कि वह प्रत्येक महिला कर्मचारी को सुरक्षा की भावना प्रदान करे।
- सरकार को यौन उत्पीड़न पर रोक लगाने के लिये कड़े विधान एवं नियम बनाने चाहिये।
- इस प्रकार के किसी भी कृत्य के परिणामस्वरूप अनुशासनात्मक कार्यवाही की जानी चाहिये तथा गलत कार्य करने वाले के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही भी की जानी चाहिये।
- संगठन के पास पीड़ित द्वारा की गई शिकायतों के निवारण के लिये एक सुव्यवस्थित शिकायत तंत्र होना चाहिये तथा उसे उचित समय के भीतर निपटाया जाना चाहिये।
- यह शिकायत तंत्र, शिकायत समिति के रूप में होना चाहिये, जिसकी अध्यक्षता एक महिला सदस्य द्वारा की जानी चाहिये तथा समिति में कम-से-कम 50% सदस्य महिलाएँ होनी चाहिये, ताकि पीड़ितों को अपनी समस्याएँ बताते समय शर्म महसूस न हो।
- इस शिकायत समिति में किसी गैर सरकारी संगठन या अन्य निकाय के रूप में तीसरे पक्ष की भी भागीदारी होनी चाहिये जो इस मुद्दे से परिचित हो।
- इस समिति के कामकाज में पारदर्शिता की आवश्यकता है तथा इसके लिये सरकार को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करना आवश्यक है।
- यौन उत्पीड़न से संबंधित मुद्दों को श्रमिकों की बैठक में वर्जित नहीं किया जाना चाहिये तथा उन पर सकारात्मक चर्चा की जानी चाहिये।
- संगठन का यह कर्त्तव्य है कि वह महिला कर्मचारियों को, जारी किये गए नए दिशा-निर्देशों एवं पारित विधानों के विषय में नियमित रूप से सूचना देकर उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करें।
- नियोक्ता या प्रभारी व्यक्ति का यह कर्त्तव्य है कि वह यौन उत्पीड़न के पीड़ित को सहायता प्रदान करने के लिये आवश्यक एवं उचित कदम उठाए, जो तीसरे पक्ष के कृत्य या चूक के कारण होता है।
- ये दिशा-निर्देश मात्र सरकारी नियोक्ताओं तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं को भी इनका पालन करना चाहिये।
- मेधा कोतवाल लेले एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य (2012) के मामले ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को आवश्यक कदम उठाने के लिये अधिसूचना जारी कर विशाखा के मामले में तैयार किये गए दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन में सहायता की।
POSH अधिनियम 2013 में महत्त्वपूर्ण प्रावधान क्या हैं?
- इस अधिनियम की धारा 2(n), यौन उत्पीड़न शब्द को परिभाषित करती है। इसमें कहा गया है कि यौन उत्पीड़न में निम्नलिखित में से कोई एक या अधिक अवांछित कार्य या व्यवहार (चाहे प्रत्यक्ष रूप से या निहितार्थ से) शामिल हैं, अर्थात्–
- शारीरिक संपर्क और प्रलोभन; या
- यौन अनुग्रह की मांग या अनुरोध; या
- यौन संबंधी टिप्पणी करना; या
- अश्लील साहित्य दिखाना; या
- यौन प्रकृति का कोई अन्य अवांछित शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिक आचरण।
- अधिनियम की धारा 3(2) में उन परिस्थितियों का उल्लेख है जो यौन उत्पीड़न का कारण बनती हैं। धारा के अनुसार, अन्य परिस्थितियों के अलावा, निम्नलिखित परिस्थितियाँ, यदि यौन उत्पीड़न के किसी कृत्य या व्यवहार के संबंध में हों या उससे जुड़ी हुई हों या उपस्थित हों, तो यौन उत्पीड़न मानी जाएंगी-
- उसके रोज़गार में अधिमान्य व्यवहार का निहित या स्पष्ट वादा; या
- उसके रोज़गार में हानिकारक व्यवहार की निहित या स्पष्ट धमकी; या
- उसकी वर्तमान या भविष्य की रोज़गार स्थिति के बारे में निहित या स्पष्ट खतरा; या
- उसके काम में हस्तक्षेप करना या उसके लिये भयभीत करने वाला, आक्रामक या शत्रुतापूर्ण कार्य वातावरण बनाना; या
- अपमानजनक व्यवहार जिससे उसके स्वास्थ्य या सुरक्षा पर असर पड़ने की संभावना हो।
- उक्त विधान की धारा 4 और 6 में क्रमशः आंतरिक शिकायत समिति तथा स्थानीय शिकायत समिति के गठन का प्रावधान है।
- अधिनियम की धारा 9 यौन उत्पीड़न की शिकायत की प्रक्रिया का प्रावधान करती है, जबकि धारा 11 शिकायत में क्षति से संबंधित है।
- धारा 10 के अनुसार, समिति धारा 11 के अंतर्गत जाँच प्रारंभ करने से पूर्व तथा पीड़ित महिला के अनुरोध पर, उसके और प्रतिवादी के मध्य सुलह के माध्यम से मामले को निपटाने के लिये कदम उठा सकती है।
- धारा 14 मिथ्या या दुर्भावनापूर्ण शिकायत और मिथ्या साक्ष्य के लिये दण्ड से संबंधित है।
- धारा 26 के अनुसार, अधिनियम के प्रावधानों का किसी भी प्रकार से उल्लंघन करने पर 50,000 रुपए तक का अर्थदण्ड लगाया जा सकता है तथा बार-बार उल्लंघन करने पर अधिक अर्थदण्ड लगाया जा सकता है तथा लाइसेंस रद्द किया जा सकता है।
POSH अधिनियम 2013 के अधीन नियोक्ता के कर्त्तव्य क्या हैं?
