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सांविधानिक विधि
महिला प्रतिनिधित्व
« »19-Jul-2024
स्रोत: द हिंदू
परिचय:
राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिये विश्व भर में एक लंबा संघर्ष रहा है। इस विषय में जहाँ कुछ देशों ने प्रगति की है, वहीं अन्य देश पिछड़ गए हैं। भारत में महिलाओं को प्रारंभ से ही मतदान करने का अधिकार मिला, परंतु दशकों तक संसद में उनका प्रतिनिधित्व कम रहा। हाल ही में भारत ने राष्ट्रीय और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये एक तिहाई सीटें आरक्षित करने हेतु एक विधान पारित किया। यह एक बड़ा कदम है, परंतु यह स्पष्ट नही है कि यह विधान अगली जनगणना पूर्ण होने के बाद तक प्रभावी हो सके। इस परिवर्तन का लक्ष्य विधि निर्माण में और अधिक महिलाओं को सम्मिलित करना है तथा यह अपेक्षित है कि प्रशासनिक नेतृत्व की भूमिकाओं में और अधिक महिलाओं को सम्मिलित किया जाएगा।
भारत में महिला प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है?
- वर्तमान (18वीं) लोकसभा में महिलाओं की संख्या लगभग 14% है, जो पिछले वर्षों की तुलना में अल्प सुधार है।
- राज्य विधानसभाओं की स्थिति और भी खराब है, जहाँ औसतन मात्र 9% महिला प्रतिनिधि हैं।
- स्वतंत्रता के बाद से सार्वभौमिक मताधिकार के बाद भी, महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व अनुपातिक रूप से कम है।
- महिला प्रतिनिधित्व की प्रगति धीमी रही है, वर्ष 2004 तक प्रतिनिधित्व 5-10% के बीच रहा, जो वर्ष 2014 में अल्प मात्रा में बढ़कर 12% हो गया।
- 17 वीं लोकसभा (2019-2024) में अब तक की सबसे अधिक संख्या में महिला सांसद निर्वाचित हुईं- 543 सीटों में से 78।
- छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे कुछ राज्यों ने राष्ट्रीय औसत से बेहतर प्रतिनिधित्व प्रदर्शित किया है।
- राज्यसभा (उच्च सदन) में महिलाओं का प्रतिनिधित्व थोड़ा बेहतर है, जो लगभग 13% है।
- जाति, धर्म और वर्ग के साथ लिंग का अंतर्संबंध प्रतिनिधित्व के मुद्दों को और अधिक जटिल बना देता है।
- वर्तमान लोकसभा में तृणमूल काॅन्ग्रेस में महिला सांसदों का अनुपात सबसे अधिक 38% है।
- सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और मुख्य विपक्षी पार्टी काॅन्ग्रेस के पास लगभग 13% महिला सांसद हैं।
- तमिलनाडु की राज्य स्तरीय पार्टी नाम तमिलर काची पिछले तीन आम चुनावों से महिला प्रत्याशियों के लिये 50% का स्वैच्छिक कोटा लागू कर रही है।
भारत में महिला प्रतिनिधित्व के लिये संवैधानिक प्रावधान और विधि क्या हैं?
- भारतीय संविधान महिलाओं को समान अधिकारों की गारंटी देता है, जिसमें अनुच्छेद 14, 15 और 16 के अंतर्गत मतदान करने तथा चुनाव लड़ने का अधिकार भी शामिल है।
- अनुच्छेद 243D और 243T स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण का प्रावधान करते हैं।
- 73वें और 74वें संविधान संशोधन (1992/1993) ने स्थानीय शासन निकायों (पंचायतों और नगर पालिकाओं) में महिलाओं के लिये 33% आरक्षण अनिवार्य कर दिया।
- वर्ष 1996 से 2008 के बीच लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में इसी प्रकार का आरक्षण लागू करने के कई प्रयास असफल रहे।
- कुछ राज्यों ने संवैधानिक अधिदेश से आगे जाकर स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये 50% आरक्षण लागू किया है।
- जनप्रतिनिधित्व लैंगिक भेदभाव के विरुद्धअधिनियम, 1951 चुनावों के लिये विधिक ढाँचा प्रदान करता है, जिसमें ये प्रावधान भी शामिल हैं।
- 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' जैसी विभिन्न सरकारी योजनाओं का अप्रत्यक्ष उद्देश्य सामाजिक बाधाओं को दूर करके महिलाओं को राजनीतिक रूप से सशक्त बनाना है।
106वाँ संविधान संशोधन क्या है?
