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आपराधिक कानून

ज़मानतदार

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 28-Aug-2024

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में 'ज़मानतदार' शब्द की परिभाषा ऐसे व्यक्ति के रूप में दी गई है जो किसी दूसरे व्यक्ति के दायित्व की ज़िम्मेदारी लेता है।

  • हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने गिरीश गांधी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2024) के मामले में यह माना है कि वही दो व्यक्ति उन सभी 13 मामलों में ज़मानत लेने के लिये पर्याप्त हैं जिन मामलों में व्यक्ति को ज़मानत मिली है।
  • न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने उपरोक्त निर्णय दिया।

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के अंतर्गत ज़मानत के संबंध में विधान क्या है?

  • दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 441 में अभियुक्त के लिये बॉण्ड और ज़मानत का प्रावधान है।
    • खंड (1) में प्रावधान है कि किसी भी व्यक्ति को ज़मानत पर या अपने स्वयं के बॉण्ड पर रिहा करने से पहले:
      • न्यायालय द्वारा पर्याप्त समझी जाने वाली राशि का बॉण्ड ऐसे व्यक्ति द्वारा निष्पादित किया जाएगा।
      • और जब उसे एक या एक से अधिक पर्याप्त ज़मानतदारों द्वारा ज़मानत पर इस शर्त के साथ रिहा किया जाता है कि ऐसा व्यक्ति बॉण्ड में उल्लिखित समय और स्थान पर उपस्थित होगा तथा तब तक उपस्थित रहना जारी रखेगा जब तक कि पुलिस अधिकारी या न्यायालय, जैसा भी मामला हो, द्वारा अन्यथा निर्देश न दिया जाए।
    • जब किसी व्यक्ति को ज़मानत पर रिहा करने के लिये कोई शर्त लगाई जाती है, तो बॉण्ड में वह शर्त भी शामिल होगी।
    • बॉण्ड के अंतर्गत ज़मानत पर रिहा किये गए व्यक्ति को उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय या अन्य न्यायालय में आरोपों का उत्तर देने हेतु बुलाए जाने पर उपस्थित होने के लिये भी बाध्य किया जाएगा।
    • खंड (4) में प्रावधान है कि न्यायालय ज़मानतदारों की पर्याप्तता या उपयुक्तता से संबंधित तथ्य के प्रमाण के रूप में शपथ-पत्र स्वीकार कर सकता है।
      • न्यायालय, यदि वह आवश्यक समझे, तो ऐसी पर्याप्तता या उपयुक्तता के संबंध में स्वयं जाँच कर सकता है या मजिस्ट्रेट से जाँच करवा सकता है।
  • CrPC की धारा 441A में ज़मानतदारों द्वारा घोषणा किये जाने का प्रावधान है।
    • इस धारा में यह प्रावधान है कि ज़मानतदार के रूप में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति न्यायालय के समक्ष घोषणा करेगा कि वह उस अभियुक्त सहित कितने व्यक्तियों के लिये ज़मानतदार के रूप में प्रस्तुत हुआ है तथा उसमें सभी प्रासंगिक विवरण देगा।
  • CrPC  की धारा 444 में ज़मानतदारों को उन्मोचित करने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है।
    • खंड (1) में यह प्रावधान है कि ज़मानत पर रिहा किये गए व्यक्ति की उपस्थिति के लिये सभी या कोई भी ज़मानतदार (Bail Sureties) किसी भी समय, मजिस्ट्रेट के समक्ष, बॉण्ड को पूरी तरह से या जहाँ तक ​​आवेदकों से संबंधित है, उन्मोचित करने के लिये आवेदन कर सकते हैं।
    • खंड (2) में यह प्रावधान है कि ऐसा आवेदन किये जाने पर मजिस्ट्रेट गिरफ्तारी का वारंट जारी करेगा तथा निर्देश देगा कि इस प्रकार रिहा किये गए व्यक्ति को उसके समक्ष लाया जाए।
    • खंड (3) में यह प्रावधान है कि वारंट के अनुसरण में ऐसे व्यक्ति के उपस्थित होने पर या उसके स्वैच्छिक आत्मसमर्पण पर, मजिस्ट्रेट बॉण्ड को या तो पूर्णतः या जहाँ तक ​​आवेदकों से संबंधित है, उन्मोचित करने का निर्देश देगा और ऐसे व्यक्ति को अन्य पर्याप्त ज़मानतदार ढूंढने के लिये कहेगा तथा यदि वह व्यक्ति ऐसा करने में विफल रहता है तो उसे जेल भेजा जा सकता है।
  • CrPC की धारा 446 में बॉण्ड ज़ब्त होने पर प्रक्रिया का प्रावधान है:
    • जहाँ कोई बॉण्ड ज़ब्त कर लिया गया है, वहाँ न्यायालय ऐसे साक्ष्यों के आधारों को अभिलिखित करेगा तथा बॉण्ड से आबद्ध व्यक्ति से अर्थदण्ड देने के लिये कह सकता है या कारण बता सकता है कि अर्थदण्ड क्यों न दिया जाए।
    • यदि उपर्युक्त पर्याप्त कारण नहीं दर्शाया जाता है और अर्थदण्ड का भुगतान नहीं किया जाता है तो न्यायालय अर्थदण्ड उसी प्रकार वसूल कर सकता है जैसे कि वह उसके द्वारा लगाया गया अर्थदण्ड हो।
      • जहाँ अर्थदण्ड का भुगतान नहीं किया जाता है और निर्धारित तरीके से वसूल नहीं किया जा सकता है, वहाँ ज़मानतदार व्यक्ति को छह महीने की अवधि के लिये सिविल जेल में कारावास का दण्ड दिया जाएगा।
    • न्यायालय, अर्थदण्ड का भुगतान केवल आंशिक रूप से ही करवा सकता है।
    • यदि बॉण्ड ज़ब्त होने से पहले किसी ज़मानतदार की मृत्यु हो जाती है तो उसकी संपत्ति बॉण्ड के संबंध में सभी दायित्वों से मुक्त हो जाएगी।
    • खंड (5) उन मामलों में लागू होता है जहाँ किसी व्यक्ति ने CrPC की धारा 106, धारा 117 या धारा 360 के अधीन प्रतिभूति प्रदान की है।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के अधीन ज़मानत के संबंध में प्रासंगिक प्रावधान क्या हैं?

