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अंतर्राष्ट्रीय कानून

मुक्त समुद्र संधि

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 11-Jul-2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

परिचय:

भारत सरकार ने घोषणा की है कि वह मुक्त समुद्र संधि पर हस्ताक्षर करेगी और इसकी पुष्टि करेगी, जिसे आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों की समुद्री जैविक विविधता के संरक्षण तथा सतत् उपयोग पर समझौते (BBNJ) के रूप में जाना जाता है। इस अंतर्राष्ट्रीय समझौते का उद्देश्य राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे महासागरों के पारिस्थितिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिये एक विधिक ढाँचा स्थापित करना है। वर्ष 2023 में हस्ताक्षरित इस संधि में प्रदूषण को कम करने, जैवविविधता को संरक्षित करने तथा समुद्र में समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो वैश्विक संरक्षण प्रयासों की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

इस संधि के उद्देश्य क्या हैं?

  • समुद्री पारिस्थितिकी का संरक्षण एवं सुरक्षा:
    • राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर के क्षेत्रों में समुद्री जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण तथा सतत् प्रबंधन को सुनिश्चित करना।
  • लाभों का निष्पक्ष एवं न्यायसंगत विभाजन:
    • समुद्री जैव संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न लाभों के निष्पक्ष और न्यायसंगत विभाजन को बढ़ावा देना, विशेष रूप से विकासशील देशों एवं सुभेद्य समुदायों के बीच।
  • अनिवार्य पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA):
    • समुद्री पर्यावरण को संभावित रूप से हानि पहुँचाने वाली किसी भी गतिविधि के लिये पर्यावरणीय प्रभाव आकलन करने की आवश्यकता स्थापित करना, जिससे उत्तरदायी एवं धारणीय प्रथाओं को बढ़ावा मिले।
  • क्षमता निर्माण एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण:
    • समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और समुद्री संसाधन प्रबंधन में विकासशील देशों की क्षमताओं को बढ़ाना, महासागर संरक्षण तथा सतत् उपयोग प्रयासों में उनकी प्रभावी भागीदारी को सुविधाजनक बनाना एवं उनसे लाभ प्राप्त करना।

समुद्री विधिक संधियाँ:

  • संयुक्त राष्ट्र समुद्री विधि सम्मेलन (UNCLOS) समुद्री गतिविधियों को नियंत्रित करने वाला प्राथमिक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। इसमें निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं:
    • क्षेत्रीय जल
    • विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZs)
    • महाद्वीपीय शेल्फ अधिकार
    • नौ-परिवहन की स्वतंत्रता
    • समुद्री पर्यावरण सुरक्षा
  • समुद्री सुरक्षा संधियाँ:
    • समुद्र में जीवन की सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (SOLAS)
    • समुद्री खोज एवं बचाव पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (SAR)
  • समुद्री प्रदूषण रोकथाम संधियाँ:
    • जहाज़ों से प्रदूषण की रोकथाम के लिये अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (MARPOL)
    • समुद्री प्रदूषण की रोकथाम पर लंदन सम्मेलन
  • मत्स्य प्रबंधन संधियाँ:
    • संयुक्त राष्ट्र मत्स्य भंडार समझौता
    • क्षेत्रीय मत्स्य पालन प्रबंधन समझौते
  • समुद्री जैवविविधता संरक्षण संधियाँ:
    • जैविक विविधता पर कन्वेंशन (CBD)
    • लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन (CITES)
  • समुद्री श्रम संधियाँ:
    • समुद्री श्रम सम्मेलन (MLC)
  • समुद्रतल खनन संधियाँ:
    • अंतर्राष्ट्रीय समुद्रतल प्राधिकरण (ISA) विनियम

समुद्र में विभिन्न प्रकार के क्षेत्र कौन-कौन से हैं?

  • विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ):
    • यह तटीय राज्य की आधार रेखा से 200 समुद्री मील (370 किमी) तक फैला हुआ क्षेत्र है। इस क्षेत्र के भीतर, तटीय राज्य के पास समुद्र तल से सटे जलाशयों और समुद्र तल तथा उसकी उप-भूमि के जीवित एवं निर्जीव प्राकृतिक संसाधनों की खोज, दोहन, संरक्षण और प्रबंधन के लिये संप्रभु अधिकार प्राप्त हैं।
  • मुक्त समुद्र (अंतर्राष्ट्रीय जल):
    • किसी भी देश के EEZs से बाहर के क्षेत्र, कुल महासागर क्षेत्र का लगभग 61% भाग बनाते हैं। इन क्षेत्रों को वैश्विक साझा क्षेत्र माना जाता है, जो किसी एक देश के स्वामित्व में नहीं हैं और ये सभी देशों के लिये नौ-परिवहन, ओवरफ़्लाइट, आर्थिक गतिविधियों का संचालन, वैज्ञानिक अनुसंधान, समुद्र के नीचे केबल बिछाने और अन्य वैध उपयोगों के लिये खुले हैं।
  • वैश्विक साझा संपत्ति:
    • यह मुक्त समुद्र जैसे क्षेत्रों को संदर्भित करता है, जो राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र के अधीन नहीं हैं, परंतु सभी मानवता के साझा संसाधन माने जाते हैं। सभी राज्यों को इन क्षेत्रों में स्वतंत्रता और अधिकार प्राप्त हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा देते हुए विभिन्न उद्देश्यों के लिये समान पहुँच एवं उपयोग सुनिश्चित करते हैं।

समुद्री विधि पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCLOS) क्या है?

  • UNCLOS:
    • वर्ष 1982 में अपनाया गया, UNCLOS एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो प्रादेशिक जल और अंतर्राष्ट्रीय जल सहित सभी महासागर क्षेत्रों को नियंत्रित करता है।
    • यह समुद्री शासन के लिये विधिक ढाँचा स्थापित करता है तथा समुद्र में गतिविधियों के संबंध में राष्ट्रों के अधिकारों और उत्तरदायित्व को परिभाषित करता है।
    • UNCLOS प्रादेशिक जल और विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) की सीमाओं का निर्धारण करता है तथा इन क्षेत्रों के भीतर उपस्थित संसाधनों पर संप्रभु अधिकार प्रदान करता है।
    • यह संप्रभुता, नौ-परिवहन अधिकार तथा मछली, तेल, खनिज और गैस जैसे समुद्री संसाधनों के दोहन जैसे मुद्दों पर विचार करता है।
    • UNCLOS समुद्री जैवविविधता और पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा तथा संरक्षण के लिये सामान्य सिद्धांत निर्धारित करता है।
  • कार्यान्वयन एवं अंतराल:
    • UNCLOS रूपरेखा प्रदान करता है,परंतु यह अंतर्राष्ट्रीय जल में संरक्षण उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये तंत्र निर्दिष्ट नहीं करता है, जिन्हें वैश्विक साझा संपत्ति माना जाता है।
    • एक बार लागू हो जाने पर मुक्त समुद्र संधि, राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे समुद्री जैवविविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग के लिये विशिष्ट उपाय प्रदान करके UNCLOS की पूरक बनेगी।
    • यह UNCLOS के अंतर्गत एक कार्यान्वयन समझौते के रूप में कार्य करेगा, जो मुक्त समुद्री क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण और जैवविविधता संरक्षण से संबंधित अंतर को पूरा करेगा।

समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA) क्या हैं?

  • MPA भूमि पर राष्ट्रीय उद्यानों या वन्यजीव अभयारण्यों जैसे निर्दिष्ट महासागरीय क्षेत्र हैं, जिनका उद्देश्य समुद्री जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करना है।
  • MPA के अंतर्गत गतिविधियों को विनियमित किया जाता है तथा समुद्री प्रजातियों, आवासों और पारिस्थितिकी प्रक्रियाओं की रक्षा के लिये संरक्षण प्रयासों को प्राथमिकता दी जाती है।
  • वर्तमान में, विश्व भर में लगभग 18,200 MPA हैं, जो कुल महासागर क्षेत्र का लगभग 8% कवर करते हैं।
  • मौजूदा MPA का बहुमत (लगभग 90%) प्रादेशिक जल के भीतर स्थित है, जहाँ अलग-अलग देशों को विनियमन करने और इन्हें लागू करने का क्षेत्राधिकार प्राप्त है।
  • मुक्त समुद्र संधि का उद्देश्य राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र (उच्च सागर) से परे क्षेत्रों में MPA की स्थापना को सुगम बनाना है तथा प्रदूषण, संसाधनों का अतिदोहन और जैवविविधता की हानि जैसे मुद्दों का समाधान करना है।
  • कुनमिंग मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क जैसे अंतर्राष्ट्रीय जैवविविधता ढाँचे के तहत, देशों ने वर्ष 2030 तक कम-से-कम 30% विरूपित तटीय एवं समुद्री पारिस्थितिकी प्रणालियों को बहाल करने के लिये प्रतिबद्धता जताई है, जिसमें MPA इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से संबंधित मुक्त समुद्र संधि के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं?

