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अंतर्राष्ट्रीय कानून
"कैंसल कोल" केस पर ऐतिहासिक निर्णय
«07-Jan-2025
स्रोत: द हिंदू
परिचय
"कैंसल कोल" केस (2023) के मामले में, अफ्रीकन क्लाइमेट अलायंस, वुकानी एनवायरमेंटल जस्टिस मूवमेंट और ग्राउंडवर्क ट्रस्ट नामक युवा नागरिक संगठनों ने कोयला आधारित बिजली उत्पादन का विस्तार करने की दक्षिण अफ्रीकी सरकार की योजना के विरुद्ध विधिक कार्यवाही की। वादी ने सरकार की 2019 एकीकृत संसाधन योजना (IRP) को चुनौती दी, जिसमें राष्ट्रीय ग्रिड में 1,500 मेगावाट कोयला बिजली उत्पादन का प्रस्ताव था, यह तर्क देते हुए कि यह संवैधानिक सुरक्षा का उल्लंघन करता है, विशेष रूप से पर्यावरण अधिकारों एवं भावी पीढ़ियों के हितों के संबंध में एक ऐतिहासिक निर्णय। दक्षिण अफ्रीका के उच्च न्यायालय ने नए कोयला आधारित बिजलीघरों के लिये सरकार की योजनाओं को असंवैधानिक मानते हुए अपास्त कर दिया है।
कैंसल कोल मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अक्टूबर 2019 में, दक्षिण अफ़्रीकी सरकार ने अपने एकीकृत संसाधन योजना में राष्ट्रीय ग्रिड में 1,500 मेगावाट कोयला बिजली बढ़ाने की योजना की घोषणा की (2023 तक 750 मेगावाट और 2027 तक 750 मेगावाट)।
- तीन युवा नागरिक संगठनों - अफ्रीकन क्लाइमेट अलायंस, वुकानी एनवायरमेंटल जस्टिस मूवमेंट और ग्राउंडवर्क ट्रस्ट ने वर्ष 2021 में इस योजना के विरुद्ध अपील की।
- नागरिक संगठनों ने तर्क दिया कि कोयला आधारित विद्युतगृह के विस्तार से पर्यावरण को हानि पहुंचेगी तथा स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होंगी, विशेषकर बच्चों की सेहत पर असर पड़ेगा।
- दक्षिण अफ्रीका वर्तमान में उर्जा के क्षेत्र में कोयले पर बहुत अधिक निर्भर है, वर्ष 2022 तक इसकी कुल ऊर्जा आपूर्ति का लगभग 71% कोयला बिजली से आएगा।
- देश ने पेरिस समझौते के लिये प्रतिबद्धता जताई है तथा वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 350-420 मिलियन टन की कटौती करने की योजना बनाई है, जिसका लक्ष्य 2050 तक नेट-जीरो करना है।
- प्रिटोरिया के उच्च न्यायालय ने 4 दिसंबर, 2023 को निर्णय दिया कि सरकार की कोयला विस्तार योजना असंवैधानिक थी।
- न्यायालय ने विनिश्चय किया कि खनिज संसाधन एवं ऊर्जा मंत्री तथा राष्ट्रीय ऊर्जा विनियामक यह साक्ष्य देने में विफल रहे कि उन्होंने पर्यावरण एवं स्वास्थ्य प्रभावों पर विचार किया था।
- यह निर्णय दक्षिण अफ्रीका के संविधान पर आधारित था, जो नागरिकों को वर्तमान एवं भावी पीढ़ियों के लिये पर्यावरण की सुरक्षा के अधिकार की गारंटी देता है।
- यह मामला दक्षिण अफ्रीका में पर्यावरण न्याय एवं जलवायु संबंधी वाद के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक जीत माना जाता है।
न्यायालय की टिप्पणी क्या थी?
- न्यायालय ने विनिश्चय किया कि सरकार की कोयला आधारित विद्युत गृह की विस्तार योजना "दक्षिण अफ्रीका गणराज्य के संविधान के साथ असंगत" थी तथा इसलिये गैरविधिक थी।
- खनिज संसाधन एवं ऊर्जा मंत्री और राष्ट्रीय ऊर्जा नियामक यह सिद्ध करने के लिये पर्याप्त साक्ष्य देने में विफल रहे कि उन्होंने पर्यावरणीय प्रभावों पर विचार किया था।
- न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि अधिकारियों ने कोयला बिजली के स्वास्थ्य प्रभावों, विशेष रूप से बच्चों के हित पर, की पर्याप्त जाँच नहीं की।
- निर्णय में कहा गया है कि सरकार निर्णय लेने में "अपने संवैधानिक दायित्वों का पालन करने" में विफल रही।
- न्यायालय ने दक्षिण अफ़्रीकी नागरिकों के "वर्तमान एवं भावी पीढ़ियों के लाभ के लिये पर्यावरण को संरक्षित रखने" के संवैधानिक अधिकार को यथावत रखा।
- निर्णय में दक्षिण अफ़्रीकी संविधान की धारा 28 का उल्लेख किया गया है, जिसके अनुसार राज्य को बच्चों को "उपेक्षा एवं अवनति" से बचाना आवश्यक है।
- न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि सरकार के निर्णय केवल तात्कालिक अल्पकालिक आवश्यकताओं पर आधारित नहीं होने चाहिये, बल्कि दीर्घकालिक समग्र प्रभावों पर विचार करना चाहिये।
- इस निर्णय में मान्यता दी गई कि ऊर्जा नियोजन के निर्णय संविधान के तहत देश के पर्यावरण संरक्षण दायित्वों के अनुरूप होने चाहिये।
कैंसलकोल केस क्यों महत्त्वपूर्ण है?
