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सिविल कानून

BCI ने न्यूनतम मासिक वृत्तिका की सिफारिश की

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 22-Oct-2024

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस 

परिचय:

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने अक्तूबर 2024 में नई वृत्तिका दिशा-निर्देश जारी करके जूनियर अधिवक्ताओं की सहायता के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। यह आदेश अधिवक्ता सिमरन कुमारी की याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद आया है। दिशा-निर्देशों में शहरी क्षेत्रों में जूनियर अधिवक्ताओं के लिये न्यूनतम मासिक वृत्तिका 20,000 रुपए और ग्रामीण क्षेत्रों में 15,000 रुपए निर्धारित करने की सिफारिश की गई है। हालाँकि इन राशियों को मानक के रूप में निर्धारित किया गया है, लेकिन BCI ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं और कानूनी फर्मों की अलग-अलग वित्तीय क्षमताओं को देखते हुए कार्यान्वयन को लचीला बनाया है।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) क्या है?

  • परिचय: 
    • BCI की स्थापना अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 4 के तहत एक राष्ट्रीय स्तर की वैधानिक संस्था के रूप में की गई है। 
    • इसमें राज्य बार काउंसिल के निर्वाचित सदस्य और भारत के अटॉर्नी जनरल तथा सॉलिसिटर जनरल पदेन सदस्य होते हैं। 
    • धारा 5 के तहत, BCI को स्थायी उत्तराधिकार और सामान्य मुहर के साथ एक कॉर्पोरेट निकाय के रूप में स्थापित किया गया है। 
    • सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का कार्यकाल 2 वर्ष का होता है।
    • वर्तमान में वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा इसके अध्यक्ष हैं।
  • BCI की शक्तियाँ:
    • राष्ट्रव्यापी अधिवक्ताओं के लिये व्यावसायिक आचरण मानकों को स्थापित करने और विनियमित करने का अधिकार। 
    • अधिवक्ता नामांकन उद्देश्यों के लिये विश्वविद्यालयों और उनकी लॉ की डिग्रियों को मान्यता देने की शक्ति। 
    • विधि विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों का निरीक्षण करने का अधिकार। 
    • अनुशासनात्मक समितियों की स्थापना करने और अनुशासनात्मक कार्यवाही की देखरेख करने की शक्ति। 
    • कल्याणकारी योजनाओं के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करने सहित BCI निधियों का प्रबंधन और निवेश करने का अधिकार। 
    • अपने स्वयं के कामकाज और राज्य बार काउंसिलों के कामकाज को नियंत्रित करने वाले नियम बनाने की शक्ति।
  • BCI के कार्य:
    • नियामक कार्य: 
      • व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और अनुशासनात्मक प्रक्रियाओं के मानक निर्धारित करना।
    • शैक्षिक कार्य:
      • कानूनी शिक्षा को बढ़ावा देना, शैक्षिक मानक निर्धारित करना और लॉ की डिग्रियों को मान्यता देना।
    • पर्यवेक्षी कार्य: 
      • राज्य बार काउंसिलों पर सामान्य पर्यवेक्षण और नियंत्रण रखना।
    • प्रतिनिधि कार्य: 
      • अधिवक्ताओं के अधिकारों, विशेषाधिकारों और हितों की रक्षा करना। 
    • विकास कार्य:
      • सेमिनार आयोजित करना, कानूनी पत्रिकाएँ प्रकाशित करना और कानूनी सुधारों को बढ़ावा देना।
    • कल्याणकारी कार्य:
      • धन का प्रबंधन, कानूनी सहायता का आयोजन और अधिवक्ताओं के लिये सामाजिक कल्याण योजनाओं का कार्यान्वयन करना।

अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत नियम निर्माण के लिये वैधानिक आधार और शक्तियाँ क्या हैं? 

