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सांविधानिक विधि

भारतीय एवं अमरीकी सुप्रीम कोर्ट में न्यायिक असहमति

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 02-Jan-2025

स्रोत: द हिंदू

परिचय

भारतीय उच्चतम न्यायालय और अमरीकी सुप्रीम कोर्ट में न्यायिक असहमति के मध्य का अंतर इस तथ्य का उपयुक्त निर्वचन ऐसे करता है कि विभिन्न लोकतांत्रिक प्रणालियाँ न्यायिक असहमति के प्रति किस प्रकार दृष्टिकोण रखती हैं। जबकि दोनों न्यायालय असहमतिपूर्ण राय को लोकतांत्रिक संवाद के लिये आवश्यक मानते हैं, लेकिन उनकी अंतर्निहित प्रेरणाएँ बहुत भिन्न हैं - अमरीकी सुप्रीम कोर्ट की असहमति अक्सर राष्ट्रपति की नियुक्तियों के आधार पर स्पष्ट राजनीतिक विभाजन को दर्शाती है, जबकि भारतीय उच्चतम न्यायालय की असहमति राजनीतिक, सामाजिक एवं विशुद्ध रूप से बौद्धिक असहमति सहित व्यापक स्पेक्ट्रम को शामिल करती है। यह अंतर मुख्य रूप से उनकी अलग-अलग न्यायिक नियुक्ति प्रक्रियाओं से उत्पन्न हुआ है, जहाँ अमरीकी न्यायाधीश राजनीतिक नियुक्तियाँ हैं जबकि भारतीय न्यायाधीश वरिष्ठ न्यायाधीशों की कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से चुने जाते हैं।

अमेरिका और भारत में सुप्रीम कोर्ट के मामलों में उल्लेखनीय असहमतिपूर्ण राय क्या हैं?

अमेरीकी सुप्रीम कोर्ट

  • ग्लॉसिप बनाम ग्रॉस (2015)
    • डेमोक्रेटिक न्यायमूर्ति स्टीफन ब्रेयर ने असहमति व्यक्त की।
    • उन्होंने तर्क दिया कि मृत्युदण्ड देने अधिकार विधेयक के आठवें संशोधन का उल्लंघन करता है, जो अमानवीय एवं अपमानजनक दण्ड को रोकता है।
    • यह उनके मृत्युदण्ड के विरुद्ध अनवरत अभिव्यक्ति को दर्शाता है।
  • ओबरगेफेल बनाम होजेस (2015)
    • रिपब्लिकन न्यायाधीश सैमुअल एलिटो ने असहमति व्यक्त की।
    • यह मामला समलैंगिक विवाह अधिकारों से संबंधित था।
    • उन्होंने तर्क दिया कि संविधान में समलैंगिक विवाह अधिकारों का विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया है।
    • यह समलैंगिक अधिकारों पर उनके रूढ़िवादी अभिव्यक्ति को दर्शाता है।

भारतीय उच्चतम न्यायालय

  • ADM जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला (1976):
    • मामले का सारांश
      • इस मामले को "बंदी प्रत्यक्षीकरण मामला" के नाम से भी जाना जाता है।
      • विधि का शासन की चर्चा करें तो यह सबसे महत्त्वपूर्ण मामलों में से एक है। माननीय न्यायालय के समक्ष यह प्रश्न रखा गया कि क्या भारत में भारतीय संविधान में अनुच्छेद 21 के अतिरिक्त अन्य अनुच्छेद में विधि का शासन उल्लिखित है।
    • न्यायाधीशों की असहमति:
      • चार न्यायाधीशों की पीठ ने अनुच्छेद 359 के अंतर्गत मौलिक अधिकारों को निलंबित करने का समर्थन किया।
      • न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना ने अकेले असहमति व्यक्त की।
      • उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 21 को निलंबित करने से जीवन एवं स्वतंत्रता की कोई सुरक्षा नहीं रहेगी।
      • उनका असहमतिपूर्ण दृष्टिकोण बाद में संवैधानिक संशोधन के द्वारा विधान बन गया।
  • पी. वी. नरसिम्हा राव बनाम राज्य (1998)
    • मामले का सारांश
      • पी. वी. नरसिम्हा राव मामला 1991 में दसवीं लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान रिश्वतखोरी के आरोप से संबंधित था।
      • तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव पर अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध वोट प्राप्त करने के लिये आपराधिक षड़यंत्र रचने का आरोप लगा था।
      • JMM और जनता दल (अजीत सिंह समूह) के सदस्यों को कथित तौर पर अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध वोट देने के लिये रिश्वत दी गई थी।
      • इसके बाद एक अभियोजन पक्ष ने रिश्वतखोरी के आरोपों के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 105 के अंतर्गत संसद सदस्यों (MPs) की प्रतिरक्षा पर आपत्ति दर्ज किया।
      • इस ऐतिहासिक मामले ने रिश्वतखोरी के लिये आपराधिक वाद के संबंध में संसदीय प्रतिरक्षा के दायरे एवं इसकी सीमाओं को स्पष्ट किया।
    • न्यायाधीशों की असहमति:
      • मुद्दा: क्या संसद में मतदान के लिये रिश्वत लेना संसदीय विशेषाधिकार के अंतर्गत संरक्षित है?
      • बहुमत ने सहमति व्यक्त किया, अभियोजन से उन्मुक्ति प्रदान की गई।
      • न्यायमूर्ति एस.सी. अग्रवाल एवं ए.एस. आनंद ने असहमति व्यक्त की।
      • बाद में सीता सोरेन (2023) मामले में उनके असहमतिपूर्ण दृष्टिकोण को मान्य किया गया।
      • न्यायालय ने अंततः उन्मुक्ति के विस्तारित दृष्टिकोण को अमान्य कर दिया।
  • शायरा बानो बनाम भारत संघ एवं अन्य (2017)
    • मामले का सारांश:
      • उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुए कहा कि तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत असंवैधानिक एवं स्पष्ट रूप से मनमाना है।
      • बहुमत ने माना कि तीन तलाक की प्रथा संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत अपवाद द्वारा संरक्षित नहीं है।
    • न्यायाधीशों की असहमति:
      • मामला तीन तलाक की संवैधानिक वैधता से संबंधित था।
      • बहुमत ने इसे मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए अमान्य कर दिया।
      • न्यायमूर्ति जे.एस. खेहर एवं अब्दुल नजीर ने असहमति व्यक्त की।
      • उन्होंने तर्क दिया कि तीन तलाक सुन्नी पर्सनल लॉ का अभिन्न अंग है।
      • उनका मानना ​​था कि धार्मिक प्रथाओं में केवल विधायिका ही हस्तक्षेप कर सकती है।
  • ऐशत शिफ़ा. बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य (2022)
    • मामले का सारांश:
      • न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता एवं न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने इस मुद्दे पर खंडित निर्णय दिया।
      • न्यायमूर्ति धूलिया ने प्रतिबंध को असंवैधानिक करार दिया, जबकि न्यायमूर्ति गुप्ता ने प्रतिबंध को यथावत रखा।
      • इस मामले पर उच्चतम न्यायालय की बड़ी पीठ द्वारा निर्णय लिया जाना है।
    • न्यायाधीशों की असहमति:
      • सरकारी स्कूलों में हिजाब पहनने का मामला।
      • औपचारिक असहमति नहीं बल्कि दो खंडित राय।
      • न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने समान ड्रेस कोड लागू करने के राज्य के अधिकार का समर्थन किया।
      • न्यायमूर्ति धूलिया ने विविधता एवं सहिष्णुता पर बल देते हुए इससे असहमति व्यक्त की ।
      • धर्मनिरपेक्षता के अलग-अलग निर्वचन को प्रस्तुत किया गया।
  • उत्तर प्रदेश राज्य बनाम लालता प्रसाद वैश्य (2024)
    • मामले का सारांश:
      • यह मामला राज्यों और संघ के बीच संवैधानिक विवाद के आस पास घूमता है कि औद्योगिक शराब/विकृत शराब को विनियमित करने का अधिकार किसके पास है।
      • उच्चतम न्यायालय के नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 8:1 से निर्णय दिया कि राज्यों के पास विकृत शराब या औद्योगिक शराब को विनियमित करने का अधिकार है, तथा राज्य सूची की प्रविष्टि 8 के अनुसार इसे "मादक शराब" के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है।
        • बहुमत की राय में यह माना गया कि इस शब्द को संकीर्ण रूप से निर्वाचित नहीं किया जाना चाहिये, जिसमें ऐसे पदार्थ भी शामिल हैं जिनका मानव उपभोग के लिये दुरुपयोग किया जा सकता है।
        • असहमति में, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने तर्क दिया कि औद्योगिक शराब विशेष रूप से मानव उपभोग के लिये नहीं है, उन्होंने "नशीली शराब" शब्द का अलग-अलग निर्वचन प्रस्तुत किया।
    • न्यायाधीशों की असहमति:
      • औद्योगिक शराब पर कर लगाने का मामला।
      • आठ न्यायाधीशों ने औद्योगिक शराब पर कर लगाने के राज्यों के अधिकार का समर्थन किया।
      • न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने अकेले असहमति व्यक्त की।
      • असहमति "नशीली शराब" के निर्वचन पर केंद्रित थी।
      • संवैधानिक निर्वचन के विषय में विशुद्ध बौद्धिक असहमति।

निष्कर्ष

भारतीय उच्चतम न्यायालय में असहमति की विभिन्न प्रकृति - चाहे वह ADM जबलपुर के समान राजनीतिक हो, शायरा बानो की तरह सामाजिक हो, या तात्कालिक औद्योगिक शराब मामले की तरह बौद्धिक हो - न्यायिक असहमति के प्रति न्यायालय के बहुआयामी दृष्टिकोण को प्रदर्शित करती है। अमरीकी सुप्रीम कोर्ट के अधिक राजनीतिक रूप से संरेखित असहमति के विपरीत, भारतीय न्यायिक असहमति संवैधानिक निर्वचन, सामाजिक समझ एवं बौद्धिक विमर्श के जटिल अंतर्संबंध को दर्शाती है। असहमतिपूर्ण विचारों में इस विविधता ने न केवल भारत के न्यायिक परिदृश्य को समृद्ध किया है, बल्कि कई मामलों में, भविष्य के विधिक विकास को भी आकार दिया है जब ये अल्पसंख्यक विचार अंततः बाद के निर्णयों या विधायी संशोधनों के माध्यम से बहुमत की स्थिति बन गए।