- स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- दक्षिण अफ्रीका में कोयला आधारित विद्युत गृह के कारण हर वर्ष 2,200 से ज़्यादा मौतें होती हैं
- कोयला संयंत्रों के आस-पास के स्थानीय निवासी दूषित वायु गुणवत्ता के कारण गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं
- वयस्कों एवं बच्चों दोनों में ब्रोंकाइटिस एवं अस्थमा के हज़ारों मामले सामने आते हैं।
- स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के कारण दक्षिण अफ़्रीका को अस्पताल में भर्ती होने और कार्य के दिनों के हानि के कारण प्रतिवर्ष 30 बिलियन रैंड से ज़्यादा की क्षति कारित होती है।
- आर्थिक कारणों की दृष्टि से:
- नए कोयला संयंत्रों के निर्माण एवं रखरखाव के लिये काफी समय एवं धन की आवश्यकता होती है।
- इससे सभी उपभोक्ताओं के लिये बिजली की लागत बढ़ जाती है।
- अक्षय ऊर्जा अधिक लागत प्रभावी एवं शीघ्रता से लागू होने वाला विकल्प प्रदान करती है।
- रोजगार संबंधी चिंताएँ:
- कोयला आधारित उद्योग के श्रमिकों को नौकरी जाने का खतरा बढ़ रहा है।
- श्रमिकों को अस्वस्थ कार्य स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।
- नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र एवं हरित अर्थव्यवस्था संभावित रूप से कोयले की तुलना में अधिक रोजगार के अवसर पैदा कर सकती है।
- इस बदलाव के लिये श्रमिकों की सुरक्षा के लिये सावधानीपूर्वक योजना बनाने की आवश्यकता है।
- जलवायु पर प्रभाव:
- कोयला जलवायु परिवर्तन में एक प्रमुख योगदानकर्त्ता है।
- इसके परिणामस्वरूप हानिप्रद मौसमी घटनाएँ होती हैं जो समुदाय के लिये ख़तरा बनती हैं।
- स्थायी ऊर्जा विकल्पों के माध्यम से उत्सर्जन को कम करना महत्त्वपूर्ण है।
- जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये अंतर-पीढ़ीगत उत्तरदायित्व होता है।
कोयले से नवीकरणीय ऊर्जा में स्विच करने के संबंध में भारत की स्थिति क्या है?
- एम.के. रंजीत सिंह बनाम भारत संघ (2024) मामले में कोयले से, पवन एवं सौर जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर स्विच करने की आवश्यकता को दर्शाया गया है।
- पहली बार, तीन भारतीय मंत्रालयों- विद्युत मंत्रालय, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय- ने संयुक्त रूप से इस मामले पर उच्चतम न्यायालय में एक शपथपत्र प्रस्तुत किया।
- भारत सरकार का आधिकारिक विचार है कि कोयले से दूसरी उर्जा स्रोतों पर स्विच करना दो प्राथमिक कारणों से आवश्यक है: स्वच्छ हवा सुनिश्चित करना और पेरिस समझौते के अंतर्गत प्रतिबद्धताओं को पूरा करना।
- पर्यावरणीय मामलों के अधिवक्ता ने कहा कि कोयला अल्पावधि में ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत बना रहेगा, लेकिन जलवायु परिवर्तन की गति को धीमा करने के लिये इससे दूर रहना महत्त्वपूर्ण है।
- भारत की स्थिति एक तुलनात्मक उदाहरण है कि कैसे वैश्विक स्तर पर न्यायालय कोयला से उत्पादित ऊर्जा से दूर जाने की आवश्यकता पर जोर दे रही हैं, बजाय इसके कि भारत को सीधे दक्षिण अफ्रीका के कैंसल कोल मामले से जोड़ा जाए।
- भारत का दृष्टिकोण वर्तमान ऊर्जा मांगों को अपने दीर्घकालिक पर्यावरणीय दायित्वों, सतत विकास के प्रति प्रतिबद्धता के साथ संतुलित करता है।
- यह स्वीकृति भारत के जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को कम करने में नवीकरणीय ऊर्जा की भूमिका को दर्शाती है।
निष्कर्ष
प्रिटोरिया के उच्च न्यायालय ने 4 दिसंबर 2023 को वादी के पक्ष में निर्णय दिया, जिसमें अभिनिर्णीत किया कि सरकार की कोयला विस्तार योजना असंवैधानिक थी तथा इसलिये अविधिक थी। न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि खनिज संसाधन एवं ऊर्जा मंत्री और राष्ट्रीय ऊर्जा नियामक पर्यावरणीय प्रभावों तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणामों, विशेष रूप से बच्चों के संवैधानिक अधिकारों के संबंध में पर्याप्त विचार प्रदर्शित करने में विफल रहे। यह ऐतिहासिक निर्णय एक महत्त्वपूर्ण विधिक उदाहरण प्रस्तुत करता है, जिसके अंतर्गत ऊर्जा नीति पर सरकारी निर्णयों में दीर्घकालिक पर्यावरणीय प्रभावों एवं अंतर-पीढ़ीगत न्याय पर विचार करना आवश्यक है, जैसा कि दक्षिण अफ्रीकी संविधान की धारा 28 द्वारा अनिवार्य है।