  • नियम निर्माण का वैधानिक आधार:
    • प्राथमिक नियम बनाने की शक्ति अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 15 और धारा 49 से प्राप्त होती है। 
    • राज्य बार काउंसिल द्वारा बनाए गए नियमों को धारा 15(3) के तहत BCI की मंज़ूरी की आवश्यकता होती है। 
    • BCI ने वर्ष 1975 में व्यापक नियम प्रकाशित किये, जिन्हें विभिन्न पहलुओं को शामिल करते हुए कई भागों में विभाजित किया गया।
  • संगठनात्मक नियम:
    • गुप्त मतदान के माध्यम से बार काउंसिल के सदस्यों के चुनाव के लिये नियम बनाने की शक्ति।
    • अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव के लिये नियम स्थापित करने का अधिकार।
    • बैठक आयोजित करने, समितियों की स्थापना करने और खातों को बनाए रखने के लिये नियम बनाने की शक्ति।
    • कर्मचारियों की योग्यता और सेवा शर्तों के लिये नियम स्थापित करने का अधिकार।
  • व्यावसायिक विनियमन नियम:
    • व्यावसायिक आचरण और शिष्टाचार से संबंधित नियम बनाने की शक्ति (भारत के मुख्य न्यायाधीश की स्वीकृति के अधीन)।
    • न्यायालयों में अधिवक्ताओं के ड्रेस कोड के लिये नियम स्थापित करने का अधिकार।
    • अनुशासनात्मक कार्यवाही और अपील से संबंधित नियम बनाने का अधिकार।
    • अधिवक्ताओं के बीच वरिष्ठता निर्धारित करने के लिये नियम बनाने का अधिकार।
  • शैक्षिक एवं नामांकन नियम:
    • विधिक शिक्षा मानकों और विश्वविद्यालय निरीक्षण के लिये नियम बनाने की शक्ति। 
    • अधिवक्ता नामांकन योग्यता के लिये नियम स्थापित करने का अधिकार। 
    • विदेशी विधि योग्यता को मान्यता देने की शक्ति (केंद्र सरकार की मंज़ूरी के अधीन)। 
    • वर्ष 2010 से अखिल भारतीय बार परीक्षा आयोजित करने का अधिकार।
  • प्रशासनिक और वित्तीय नियम:
    • निधि प्रबंधन और निवेश के लिये नियम बनाने की शक्ति। 
    • कानूनी सहायता समितियों और उनके कार्यों के लिये नियम स्थापित करने का अधिकार। 
    • विभिन्न मामलों में शुल्क लगाने से संबंधित नियम बनाने की शक्ति। 
    • राज्य बार काउंसिल के लिये सामान्य दिशा-निर्देश स्थापित करने का अधिकार।

BCI द्वारा जारी दिशा-निर्देश क्या हैं?

  • वृत्तिका क्वांटम और भौगोलिक विभेदीकरण: 
    • शहरी क्षेत्र: न्यूनतम वृत्तिका 20,000/- रुपए प्रतिमाह 
    • ग्रामीण क्षेत्र: न्यूनतम वृत्तिका 15,000/- रुपए प्रतिमाह वृत्तिका नियुक्ति की तिथि से न्यूनतम तीन वर्ष की अवधि के लिये प्रदान की जाएगी।
  • भुगतान और दस्तावेज़ीकरण आवश्यकताएँ:
    • वृत्तिका बैंक अंतरण या अन्य प्रलेखित और सत्यापन योग्य तरीकों से भुगतान किया जाना चाहिये।
    • वरिष्ठ अधिवक्ताओं/फर्मों को शर्तों, अवधि और दायरे को रेखांकित करते हुए औपचारिक अनुबंध-पत्र जारी करना चाहिये।
    • वृत्तिका भुगतान और अनुबंध शर्तों के सटीक रिकॉर्ड का अनिवार्य रखरखाव। 
    • मेंटरशिप और व्यावसायिक विकास दायित्व: 
    • वरिष्ठ अधिवक्ताओं/फर्मों को मेंटरशिप, मार्गदर्शन और व्यावसायिक विकास के अवसर प्रदान करने चाहिये। 
    • मेंटरशिप में न्यायालयी कार्यवाही का अवलोकन, कानूनी शोध, प्रारूपण अनुभव और नेटवर्किंग के अवसर शामिल होते हैं। 
    • व्यावसायिक विकास के पहलुओं को वित्तीय सहायता के समान ही मूल्यवान माना जाता है।
  • अनुपालन एवं लचीलापन ढाँचा:
    • दिशा-निर्देश अनिवार्य न होकर अनुशंसात्मक होते हैं। 
    • कार्यान्वयन में व्यक्तिगत परिस्थितियों और वित्तीय क्षमताओं पर विचार किया जाना चाहिये। 
    • वरिष्ठ अधिवक्ताओं की वित्तीय सीमाओं को अनुशासनहीनता के बराबर नहीं माना जाना चाहिये।
  • शिकायत निवारण तंत्र: 
    • जूनियर अधिवक्ता संबंधित राज्य बार काउंसिल में शिकायत दर्ज करा सकते हैं। 
    • राज्य बार काउंसिल BCI के साथ समन्वय में शिकायतों का समाधान करेगी। 
    • वास्तविक वित्तीय बाधाओं से संबंधित शिकायतों का समाधान लचीलेपन के साथ किया जाएगा।
  • निगरानी एवं समीक्षा प्रणाली: 
    • कार्यान्वयन निगरानी के लिये BCI समर्पित समिति स्थापित करेगी।
    • दिशा-निर्देशों की प्रभावशीलता की समय-समय पर समीक्षा की जाएगी।
    • आर्थिक स्थितियों और फीडबैक के आधार पर वृत्तिका की राशि में समायोजन किया जा सकता है।
  • प्रशासनिक आवश्यकताएँ:
    • वार्षिक रिपोर्ट में नियोजित जूनियरों की संख्या और भुगतान की गई वृत्तिका का विवरण दिया गया है। 
    • राज्य बार काउंसिल को दिशा-निर्देशों को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया है। 
    • कानूनी समुदाय की प्रतिक्रिया के आधार पर नियमित समीक्षा और अद्यतन।