- सितंबर 2023 में पारित इस विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है।
- इस ऐतिहासिक विधेयक का उद्देश्य विधानमंडलों में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है।
- संसदीय प्रक्रियाओं और विधिक निर्माण में लैंगिक संवेदनशीलता की वृद्धि की अपेक्षा है।
- इससे केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर महिला मंत्रियों की संख्या में वृद्धि हो सकती है।
- विधेयक में प्रत्येक चुनाव में आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों के आवर्तन का प्रावधान शामिल है।
- इसमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं के लिये आरक्षण के अंदर आरक्षण का भी प्रावधान किया गया है।
- यह संशोधन लागू होने के उपरांत 15 वर्षों तक प्रभावी रहेगा तथा इसे बढ़ाया भी जा सकता है।
- इसे एक लंबे समय से चली आ रही मांग का परिणाम माना जा रहा है, क्योंकि वर्ष 1996 के बाद से कई बार इसी प्रकार के विधेयक प्रस्तुत किये गए और निरस्त हो गए।
महिला आरक्षण विधेयक, 2023 क्या है?
- परिचय:
- विधेयक का उद्देश्य संसद के निचले सदन, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधान सभा में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत आरक्षण लागू करना है।
- इस विधेयक को पहली जनगणना के बाद परिसीमन की प्रक्रिया प्रारंभ होने के उपरांत ही अधिनियमित करने का प्रस्ताव है।
- यह विधान लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा।
- यह आरक्षण 15 वर्ष की अवधि के लिये दिया जाएगा। हालाँकि यह संसद द्वारा बनाए गए विधान द्वारा निर्धारित तिथि तक जारी रहेगा।
- महिलाओं के लिये आरक्षित सीटें प्रत्येक परिसीमन के बाद संसद द्वारा बनाए गए विधान के अनुसार निर्धारित की जाएंगी।
- यह विधेयक भारतीय संविधान, 1950 में तीन नए अनुच्छेद अर्थात् अनुच्छेद 330A, 332A और 334A जोड़ने का प्रावधान करेगा।
- विधेयक में संविधान के अनुच्छेद 239AA में संशोधन का प्रस्ताव है। अनुच्छेद 239AA दिल्ली के संबंध में किये गए विशेष प्रावधानों से संबंधित है।
- विधेयक का उद्देश्य:
- इस विधेयक का उद्देश्य निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति करना है:
- राजनीतिक प्रणाली में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर ध्यान देना।
- महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देना।
- लिंग भेदभाव का उन्मूलन।
- नीति-निर्माण के दायरे को बढ़ाना।
- महिलाओं के आत्म-प्रतिनिधित्व और आत्मनिर्णय के अधिकार को बढ़ावा देना।
- विधेयक की सीमाएँ:
- योग्यता आधारित प्रतिस्पर्द्धा का अभाव।
- निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व प्रभावित हो सकता है।
- वंचित एवं उपेक्षित महिलाओं का समूह पिछड़ सकता है।
- शिक्षित और योग्य व्यक्ति राजनीतिक अवसर खो सकते हैं।
- निर्वाचित महिलाएँ कठपुतली की तरह काम कर सकती हैं और वास्तविक शक्ति पुरुष सदस्यों के पास हो सकती है।
- अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) महिलाओं के लिये आरक्षण का अभाव।
- परिसीमन प्रक्रिया के कारण विधेयक के अधिनियमन में देरी हो सकती है।
महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर वैश्विक परिप्रेक्ष्य क्या है?