- धारा 19 नियोक्ता के कर्त्तव्यों से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि प्रत्येक नियोक्ता को:
- कार्यस्थल पर सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करना जिसमें कार्यस्थल पर संपर्क में आने वाले व्यक्तियों से सुरक्षा शामिल होगी;
- कार्यस्थल में किसी भी प्रमुख स्थान पर यौन उत्पीड़न के दण्डात्मक परिणामों को प्रदर्शित करना; तथा धारा 4 की उपधारा (1) के अंतर्गत आंतरिक समिति के गठन का आदेश;
- अधिनियम के प्रावधानों के प्रति कर्मचारियों को संवेदनशील बनाने के लिये नियमित अंतराल पर कार्यशालाएँ एवं जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना तथा निर्धारित तरीके से आंतरिक समिति के सदस्यों के लिये अभिमुखीकरण कार्यक्रम आयोजित करना;
- शिकायत से निपटने और जाँच करने के लिये आंतरिक समिति या स्थानीय समिति को आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करना;
- आंतरिक समिति या स्थानीय समिति के समक्ष प्रतिवादी एवं साक्षियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने में सहायता करना, चाहे जैसा भी मामला हो;
- आंतरिक समिति या स्थानीय समिति को, जैसी भी स्थिति हो, ऐसी सूचना उपलब्ध कराना, जो उसे धारा 9 की उपधारा (1) के अधीन की गई शिकायत को ध्यान में रखते हुए अपेक्षित हो;
- यदि महिला भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) या किसी अन्य वर्तमान विधि के अधीन अपराध के संबंध में शिकायत दर्ज कराना चाहती है तो उसे सहायता प्रदान करना;
- भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) या किसी अन्य वर्तमान विधान के अधीन अपराधी के विरुद्ध कार्यवाही प्रारंभ करने का कारण, वह कार्यस्थल बन सकता है जहाँ यौन उत्पीड़न की घटना हुई है अथवा जहाँ अपराधी कर्मचारी नहीं है यदि पीड़ित महिला की ऐसी इच्छा है तो ऐसा किया जा सकता है;
- यौन उत्पीड़न को सेवा नियमों के अंतर्गत कदाचार माना जाएगा तथा ऐसे कदाचार के लिये कार्यवाही प्रारंभ की जाएगी;
- आंतरिक समिति द्वारा समय पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने की निगरानी करना।
शी-बॉक्स क्या है?
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निष्कर्ष:
POSH अधिनियम 2013 का उद्देश्य नियोक्ताओं के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देशों एवं दायित्वों के माध्यम से कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न से महिलाओं की सुरक्षा करना है, परंतु इसका प्रभावी कार्यान्वयन एक चुनौती बना हुआ है। उच्चतम न्यायालय द्वारा हाल ही में की गई टिप्पणियों में इस अधिनियम के अनुपालन में महत्त्वपूर्ण मियों को प्रकट किया गया है, जिसमें अपर्याप्त आंतरिक शिकायत समितियाँ भी शामिल हैं। इन मुद्दों को संबोधित करना पूरे भारत में महिलाओं के लिये एक सुरक्षित एवं सहायक कार्य वातावरण सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।