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वाणिज्यिक विधि

भ्रामक विज्ञापन पर पतंजलि मामला

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 04-Mar-2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

परिचय:

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2022) मामले में, बाबा रामदेव के नेतृत्व वाली पतंजलि आयुर्वेद को कड़ी फटकार लगाई। न्यायालय का यह निर्णय पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों के प्रसार के कारण आया, जिसके चलते अगले नोटिस तक इसकी मार्केटिंग गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

पतंजलि पर क्या आरोप हैं?

  • आरंभ:
    • इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने अगस्त, 2022 में पतंजलि द्वारा एलोपैथिक दवा को बदनाम करने वाले विज्ञापन के प्रकाशन के बाद एक याचिका दायर की थी।
  • संघर्ष में विज्ञापन का शीर्षक:
    • विवादित विज्ञापन का शीर्षक है एलोपैथी द्वारा फैलाई गई भ्रांतियाँ: फार्मा और मेडिकल उद्योग द्वारा फैलाई गई भ्रांतियों से खुद को और देश को बचाएँ।
  • विवाद को बढ़ावा देने के पीछे का कारण:
    • एलोपैथी को "बेवकूफ और दिवालिया विज्ञान" करार देने एवं एलोपैथिक चिकित्सा को कोविड-19 मौतों के लिये ज़िम्मेदार ठहराने वाले रामदेव के कथनों ने विवाद को और बढ़ा दिया।
    • साथ ही, कोविड-19 के दौरान टीकों से जुड़ी मिथ्या जानकारी फैलाने के भी आरोप लगे।

पतंजलि के विरुद्ध विधिक तर्क क्या हैं?  

  • कानूनों का उल्लंघन:
    • IMA ने तर्क दिया कि पतंजलि के विज्ञापनों ने औषधि एवं अन्य चमत्कारिक उपचार अधिनियम, 1954 (DOMA), और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (CPA) का उल्लंघन किया।
  • DOMA के अंतर्गत विधिक प्रावधान:
    • DOMA की धारा 4 के तहत, ओषधियों के संबंध में भ्रामक विज्ञापनों का प्रतिषेध है, जिसके लिये कारावास या ज़ुर्माना हो सकता है।
    • इसमें कहा गया है कि इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई व्यक्ति किसी ओषधि के संबंध में किसी विज्ञापन के प्रकाशन में भाग नहीं लेगा, यदि उस विज्ञापन में कोई ऐसी बात है-
      • जिससे उस ओषधि की वास्तविक प्रकृति के बारे में कोई मिथ्या धारणा प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः बनती है; अथवा
      • जिसमें उस ओषधि के लिये कोई मिथ्या दावा किया गया है; अथवा
      • जो अन्यथा किसी तात्त्विक विशिष्ट में मिथ्या या भ्रामक है।
    • DOMA की धारा 7 में आगे कहा गया है कि जो कोई इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए नियमों के उपबंधों का उल्लंघन करेगा, वह सिद्धदोष ठहराए जाने पर-
      • प्रथम दोषसिद्धि की दशा में, कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से;
      • किसी पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि की दशा में, कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डनीय होगा।
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के विधिक प्रावधान:
    • इसके अलावा, CPA की धारा 89 मिथ्या या भ्रामक विज्ञापनों के लिये कड़े दण्ड लगाती है।
    • इसमें कहा गया है कि कोई विनिर्माता या सेवा प्रदाता, जो किये जाने वाले ऐसे मिथ्या या भ्रामक विज्ञापन कारिता है जो उपभोक्ताओं के हित पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, वह ऐसी अवधि के कारावास से, जो दो वर्ष का हो सकेगा और ऐसे ज़ुर्माने से, जो दस लाख रुपए तक का हो सकेगा, से दण्डनीय होगा और प्रत्येक पश्चातवर्ती अपराध के लिये ऐसी अवधि के कारावास से, जो पाँच वर्ष का हो सकेगा और ऐसे ज़ुर्माने से, जो पचास लाख रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।
  • समझौतों की भूमिका:
    • आयुष और नियामक निकायों के बीच समझौतों के बावजूद, पतंजलि ने जनवरी, 2017 में आयुष मंत्रालय और भारतीय विज्ञापन मानक परिषद द्वारा हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन का उल्लंघन करते हुए, विज्ञापन नियमों का उल्लंघन करना जारी रखा।

पतंजलि मामले में उच्चतम न्यायालय की क्या प्रतिक्रिया है?  

  • उच्चतम न्यायालय ने 27 फरवरी के अपने निर्णय में पतंजलि के अपराधों की गंभीरता पर ज़ोर दिया।
    • पूर्व चेतावनियों और आश्वासनों के बावजूद, पतंजलि भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने में लगा रहा, जिसके कारण न्यायालय को निर्णायक कार्रवाई करनी पड़ी।
  • न्यायालय ने पतंजलि को DOMA में निर्दिष्ट बीमारियों को संबोधित करने वाले उत्पादों के विज्ञापन या ब्रांडिंग करने से रोक दिया और पारंपरिक चिकित्सा के प्रति प्रतिकूल बयानों के प्रति आगाह किया।
  • न्यायालय ने सुनवाई की तिथि 19 मार्च, 2024 तय की है।

निष्कर्ष:

निष्कर्षतः, पतंजलि के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का निर्णय नैतिक विज्ञापन और उपभोक्ता संरक्षण के महत्त्व को रेखांकित करता है। भ्रामक प्रथाओं के लिये निगमों को जवाबदेह ठहराकर, न्यायालय स्वास्थ्य सेवा उद्योग की अखंडता को बरकरार रखता है। आगे बढ़ते हुए, नियामक निकायों और निगमों को लोक स्वास्थ्य एवं विश्वास की सुरक्षा के लिये कड़े विज्ञापन मानकों का पालन करना चाहिये।