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सांविधानिक विधि
आरक्षण
« »13-May-2024
स्रोत: द हिंदू
परिचय:
भारत में राजनीतिक दलों के बीच आरक्षण के मुद्दे पर राजनीतिक बहस छिड़ गई है। यह बहस कर्नाटक में मुसलमानों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में शामिल करने को लेकर है। समर्थकों का तर्क है कि यह सामाजिक न्याय प्राप्त करने के संवैधानिक उद्देश्य के अनुरूप है। हालाँकि, विरोधियों ने केवल धार्मिक आधार पर आरक्षण के विरुद्ध ऐतिहासिक विरोध की ओर संकेत करते हुए चिंता जताई है।
आरक्षण क्या है?
- आरक्षण सकारात्मक भेदभाव का एक रूप है, जो हाशिये पर मौजूद वर्गों के बीच समानता को बढ़ावा देने के लिये बनाया गया है, ताकि उन्हें सामाजिक और ऐतिहासिक अन्याय से बचाया जा सके।
- आमतौर पर, इसका अर्थ रोज़गार और शिक्षा तक पहुँच में समाज के हाशिये पर रहने वाले वर्गों के साथ अधिमान्य व्यवहार करना है।
- इसे मूल रूप से वर्षों के भेदभाव को ठीक करने और वंचित समूहों को बढ़ावा देने के लिये भी विकसित किया गया था।
- भारत में ऐतिहासिक रूप से जाति के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव किया जाता रहा है।
भारत में आरक्षण से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
- भारत के संविधान, 1950 (COI) का भाग XVI केंद्रीय और राज्य विधानसभाओं में SC तथा ST के आरक्षण से संबंधित है।
- COI के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) ने राज्य तथा केंद्र सरकारों को SC एवं ST के सदस्यों के लिये सरकारी सेवाओं में सीटें आरक्षित करने में सक्षम बनाया।
- संविधान (77वाँ संशोधन) अधिनियम, 1995 द्वारा संविधान में संशोधन किया गया और सरकार को पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने में सक्षम बनाने के लिये अनुच्छेद 16 में एक नया खंड (4A) जोड़ा गया।
- बाद में, आरक्षण देकर पदोन्नत SC और ST उम्मीदवारों को परिणामी वरिष्ठता प्रदान करने के लिये संविधान (85वाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 द्वारा खंड (4A) को संशोधित किया गया था।
- संवैधानिक 81वें संशोधन अधिनियम, 2000 में अनुच्छेद 16 (4B) शामिल किया गया, जो राज्य को अगले वर्ष में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित किसी वर्ष की अधूरी रिक्तियों को भरने में सक्षम बनाता है, जिससे उस वर्ष की रिक्तियों की कुल संख्या पर पचास प्रतिशत आरक्षण की सीमा समाप्त हो जाती है।
- COI के अनुच्छेद 330 और 332 क्रमशः संसद तथा राज्य विधानसभाओं में SC एवं ST के लिये सीटों के आरक्षण के माध्यम से विशिष्ट प्रतिनिधित्व प्रदान करते हैं।
- अनुच्छेद 243D प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों का आरक्षण प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 233T प्रत्येक नगर पालिका में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों का आरक्षण प्रदान करता है।
- संविधान के अनुच्छेद 335 में कहा गया है कि प्रशासन की प्रभावकारिता को बनाए रखते हुए SC और ST के दावों पर संघटक रूप से विचार किया जाएगा।
आरक्षण का समयबद्ध विकास क्या है?
वर्ष 1950-1951 |
संविधान की शुरुआत और पहला संशोधन, OBC, SC तथा ST की उन्नति के लिये विशेष प्रावधान बनाने के लिये अनुच्छेद 15 एवं 16 में प्रावधानों को सक्षम बनाना |
वर्ष 1982 |
केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में SC तथा ST के लिये आरक्षण क्रमशः 15% एवं 7.5% तय किया गया। |
वर्ष 1990 |
मंडल आयोग की सिफारिश के आधार पर केंद्र सरकार के रोज़गार में OBC के लिये 27% आरक्षण शुरू किया गया। |
वर्ष 2005 |
93वें संवैधानिक संशोधन में अनुच्छेद 15(5) शामिल किया गया जिससे निजी संस्थानों सहित शैक्षणिक संस्थानों में OBC, SC और ST के लिये आरक्षण सक्षम हो गया। |
वर्ष 2019 |
103वें संवैधानिक संशोधन में अनुच्छेद 15(6) और 16(6) शामिल किये गए, जिससे शैक्षणिक संस्थानों तथा सार्वजनिक रोज़गार में अनारक्षित श्रेणी के बीच आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिये 10% तक आरक्षण संभव हुआ। |
आरक्षण संबंधित न्यायिक दृष्टिकोण क्या है?
