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सांविधानिक विधि

केंद्र द्वारा “एक राष्ट्र एक चुनाव” को स्वीकृति

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 20-Sep-2024

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस 

परिचय

भारत सरकार ने "एक राष्ट्र, एक चुनाव" प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय एवं राज्य चुनावों को एक साथ करवाना है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा सुझाए गए इस महत्त्वपूर्ण परिवर्तन से भारत की चुनावी प्रणाली में परिवर्तन आ सकता है। इस प्रस्ताव के लिये संवैधानिक संशोधनों एवं विभिन्न राज्यों में इसके क्रियान्वयन की आवश्यकता है।

एक राष्ट्र एक चुनाव क्या है?

  • संवैधानिक आधार:
    • भारत के मूल संवैधानिक ढाँचे में लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव कराने की परिकल्पना की गई थी।
    • इस अवधारणा को लागू करने के लिये चुनाव चक्रों को फिर से संगठित करने के लिये संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता हो सकती है।
    • भारत के संविधान में चुनावों के लिये कोई विशिष्ट समय निर्धारित नहीं किया गया है।
    • अनुच्छेद 83(2) और अनुच्छेद 172(1) क्रमशः लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को निर्दिष्ट करते हैं, तथा अधिकतम 5 वर्ष का कार्यकाल निर्धारित करते हैं।
      • एक साथ चुनाव कराने के लिये चुनाव चक्रों को संरेखित करने हेतु इन अनुच्छेदों में संशोधन की आवश्यकता होगी।
    • एक साथ चुनाव कराने के लिये संविधान के भाग XV (चुनाव) में संशोधन की आवश्यकता हो सकती है।
    • ऐसे संशोधनों को संसद में विशेष बहुमत से पारित किया जाना चाहिये तथा कम से कम आधे राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिये।
  • विधायी आवश्यकता:
    • एक साथ चुनाव कराने के लिये मौजूदा चुनाव विधियों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आवश्यक होंगे, जिसमें लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संभावित संशोधन भी शामिल हैं।
    • एक साथ चुनाव कराने के लिये लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन की आवश्यकता होगी।
    • विधायकों के कार्यकाल तथा सरकारों के गठन/विघटन को नियंत्रित करने वाले विधियों में परिवर्तन आवश्यक हो सकता है।
  • न्यायिक दृष्टिकोण:
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि चुनाव विधानों को बदलती सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये विकसित किया जाना चाहिये, जो चुनावी सुधारों के लिये विधिक आधार का समर्थन करता है।
    • एक साथ चुनाव लागू करने वाले किसी भी विधि की न्यायिक समीक्षा की जाएगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन नहीं करता है।
  • प्रशासनिक दृष्टिकोण:
    • भारत के चुनाव आयोग ने प्रशासनिक दक्षता एवं लागत प्रभावशीलता का उदाहरण देते हुए 1983 से एक साथ चुनाव कराने की अनुशंसा की है।
    • भारत के चुनाव आयोग को अनुच्छेद 324 के अंतर्गत चुनावों का पर्यवेक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण करने का अधिकार है।
    • एक साथ चुनाव कराने के लिये चुनाव आयोग को देशव्यापी चुनाव कराने के लिये नए प्रोटोकॉल एवं प्रक्रियाएँ विकसित करनी होंगी।
  • आर्थिक दृष्टिकोण:
    • प्रस्ताव का उद्देश्य अलग-अलग लोकसभा एवं राज्य विधानसभा चुनावों के लिये अनुमानित 4,500 करोड़ रुपये के चुनाव-संबंधी व्यय को काफी कम करना है।
    • एक साथ होने वाले चुनावों की बदलती प्रकृति एवं पैमाने को ध्यान में रखते हुए अभियान वित्त विधियों में संशोधन आवश्यक हो सकता है।
  • संघीय संरचना के निहितार्थ
    • एक साथ चुनाव कराने के किसी भी विधिक ढाँचे में भारत के संघीय ढाँचे एवं राज्य की स्वायत्तता पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाना चाहिये तथा उनका समाधान किया जाना चाहिये।
  • कार्यान्वयन चुनौतियाँ
    • विधिक प्रावधानों में चरणबद्ध कार्यान्वयन दृष्टिकोण होना चाहिये ताकि एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया में तार्किक एवं संवैधानिक चुनौतियों का समाधान किया जा सके।
    • ऐसे परिदृश्यों से निपटने के लिये विधिक प्रावधानों की आवश्यकता होगी जहाँ सरकारें अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही गिर जाती हैं।
    • अविश्वास प्रस्ताव या अगली पूर्व निर्धारित चुनाव तिथि तक राष्ट्रपति शासन जैसे विकल्पों पर विचार करना पड़ सकता है।
    • पूरे देश में लागू होने वाली एकीकृत आदर्श आचार संहिता के लिये विधिक ढाँचा बनाए रखने की आवश्यकता होगी।
  • हितधारक परामर्श:
    • विधिक ढाँचे में न्यायपालिका, चुनाव अधिकारियों, राजनीतिक दलों एवं नागरिक समाज के साथ व्यापक परामर्श शामिल होना चाहिये, जैसा कि व्यापक रिपोर्ट में दर्शाया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ:
    • विधान का निर्माण करते समय, भारतीय दृष्टिकोण को प्रभावित करने के लिये संघीय लोकतंत्रों में अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं पर विचार किया जाना चाहिये।
  • राजनीतिक सहमति
    • एक साथ चुनाव कराने के विधिक सफ़र में व्यापक राजनीतिक समर्थन (19 में से 16 दल इसके पक्ष में) पर विचार किया जाना चाहिये, साथ ही विरोधी दलों की चिंताओं का भी समाधान किया जाना चाहिये।

