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प्रतिलिप्यधिकार (कॉपीराइट) के तहत कृत्रिम बुद्धिमत्ता की स्थिति

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 06-Nov-2023

स्रोत: द हिंदू

परिचय

बाइडेन सरकार (अमेरिकी सरकार) ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और प्रतिलिप्यधिकार कानून की मानव केंद्रितता के मुद्दे पर एक प्रशासनिक आदेश पारित किया। एआई-जनित कंटेंट उसके प्रशिक्षण में उपयोग किये गए डेटा के कारण प्रतिलिप्यधिकार का उल्लंघन कर सकती है। इसके प्रशिक्षण में लाखों लोगों के मौलिक संकर्म उपयोग में आते हैं जो इसके परिणाम में परिलक्षित होता है। भारत में वर्तमान में प्रतिलिप्यधिकार उल्लंघन के खिलाफ मूल मालिकों के अधिकारों की रक्षा के लिये एक प्रतिलिप्यधिकार कानून है, हालाँकि, एआई की सहायता से निर्मित कंटेंट की स्थिति अभी भी कानून से अछूती है।

भारतीय प्रतिलिप्यधिकार कानून क्या है?

  • भारतीय प्रतिलिप्यधिकार कानून, मुख्य रूप से प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957 (1957 का अधिनियम) तथा उसके बाद के संशोधनों द्वारा शासित, रचनाकारों के बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा करने का कार्य करता है।
  • यह नवाचार एवं रचनात्मकता के लिये अनुकूल वातावरण को प्रोत्साहित करता है।
  • यह कानून साहित्य, कला, संगीत, फिल्म और कंप्यूटर प्रोग्राम के मूल कार्यों को सुरक्षा प्रदान करता है।
  • भारत में, किसी कृति के निर्माण पर प्रतिलिप्यधिकार सुरक्षा स्वचालित रूप से प्रदान की जाती है, जिससे निर्माता को अपनी रचना को पुन: पेश करने, वितरित करने एवं प्रदर्शित करने का विशेष अधिकार मिलता है।
  • 1957 का अधिनियम निष्पक्ष व्यवहार प्रावधानों को भी मान्यता प्रदान करता है, जो शैक्षिक या अनुसंधान जैसे उद्देश्यों के लिये अनुमति की आवश्यकता के बिना प्रतिलिप्यधिकार सामग्री के सीमित उपयोग की भी अनुमति देता है।
  • 1957 के अधिनियम की धारा 17 प्रतिलिप्यधिकार के पहले मालिक के लिये कानून को शामिल करती है जिसमें कहा गया है कि किसी काम का लेखक प्रतिलिप्यधिकार का पहला मालिक होगा, एआई द्वारा उत्पन्न डेटा को अभी भी अधिनियम के अनुसार व्याख्या करने की आवश्यकता है।

वे कौन से कार्य हैं जिन पर प्रतिलिप्यधिकार अस्तित्त्व में रहेगा?

  • 1957 के अधिनियम की धारा 13 की उपधारा (1) के अनुसार, प्रतिलिप्यधिकार निम्नलिखित पर अस्तित्त्व में है:
    • मौलिक साहित्यिक, नाटकीय, संगीतात्मक और कलात्मक कृतियाँ;
    • चलचित्र फिल्म; और
    • ध्वन्यंकन

प्रतिलिप्यधिकार (कॉपीराइट) अधिनियम, 1957 की धारा 13 के तहत शर्तें क्या हैं?

उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट किसी कृति में, जो ऐसी कृति से भिन्न हो जिसको धारा 40 या 41 के उपबंध लागू होते हैं , प्रतिलिप्यधिकार तब तक अस्तित्त्व में नहीं होगा जब तक कि,

  • प्रकाशित कृति की दशा में, वह कृति भारत में पहले प्रकाशित नही की जाती, या जहाँ कृति भारत के बाहर पहले प्रकाशित की जाती है वहाँ उसका रचयिता ऐसे प्रकाशन की तिथि को अथवा दशा में, जिसमें रचयिता उस तिथि को मर चुका है अपनी मृत्यु के समय वह भारत का नागरिक न रहा हो;
  • वास्तु कृति से भिन्न किसी अप्रकाशित कृति की दशा में, उसका रचयिता कृति की रचना की तिथि को भारत का नागरिक न हो या भारत में अधिवसित न हो; और
  • वास्तु कृति की दशा में, वह कृति भारत में स्थित न हो।

स्पष्टीकरण - संयुक्त रचयिताओं की कृति की दशा में, इस उपधारा में विनिर्दिष्ट प्रतिलिप्यधिकार (कॉपीराइट) प्रदत्त करने वाली शर्तें उस कृति के सब रचयिताओं को पूरी करनी होंगी।

ऐसे कौन से कार्य हैं जिन पर प्रतिलिप्यधिकार अस्तित्त्व में नहीं रहेगा?

  • 1957 के अधिनियम की धारा 13 की उपधारा (3) के अनुसार, प्रतिलिप्यधिकार निम्नलिखित पर कायम नहीं रहेगा:
    • किसी भी चलचित्र फिल्म में यदि फिल्म का एक बड़ा हिस्सा किसी अन्य कृति में प्रतिलिप्यधिकार का उल्लंघन है;
    • किसी साहित्यिक, नाटकीय या संगीतमय कृति के संबंध में की गई ध्वन्यंकन (Sound Recording) में, यदि ध्वन्यंकन करते समय, ऐसी कृति में प्रतिलिप्यधिकार का उल्लंघन किया गया है।

एआई जनित कार्य के विरुद्ध प्रतिलिप्यधिकार उल्लंघन के तर्क क्या हैं?

  • पारंपरिक प्रतिलिप्यधिकार कानून मानव रचनाकारों को लेखकत्त्व सौंपता है। हालाँकि, AI-जनित कार्यों के साथ, लेखकत्त्व का निर्धारण करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • एआई सिस्टम का उपयोग कंटेंट का अनुवाद करने या उसे विभिन्न प्रारूपों में अनुकूलित करने के लिये किया जा सकता है।
    • यदि इस प्रक्रिया में बिना अनुमति के प्रतिलिप्यधिकार सामग्री शामिल है, तो यह मूल प्रतिलिप्यधिकार का उल्लंघन कर सकती है।

भारत में वर्तमान परिदृश्य क्या है?

  • जुलाई 2021 में वाणिज्य विभाग-संबंधित संसदीय स्थायी समिति द्वारा 'भारत में बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था की समीक्षा' नामक 161वीं रिपोर्ट तैयार की गई थी।
  • रिपोर्ट में "एआई और एआई से संबंधित आविष्कारों की उभरती प्रौद्योगिकियों को अपने दायरे में शामिल करने" के लिये 1957 के अधिनियम तथा पेटेंट अधिनियम, 1970 की समीक्षा की सिफारिश की गई थी।

आगे की राह

  • एआई तकनीक की वैश्विक प्रकृति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिलिप्यधिकार कानूनों के सामंजस्य के संबंध में चिंता उत्पन्न करती है।
  • चूँकि एआई-जनित कार्य आसानी से सीमाओं को पार कर सकते हैं, इसलिये न केवल भारतीय मोर्चे पर कानून की आवश्यकता है, बल्कि सुसंगत मानकों एवं विनियमों को स्थापित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।