- न्यूज़ीलैंड, वर्ष 1893 में महिलाओं को मताधिकार प्रदान करने वाला पहला स्वशासित देश था।
- यूनाइटेड किंगडम ने सभी महिलाओं को मतदान का अधिकार एक दीर्घकालीन मताधिकार आंदोलन के पश्चात् वर्ष 1928 में प्रदान किया।
- दशकों की सक्रियता के उपरांत, संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 1920 में 19वें संशोधन के माध्यम से समान मताधिकार प्रदान किया।
- वर्तमान में, ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में 40% महिला सांसद हैं, दक्षिण अफ्रीका की नेशनल असेंबली में लगभग 45% तथा अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में 29% महिला सांसद हैं।
- महिला प्रतिनिधित्व के मामले में रवांडा विश्व स्तर पर अग्रणी देश है जहाँ संसद के निचले सदन में 60% से अधिक महिलाएँ हैं, उसके बाद क्यूबा और निकारागुआ का स्थान है।
- स्वीडन, फिनलैंड और नॉर्वे जैसे नॉर्डिक देश महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व में लगातार उच्च स्थान पर हैं।
- अंतर-संसदीय संघ के अनुसार, 2021 तक राष्ट्रीय संसदों में महिलाओं का वैश्विक औसत लगभग 26% है।
- कई देशों ने महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिये आरक्षण प्रणाली अपनाई है, जिसमें आरक्षित सीटें, विधायी कोटा और स्वैच्छिक पार्टी आरक्षण शामिल हैं।
- विधायिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व: भारत भर में विभिन्न विधायी निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम बना हुआ है।
- अंतर-संसदीय संघ (IPU) और UN विमेन की रिपोर्ट के अनुसार, संसद में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की संख्या के मामले में भारत 193 देशों में से 143वें स्थान पर है।
कार्यान्वयन की चुनौतियाँ और भविष्य का दृष्टिकोण क्या है?
- यह आरक्षण अगले परिसीमन कार्य और जनगणना के प्रकाशन के बाद इस अधिनियम के अनुसार लागू होगा।
- वर्ष 2029 के आम चुनावों तक इस आरक्षण को लागू करने के लिये दीर्घ काल से लंबित जनगणना (2021 से) को शीघ्रता से आयोजित करने की आवश्यकता है।
- संभावित चुनौतियों में पुरुष राजनेताओं का प्रतिरोध और महिला उम्मीदवारों में क्षमता निर्माण की आवश्यकता शामिल है।
- 'छद्म प्रत्याशी' की घटना के विषय में चिंताएँ सामान्य हैं, जहाँ परिवार के पुरुष सदस्य महिला प्रतिनिधियों को प्रभावित कर सकते हैं।
- विधेयक की सफलता प्रभावी कार्यान्वयन और नेतृत्वकारी भूमिकाओं में महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन पर निर्भर करेगी।
- हालाँकि यह एक महत्त्वपूर्ण कदम है, परंतु आलोचकों का तर्क है कि राजनीति में लैंगिक असमानता के गहरे मुद्दों को सुलझाने के लिये अधिक व्यापक सुधारों की आवश्यकता है।
- पार्टी गतिशीलता और प्रत्याशी चयन प्रक्रिया पर इसका प्रभाव अभी देखा जाना शेष है।
- इस आरक्षण के लाभों को पूरी तरह से प्राप्त करने के लिये शिक्षा, आर्थिक सशक्तीकरण और सामाजिक मानदंडों को चुनौती देने के लिये समानांतर प्रयासों की आवश्यकता है।
- कार्यान्वयन की निगरानी और समर्थन में मीडिया तथा नागरिकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होगी।
- दीर्घकालिक सफलता को केवल संख्याओं से नहीं मापा जाएगा, बल्कि राजनीतिक निर्णय लेने में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भागीदारी और प्रभाव से मापा जाएगा।
निष्कर्ष:
जबकि भारत ने वर्ष 2023 के महिला आरक्षण विधेयक के साथ एक महत्त्वपूर्ण कदम आगे बढ़ाया है, महिलाओं के लिये समान राजनीतिक प्रतिनिधित्व की दिशा में यात्रा अभी भी समाप्त नहीं हुई है। इस पहल की सफलता प्रभावी कार्यान्वयन, सामाजिक परिवर्तन और लैंगिक असमानता के व्यापक मुद्दों को संबोधित करने पर निर्भर करेगी। जैसे-जैसे भारत इस ऐतिहासिक परिवर्तन की ओर बढ़ रहा है, उसके पास राजनीति में लैंगिक समानता के लिये एक शक्तिशाली उदाहरण स्थापित करने का अवसर है, जो संभावित रूप से शासन और नीति-निर्माण की प्रकृति को बेहतर बना सकता है।