मानवाधिकार की अवधारणा
Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय नियम

मानवाधिकार की अवधारणा

    «    »
 23-Aug-2024

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों का प्रवर्तन एक कठिन कार्य है। विकसित देश अन्य विकासशील देशों को नियमों का पालन करने के लिये आर्थिक दबाव या सैन्य बल का उपयोग करते हैं, जबकि कम शक्तिशाली देश प्रायः इस प्रकार के उल्लंघन के विरुद्ध मात्र असहमति प्रदर्शित करते हैं। इससे प्रत्येक देश की स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों की रक्षा करना कठिन हो जाता है। यह विशेष रूप से तब चुनौतीपूर्ण होता है जब कठोर सरकारों से निपटना पड़ता है जो बाहरी लोगों को हस्तक्षेप नहीं करने देना चाहती हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय सीमाओं का उल्लंघन किये बिना मानवाधिकारों को बढ़ावा देने की कोशिश करता है, विशेषतः उन देशों में जो बाहरी जाँच का विरोध करते हैं।

मानवाधिकार क्या हैं?

  • मानवाधिकार सार्वभौमिक, अपरिहार्य, अविभाज्य, अन्योन्याश्रित और परस्पर संबंधित मौलिक अधिकार हैं जो सभी मनुष्यों में निहित हैं, चाहे उनकी जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, जातीयता, भाषा, धर्म या कोई अन्य स्थिति कुछ भी हो।
  • इन अधिकारों को विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों में शामिल किया गया है, जैसे- मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) तथा उसके बाद के अनुबंध, अभिसमय एवं संधियाँ।
  • मानवाधिकारों में नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं, इसके अलावा जीवन, स्वतंत्रता, विधि के समक्ष समानता, यातना से मुक्ति, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, काम करने, शिक्षा तथा गरिमापूर्ण जीवन स्तर का अधिकार भी शामिल हैं।
  • राज्य का प्राथमिक उत्तरदायित्व उचित उपायों, विधानों और नीतियों के माध्यम से मानव अधिकारों का सम्मान करना, उनकी रक्षा करना एवं उन्हें प्रवर्तित करना है।
  • मानवाधिकार विधि द्वारा मानव अधिकारों की विधिक प्रतिभूति दी जाती है, जो मौलिक स्वतंत्रता और मानव गरिमा में हस्तक्षेप करने वाली कार्यवाहियों के विरुद्ध व्यक्तियों तथा समूहों की रक्षा करती है।
  • ये अधिकार राज्यों पर कुछ निश्चित तरीकों से कार्य करने या कुछ निश्चित कार्यों से परहेज़ करने, व्यक्तियों या समूहों के मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने तथा उनकी रक्षा करने का दायित्व डालते हैं।
  • यद्यपि कुछ मानवाधिकारों को विधि द्वारा निर्धारित विशिष्ट परिस्थितियों में सीमित किया जा सकता है, परंतु कुछ अधिकार, जैसे यातना पर प्रतिबंध, निरपेक्ष माने जाते हैं तथा उन्हें किसी भी परिस्थिति में निलंबित या प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार ढाँचा, संधि निकायों, विशेष प्रक्रियाओं और क्षेत्रीय मानवाधिकार न्यायालयों सहित मानवाधिकार दायित्वों के अनुपालन की निगरानी तथा प्रवर्तन के लिये तंत्र प्रदान करता है।

मानवाधिकारों का विकास एवं अंतर्राष्ट्रीय मानकों का विकास किस प्रकार हुआ?

  • मानवाधिकार, समय के साथ कई स्रोतों से विकसित हुए हैं, जिनमें धार्मिक विश्वास, दार्शनिक विचार और राजनीतिक सिद्धांत शामिल हैं। विश्व भर में विभिन्न संस्कृतियों और ऐतिहासिक घटनाओं ने आज मानवाधिकारों की हमारी समझ को आकार देने में योगदान दिया है।
  • मौलिक दस्तावेज़ जैसे-
    • मैग्ना कार्टा (1215),
    • ब्रिटिश अधिकार विधेयक (1689),
    • अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा (1776)
    • मानव एवं नागरिक अधिकारों की फ्राँसीसी घोषणा (1789)
    • इन सभी ने आधुनिक मानवाधिकार अवधारणाओं के लिये आधारभूत सिद्धांत रखे, जिनमें सरकारी शक्ति पर सीमाएँ और मौलिक स्वतंत्रता की पुष्टि शामिल है।
  • 17वीं-18वीं शताब्दियों में दार्शनिकों के कार्यों के माध्यम से मानवाधिकार सिद्धांत को महत्त्वपूर्ण रूप से आगे बढ़ाया गया।
    • जॉन लॉक और इमैनुअल कांट, जिन्होंने प्राकृतिक अधिकारों और मानव गरिमा की अवधारणाएँ विकसित कीं, जिसने बाद के मानवाधिकार विमर्श को अत्यधिक प्रभावित किया।
  • द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) के अत्याचारों ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सार्वभौमिक मानवाधिकार मानकों को संहिताबद्ध करने के लिये प्रेरित किया।

अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार विधेयक क्या है?

