जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
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जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

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 04-Jul-2024

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

वर्तमान विधिक ढाँचे में कई अस्पष्टताएँ हैं और यह जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GAI) उपकरणों से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।

क्या जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GAI) टूल्स को 'मध्यवर्ती' माना जाना चाहिये?

  • इस बात को लेकर अस्पष्टता है कि क्या GAI उपकरणों को 'मध्यवर्ती' माना जाना चाहिये या उन्हें मात्र माध्यम या सक्रिय निर्माता माना जाना चाहिये।
  • श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT अधिनियम) की धारा 79 को यथावत् रखा, जो IT (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश) नियमों की धारा 3(1) (B) में उल्लिखित उचित आवश्यकताओं को पूरा करने पर, मध्यवर्तियों को अंतर्निहित सामग्री के विरुद्ध 'सुरक्षित आश्रय' का संरक्षण प्रदान करता है।
  • क्रिश्चियन लुबोटिन सास बनाम नकुल बजाज एवं अन्य (2018) के मामले में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि सुरक्षित आश्रय संरक्षण केवल "निष्क्रिय" मध्यवर्तियों पर लागू होता है, जो केवल सूचना के माध्यम या निष्क्रिय प्रेषक के रूप में कार्य करने वाली संस्थाओं को संदर्भित करता है।
  • लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) के मामले में प्लेटफॉर्म जनित विषय-वस्तु और उपयोगकर्त्ता जनित विषय-वस्तु के बीच अंतर करना अत्यधिक चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है।
  • इसके अतिरिक्त, AI के मामले में उत्तरदायित्व तभी उत्पन्न होता है जब सूचना को अन्य प्लेटफॉर्मों पर पुनः पोस्ट किया जाता है, केवल उपयोगकर्त्ता के संकेत पर प्रतिक्रिया देने से इसका प्रसार नहीं होता है।
  • जून 2023 में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक रेडियो होस्ट ने ओपन AI के विरुद्ध वाद दायर किया जिसमें आरोप लगाया गया कि चैट GPT ने उसे बदनाम किया है।
  • अतः इसमें बहुत सारी जटिलताएँ हैं क्योंकि इस बात को समझने में बहुत अस्पष्टता है कि क्या GAI उपकरणों को मध्यवर्ती, माध्यम या सक्रिय निर्माता के रूप में माना जाना चाहिये।

क्या GAI को समायोजित करने के लिये वर्तमान कॉपीराइट प्रावधानों में संशोधन किया जाना चाहिये?

  • कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 16 में स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि इस अधिनियम के प्रावधानों के अतिरिक्त “कोई भी व्यक्ति” कॉपीराइट के संरक्षण का अधिकारी नहीं होगा।
  • यदि AI द्वारा निर्मित कार्यों को संरक्षण प्रदान किया जाता है तो प्रश्न यह होगा कि क्या मानव के साथ सह-लेखन अनिवार्य होगा।
  • 161वीं संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में पाया गया कि कॉपीराइट अधिनियम, 1957, AI द्वारा लेखन और स्वामित्व को सुविधाजनक बनाने के लिये पर्याप्त रूप से उपयुक्त नहीं है।
  • यह प्रश्न अभी भी अस्पष्ट है कि AI उपकरणों द्वारा कॉपीराइट उल्लंघन के लिये कौन उत्तरदायी है।
  • यद्यपि चैट GPT की 'उपयोग की शर्तें' किसी भी अवैध आउटपुट के मामले में, उत्तरदायित्व को उपयोगकर्त्ता पर स्थानांतरित करने का प्रयास करती हैं, परंतु भारत में ऐसी शर्तों की प्रवर्तनीयता संदिग्ध है।

गोपनीयता के अधिकार और GAI के संबंध में चुनौतियाँ क्या हैं?

  • के. एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2018) के ऐतिहासिक मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।
  • इसके परिणामस्वरूप डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 (DPDP)अधिनियमित हुआ।
  • DPDP अधिनियम में ‘भूल जाने का अधिकार’ और ‘मिटाने का अधिकार’ का प्रावधान है।
  • हालाँकि, एक बार जब GAI मॉडल को डेटासेट पर प्रशिक्षित कर दिया जाता है, तो वह अपने द्वारा अवशोषित की गई सूचना को भूल नहीं सकता।
  • अतः प्रश्न यह है कि जब डेटा को एक शक्तिशाली AI मॉडल के ढाँचे में बुना गया है, तो व्यक्ति उस पर नियंत्रण कैसे कर सकता है।

आगे का रास्ता क्या हो सकता है?

  • सबसे पहले, हमें GAI प्लेटफॉर्मों को अस्थायी प्रतिरक्षा प्रदान करने पर विचार करना चाहिये।
  • इससे विधिक मुद्दों की पहचान करने के लिये डेटा एकत्र करने में मदद मिलेगी, जिससे भविष्य के विधानों एवं विनियमों के लिये आवशयक सूचना मिल सकेगी।
  • दूसरा, AI द्वारा डेटा अधिग्रहण की प्रक्रिया में व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता है।
  • डेवलपर्स को प्रशिक्षण मॉडलों में प्रयुक्त बौद्धिक संपदा के लिये उचित लाइसेंसिंग और क्षतिपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी।
  • इस समाधान में डेटा स्वामियों के साथ राजस्व साझाकरण या लाइसेंसिंग व्यवस्था शामिल हो सकती है।
  • तीसरा, गेटी इमेजेस जैसी स्टॉक फोटो वेबसाइटों के समान केंद्रीकृत प्लेटफॉर्मों का निर्माण किया जा सकता है, जो लाइसेंसिंग को सरल बनाते हैं और डेवलपर्स के लिये आवश्यक डेटा तक पहुँच को सुव्यवस्थित करते हैं।

निष्कर्ष:

GAI से जुड़ा न्यायशास्त्र जटिलता एवं अस्पष्टताओं से भरा हुआ है। वर्तमान डिजिटल न्यायशास्त्र का व्यापक पुनर्मूल्यांकन होना चाहिये। देश के संवैधानिक न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा हो।