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सांविधानिक विधि

असाध्य रोगी से जीवन रक्षक प्रणाली वापस लेने के लिये प्रारूप-दिशानिर्देश

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 01-Nov-2024

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

परिचय

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने आसध्य रोगी से जीवन रक्षक प्रणाली हटाने का प्रारूप हेतु दिशा-निर्देश जारी किये हैं। इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य सम्मान के साथ मरने के अधिकार के विषय में उच्चतम न्यायालय के 2018 एवं 2023 के आदेशों को अस्पतालों के लिये व्यावहारिक नियमों में परिवर्तित करना है।

क्या किसी व्यक्ति को "असाध्य रोगी" बना देता है?

  • दिशा-निर्देशों के अनुसार, आसध्य रोग से तात्पर्य है एक अपरिवर्तनीय या लाइलाज स्थिति जिसमें निकट भविष्य में मृत्यु अपरिहार्य है।
  • इसमें गंभीर मस्तिष्क की चोटें शामिल हैं जो 72 घंटे या उससे अधिक समय के बाद भी ठीक नहीं होती हैं।

जीवन रक्षक प्रणाली हटाने के लिये चार आवश्यक शर्तें

  • डॉक्टरों ने ब्रेन स्टेम डेथ की पुष्टि की
  • मेडिकल विशेषज्ञ इस तथ्य पर सहमत हैं कि उन्नत उपचार से भी रोगी को ठीक होने में सहायता नहीं मिलेगी
  • रोगी या उनके परिवार ने (स्थिति को समझने के बाद) आगे जीवन रक्षक प्रणाली लेने से मना कर दिया
  • उच्चतम न्यायालय की सभी प्रक्रियाओं का युक्तियुक्त तरीके से पालन किया गया

कौन से उपचार रोके जा सकते हैं?

जीवन-रक्षक उपचार (LST) जिन्हें वापस लिया जा सकता है, उनमें शामिल हैं:

  • मैकेनिकल वेंटिलेशन (सांस लेने वाली मशीनें)
  • वासोप्रेसर्स (रक्तचाप की दवाएँ)
  • डायलिसिस
  • शल्य चिकित्सा प्रक्रियाएँ
  • रक्त आधान
  • पैरेंट्रल पोषण (कृत्रिम आहार)
  • ECMO (हृदय-फेफड़े की बाईपास मशीन)

निर्णय लेने की प्रक्रिया

इसमें दो मेडिकल बोर्ड शामिल होने चाहिये:

  • प्राथमिक चिकित्सा बोर्ड: कम से कम तीन डॉक्टर जो पहले मामले का मूल्यांकन करते हैं
  • माध्यमिक चिकित्सा बोर्ड: तीन चिकित्सक, जिनमें से एक को जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा नियुक्त किया जाता है, जो पहले बोर्ड के निर्णय की समीक्षा करते हैं

विधिक स्थिति

  • यद्यपि भारत में जीवन रक्षक प्रणाली हटाने के संबंध में कोई विशिष्ट विधान नहीं है, फिर भी यह विधिक है क्योंकि:
  • उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) के अंतर्गत इसे मान्यता दी है। यह सक्रिय इच्छामृत्यु (जो अवैध है) से अलग है। वयस्क विधिक रूप से उपचार से मना कर सकते हैं, भले ही इससे मृत्यु हो जाए।

आगे की राह

  • हालाँकि ये दिशा-निर्देश महत्त्वपूर्ण प्रगति दर्शाते हैं, लेकिन उनकी सफलता राज्य एवं अस्पताल के स्तर पर प्रभावी कार्यान्वयन पर निर्भर करेगी।
  • चिकित्सा संस्थानों को अब आवश्यक बोर्ड एवं प्रोटोकॉल स्थापित करने के लिये कार्य करना चाहिये, साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उनके कर्मचारियों को जीवन के अंतिम चरण की देखभाल के तकनीकी एवं नैतिक दोनों पहलुओं में उचित प्रशिक्षण दिया गया है।