BCI के दिशा-निर्देशों के पीछे क्या कारण हैं?

  • ये दिशा-निर्देश दिल्ली उच्च न्यायालय के दिनांक 25 जुलाई, 2024 के W.P.(C) संख्या 10159/2024 के निर्देशों के प्रत्यक्ष अनुपालन में जारी किये गए, जिसमें BCI को जूनियर अधिवक्ताओं के लिये वित्तीय सहायता के मुद्दे का समाधान करने का अधिकार दिया गया था।
  • BCI ने औपचारिक रूप से जूनियर अधिवक्ताओं द्वारा अपने कॅरियर के शुरुआती वर्षों के दौरान सामना की जाने वाली महत्त्वपूर्ण वित्तीय चुनौतियों को स्वीकार किया है तथा हस्तक्षेप के लिये कानूनी आधार स्थापित किया है।
  • दिशा-निर्देश कानूनी रूप से शहरी और ग्रामीण अभ्यास क्षेत्रों के बीच अंतर करते हैं, विभिन्न भौगोलिक स्थानों में अलग-अलग आर्थिक स्थितियों तथा अभ्यास के अवसरों को मान्यता देते हैं (शहरी क्षेत्रों के लिये 20,000 रुपए और ग्रामीण क्षेत्रों के लिये 15,000 रुपए)।
  • दिशा-निर्देश मेंटरशिप और व्यावसायिक विकास के लिये एक संरचित ढाँचा स्थापित करते हैं, जिससे यह वित्तीय सहायता के साथ-साथ जूनियर अधिवक्ता प्रशिक्षण का कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त पहलू बन जाता है।
  • दिशा-निर्देशों में औपचारिक अनुबंध पत्रों के माध्यम से दस्तावेज़ीकरण और वृत्तिका भुगतान के सटीक रिकार्ड के रखरखाव को अनिवार्य बनाया गया है, जिसकी राज्य बार काउंसिलों द्वारा समीक्षा की जाएगी।
  • दिशा-निर्देश राज्य बार काउंसिलों के माध्यम से एक औपचारिक शिकायत तंत्र स्थापित करते हैं, जो बार काउंसिल ऑफ इंडिया के साथ समन्वय करता है तथा जूनियर अधिवक्ताओं को अननुपालन के लिये कानूनी सहारा प्रदान करता है।
  • BCI कार्यान्वयन समीक्षा और आवधिक समायोजन के लिये एक निगरानी समिति स्थापित करने तथा वृत्तिका प्रणाली के लिये एक औपचारिक नियामक तंत्र बनाने के लिये प्रतिबद्ध है।

निष्कर्ष: 

हालाँकि यह पहल जूनियर अधिवक्ताओं की सहायता करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इस पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ आई हैं। कई जूनियर अधिवक्ताओं को लगता है कि यह राशि उच्च जीवन-यापन लागतों को देखते हुए अपर्याप्त है, खासकर महानगरों में। वरिष्ठ अधिवक्ताओं और बार एसोसिएशनों ने इस उद्देश्य का समर्थन करते हुए, कार्यान्वयन चुनौतियों के बारे में चिंता जताई है। इन दिशा-निर्देशों की सफलता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगी कि वे वरिष्ठ अधिवक्ताओं की वित्तीय बाधाओं और व्यावसाय में प्रवेश करने वाले जूनियर्स की ज़रूरतों के बीच कितना संतुलन बनाते हैं।