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आपराधिक कानून

आत्महत्या के लिये कारित दुष्प्रेरण

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 21-Jan-2025

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस 

परिचय

महेंद्र अवासे बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि एवं न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या हैं?

पृष्ठभूमि:

  • 31 दिसंबर 2022 को धर्मेंद्र की सूचना के आधार पर थाना मेनगांव में FIR दर्ज की गई।
  • उसका भतीजा रंजीत चौहान 11 अक्टूबर 2022 को लापता हो गया था तथा बाद में एक पेड़ से लटका हुआ मिला।
  • पूछताछ के दौरान एक सुसाइड नोट एवं मोबाइल फोन बरामद किया गया।
  • सुसाइड नोट में महेंद्र अवासे पर रितेश मालाकार नामक व्यक्ति द्वारा लिये गए ऋण के संबंध में उत्पीड़न का आरोप लगाया गया है।
  • फोरेंसिक प्रयोगशाला ने मृतक एवं अपीलकर्त्ता के बीच बातचीत की ऑडियो रिकॉर्डिंग की पुष्टि की है।

ट्रायल कोर्ट की टिप्पणियाँ:

  • 28 फरवरी 2023 को प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश, खरगोन ने IPC की धारा 306 के अधीन आरोप तय किये।
  • न्यायालय ने आरोप लगाया कि 11 अक्टूबर 2022 को सुबह 10:00 बजे से शाम 6:00 बजे के बीच आरोपियों ने रणजीत चौहान को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया तथा उसे आत्महत्या के लिये विवश किया।
  • सुसाइड नोट एवं ऑडियो ट्रांसक्रिप्ट के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने मामले को आगे बढ़ाने के लिये पर्याप्त आधार पाया।

उच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • उच्च न्यायालय ने अपीलकर्त्ता की IPC की धारा 306 के अधीन अपराधों से मुक्त करने की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया।
  • 25 जुलाई 2023 के निर्णय के माध्यम से, इसने ट्रायल कोर्ट द्वारा तय किये गए आरोपों को यथावत रखा।
  • अपीलकर्त्ता द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया गया।

उच्चतम न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • न्यायालय ने पाया कि IPC की धारा 306 के अधीन आत्महत्या के लिये कारित दुष्प्रेरण के आशय से विशेष रूप से उकसाने की आवश्यकता होती है।
  • आत्महत्या के लिये सकारात्मक कार्यवाही के बिना केवल उत्पीड़न दोषसिद्धि के लिये पर्याप्त नहीं है।
  • न्यायालय ने पाया कि:
    • अपीलकर्त्ता केवल बकाया ऋण वसूलने का अपना कार्य कर रहा था।
    • हालाँकि, दोनों पक्षों के बीच तीखी बहस हुई, लेकिन मृतक को आत्महत्या के लिये विवश करने का आशय नहीं दिखा।
    • परिस्थितियों के कारण मृतक के पास आत्महत्या के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा।
  • न्यायालय ने पुलिस द्वारा आवश्यक तत्त्व को पूरा किये बिना IPC की धारा 306 का आकस्मिक सहारा लेने की आलोचना की।
  • न्यायालय ने धारा 306 पर विधि के संबंध में जाँच एजेंसियों को संवेदनशील बनाने का आह्वान किया।
  • न्यायालय ने आरोप तय करने के लिये मामले को आधारहीन पाते हुए अपीलकर्त्ता को कार्यवाही से मुक्त कर दिया।
  • उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के 25 जुलाई 2023 के आदेश को रद्द कर दिया।

उच्चतम न्यायालय के निर्देश क्या हैं?

  • न्यायालय ने IPC की धारा 306 के मामलों के संबंध में महत्त्वपूर्ण निर्देश दिये:
    • जाँच एजेंसियों को धारा 306 के अधीन उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णयज विधि के प्रति संवेदनशील होना चाहिये।
    • पुलिस को IPC की धारा 306 के आरोपों का लापरवाही से और आसानी से सहारा नहीं लेना चाहिये।
    • ट्रायल कोर्ट को बहुत सावधानी एवं सतर्कता बरतनी चाहिये।
    • न्यायालयों को तकनीकी रूप से आरोप तय करके "सुरक्षित खेलने का सिंड्रोम" नहीं अपनाना चाहिये।
  • इस प्रावधान का प्रयोग सिर्फ मृतक के परिवार की तात्कालिक भावनाओं को शांत करने के लिये नहीं किया जाना चाहिये।
  • आरोपी एवं मृतक के बीच बातचीत को व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिये।
  • अतिरिक्त साक्ष्य के बिना अतिशयोक्ति को आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण के रूप में महिमामंडित नहीं किया जाना चाहिये।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जहाँ आवश्यक तत्त्वों को पूरा करने वाले वास्तविक मामलों को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिये, वहीं उचित औचित्य के बिना व्यक्तियों के विरुद्ध धारा 306 का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिये।

आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण क्या है?

