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सांविधानिक विधि
नामांकन की अस्वीकृति पर विवाद
« »05-Nov-2024
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
परिचय
गुजरात के सूरत निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी को उस समय बड़ा झटका लगा जब एक लोकसभा उम्मीदवार का नामांकन पत्र तीन प्रस्तावकों द्वारा हस्ताक्षर करने से मना करने के बाद खारिज कर दिया गया। विवाद तब और गहरा गया जब पार्टी के स्थानापन्न उम्मीदवार का नामांकन भी इसी आधार पर खारिज कर दिया गया, जिससे सूरत से कांग्रेस के पास कोई उम्मीदवार नहीं बचा।
इसमें मुख्य मुद्दा क्या है?
- मुख्य मुद्दा कांग्रेस उम्मीदवार के नामांकन हस्ताक्षरों में विसंगतियों से संबंधित है।
- कांग्रेस के एक लोकसभा उम्मीदवार का नामांकन प्रस्तावकों के हस्ताक्षरों में कथित विसंगतियों के कारण खारिज कर दिया गया।
- तीन प्रस्तावकों ने कथित तौर पर दावा किया कि उन्होंने नामांकन फॉर्म पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं।
- जब इस विषय में उनसे प्रश्न किया गया, तो उम्मीदवार ने दावा किया कि प्रस्तावक "संपर्क से बाहर" थे और या तो "भूमिगत हो गए हैं या उनका अपहरण कर लिया गया है"।
- उम्मीदवार की टीम विशेष सुनवाई के लिये पारघी (रिटर्निंग अधिकारी) के समक्ष प्रस्तुत हुई।
- सत्यापन के बाद, रिटर्निंग अधिकारी ने नामांकन फॉर्म पर हस्ताक्षरों में विसंगतियां पाईं।
- लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 36(2) के अंतर्गत नामांकन खारिज कर दिया गया।
- कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया है कि यह "भाजपा का कार्य" है।
- कांग्रेस अब उस सीट पर मतदान पर रोक लगाने की मांग कर रही है तथा इसे "लोकतंत्र की हत्या" बता रही है।
लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951
- परिचय:
- यह अधिनियम भारतीय संविधान, 1950 के भाग XV (अनुच्छेद 324-329) से अपना अधिकार प्राप्त करता है।
- यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 325 के अंतर्गत सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के संवैधानिक जनादेश को लागू करता है।
- यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत स्थापित भारत के चुनाव आयोग के साथ मिलकर कार्य करता है।
- उद्देश्य एवं दायरा
- यह अधिनियम निम्नलिखित के लिये चुनाव कराने की रूपरेखा प्रदान करता है:
- संसद के सदन (लोकसभा एवं राज्यसभा)
- राज्य विधानसभाएँ एवं परिषदें
- चुनावी प्रक्रिया
- चुनावों की अधिसूचना एवं संचालन
- चुनावों एवं उप-चुनावों के संचालन को विनियमन
- चुनावों के संचालन के लिये प्रशासनिक ढाँचा की स्थापना
- चुनाव आयोग को चुनावी प्रक्रियाओं की देखरेख
- चुनावों के संचालन के लिये प्रशासनिक मशीनरी
- मतदान केंद्र एवं मतदान प्रक्रियाएँ
- मतों की गिनती एवं परिणामों की घोषणा
- योग्यताएँ एवं अयोग्यताएँ
- उम्मीदवारों के लिये पात्रता का मानदंड
