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आपराधिक कानून
अपराध की तैयारी बनाम प्रयास
« »01-Apr-2025
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
परिचय
आपराधिक कानून में "तैयारी" एवं "प्रयास" के बीच विधिक अंतर बहुत महत्त्वपूर्ण है, विशेषकर अप्राप्तवयों के विरुद्ध लैंगिक अपराधों से जुड़े संवेदनशील मामलों में।हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक मामले में उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप ने बलात्संग के प्रयास की सूक्ष्म एवं जटिल निर्वचन को प्रकटित किया है, मौजूदा विधिक मानकों को चुनौती दी है तथा कमजोर पीड़ितों की सुरक्षा के लिये अधिक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल दिया है।
भारतीय विधि के अंतर्गत तैयारी एवं प्रयास क्या है?
तैयारी:
- "अपराध करने की तैयारी करना वह चरण है जो उस अपराध को करने के प्रयास से पहले होता है।"
- इसमें अपराध करने के लिये प्रारंभिक योजना बनाना या तैयार होना शामिल है।
- "अधिकांश मामलों में दण्डनीय नहीं है"।
- यह उस प्रारंभिक चरण को दर्शाता है जहाँ कोई व्यक्ति अपराध करने के विषय में सोच रहा है या अपराध करने की तैयारी कर रहा है।
- इसमें अपराध करने की दिशा में प्रत्यक्ष कार्यवाही शामिल नहीं है।
प्रयास:
- "अपराध करने का प्रयास आपराधिक रूप से दण्डनीय है"।
- इसके लिये विशिष्ट तत्त्वों को सिद्ध करना आवश्यक है:
- अपराध करने का स्पष्ट "आशय"।
- तैयारी करना।
- अपराध करने की दिशा में कदम उठना।
- अपराध करने के करीब "अंतिम से पहले का कार्य" किया।
- "प्रयास वहीं से आरंभ होता है जहाँ तैयारी समाप्त होती है"
- इसमें अपराध करने की दिशा में पर्याप्त एवं प्रत्यक्ष प्रगति शामिल है।
- संभावित बाधाओं या प्रतिरोध को दूर करने का स्पष्ट आशय प्रदर्शित करता है।
आकाश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2025) का मामला क्या था?
मामले से संबंधित तथ्य:
- इस घटना में तीन अज्ञात आरोपी तथा एक अप्राप्तवय लड़की शामिल थी।
- आरोपी अप्राप्तवय लड़की और उसकी माँ से मिले तथा लड़की को अपनी मोटरसाइकिल पर घर छोड़ने का प्रस्ताव दिया।
- यात्रा के दौरान, आरोपी ने लड़की के स्तनों को पकड़ना आरंभ कर दिया।
- आरोपी ने लड़की को खींचने का प्रयास किया तथा उसे एक पुलिया के नीचे ले जाने की कोशिश की।
- आरोपी ने लड़की के पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया।
- दो साक्षियों ने बच्ची के रोने की आवाज़ सुनी तथा आगे कोई हमला होने से पहले ही घटनास्थल पर पहुँच गए।
- साक्षियों के पहुँचने पर, आरोपी ने धमकियाँ दीं और तुरंत वहाँ से भाग गया।
- प्रारंभिक विधिक कार्यवाही में POCSO (लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण) न्यायालय ने आरोपी को वाद के लिये बुलाया।
- आरोपी के विरुद्ध मूल आरोप थे:
- भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 376 के अधीन बलात्संग करने का प्रयास।
- POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 18 के अधीन अपराध करने का प्रयास।
उच्च न्यायालय का निर्णय:
- न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने 17 मार्च, 2025 को पवन एवं आकाश नामक दो आरोपियों के विरुद्ध आरोपों पर निर्णय दिया।
- उच्च न्यायालय की मुख्य टिप्पणी यह थी कि पीड़िता के स्तनों को पकड़ने और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ने का प्रयास करने के आरोप बलात्संग का प्रयास नहीं थे।
- न्यायालय ने विशेष रूप से उल्लेख किया कि ऐसा कोई ठोस साक्ष्य नहीं था जो यह दर्शाता हो कि आरोपी का पीड़िता के साथ बलात्संग करने का दृढ़ आशय था।
- निर्णय में इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया कि न तो शिकायत और न ही साक्षियों के अभिकथनों में आरोप लगाया गया है कि आरोपी ने लैंगिक उत्पीड़न करने की कोशिश की।
- उच्च न्यायालय ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष को तैयारी के चरण से परे की कार्यवाहियों को स्थापित करना चाहिये, जिसमें तैयारी एवं अपराध करने के वास्तविक प्रयास के बीच अंतर पर बल दिया जाना चाहिये।
- न्यायालय ने पाया कि साक्षियों ने यह नहीं कहा कि आरोपी की हरकतों से पीड़िता नग्न या निर्वस्त्र हो गई थी।