  • IPC, 1860 की धारा 107 एवं भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 45 में दुष्प्रेरण को साशय किया गया ऐसा कृत्य माना गया है जिसमें आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण के लिये विशिष्ट कृत्य प्रावधानित हैं।
  • तीन आवश्यक तत्त्व दुष्प्रेरण को अभिनिर्धारित करते हैं:
    • किसी व्यक्ति का कार्य करने के लिये प्रत्यक्ष रूप से दुष्प्रेरण।
    • कृत्य को संपादित करने के लिये दूसरों के साथ षड्यंत्र में शामिल होना।
    • कार्यवाही या अवैध चूक के माध्यम से जानबूझकर सहायता करना।
  • अभियोजन पक्ष को यह सिद्ध करने का उत्तरदायित्व है कि आरोपी ने मृतक को आत्महत्या कारित करने के लिये सीधे तौर पर दुष्प्रेरित किया या भौतिक रूप से सहायता की।
  • IPC की धारा 306 (धारा 108 BNS) के अधीन विधिक परिणामों में 10 वर्ष तक का कारावास एवं अर्थदण्ड शामिल हैं।
  • NCRB के सांख्यिकीय साक्ष्यों से पता चलता है कि वर्ष 2022 में दुष्प्रेरण के मामलों में दोषसिद्धि की दर 17.5% है, जो उल्लेखनीय रूप से कम है।
  • साक्ष्य के भार के लिये अभियुक्त के कृत्यों एवं पीड़ित के निर्णय के बीच स्पष्ट कारण-कार्य संबंध स्थापित करना आवश्यक है।
  • कार्यस्थल से संबंधित मामलों में, न्यायालय रिश्तों की पेशेवर प्रकृति के कारण उच्च साक्ष्य मानक को अनिवार्य करते हैं।
  • आत्महत्या के लिये प्रेरित करने के विशिष्ट आशय के बिना केवल उत्पीड़न या पेशेवर दबाव को दुष्प्रेरण नहीं माना जाता है।
  • न्यायालयों को परिस्थितिजन्य संबंधों के बजाय "प्रत्यक्ष एवं भयावह प्रोत्साहन" के ठोस साक्ष्य की आवश्यकता होती है।
  • विधि सामान्य कदाचार और किसी को आत्महत्या के लिये प्रेरित करने के उद्देश्य से की गई विशिष्ट कार्यवाहियों के बीच अंतर स्थापित करता है।
  • जाँच में आत्महत्या में आरोपी की प्रत्यक्ष भूमिका को दर्शाने वाली घटनाओं की एक स्पष्ट श्रृंखला स्थापित होनी चाहिये।

संदर्भित मामले

एम. मोहन बनाम राज्य (2011):

  • अभियुक्त द्वारा "सक्रिय एवं प्रत्यक्ष कार्य" की मौलिक आवश्यकता स्थापित की गई।
  • न्यायालय ने आत्महत्या कारित करने के विशिष्ट आशय के साक्ष्य को अनिवार्य कर दिया।
  • न्यायालय ने माना कि अभियुक्त के कृत्यों के कारण पीड़ित के पास "कोई अन्य विकल्प नहीं" होना चाहिये।
  • अभियुक्त के आचरण एवं आत्महत्या के बीच स्पष्ट कारण-कार्य संबंध की आवश्यकता होती है।
  • सामान्य उत्पीड़न एवं विशिष्ट दुष्प्रेरण के बीच अंतर करने के लिये उदाहरण स्थापित करना।

उदय सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2019):

  • प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दुष्प्रेरण कारित करने वाले कृत्यों को सिद्ध करने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
  • आत्महत्या की ओर ले जाने वाले "निरंतर आचरण" को शामिल करने के लिये सीमा का विस्तार किया गया।
  • यह स्थापित किया गया कि आत्महत्या के लिये विवश करने वाली परिस्थितियाँ स्थापित करना धारा 306 के अंतर्गत प्रावधानित है।
  • परिस्थितिजन्य साक्ष्य के मूल्यांकन के लिये दिशा-निर्देश प्रदान किये गए।
  • स्पष्ट किया गया कि मानसिक आघात कारित करने वाला लगातार उत्पीड़न दुष्प्रेरण की श्रेणी में आ सकता है।
  • आत्महत्या के लिये प्रेरित करने वाली परिस्थितियों को स्थापित करने में आरोपी की भूमिका निर्धारित करने के लिये मापदण्ड निर्धारित किये गए।

निपुण अनेजा एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2024):

  • कार्यस्थल से संबंधित आत्महत्या के मामलों में अनावश्यक अभियोजन से बचना।
  • आधिकारिक संबंधों से जुड़े मामलों के लिये उच्च साक्ष्य मानक स्थापित करना।
  • आत्महत्या करने के विशिष्ट आशय का आवश्यक साक्ष्य।
  • अभियोजन के लिये पूर्व शर्त के रूप में "प्रत्यक्ष एवं भयावह प्रोत्साहन/उकसाने" को अनिवार्य बनाया गया।
  • पर्याप्त साक्ष्य के बिना धारा 306 के तकनीकी अनुप्रयोग के विरुद्ध चेतावनी दी गई।

निष्कर्ष

माननीय उच्चतम न्यायालय ने आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण कारित करने के मामलों में सावधानीपूर्वक जाँच की आवश्यकता के द्वारा एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण स्थापित किया है। यह निर्णय IPC की धारा 306 के दुरुपयोग को रोकते हुए वास्तविक पीड़ितों के लिये न्याय को संतुलित करने के महत्त्व को रेखांकित करता है। यह निर्णय ऐसे संवेदनशील मामलों को संभालने में जाँच एजेंसियों एवं न्यायालयों के लिये एक महत्त्वपूर्ण दिशानिर्देश के रूप में कार्य करता है।