प्रस्तावित संशोधन क्या थे?

  • अनुच्छेद 82A (प्रस्तावित संशोधन): "भारत का राष्ट्रपति, आम चुनाव के पश्चात् लोक सभा की प्रथम बैठक की तिथि को अधिसूचना जारी करके, इस अनुच्छेद के उपबंधों को प्रवृत्त कर सकेगा तथा अधिसूचना की वह तिथि नियत तिथि कहलाएगी।"
  • अनुच्छेद 324A (प्रस्तावित संशोधन): "अनुच्छेद 83 एवं 172 में किसी प्रावधान के होते हुए भी, नियत तिथि के बाद आयोजित किसी भी आम चुनाव में गठित सभी विधान सभाएँ लोक सभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति पर समाप्त हो जाएंगी।"
  • समिति ने अनुशंसा की है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 325 में उचित संशोधन किया जाना चाहिये ताकि राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से भारत के चुनाव आयोग द्वारा एकल मतदाता सूची एवं एकल मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) तैयार किया जा सके।
  • समिति ने सुझाव दिया है कि एक साथ चुनाव कराने के लिये सरकार द्वारा संविधान एवं अन्य प्रासंगिक विधियों में आवश्यक संशोधन किये जा सकते हैं।
  • प्रस्तावित प्रणाली में लोक सभा एवं राज्य विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव कराना प्रावधानित होगा।
  • यदि कोई राज्य विधानसभा अविश्वास प्रस्ताव, त्रिशंकु सदन या किसी अन्य घटना के कारण भंग हो जाती है, तो ऐसे नए सदन के लिये नए चुनाव कराए जाएंगे तथा उसका कार्यकाल लोक सभा के कार्यकाल के साथ समाप्त होगा।
  • समिति स्थानीय निकायों (नगर पालिकाओं एवं पंचायतों) के चुनावों को लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के चुनावों के साथ लोकसभा एवं राज्य विधान सभाओं के चुनावों के सौ दिनों के अंदर कराने की अनुशंसा करती है।
  • समिति इस बात पर जोर देती है कि ये परिवर्तन लोकतंत्र विरोधी या संघीय विरोधी नहीं हैं तथा इनसे संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन नहीं होगा या राष्ट्रपति प्रणाली वाली सरकार नहीं बनेगी।

अन्य देशों में एक साथ चुनाव के मॉडल क्या हैं?