- मद्रास राज्य बनाम श्रीमती चंपकम दोरैराजन (1951) मामला आरक्षण के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय का पहला बड़ा मामला था। इस मामले के कारण संविधान में पहला संशोधन हुआ।
- उच्चतम न्यायालय ने बताया कि राज्य के तहत रोज़गार के मामले में, अनुच्छेद 16(4) नागरिकों के पिछड़े वर्ग के पक्ष में आरक्षण का प्रावधान करता है, लेकिन अनुच्छेद 15 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
- मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार, संसद ने खंड (4) जोड़कर अनुच्छेद 15 में संशोधन किया।
- इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) मामले में न्यायालय ने अनुच्छेद 16(4) के दायरे और सीमा की जाँच की।
- न्यायालय ने कहा है कि OBC की क्रीमी लेयर को आरक्षण के लाभार्थियों की सूची से बाहर किया जाना चाहिये, पदोन्नति में आरक्षण नहीं होना चाहिये और कुल आरक्षित कोटा 50% से अधिक नहीं होना चाहिये।
- संसद ने 77वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1995 को अधिनियमित करके जवाब दिया, जिसने अनुच्छेद 16(4A) पेश किया।
- यह अनुच्छेद राज्य को सार्वजनिक सेवाओं में पदोन्नति में SC और ST समुदायों के पक्ष में सीटें आरक्षित करने की शक्ति प्रदान करता है यदि समुदायों को सार्वजनिक रोज़गार में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है।
- एम. नागराज बनाम भारत संघ (2006) मामले में उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 16(4A) की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि संवैधानिक रूप से वैध होने के लिये ऐसी कोई भी आरक्षण नीति निम्नलिखित तीन संवैधानिक आवश्यकताओं को पूरा करेगी:
- SC और ST समुदाय को सामाजिक तथा शैक्षणिक रूप से पिछड़ा होना चाहिये।
- सार्वजनिक रोज़गार में SC और ST समुदायों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
- ऐसी आरक्षण नीति प्रशासन की समग्र दक्षता को प्रभावित नहीं करेगी।
- जरनैल सिंह बनाम लछमी नारायण गुप्ता मामले (2018) में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि पदोन्नति में आरक्षण के लिये राज्य को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के पिछड़ेपन पर मात्रात्मक डेटा एकत्र करने की आवश्यकता नहीं है।
- न्यायालय ने माना कि क्रीमी लेयर का बहिष्कार SC/ST तक फैला हुआ है, इसलिये राज्य उन SC/ST व्यक्तियों को पदोन्नति में आरक्षण नहीं दे सकता जो उनके समुदाय की क्रीमी लेयर से संबंधित हैं।
- जनहित अभियान बनाम भारत संघ (2022) मामले में 103वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। उच्चतम न्यायालय ने 103वें संवैधानिक संशोधन की वैधता को बरकरार रखा।
- न्यायालय ने अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करके 103वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत 10% EWS आरक्षण की शुरुआत की।
- इसमें अनुच्छेद 15(6) और अनुच्छेद 16(6) सम्मिलित किया गया।
निष्कर्ष:
आरक्षण नीति केवल एक अस्थायी समय-सीमा के लिये पेश की गई थी जब तक कि भेदभाव के सभी आधारों के बीच समानता कायम नहीं हो जाती। हालाँकि, आरक्षण की नीति अब छह दशकों से अधिक समय से जारी है और इसका विस्तार हो रहा है।
चूँकि, समाज में समानता, समता और विविधता प्रदान करने के लिये आरक्षण आवश्यक है। आरक्षण की नीति से हाशिये पर पड़े वर्गों का सामाजिक उत्थान होता है, हालाँकि, इस वर्तमान नीति को तर्कसंगत बनाने की आवश्यकता है ताकि सामाजिक गतिशीलता और योग्यता के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके।