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बौद्धिक संपदा अधिकार

कर्नाटक संगीत एवं कॉपीराइट अधिकार

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 31-Jan-2025

स्रोत: द हिंदू  

परिचय  

चेन्नई के हाल ही में आयोजित मार्गाज़ी संगीत सत्र के दौरान, रसिकों (पारखी) ने कॉपीराइट कानूनों का ध्यान रखते हुए कई संगीत समारोहों में भाग लिया, जो सभाओं (प्रदर्शन स्थलों) में अनाधिकृत रिकॉर्डिंग को प्रतिबंधित करते हैं। कर्नाटक संगीत क्षेत्र में एक सामान्य रूप से गलत धारणा है कि कॉपीराइट विधि इस पर लागू नहीं होते हैं। इस धारणा पर पुनर्विचार करने और अधिक सावधानी से जाँच करने की आवश्यकता है। कॉपीराइट विधि और कर्नाटक संगीत का अंतर्संबंध सुरक्षा एवं अधिकारों के विषय में महत्वपूर्ण प्रश्न करता है।

क्या कॉपीराइट विधि कर्नाटक संगीत प्रदर्शन पर लागू होता है?

  • चेन्नई में मार्गाज़ी सत्र के दौरान, संगीत के प्रशंसकों ने विभिन्न संगीत समारोहों में भाग लिया। 
  • सभाओं (प्रदर्शन स्थलों) ने प्रदर्शनों की अनाधिकृत रिकॉर्डिंग को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित कर दिया। 
  • रसिकों को संगीत का आनंद लेते समय कॉपीराइट विधियों का ध्यान रखना पड़ता था। 
  • इससे सामान्य धारणा की ओर ध्यान गया कि कॉपीराइट विधि कर्नाटक संगीत पर लागू नहीं होता।
  • कई प्रसिद्ध गायकों के प्रदर्शन तीसरे पक्ष द्वारा बिना अनुमति के YouTube एवं Spotify पर पोस्ट किये जाते हैं। 
  • ये अनाधिकृत पोस्टिंग कॉपीराइट अधिनियम का अतिलंघन करती हैं तथा संगीतकारों को अपने काम से पैसा कमाने का अवसर नहीं देती हैं। 
  • यहाँ तक ​​कि कलाकारों की सूचित सहमति के बिना सभाओं द्वारा की गई रिकॉर्डिंग भी अतिलंघन का मामला बनती है।

कर्नाटक संगीत प्रदर्शनी क्या हैं?

  • कर्नाटक संगीत मूल रूप से शुद्ध सौंदर्य अनुभव (रस) की खोज है जो तीन आवश्यक अवधारणाओं पर आधारित है: राग (सूक्ष्म अंतराल के साथ मधुर ढाँचा), ताल (सटीक लयबद्ध पैटर्न) और भाव (भावनात्मक अभिव्यक्ति)। 
  • 'कर्नाटक' शब्द संस्कृत में 'कर्नाटक संगीतम' से आया है, जिसका अर्थ है "पारंपरिक" या "संहिताबद्ध" संगीत, तमिल में 'तमिल इसाई' नामक एक समानांतर अवधारणा है।
  • यह विभिन्न क्षेत्रीय (देसी) शैलियों का मिश्रण है तथा कुलीन वर्ग एवं आम लोगों दोनों के योगदान से विकसित हुआ है, जिसमें गीतों के लिये संस्कृत, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ एवं मलयालम सहित कई भाषाओं को शामिल किया गया है। 
  • यह शास्त्रीय संगीत परंपरा अपनी निरंतरता, अनंत विविधता एवं आत्म-नवीकरण की क्षमता के कारण प्रतिष्ठित है, जो इसे वैश्विक अध्ययन एवं प्रशंसा का विषय बनाती है।

राइट सोसाइटी लिमिटेड बनाम ईस्टर्न इंडियन मोशन पिक्चर्स एसोसिएशन (1977) मामला

  • न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर ने संगीत की परिभाषा के विषय में एक मूलभूत प्रश्न किया। 
  • न्यायालय ने इस तथ्य पर विचार किया कि क्या संगीत से तात्पर्य केवल एक रचना है। 
  • इस मामले में प्रश्न किया गया कि क्या संगीत रचना से आगे बढ़कर भावपूर्ण धुन एवं आवाज को भी शामिल करता है। 
  • इस मामले में यह भी जाँच की गई कि क्या रचना के वास्तविक प्रस्तुतीकरण को संगीत का अंश माना जाना चाहिये। 
  • संसद द्वारा इस महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर नहीं दिया गया। 
  • इस मामले में कहा गया है कि संगीत को परिभाषित करना एक आध्यात्मिक और विधिक प्रश्न है।

संगीत कॉपीराइट के प्रमुख पहलू क्या हैं?

  • प्रदर्शनी का अधिकार:
    • कलाकारों को अपने गानों की अनाधिकृत रिकॉर्डिंग पर रोक लगाने का अधिकार है। 
    • वे अपने संगीत की स्ट्रीमिंग एवं बिक्री से रॉयल्टी का दावा कर सकते हैं। 
    • बिना सहमति के कोई भी रिकॉर्डिंग कॉपीराइट अधिनियम का अतिलंघन है। 
    • यहाँ तक ​​कि सभाओं (स्थलों) को भी रिकॉर्ड करने के लिये कलाकारों की सूचना द्वारा सहमति की आवश्यकता होती है।
  • संरक्षण की अवधि:
    • संगीतकार एवं गीतकार को उनके जीवनकाल के साथ-साथ 60 वर्षों के लिये सुरक्षा मिलती है। 
    • यांत्रिक अधिकार (रिकॉर्डिंग अधिकार) 60 वर्षों तक वैध होते हैं।
  • यांत्रिक अधिकार:
    • गाने रिकॉर्ड करने वालों को दिया गया अधिकार
    • उन्हें 60 वर्ष तक रिकॉर्डिंग का व्यावसायिक उपयोग करने का अधिकार देता है
  • पब्लिक डोमेन की स्थिति:
    • त्यागराज स्वामी, श्यामा शास्त्री, मुद्दुस्वामी दीक्षितार, पुरंदर दास एवं गोपाल कृष्ण भरतियार जैसे शास्त्रीय संगीतकारों की रचनाएँ पब्लिक डोमेन में हैं। 
    • ये रचनाएँ कॉपीराइट विधि के अस्तित्व में आने से पहले बनाई गई थीं।

निष्कर्ष 

कर्नाटक संगीतकारों के अधिकारों की बेहतर सुरक्षा के लिये मौजूदा कॉपीराइट विधियों में संशोधन किये जाने की आवश्यकता है। संगीतकारों को अपने गीतों में अद्वितीय जोड़ एवं सुधार पर स्वामित्व अधिकार होना चाहिये, साथ ही उनके प्रदर्शन का व्यावसायिक रूप से दोहन करने की क्षमता भी होनी चाहिये। स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म से रॉयल्टी प्रणाली को सशक्त करने की आवश्यकता है। संगीत को विधि के अनुरूप बनाने के बजाय, विधि को कर्नाटक संगीतकारों के अधिकारों की रक्षा के लिये विकसित किया जाना चाहिये।