  • मुक्त समुद्र संधि का उद्देश्य समुद्री जैव संसाधनों से प्राप्त लाभों का निष्पक्ष एवं न्यायसंगत विभाजन सुनिश्चित करना है, जिनमें औषधि, सौंदर्य प्रसाधन और अन्य अनुप्रयोगों के लिये महत्त्वपूर्ण संभावनाएँ हैं।
  • यह इन संसाधनों के वाणिज्यिक मूल्य को मान्यता देता है, परंतु किसी भी देश को उन पर स्वामित्व का दावा करने से रोकता है।
  • इन संसाधनों तक पहुँच एवं उपयोग से जुड़ी लागतों को स्वीकार करते हुए, यह संधि सभी देशों के बीच लाभों के समान वितरण पर ज़ोर देती है।

  पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) क्या हैं?

  • संधि में यह प्रावधान है कि समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को हानि पहुँचाने की क्षमता वाली किसी भी गतिविधि को, चाहे वह राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर हो या खुले समुद्र में, सार्वजनिक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) से गुज़रना होगा।
  • संसाधन निष्कर्षण या बुनियादी ढाँचे के विकास जैसी गतिविधियों के संभावित पर्यावरणीय परिणामों के मूल्यांकन के लिये EIA महत्त्वपूर्ण है।
  • EIA को अनिवार्य तथा सार्वजनिक बनाकर, यह संधि समुद्री संसाधन उपयोग और संरक्षण प्रयासों के संबंध में पारदर्शिता तथा उचित निर्णय लेने को बढ़ावा देती है।

मुक्त समुद्र संधि जैसी अंतर्राष्ट्रीय संधियों के अनुसमर्थन के चरण और निहितार्थ क्या हैं?

  • मुक्त समुद्र संधि की अनुसमर्थन प्रक्रिया:
    • मुक्त समुद्र संधि को अंतर्राष्ट्रीय विधि के रूप में लागू होने के लिये कम-से-कम 60 देशों द्वारा अनुसमर्थन या प्रवेश की आवश्यकता होती है। 60वें अनुसमर्थन के प्रस्तुत होने के 120 दिन बाद यह प्रभावी हो जाता है।
  • अनुसमर्थन की परिभाषा:
    • अनुसमर्थन एक औपचारिक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से कोई देश किसी अंतर्राष्ट्रीय विधि या संधि के प्रावधानों से विधिक रूप से आबद्ध होने के लिये सहमत होता है। यह कदम संधि पर हस्ताक्षर करने से अलग है, जो इसकी शर्तों के साथ प्रारंभिक सहमति को दर्शाता है परंतु विधिक बाध्यता स्थापित नहीं करता है।
  • अनुसमर्थन की प्रक्रिया:
    • संसद जैसे विधायी निकायों वाले देशों में, अनुसमर्थन के लिये सामान्यतः विधायिका से अनुमोदन की आवश्यकता होती है। इससे संधि की शर्तों का पालन करने के लिये व्यापक राष्ट्रीय सहमति सुनिश्चित होती है।
    • अन्य देशों में, अनुसमर्थन के लिये कार्यकारी अनुमोदन की आवश्यकता हो सकती है, या विधायी अनुमोदन के बिना भी प्रवेश की आवश्यकता हो सकती है।
  • अनुसमर्थन का परिणाम:
    • एक बार अनुसमर्थन हो जाने पर, कोई भी देश विधिक रूप से संधि के प्रावधानों का पालन करने के लिये बाध्य हो जाता है और संधि का एक पक्ष बन जाता है।
    • जो देश किसी संधि पर हस्ताक्षर तो करते हैं परंतु उसका अनुसमर्थन नहीं करते, उन्हें उसका पक्षकार नहीं माना जाता। उदाहरण के लिये, संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर तो किये परंतु अपने सीनेट से अनुमोदन न मिलने के कारण उसका अनुसमर्थन नहीं किया।

निष्कर्ष:

मुक्त समुद्र संधि समुद्री जैवविविधता की रक्षा करने तथा राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे महासागर संसाधनों के सतत् उपयोग को बढ़ावा देने के लिये एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक प्रयास का प्रतिनिधित्व करती है। संरक्षण, न्यायसंगत लाभ-साझाकरण, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण जैसे प्रमुख मुद्दों को संबोधित करके, संधि उच्च समुद्रों के ज़िम्मेदार प्रबंधन के लिये एक आधार तैयार करती है। इसका सफल कार्यान्वयन, व्यापक अनुसमर्थन पर निर्भर करता है, जो अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को दृढ करेगा और समुद्र की विधियों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन जैसे ढाँचे में उल्लिखित पर्यावरण संरक्षण लक्ष्यों को आगे बढ़ाएगा।