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सांविधानिक विधि
महिला आरक्षण विधेयक, 2023
« »25-Sep-2023
स्रोत- द टाइम्स ऑफ इंडिया
परिचय
- न्याय और समानता की दिशा में एक लंबे समय से प्रतीक्षित महिला आरक्षण विधेयक (बिल) अथवा नारी शक्ति वंदन अधिनियम को संसद के दोनों सदनों द्वारा मंज़ूरी दे दी गई है।
- यह महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने तथा राजनीतिक प्रक्रिया में महिलाओं की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने वाला एक ऐतिहासिक कानून है।
पृष्ठभूमि
- यह विधेयक पहली बार वर्ष 1996 में पेश किया गया था, किंतु लोकसभा के विघटन के साथ यह समाप्त हो गया था।
- वर्ष 1998 में इसे पुनः पेश किया गया लेकिन यह फिर से व्यपगत हो गया।
- एनडीए सरकार ने वर्ष 1999 से 2003 तक 3 मौकों पर विधेयक पेश किया परंतु इसे मंजूरी दिलाने में असफल रही।
- वर्ष 2004 में यह विधेयक यूपीए सरकार के प्राथमिक उद्देश्यों में से एक था।
- यूपीए सरकार ने वर्ष 2008 में इस विधेयक को राज्यसभा में पेश किया था।
- वर्ष 2010 में इसे राज्यसभा से पारित कर लोकसभा में अनुसमर्थन के लिये भेजा गया था, किंतु 15वीं लोकसभा (2009-14) के विघटन के बाद यह पुनः रद्द हो गया।
- तब से लेकर अब तक विधायी निकायों में महिलाओं के लिये आरक्षण की मांग नई बात नहीं है।
विधेयक की समयरेखा
- केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में 19 सितम्बर 2023 को संविधान (एक सौ अट्ठाईसवाँ संशोधन) विधेयक 2023 पेश किया गया जिसमें लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिये सभी सीटों में से एक तिहाई आरक्षित करने का प्रस्ताव है।
- इस विधेयक को 20 सितंबर 2023 को लोकसभा द्वारा पारित किया गया था और उसके बाद इसे राज्यसभा में पेश किया गया था।
- इसके बाद राज्यसभा ने सर्वसम्मति से 21 सितंबर 2023 को विधेयक को पारित कर दिया।
कानूनी प्रावधान
विधेयक की प्रमुख बातें
- विधेयक में संसद के निचले सदन, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है।
- इस विधेयक के पूर्णतः पारित किये जाने के बाद, सबसे पहले जनगणना और इसके बाद परिसीमन कार्य होगा, इसके बाद ही यह एक अधिनियम के रूप में प्रभावी हो सकेगा।
- यह लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में एससी और एसटी के लिये आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा।
- यह आरक्षण 15 वर्ष की अवधि के लिये प्रदान किया जाएगा। हालाँकि, यह संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित तिथि तक बना रहेगा।
- प्रत्येक परिसीमन के बाद, महिलाओं के लिये निर्दिष्ट सीटो में संसद द्वारा पारित कानून के अनुसार बदलाव किया जाएगा।
- यह विधेयक भारत के संविधान, 1950 में तीन नए अनुच्छेद, अर्थात् अनुच्छेद 330ए, 332ए और 334ए शामिल करने का प्रावधान करेगा।
- यह विधेयक भारत के संविधान के अनुच्छेद 239AA में संशोधन का प्रस्ताव करता है। अनुच्छेद 239AA दिल्ली के संबंध में विशेष प्रावधानों से संबंधित है।
वर्ष 2008 और वर्ष 2023 के विधेयक में बदलाव
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वर्ष 2008 का विधेयक |
वर्ष 2023 का विशेयक |
लोकसभा में आरक्षण |
प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में एक तिहाई लोकसभा सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित की जाएँगी। |
महिलाओं के लिये एक तिहाई सीटों का आरक्षण। अतः, दोनों विधेयकों में सीटों का अनुपात समान है। |
सीटों में बदलाव |
प्रत्येक आम चुनाव के बाद, विधायिका/संसद में आरक्षित सीटों में बदलाव। |