  • द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के उपरांत, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने घोषणाओं और अनुबंधों की एक शृंखला के माध्यम से सार्वभौमिक मानव अधिकारों को संहिताबद्ध करने के प्रयास आरंभ किये।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसंबर, 1948 को मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) को अपनाया, जो अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार विधि के विकास में एक महत्त्वपूर्ण क्षण था।
  • UDHR में 30 अनुच्छेद शामिल हैं जो मौलिक सिद्धांतों को स्थापित करते हैं और बाद के मानवाधिकार सम्मेलनों, संधियों तथा विधिक उपकरणों के लिये आधार के रूप में कार्य करते हैं।
  • 16 दिसंबर 1966 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानवाधिकारों पर और अधिक विस्तार से प्रकाश डालने के लिये दो पूरक अंतर्राष्ट्रीय संधियों को अपनाया।:
    a) आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा (ICESCR)
    b)नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा (ICCPR)
  • ICESCR की निगरानी आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार समिति द्वारा की जाती है, जबकि ICCPR की निगरानी मानवाधिकार समिति द्वारा की जाती है।
  • विधिक एवं कूटनीतिक संदर्भ में इन दोनों संधियों को सामूहिक रूप से "अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ" कहा जाता है।
  • मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा तथा नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा के साथ मिलकर, मानवाधिकारों का अंतर्राष्ट्रीय विधेयक बनाती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार विधेयक अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार विधि की आधारशिला है, जो मौलिक मानवाधिकारों और स्वतंत्रताओं के संरक्षण एवं संवर्धन के लिये एक व्यापक ढाँचा स्थापित करता है।

भारतीय संविधान में मानवाधिकारों को किस प्रकार सम्मिलित एवं स्थापित किया गया?

  • भारत का संविधान स्पष्ट रूप से "मानव अधिकार" शब्द का प्रयोग नहीं करता है, परंतु मानवाधिकार सिद्धांतों को सम्मिलित करता है और उन्हें प्रभावी बनाता है।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत को एक प्रभुतासंपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित करती है तथा न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को मौलिक सिद्धांतों के रूप में महत्त्व देती है।
  • संविधान के भाग III में निहित मौलिक अधिकार, सभी भारतीय नागरिकों को नागरिक स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं, जिनमें शामिल हैं:
    a) समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
    b) स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
    c) शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
    d) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
    e) सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
    f) संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
  • संविधान के भाग IV में शामिल राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत सामाजिक-आर्थिक अधिकारों की रूपरेखा तैयार करते हैं और राज्य की नीति का मार्गदर्शन करते हैं, हालाँकि वे न्यायिक रूप से लागू करने योग्य नहीं हैं।
  • अनुच्छेद 38(1) राज्य को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय पर आधारित सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित करके लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद 39 न्याय की अवधारणा प्रदान करता है तथा संसाधनों के न्यायसंगत वितरण, समान कार्य के लिये समान वेतन तथा बच्चों और श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में राज्य की नीति को निर्देशित करता है।
  • अनुच्छेद 39A सभी नागरिकों के लिये न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता प्रदान करता है।
  • भारत का उच्चतम न्यायालय मानव अधिकारों से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या करने में मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के व्याख्यात्मक मूल्य को मान्यता देता है।
  • संविधान में मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिये विभिन्न रिट (बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा और उत्प्रेषण) का प्रावधान है।
  • इन समूहों के अधिकारों की रक्षा एवं संवर्द्धन के लिये अल्पसंख्यकों, महिलाओं एवं अनुसूचित जातियों हेतु राष्ट्रीय आयोग स्थापित किये गए हैं।
  • यद्यपि संपत्ति के अधिकार को मूलतः मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया गया था, परंतु वर्ष 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा इसे भाग III से हटा दिया गया।
  • भारतीय संविधान का उद्देश्य मानव गरिमा की रक्षा करना तथा जाति, पंथ, धर्म, जन्म स्थान, नस्ल, रंग या लिंग के आधार पर भेदभाव किये बिना सभी नागरिकों के बीच समानता सुनिश्चित करना है।

विभिन्न देश मानवाधिकार संरक्षण एवं चुनौतियों का समाधान कैसे करते हैं?