  • दक्षिण अफ़्रीकी मॉडल:
    • राष्ट्रीय विधानसभा एवं प्रांतीय विधानमंडलों का चुनाव पाँच वर्ष के कार्यकाल के लिये एक साथ किया जाता है।
    • नगरपालिका चुनाव पाँच वर्ष के चक्र पर अलग-अलग आयोजित किये जाते हैं, जो राष्ट्रीय/प्रांतीय चुनावों से अलग होते हैं।
    • चुनावी प्रणाली एक मिश्रित पद्धति का उपयोग करती है, जिसमें एकल-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व के साथ जोड़ा जाता है।
  • स्वीडिश चुनावी ढांचाSwedish Electoral Framework:
    • रिक्सडॉग (राष्ट्रीय संसद), काउंटी परिषदों एवं नगर परिषदों के लिये चुनाव एक साथ होते हैं।
    • हर चार वर्ष में सितंबर के दूसरे रविवार को एक निश्चित चुनाव तिथि सांविधिक रूप से आयोजित की जाती है।
    • यह प्रणाली निर्वाचित विधानसभाओं में सीट आवंटन के लिये आनुपातिक प्रतिनिधित्व का उपयोग करती है।
  • बेल्जियम की चुनावी संरचना
    • विधिक ढाँचा पाँच अलग-अलग प्रकार के चुनावों का प्रावधान करता है: यूरोपीय, संघीय, क्षेत्रीय, प्रांतीय एवं नगरपालिका।
    • संघीय संसद के चुनाव आम तौर पर पाँच वर्ष में एक बार आयोजित किये जाते हैं, जो यूरोपीय संघ के चुनावों के साथ मेल खाते हैं।
    • पात्र नागरिकों के लिये मतदान विधिक रूप से अनिवार्य है।
  • जर्मन संवैधानिक प्रावधान
    • 1949 की मूल विधि (ग्रुंडगेसेट्ज़) बुंडेस्टैग (संघीय संसद) तथा लैंडटैग (राज्य विधानसभाओं) के लिये एक साथ चुनाव का प्रावधान करता है।
    • सरकारी स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये एक रचनात्मक अविश्वास मत तंत्र संवैधानिक रूप से निहित है।
    • चुनावी प्रणाली आनुपातिक प्रतिनिधित्व को चांसलर को मनमाने ढंग से हटाने के विरुद्ध सुरक्षा उपचारों के साथ जोड़ती है।
  • इंडोनेशियाई संवैधानिक सुधार:
    • 2008 के विधि संख्या 42 पर संवैधानिक न्यायालय के निर्णय के अनुसार, 2019 से राष्ट्रपति एवं विधान सभा कार्यालयों के लिये एक साथ चुनाव अनिवार्य हैं।
    • चुनावी ढाँचे के अनुसार राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को देश के आधे से अधिक प्रांतों में न्यूनतम 20% वोट हासिल करना आवश्यक है।
  • फिलिपींस चुनावी विधि:
    • गणतंत्र अधिनियम संख्या 7056 (1992) ने समकालिक राष्ट्रीय एवं स्थानीय चुनावों के लिये विधिक आधार स्थापित किया।
    • विधि राष्ट्रीय एवं स्थानीय अधिकारियों के लिये हर तीन वर्ष में एक साथ चुनाव कराने का प्रावधान करता है।
    • विशिष्ट प्रावधानों में कार्यकाल सीमा, चुनाव अवधि, नामांकन प्रक्रिया एवं चुनाव आयोग की भूमिका का विवरण दिया गया है।

निष्कर्ष

जबकि "एक राष्ट्र, एक चुनाव" पहल से चुनाव लागत में कमी एवं अधिक स्थिर शासन जैसे संभावित लाभ मिलने का वचन दिया गया है, लेकिन कुछ जटिल चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करती है। संक्रमण काल ​​में संभवतः कई राज्य सरकारों के कार्यकाल में कटौती होगी। जैसे-जैसे भारत इस नई चुनावी प्रणाली की ओर बढ़ रहा है, उसे संवैधानिक बाधाओं को पार करने और एक साथ चुनाव को वास्तविकता बनाने के लिये व्यापक राजनीतिक समर्थन सुनिश्चित करने की आवश्यकता होगी।