प्रत्येक परिसीमन के बाद, महिलाओं के लिये निर्दिष्ट सीटों में बदलाव। |
भारत के संविधान में संशोधन |
इसके अनुसार अनुच्छेद 239AA, अनुच्छेद 331 और अनुच्छेद 333 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया। |
अनुच्छेद 239AA में संशोधन का प्रस्ताव। |
भारत में महिला प्रतिनिधित्व की स्थिति
- वर्ष 1992 और 1993 के संवैधानिक 73वें और 74वें संशोधन अधिनियमों द्वारा क्रमशः पंचायती राज संस्थानों और शहरी स्थानीय निकायों के सभी स्तरों पर अध्यक्ष पद हेतु महिलाओं के लिये एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया गया।
- कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर स्थायी समिति (2009) ने बताया कि स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण ने महिलाओं को समाज के विकास में सार्थक योगदान देने में सक्षम बनाया है।
- पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों में महिलाएँ प्रमुखता से भाग लेती हैं लेकिन राज्य विधानमंडलों तथा संसद में उनका प्रतिनिधित्व सीमित है।
- लोकसभा के कुल सदस्यों और राज्य विधानसभाओं में कुल सदस्यों में महिलाओं की संख्या क्रमशः 15% तथा 9% है।
- ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2023 के अनुसार भारत ने राजनीतिक सशक्तीकरण की दिशा में प्रगति करते हुए इस क्षेत्र में 25.3% समानता हासिल की है।
अन्य देशों में महिला प्रतिनिधित्व की स्थिति
- विश्वभर में संसद में महिलाओं के सर्वाधिक प्रतिनिधित्व वाला देश रवांडा है जहाँ 61% सांसद महिलाएँ हैं।
- महिला प्रतिनिधित्व वाले शीर्ष तीन देश रवांडा (61%), क्यूबा (53%), निकारागुआ (52%) हैं।
- यूरोप के कई हिस्सों में संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगभग 50% है।
- महिला प्रतिनिधित्व के मामले में बांग्लादेश (21%) और पाकिस्तान (20%) भी भारत से कहीं आगे हैं।
- वर्ष 2003 में नॉर्वे ने एक कानून के माध्यम से कोटा प्रणाली लागू की जिसके तहत निगमों के बोर्ड में 40% सीटें महिलाओं के लिये होना अनिवार्य कर दिया गया।
विधेयक का उद्देश्य
इस विधेयक निम्नलिखित उद्देश्यों को पूरा करना है:
- राजनीतिक व्यवस्था में महिलाओं के अल्प प्रतिनिधित्व के मुद्दे का समाधान करना
- महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देना
- लैंगिक भेदभाव का उन्मूलन
- नीति निर्माण के दायरे का विस्तार
- महिलाओं के स्व-प्रतिनिधित्व और आत्मनिर्णय के अधिकार को बढ़ावा देना
विधेयक की सीमाएँ
- योग्यता आधारित प्रतिस्पर्द्धा का अभाव
- निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधित्व पर प्रभाव
- हो सकता है कि वंचित महिलाओं का समूह पीछे छूट जाए
- हो सकता है शिक्षित और योग्य व्यक्तियों को राजनीतिक अवसर न मिल पाए
- निर्वाचित महिलाएँ पुरुषों के नियंत्रण में रहकर कार्य कर सकती हैं और पुरुष वास्तविक शक्ति का लाभ उठा सकते हैं
- अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) महिलाओं के लिये आरक्षण का अभाव
निष्कर्ष
- यह विधेयक हमारे देश की लोकतांत्रिक यात्रा में ऐतिहासिक कदम है क्योंकि यह भारत की महिलाओं के लिये ठोस प्रतिनिधित्व और सशक्तीकरण का मार्ग प्रशस्त करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों की आवाज़ और भी प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त हो।
- यह महज एक कानून नहीं है बल्कि उन अनगिनत महिलाओं को श्रद्धांजलि है जिन्होंने हमारे राष्ट्र के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया है।