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आपराधिक कानून

हेट स्पीच संबंधी दिशानिर्देश अस्वीकृत

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 18-Nov-2024

स्रोत: द टाइम्स ऑफ इंडिया

परिचय

भारत के उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया, जिसमें राजनीतिक नेताओं द्वारा हेट स्पीच को रोकने के लिये दिशानिर्देश मांगे गए थे। हिंदू सेना समिति द्वारा दायर की गई जनहित याचिका में विभिन्न राजनीतिक हस्तियों द्वारा दिये गए भड़काऊ कथनों के बारे में चिंता जताई गई थी, जो कथित तौर पर सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा थे। न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण अंतर करते हुए स्पष्ट किया कि हेट स्पीच को केवल गलत बयान या झूठे दावे करने के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिये। यह निर्णय तब आया जब उच्चतम न्यायालय पहले से ही शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत संघ मामले के तहत हेट स्पीच से संबंधित कई मामलों को संभाल रहा है।

जनहित याचिका के तहत क्या मुद्दा उठाया गया था?

  • हिंदू सेना समिति ने अपने अध्यक्ष सुरजीत सिंह यादव के माध्यम से जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने उन "भड़काऊ सार्वजनिक भाषणों" पर चिंता व्यक्त की थी, जिनसे कथित तौर पर राज्य की सुरक्षा और संप्रभुता को खतरा था।
  • याचिका में विशेष रूप से इंदौर (8 अगस्त, 2024) में कॉन्ग्रेस विधायक सज्जन सिंह वर्मा द्वारा दिये गए कथनों को उजागर किया गया था, जिसमें उन्होंने श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे संभावित जन विद्रोहों के बारे में कहा था।
  • इसमें भारतीय किसान यूनियन (BKU) के प्रवक्ता राकेश टिकैत द्वारा मेरठ में (21 अगस्त, 2024) किसानों के विरोध प्रदर्शन और उनके संभावित प्रसार के संबंध में दिये गए कथनों का भी संदर्भ दिया गया था।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने विभिन्न अनुतोष मांगे जिनमें शामिल थे:
    • भड़काऊ भाषणों को विनियमित करने और रोकने के लिये दिशानिर्देश।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा उत्पन्न करने वाले वक्ताओं और संगठनों के विरुद्ध कार्रवाई।
    • राजनेताओं और राजनीतिक संगठनों के लिये अनिवार्य प्रशिक्षण कार्यक्रम।
    • भड़काऊ सार्वजनिक भाषणों से संबंधित घटनाओं की स्वतंत्र जाँच।
  • याचिका में शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत संघ (2022) और अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ (2021) मामलों में उच्चतम न्यायालय के पिछले आदेशों का हवाला दिया गया, जिसमें हेट स्पीच के विरुद्ध स्वत: संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करने का आदेश दिया गया था।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने भड़काऊ भाषणों को रोकने के लि येसक्रिय कदम उठाने की मांग की, क्योंकि इनसे सामाजिक अशांति फैल सकती है और देश का सामाजिक ताना-बाना कमज़ोर हो सकता है।
  • उन्होंने सार्वजनिक भाषण पर कानूनी प्रतिबंधों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये राजनीतिक प्रतिनिधियों के लिये शैक्षिक कार्यक्रमों और अभिविन्यास सत्रों की आवश्यकता पर भी बल दिया।
    याचिका में वैध राजनीतिक विमर्श और राष्ट्रीय सुरक्षा या सामाजिक सद्भाव को खतरा पहुँचाने वाले भाषण के बीच अंतर करने के लिये एक स्पष्ट रूपरेखा स्थापित करने की मांग की गई है।

जनहित याचिका में याचिकाकर्त्ताओं द्वारा मांगे गए अनुतोष क्या हैं?