  • यूनाइटेड किंगडम:
    • ब्रिटेन मानवाधिकार पर यूरोपीय कन्वेंशन का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है, जिसे मानवाधिकार अधिनियम 1998 के माध्यम से घरेलू विधानों में शामिल किया गया है।
    • संरक्षित प्रमुख अधिकारों में जीवन का अधिकार, यातना से मुक्ति, निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता शामिल हैं।
    • ब्रिटेन में स्वतंत्र न्यायपालिका और नागरिक स्वतंत्रता की सुदृढ़ परंपरा है, हालाँकि हाल के आतंकवाद-रोधी विधानों ने गोपनीयता अधिकारों को लेकर चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका:
    • अमेरिकी संविधान, विशेषकर अधिकार विधेयक, देश में मानवाधिकार संरक्षण के लिये आधार प्रदान करता है।
    • प्रमुख अधिकारों में अभिव्यक्ति, धर्म और सभा की स्वतंत्रता के साथ-साथ विधि के अधीन उचित प्रक्रिया तथा समान संरक्षण शामिल हैं।
    • व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के लिये अमेरिका में स्वतंत्र न्यायपालिका सहित जाँच एवं संतुलन की एक सुदृढ़ प्रणाली है।
    • हालाँकि नस्लीय भेदभाव और "आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध" में बंदियों के अधिकार जैसे मुद्दे मानवाधिकार संबंधी चिंताओं के विषय रहे हैं।
  • जापान:
    • जापान का संविधान, विशेषकर अनुच्छेद 11, अपने नागरिकों को मौलिक मानवाधिकारों की गारंटी देता है।
    • यह देश प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों का पक्षकार है, जिनमें नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध भी शामिल है।
    • यद्यपि जापान सामान्यतः मानवाधिकारों का सम्मान करता है, फिर भी मृत्युदण्ड तथा विदेशियों के साथ व्यवहार जैसे मुद्दों पर जापान की अंतर्राष्ट्रीय आलोचना हुई है।
  • चीन:
    • चीन का संविधान नाममात्र रूप से अनेक मानवाधिकारों की गारंटी देता है, जिनमें अभिव्यक्ति और धर्म की स्वतंत्रता भी शामिल है।
    • हालाँकि व्यवहार में सरकार कई नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर काफी प्रतिबंध लगाती है।
    • चिंता के क्षेत्रों में अभिव्यक्ति, संगठन, धर्म की स्वतंत्रता पर सीमाएँ तथा जातीय अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार शामिल हैं।
    • चीन अपने मानवाधिकार प्रवचन में सामूहिक अधिकारों और आर्थिक विकास पर ज़ोर देता है।
  • जर्मनी:
    • जर्मन मूल विधि (संविधान) के अंतर्गत मानव गरिमा अलंघनीय है, जो मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद-1) के लिये सुदृढ़ सुरक्षा प्रदान करता है।
    • जर्मनी सभी प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय और यूरोपीय मानवाधिकार संधियों का पक्षकार है।
    • देश में विधि के शासन की सुदृढ़ परंपरा है और मानवाधिकारों की रक्षा के लिये एक स्वतंत्र न्यायपालिका है।
    • सामान्यतः मानवाधिकारों का सम्मान करते हुए भी जर्मनी को अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भेदभाव तथा आतंकवाद-रोधी प्रयासों में गोपनीयता संबंधी चिंताओं जैसे क्षेत्रों में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

संप्रभुता एवं शासन प्रतिरोध की चुनौतियों के बीच राज्यों और अंतर्राष्ट्रीय निकायों ने मानव अधिकार उल्लंघनों को कैसे संबोधित किया तथा लागू किया?

  • देशों को अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के आधार पर मानवाधिकारों का सम्मान और संरक्षण करना चाहिये।
  • कठोर सरकारें प्रायःअपने मानवाधिकार रिकॉर्ड के विषय में बाहरी दबाव का विरोध करती हैं।
  • धर्मार्थ संस्थाएँ, छात्र एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन जैसे समूह सरकारों को मानवाधिकारों में सुधार लाने के लिये प्रेरित करते हैं।
  • किसी देश की स्वतंत्रता को वैश्विक मानवाधिकार मानकों के साथ संतुलित करना कठिन है।
  • देशों को मानवाधिकारों की रक्षा के लिये अपने स्वयं के विधान एवं प्रणालियाँ बनानी चाहिये।
  • लोकतांत्रिक देशों से मानवाधिकारों को प्राथमिकता देने की अपेक्षा की जाती है।
  • विश्व समुदाय को सभी देशों को ऐसी नीतियाँ विकसित करने में सहायता करनी चाहिये जो मानवाधिकारों का सम्मान करती हों।
  • मानव अधिकारों को बढ़ावा देने के लिये निरंतर प्रयास से समय के साथ सुधार हो सकता है, भले ही सरकारें प्रारंभ में विरोध करें।

निष्कर्ष:

वैश्विक मानवाधिकारों के लिये चुनौती कठिन है क्योंकि इसमें प्रत्येक देश की स्वतंत्रता के सम्मान को सार्वभौमिक मूल्यों के साथ संतुलित करना शामिल है। शक्तिशाली देश आर्थिक या सैन्य दबाव का उपयोग करके विकासशील देशों पर दबाव डालते हैं। चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि हर देश मूलभूत मानवाधिकार नियमों का पालन करे, एक ऐसी दुनिया का निर्माण करे जहाँ सभी के लिये सम्मान और न्याय हो, चाहे उनकी शक्ति या स्थिति कुछ भी हो।