होम / एडिटोरियल
आपराधिक कानून
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8
« »08-Mar-2024
स्रोत: द हिंदू
परिचय:
हाल ही में, तमिलनाडु विधान सभा सचिवालय द्वारा तिरुक्कोइलुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र को रिक्त घोषित करना विधायी प्रतिनिधित्व में अखंडता बनाए रखने की आवश्यकता और चुनौतियों दोनों पर प्रकाश डालता है। राज्य बनाम के. पोनमुडी और अन्य (2023) के मामले में, सज़ा के बाद कार्रवाई में 3 महीने की देरी तथा पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री के पोनमुडी की अयोग्यता सार्वजनिक अधिकारियों से जुड़ी विधिक कार्यवाही के लिये समय पर एवं निर्णायक प्रतिक्रिया की अनिवार्यता को रेखांकित करती है।
के. पोनमुडी मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- आरोप:
- द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) की सरकार में उच्च शिक्षा और खान मंत्री के रूप में कार्य करने वाले के.पोनमुडी को अपने कार्यकाल के दौरान आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोपों का सामना करना पड़ा।
- सतर्कता एवं भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय (DVAC) ने वर्ष 2011 में उनके और उनकी पत्नी पी. विशालाक्षी के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की।
- आरोप में कहा गया है, कि उन्होंने अपनी आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक कुल ₹1.7 करोड़ जमा किये।
- ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही:
- पूर्ण सुनवाई के बाद, विल्लुपुरम में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (PCA) मामलों की एक विशेष अदालत ने अप्रैल 2016 में पोनमुडी और उनकी पत्नी दोनों को बरी कर दिया।
- न्यायालय ने यह साबित करने में अभियोजन पक्ष की विफलता का हवाला दिया कि, पोनमुडी ने संपत्ति अर्जित करने के लिये अपनी पत्नी को कथित तौर पर गलत तरीके से अर्जित धन हस्तांतरित किया।
- DVAC की अपील:
- DVAC ने वर्ष 2017 में विशेष न्यायालय के निर्णय के खिलाफ अपील दायर की।
- मामला विभिन्न न्यायाधीशों और स्थगनों के माध्यम से तब तक चला, जब तक कि उच्च न्यायालय ने वर्ष 2023 ने इस पर अंतिम सुनवाई नहीं की।
- उच्च न्यायालय का निर्णय:
- उच्च न्यायालय ने 19 दिसंबर, 2023 को अपने निर्णय में ट्रायल कोर्ट के बरी करने के फैसले की आलोचना करते हुए इसे "स्पष्ट रूप से गलत और अस्थिर" बताया।
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया, कि अवर न्यायालय उन सभी महत्त्वपूर्ण सबूतों पर विचार करने में विफल रहा, जो यह दर्शाता है, कि पोनमुडी की पत्नी के पास मौजूद संपत्ति उनकी आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक थी।
- परिणामस्वरूप, उच्च न्यायालय ने बरी करने के फैसले को परिवर्तित कर दिया तथा के. पोनमुडी और उनकी पत्नी दोनों को दोषी ठहराया व सज़ा के लिये तैयार रहने का आदेश दिया।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत दोषसिद्धि किस प्रकार अयोग्यता का कारण बनती है?
- के. पोनमुडी की दोषसिद्धि के कारण जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(1) के तहत उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया।
- धारा 8(3) के विपरीत, जिसमें अयोग्यता के लिये न्यूनतम दो वर्ष की सज़ा की आवश्यकता होती है, जबकि धारा 8(1) एक दिन के लिये ज़ुर्माना या कारावास मिलने पर भी अयोग्यता का आदेश देती है।
- धारा 8(1) के तहत अयोग्यता दोषसिद्धि की तारीख से छह वर्ष या कारावास की अवधि पूरी होने तक और रिहाई की तारीख से अतिरिक्त छह वर्ष तक रहती है।
- हालाँकि, कानून स्पष्ट रूप से स्वत: अयोग्यता का उल्लेख नहीं करता है, अधिसूचना दोषसिद्धि के दिन से प्रभावी होनी चाहिये।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 क्या है?लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 उन विशिष्ट अपराधों का वर्णन करती है, जिनमें दोषसिद्धि होने पर विधायकों को अयोग्य घोषित किया जाता है।
|
तमिलनाडु में रिक्तियों की घोषणा के बाद क्या मुद्दे उत्पन्न हुए?
- विलावनकोड और तिरुक्कोइलुर निर्वाचन क्षेत्रों में रिक्तियों की घोषणा के बीच विरोधाभासी समय-सीमा विधायी ढाँचे के अंतर्गत प्रक्रियात्मक स्थिरता एवं पारदर्शिता के संबंध में प्रश्नचिह्न उठाती है।
- जहाँ पहले विधायक के इस्तीफे के बाद त्वरित कार्रवाई देखी गई, वहीं बाद में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(1) के तहत श्री के. पोनमुडी की अयोग्यता के संबंध में विधिक स्पष्टता के बावजूद अत्यधिक विलंब देखा गया।
भ्रष्टाचार विरोधी उपायों की क्या आवश्यकता है?
- श्री के. पोनमुडी को अयोग्य ठहराने की विलंबित प्रतिक्रिया भ्रष्टाचार से निपटने और सार्वजनिक कार्यालय में जवाबदेही बनाए रखने में न्यायपालिका एवं विधायिका के बीच तालमेल की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
- जैसे-जैसे न्यायपालिका भ्रष्टाचार विरोधी मामलों पर मुकदमा चलाने के प्रयासों को तेज़ करती है, ठीक वैसे ही विधायी निकायों को अयोग्यता प्रावधानों को त्वरित और निष्पक्ष रूप से लागू करने के लिये आनुपातिक प्रतिबद्धता प्रदर्शित करनी चाहिये।
सहिष्णुता, असहमति और निष्पक्षता की दिशा में आगे बढ़ने का संभावित मार्ग क्या हो सकता है?
- शासन की जटिलताओं से निपटने में, लोकतांत्रिक संस्थानों के लिये सहिष्णुता, असहमति और निष्पक्षता के मूल मूल्यों को बनाए रखना अनिवार्य है।
- जहाँ भ्रष्टाचार से लड़ना आवश्यक है, वहीं राजनीतिक दायरे में असहमत लोगों और आलोचकों के अधिकारों की रक्षा करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है।
- लोकतंत्र न्यायसंगत भागीदारी और प्रतिनिधित्व के सिद्धांत पर आगे बढ़ता है, जिसके लिये सरकार की सभी शाखाओं में प्रक्रियात्मक निष्पक्षता एवं जवाबदेही का पालन आवश्यक है।
निष्कर्ष:
निष्कर्षतः, विधायी निर्वाचन क्षेत्रों में रिक्तियों की घोषणा के आसपास की हालिया घटनाएँ राजनीतिक क्षेत्र के अंतर्गत अखंडता और जवाबदेही को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण अनिवार्यता को रेखांकित करती हैं। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(1) जैसे विधिक प्रावधानों का पालन करके और न्यायपालिका एवं विधायिका के बीच सामजंस्य को बढ़ावा देकर, भारत अपनी लोकतांत्रिक नींव को मज़बूत कर सकता है और शासन प्रक्रिया में जनता के विश्वास को बनाए रख सकता है।