CrPC के प्रावधान और BNSS के अनुरूप ज़मानत प्रावधान निम्न प्रकार है:

CrPC

BNSS

धारा 441: अभियुक्त और ज़मानतदारों का बॉण्ड 

धारा 485: अभियुक्त और ज़मानतदारों का बॉण्ड 

धारा 441 A: ज़मानतदारों द्वारा घोषणा

धारा 486: ज़मानतदारों द्वारा घोषणा

धारा 444: ज़मानतदारों की उन्मुक्ति

धारा 489: ज़मानतदारों की उन्मुक्ति

धारा 446: बॉण्ड ज़ब्त होने पर प्रक्रिया

धारा 491: बॉण्ड ज़ब्त होने पर प्रक्रिया

क्या पहले से दी गई ज़मानत अन्य मामलों के लिये भी पर्याप्त हो सकती है?

  • न्यायालय ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को ज़मानतदार बनाने के लिये विकल्प अत्यंत ही सीमित हैं।
  • आपराधिक कार्यवाही में ये विकल्प और भी सीमित हो जाते हैं, क्योंकि लोगों की सामान्य प्रवृत्ति अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिये अपने रिश्तेदारों एवं मित्रों को किसी आपराधिक कार्यवाही के विषय में बताना नहीं होती है।
  • न्यायालय ने कहा कि यह प्राचीन काल से ही नियम रहा है कि अत्यधिक ज़मानत कोई ज़मानत नहीं है। 
  • जहाँ ज़मानत पर रिहा किया गया अभियुक्त कई मामलों में आदेश के अनुसार पर्याप्त ज़मानतदार प्रस्तुत नहीं कर पाता है, वहाँ ज़मानतदार प्रस्तुत करने की आवश्यकता को भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत उसके मौलिक अधिकारों के साथ संतुलित करने की आवश्यकता है।
  • सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो अन्य (2022) के मामले में, न्यायालय ने कहा कि “ऐसी शर्त लगाना जिसका अनुपालन असंभव है रिहाई के मूल उद्देश्य को समाप्त करना होगा।”
  • इसके अतिरिक्त, ज़मानत देने की नीतिगत रणनीति (2023) मामले में न्यायालय ने माना है कि न्यायालय यह शर्त लगाने से बच सकता है कि अभियुक्त को स्थानीय ज़मानत प्रस्तुत करनी चाहिये।
  • गिरीश गांधी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2024) के मामले में न्यायालय ने माना कि कई राज्यों में दायर कई मामलों के संबंध में ज़मानत हेतु एक व्यक्ति पर्याप्त है।

निष्कर्ष:

उच्चतम न्यायालय ने बार-बार दोहराया है कि ज़मानत नियम है और जेल अपवाद है। ऐसा इसलिये है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार इतना पवित्र है कि इसका उल्लंघन सुगमता से नहीं किया जा सकता। इस प्रकार, न्यायालयों को सदैव ज़मानत के लिये ऐसी शर्तें लगाने से बचना चाहिये जिनका अनुपालन करना कठिन हो। इसलिये, इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार को ध्यान में रखते हुए एक ही व्यक्ति ज़मानतदार के रूप में प्रस्तुत होने के लिये पर्याप्त है जब अभियुक्त के विरुद्ध कई मामले निरुद्ध हों।