- MP/MLA उम्मीदवारों के लिये न्यूनतम आयु 25 वर्ष निर्धारित की गई है।
- उम्मीदवारों को अपने निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता होना आवश्यक है।
- SC/ST आरक्षित सीटों के लिये विशेष उपबंध अनिवार्य किये गए हैं।
- अयोग्यता का आधार
- MP/MLA की अयोग्यता के लिये आधार स्थापित करता है
- 2 वर्ष से अधिक की सज़ा के लिये रिहाई के बाद 6 वर्ष का प्रतिबंध लगाता है
- दोषसिद्धि की तिथि से अयोग्यता लागू करता है
- कुछ अपराधों के लिये दोषसिद्धि
- भ्रष्ट आचरण
- सरकारी संविदा
- लाभ का पद
- उम्मीदवारों के लिये पात्रता का मानदंड
- चुनावी अपराध
- भ्रष्ट आचरण में शामिल हैं:
- रिश्वतखोरी
- अनुचित प्रभाव
- धर्म, नस्ल, जाति के आधार पर अपील
- विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना
- भ्रष्ट आचरण में शामिल हैं:
- चुनावी कदाचार:
- बूथ कैप्चरिंग
- अनाधिकृत मतदान
- मतदाताओं को भयभीत करना
- विवाद का समाधान
- चुनाव याचिका
- चुनाव को अमान्य घोषित करने के आधार
- चुनाव परिणामों को चुनौती देने की प्रक्रिया
- चुनावी विवादों में न्यायालयों की शक्तियाँ
- पंजीकरण एवं मान्यता
- राजनीतिक दलों का पंजीकरण
- चुनाव आयोग के साथ राजनीतिक दलों का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है।
- पार्टियों को स्वैच्छिक योगदान (नकद में ₹2000 तक) प्राप्त करने की अनुमति दी गई है।
- पार्टियों को ₹2000 से अधिक के दान की रिपोर्ट करने की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय दलों की मान्यता
- प्रतीकों का आवंटन
- राजनीतिक दलों का पंजीकरण
- कार्यान्वयन
- चुनाव आयोग की शक्तियाँ
- रिटर्निंग अधिकारियों की भूमिका
- पीठासीन अधिकारियों के कर्त्तव्य
- मतदान एजेंटों के अधिकार एवं कर्त्तव्य
- दण्ड
- विभिन्न अपराधों के लिये कारावास की अवधि
- दण्ड
- अयोग्यता की अवधि
- भ्रष्ट आचरण का परिणाम
- मतदान का अधिकार एवं प्रक्रिया:
- यह सुनिश्चित करता है कि एक व्यक्ति एक चुनाव में केवल एक बार ही मतदान कर सकता है
- नोटा (इनमें से कोई नहीं) के रूप में अन्य विकल्प प्रस्तुत किया गया।
- VVPAT (वोटर वेरिफ़िएबल पेपर ऑडिट ट्रेल) प्रणाली लागू की गई।
- चुनावी अभियान एवं व्यय के संदर्भ में विनियम:
- व्यय की सीमा तय की गई (लोकसभा के लिये 70 लाख रुपये, विधानसभा के लिये 28 लाख रुपये) मतदान से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार पर रोक लगाई गई डाक मतपत्र मतदान को विनियमित किया गया।
- पारदर्शिता के लिये आवश्यक कदम:
- संपत्ति, देनदारियों एवं आपराधिक रिकॉर्ड की घोषणा अनिवार्य है।
- शैक्षणिक योग्यता का प्रकटन करना अनिवार्य है।
- सांसदों के लिये घोषणा पत्र दाखिल करने के लिये 90 दिन की समय सीमा तय की गई है।
- भ्रष्टाचार विरोधी उपाय:
- रिश्वतखोरी जैसी भ्रष्ट प्रथाओं को परिभाषित एवं प्रतिबंधित करता है।
- चुनावों में अनुचित प्रभाव को रोकता है।
- समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने पर रोक लगाता है।
अधिनियम का महत्त्व क्या है?