- परिणामस्वरूप, उच्च न्यायालय ने मूल समन आदेश को संशोधित किया, बलात्संग के प्रयास के आरोपों को कम करके हमले के एक कमतर अपराध में बदल दिया।
- न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालय को संशोधित धाराओं, विशेष रूप से IPC की धारा 354-B (निर्वस्त्र करने के आशय से हमला) और POCSO अधिनियम की धारा 9/10 के अधीनस्थ एक नया समन आदेश जारी करने का निर्देश दिया।
- निर्णय ने अनिवार्य रूप से आरोपों की गंभीरता को कम कर दिया, यह सुझाव देते हुए कि कथित कृत्य बलात्संग के प्रयास के आरोप के लिये विधिक सीमा को पूरा नहीं करते हैं।
उच्चतम न्यायालय का निर्णय:
- उच्चतम न्यायालय ने 26 मार्च 2025 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय पर रोक लगा दी।
- न्यायमूर्ति बी. आर. गवई एवं न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय की कड़ी आलोचना की।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय की टिप्पणियों से "निर्णय के लेखक की ओर से संवेदनशीलता की कमी" का पता चलता है।
- न्यायालय ने 25 मार्च 2025 को उच्च न्यायालय के निर्णय पर स्वतः संज्ञान लिया।
- उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय द्वारा इस कृत्य को बलात्संग के "प्रयास" के बजाय मात्र "तैयारी" के रूप में वर्गीकृत करने को खारिज कर दिया।
- उच्चतम न्यायालय ने बलात्संग के प्रयास के आरोपों को मामूली हमले के आरोप में बदलने के उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती दी।
- न्यायालय ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ "विधि के सिद्धांतों से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं तथा पूरी तरह असंवेदनशीलता एवं अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाती हैं"।
- उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया कि अभियुक्त पर बलात्संग के प्रयास के मूल आरोपों के अधीन वाद लाया जाना चाहिये, न कि कम किये गए आरोपों के अधीन।
- यह निर्णय अप्राप्तवयों से संबंधित लैंगिक उत्पीड़न के मामलों के निर्वचन करने के लिये अधिक व्यापक एवं संवेदनशील दृष्टिकोण की आवश्यकता प्रदान करता है।
- न्यायालय का हस्तक्षेप बलात्संग करने के "प्रयास" का एक सख्त निर्वचन का सुझाव देता है, विशेष रूप से बालकों से संबंधित मामलों में।
पहले कौन से मामले संदर्भित किये गये थे?
- रेक्स बनाम जेम्स लॉयड (1836)
- लॉयड का निर्णय लगभग दो शताब्दियों पुराना विधिक उदाहरण है जो बलात्संग के प्रयास के मामलों को प्रभावित करता है।
- निर्णय में बलात्संग के प्रयास को सिद्ध करने के लिये उच्च मानदण्ड निर्धारित किये गए हैं, जिसके लिये निम्न की आवश्यकता है:
- अपराध करने का स्पष्ट आशय
- प्रतिरोध पर नियंत्रण पाने के लिये दृढ़ प्रयास का साक्ष्य
- केवल तैयारी से परे प्रदर्शनकारी कदम
- राजस्थान उच्च न्यायालय मामला (मई 2024)
- राजस्थान उच्च न्यायालय ने लॉयड के निर्णय एवं मानक प्रयास परीक्षण को लागू किया।
- न्यायालय ने बलात्संग के प्रयास के मामले में दोषसिद्धि को बदल दिया।
- निर्णय में आरोपों को धारा 354 में घटा दिया गया, जिससे सज़ा कम हो गई।
- उच्चतम न्यायालय का उदाहरण: अमन कुमार एवं अन्य बनाम हरियाणा राज्य (2004)
- उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मामले में भी ऐसा ही दृष्टिकोण अपनाया।
- निर्णय में तैयारी एवं प्रयास के बीच अंतर करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- न्यायालय ने लैंगिक उत्पीड़न के मामलों में आपराधिक आशय का सूक्ष्म निर्वचन किया।
निष्कर्ष
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय पर उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वप्रेरणा से संज्ञान लेने से लैंगिक अपराधों का विधिक निर्वचन में संभावित परिवर्तन का संकेत मिलता है। आपराधिक प्रयासों की संकीर्ण एवं असंवेदनशील परिभाषाओं को चुनौती देकर, न्यायालय यह सुनिश्चित करना चाहता है कि विधिक ढाँचे पीड़ितों की पर्याप्त सुरक्षा करें तथा अपराधियों को उत्तरदायी ठहराएँ, तकनीकी भेदों से आगे बढ़कर जो अनजाने में लैंगिक दुराचार की गंभीरता को कम कर सकते हैं।