  • दिशानिर्देश निर्माण:
    • याचिकाकर्त्ताओं ने न्यायालय से अनुरोध किया कि वह प्रतिवादियों को भड़काऊ भाषणों को विनियमित करने और रोकने के लिये नियम, विनियम या दिशानिर्देश बनाने का निर्देश दे, जो राज्य की संप्रभुता और सुरक्षा को खतरे में डाल सकते हैं।
  • दंडात्मक कार्रवाई:
    • उन्होंने भारत की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरा पहुँचाने वाली गतिविधियों में संलिप्त वक्ताओं और संगठनों के विरुद्ध प्रासंगिक दंडात्मक कानूनों के तहत उचित कार्रवाई के लिये निर्देश देने की मांग की।
  • जाँच का अनुरोध:
    • भड़काऊ सार्वजनिक भाषणों की घटनाओं की स्वतंत्र, विश्वसनीय और निष्पक्ष जाँच, न्यायालय की निगरानी में समयबद्ध तरीके से किये जाने की मांग की गई।
  • अवमानना की कार्यवाही:
    • याचिकाकर्त्ताओं ने संबंधित प्रतिवादियों के विरुद्ध न्यायालय की अवमानना ​​अधिनियम, 1971 के तहत अवमानना की ​​कार्यवाही शुरू करने के लिये निर्देश देने का अनुरोध किया।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम:
    • उन्होंने भाषण प्रतिबंधों को बेहतर ढंग से समझने के लिये राजनेताओं और राजनीतिक गतिविधियों में लगे संगठनों के सदस्यों के लिये अनिवार्य प्रशिक्षण कार्यक्रम की मांग की।
  • स्पष्टीकरण की आवश्यकता:
    • विलग होने से संबंधित कथनों, विशेष रूप से श्रीलंका और बांग्लादेश के साथ समानताएँ दर्शाने वाले कथनों के स्पष्टीकरण और औचित्य की मांग करते हुए एक निर्देश मांगा गया था।
  • विशिष्ट प्रतिबंध:
    • याचिका में विशेष रूप से राकेश टिकैत को एक शपथ-पत्र दायर करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया जिसमें यह कहा गया हो कि वह किसानों के विरोध प्रदर्शन को संबोधित नहीं करेंगे या उसमें भाग नहीं लेंगे।
  • सामान्य प्राधिकरण:
    • याचिकाकर्त्ताओं ने न्यायालय से अनुरोध किया कि मामले की परिस्थितियों को देखते हुए वह कोई अन्य आदेश पारित करे जो वह उचित समझे।
  • निवारक उपाय:
    • उन्होंने ऐसे भड़काऊ भाषणों को रोकने के लिये सक्रिय उपायों और तंत्रों की मांग की जो संभावित रूप से हिंसा भड़का सकते हैं या सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ सकते हैं।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • प्राथमिक अंतर: न्यायालय ने यह कहते हुए एक महत्त्वपूर्ण अंतर किया कि हेट स्पीच विशिष्ट होता है और इसे गलत कथनों या झूठे दावों के समान नहीं माना जा सकता। इसने भड़काऊ हेट स्पीच और केवल गलत कथनों के बीच एक स्पष्ट कानूनी सीमा स्थापित की।
  • मौजूदा मामले का उदहारण: न्यायालय ने कहा कि वह पहले से ही शाहीन अब्दुल्ला मामले में हेट स्पीच के मुद्दों की जाँच कर रहा था, तथा यह दर्शाता है कि इस नई जनहित याचिका के माध्यम से नए दिशा-निर्देशों या हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।
  • अधिकारिता और उपाय: न्यायालय ने कहा कि यदि याचिकाकर्त्ताओं की कोई विशिष्ट शिकायत है, तो उन्हें संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत व्यापक हस्तक्षेप की मांग करने के बजाय उचित कानूनी माध्यमों से इसे उठाना चाहिये।
  • अवमानना ​​नोटिस: मुख्य न्यायाधीश खन्ना ने स्पष्ट किया कि एक या दो लंबित आवेदनों को छोड़कर, न्यायालय ने उन मामलों में अवमानना ​​नोटिस जारी नहीं किया है जिन पर वे विचार कर रहे हैं, तथा उन्होंने प्रवर्तन के बारे में याचिकाकर्त्ता की चिंताओं का समाधान किया।
  • समीक्षा का दायरा: न्यायालय ने पाया कि "हेट स्पीच क्या होती है, यह समझे बिना ही याचिका दायर की गई", जिससे हेट स्पीच की कानूनी अवधारणा की केंद्रित समझ का अभाव प्रतीत होता है।
  • पूर्व निर्देश: न्यायालय ने राज्य सरकारों को हेट स्पीच अपराधों के विरुद्ध स्वप्रेरणा से कार्रवाई करने के बारे में दिये गए अपने पूर्व निर्देशों का संदर्भ दिया, चाहे वक्ता का धर्म कुछ भी हो, जो अभी भी प्रभावी हैं।
  • कानूनी ढाँचा: न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि मौजूदा कानूनी प्रावधान (भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धाराएँ 153A, 153B, 295A और 506) हेट स्पीच अपराधों से निपटने के लिये पर्याप्त हैं, तथा अतिरिक्त दिशानिर्देशों की कोई आवश्यकता नहीं है।
  • समयसीमा पर विचार: न्यायालय ने टिप्पणी की कि याचिका में "लंबी अवधि में कथित कथनों" का उल्लेख किया गया है, तथा यह इंगित किया कि ऐसे ऐतिहासिक उदाहरणों को जनहित याचिका की अधिकारिता के बजाय नियमित कानूनी चैनलों के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिये।