- लोकतंत्र को सशक्त बनाना
- अधिनियमों के अंतर्गत निर्वाचन क्षेत्रों में प्रत्यक्ष चुनाव की व्यवस्था की गई है।
- नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों के चयन में सक्रिय रूप से भाग लेने का अधिकार दिया गया है।
- इससे जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया का निर्माण होता है।
- संतुलित प्रतिनिधित्व
- परिसीमन प्रावधानों के माध्यम से, RPA 1950 यह सुनिश्चित करता है कि निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या समान हो।
- यह प्रत्येक नागरिक के वोट को समान महत्त्व देकर निष्पक्षतापूर्ण कार्य करता है।
- संघीय संरचना
- ये अधिनियम भारत की संघीय व्यवस्था को सुदृढ़ बनाते हैं।
- प्रत्येक राज्य को संसद में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है।
- इससे राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय हितों में संतुलन बना रहता है।
- राजनीतिक अखंडता
- RPA 1951 राजनीति के अपराधीकरण को नियंत्रित करने में सहायता करता है।
- आपराधिक रिकॉर्ड वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकता है।
- राजनेता-अपराधी-पुलिस गठजोड़ को तोड़ने का लक्ष्य रखता है।
- वित्तीय निरीक्षण
- चुनावी व्यय की निगरानी के लिये तंत्र स्थापित करता है।
- सार्वजनिक संसाधनों के दुरुपयोग को रोकता है।
- उम्मीदवारों को वित्तीय रूप से उत्तरदायी होने के लिये बाध्य करता है।
- चुनावी अखंडता
- बूथ कैप्चरिंग एवं रिश्वतखोरी जैसी कुप्रथाओं पर रोक लगाता है।
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों को बढ़ावा देता है।
- लोकतांत्रिक मूल्यों एवं राजनीतिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है।
- पारदर्शी वित्तपोषण
- राजनीतिक दान की निगरानी के लिये ढाँचा तैयार करता है।
- केवल पंजीकृत पार्टियाँ ही चुनावी बॉण्ड प्राप्त कर सकती हैं।
- राजनीतिक फंडिंग के स्रोत का पता लगाने योग्य एवं उत्तरदायी बनाया गया।
लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 36(2) क्या है?
- धारा 36(2)(c) के अंतर्गत, नामांकन को अस्वीकार किया जा सकता है यदि "नामांकन पत्र पर उम्मीदवार या प्रस्तावक के हस्ताक्षर वास्तविक नहीं हैं।"
- इस मामले में:
- तीन प्रस्तावकों ने दावा किया कि उन्होंने नामांकन फॉर्म पर हस्ताक्षर नहीं किये थे।
- रिटर्निंग ऑफिसर (पारघी) ने हस्ताक्षरों का सत्यापन किया।
- सत्यापन के बाद नामांकन फॉर्म पर हस्ताक्षरों में विसंगतियाँ पाई गईं।
- इन विसंगतियों के आधार पर, नामांकन को धारा 36 (2) के अंतर्गत खारिज कर दिया गया।
- अस्वीकृति मुख्य रूप से प्रस्तावकों के अस्पष्ट हस्ताक्षरों के संबंध में धारा 36(2)(c) पर आधारित प्रतीत होती है।
- धारा 36 से प्रमुख प्रक्रियात्मक बिंदु जिनका पालन किया गया:
- रिटर्निंग ऑफिसर ने नामांकन पत्रों की जाँच की
- आपत्तियों के संबंध में संक्षिप्त जाँच की गई
- उम्मीदवार को सुनवाई का अवसर दिया गया (विशेष सुनवाई आयोजित की गई)
- रिटर्निंग ऑफिसर ने नामांकन खारिज करने का अपना निर्णय दर्ज किया
निष्कर्ष
इस घटना ने एक चर्चा छेड़ दी है, कांग्रेस ने गड़बड़ी का आरोप लगाया है तथा दावा किया है कि उनके प्रस्तावकों को सत्तारूढ़ भाजपा ने राज्य की प्रशासनिक मशीनरी का उपयोग करके "अपहरण" कर लिया है। जबकि कांग्रेस ने इस निर्णय को उच्च न्यायालयों में चुनौती देने का निर्णय किया है, इस घटनाक्रम ने सूरत लोकसभा की दौड़ में उनकी उपस्थिति को प्रभावी रूप से समाप्त कर दिया है, जो गुजरात में उनकी चुनावी संभावनाओं के लिये एक बड़ा झटका है।