संदर्भित मामले

  • शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत संघ (2022):
    • प्राथमिक मामला हेट स्पीच के मुद्दों से संबंधित है।
    • राज्य सरकारों को हेट स्पीच अपराधों के विरुद्ध स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया।
    • यह निर्दिष्ट किया गया कि वक्ता के धर्म की परवाह किये बिना कार्रवाई की जानी चाहिये।
    • चेतावनी दी गई कि अननुपालन को न्यायालय की अवमानना ​​माना जाएगा।
  • अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ (2021):
    • शाहीन अब्दुल्ला मामले में दिये गए निर्देशों को आगे बढ़ाया गया।
    • सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस बलों को हेट स्पीच से संबंधित अपराधों में स्वतः FIR दर्ज करने का आदेश दिया गया।
    • विशेष रूप से IPC की धारा 153A, 153B, 295A और 506 के तहत अपराधों से निपटा गया।
    • औपचारिक शिकायतों की प्रतीक्षा किये बिना कार्रवाई करने की आवश्यकता।

भारतीय कानून के तहत हेट स्पीच का प्रावधान

  • संवैधानिक रूपरेखा:
    • भारतीय कानून में "हेट स्पीच" की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं है।
    • अनुच्छेद 19(1)(a): भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
    • अनुच्छेद 19(2): सार्वजनिक व्यवस्था, सुरक्षा और नैतिकता के लियुए उचित प्रतिबंधों की अनुमति देता है।
  • BNS (भारतीय न्याय संहिता, 2023)
    • धारा 196:
      • कोई भी कार्य जो सार्वजनिक शांति को भंग करता है या विभिन्न समूहों (धार्मिक, नस्लीय, भाषाई, क्षेत्रीय समूह, जाति, समुदाय) के बीच सद्भाव को नुकसान पहुँचाता है, जिसमें ऐसे समूहों के विरुद्ध हिंसा का उपयोग करने के लिये लोगों को प्रशिक्षित करने वाली गतिविधियों का आयोजन/भागीदारी शामिल है, दंडनीय है।
      • धर्म, नस्ल, जन्म स्थान, निवास, भाषा, जाति, समुदाय या किसी अन्य आधार पर किसी भी माध्यम (मौखिक, लिखित, इलेक्ट्रॉनिक, संकेत) के माध्यम से वैमनस्य या शत्रुता को बढ़ावा देना 3 वर्ष तक के कारावास और/या जुर्माने से दंडनीय है।
      • यदि ये अपराध पूजा स्थलों या धार्मिक समारोहों के दौरान किये जाते हैं, तो सज़ा को बढ़ाकर 5 वर्ष तक कारावास और जुर्माना किया जाता है।
    • धारा 197:
      • किसी भी धार्मिक, नस्लीय, भाषाई, क्षेत्रीय समूह, जाति या समुदाय के सदस्यों पर यह आरोप लगाना या प्रकाशित करना कि वे भारत के संविधान में सच्ची आस्था नहीं रख सकते या भारत की संप्रभुता को कायम नहीं रख सकते, 3 वर्ष तक के कारावास और/या जुर्माने से दंडनीय है।
      • ऐसा कथन देना या विषय-वस्तु प्रकाशित करना जो किसी समूह को उसकी धार्मिक, नस्लीय, भाषाई, क्षेत्रीय, जातिगत या सामुदायिक पहचान के आधार पर नागरिकता के अधिकारों से वंचित करने का सुझाव देता हो, या ऐसी विषय-वस्तु प्रकाशित करना जो ऐसे समूहों के बीच वैमनस्य/शत्रुता उत्पन्न करती हो, निषिद्ध है।
      • यदि ये अपराध (भारत की संप्रभुता, एकता, अखंडता या सुरक्षा को खतरे में डालने वाली झूठी/भ्रामक सूचना देना सहित) पूजा स्थलों या धार्मिक समारोहों के दौरान किये जाते हैं, तो सज़ा को बढ़ाकर 5 वर्ष कारावास और जुर्माना कर दिया जाता है।
  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत:
    • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA) की धारा 8: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अवैध उपयोग के दोषी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोकती है।
    • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123(3A) और 125: चुनावों के संदर्भ में नस्ल, धर्म, समुदाय, जाति या भाषा के आधार पर शत्रुता को बढ़ावा देने पर रोक लगाती है और इसे भ्रष्ट चुनावी प्रथाओं के अंतर्गत शामिल करती है।

निष्कर्ष

न्यायालय के निर्णय में कहा गया है कि सभी विवादास्पद या गलत कथन हेट स्पीच के रूप में योग्य नहीं हैं, जो एक विशिष्ट कानूनी अपराध है। इस विशेष जनहित याचिका को खारिज करते हुए, न्यायालय ने कहा कि हेट स्पीच से संबंधित मौजूदा मामले पहले से ही विचाराधीन हैं। निर्णय में सुझाव दिया गया है कि जिन लोगों को विशिष्ट शिकायतें हैं, उन्हें व्यापक नए दिशा-निर्देशों की तलाश करने के बजाय उचित कानूनी चैनलों के माध्यम से उन्हें आगे बढ़ाना चाहिये। यह निर्णय विवादास्पद राजनीतिक बयानबाज़ी और वास्तविक हेट स्पीच के बीच की सीमाओं को स्पष्ट करने में सहायता करता है।