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सिविल कानून

मध्यस्थता अधिनियम, 2023

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 30-Sep-2024

स्रोत: द हिंदू 

परिचय:

हाल ही के मानसून सत्र में संसद के दोनों सदनों ने मध्यस्थता विधेयक, 2023 पारित किया और 15 सितंबर 2023 को भारत के राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के उपरांत इसे मध्यस्थता अधिनियम, 2023 के नाम से जाना जाएगा। इस विधान का उद्देश्य व्यक्तियों एवं व्यवसायियों को न्यायालय जाने से पूर्व मध्यस्थता के माध्यम से अपने विवादों को सुलझाने के लिये प्रोत्साहित करना है। मध्यस्थता, असहमत पक्षों के लिये न्यायालय में वाद संस्थित करने के स्थान पर एक तटस्थ व्यक्ति की सहायता से अपनी समस्याओं को हल करने का एक तरीका है। यह नया विधान, भारत में व्यावसायिक विवादों को हल करने के लिये एक सुगम एवं शीघ्र प्रक्रिया बनाने के एक बड़े प्रयास का भाग है।

मध्यस्थता क्या है? 

  • मध्यस्थता एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है, जिसमें विवाद करने वाले पक्ष मध्यस्थ नामक एक तटस्थ तीसरे पक्ष की सहायता से अपने विवादों को सुलझाने का प्रयास करते हैं।
  • मध्यस्थ किसी भी पक्ष पर समाधान नहीं थोपता बल्कि पक्षों के लिये स्वयं समाधान खोजने हेतु सहायक वातावरण तैयार करता है।
  • यह एक लचीली प्रक्रिया है, जिसमें कोई कठोर प्रक्रियागत नियम नहीं हैं, तथा यह पक्षों को खुले तौर पर संवाद करने तथा पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समझौते की दिशा में काम करने की अनुमति देती है।
  • मध्यस्थता वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) पद्धति का एक भाग है, जिसका उद्देश्य औपचारिक न्यायालयीय कार्यवाही के बाहर विवादों का निपटारा करना है।
  • भारत में मध्यस्थता की जड़ें पंचायत प्रणाली जैसी पारंपरिक प्रथाओं में निहित हैं और इसे हाल ही में पारित मध्यस्थता अधिनियम 2023 सहित विभिन्न विधानों के माध्यम से विधिक मान्यता प्राप्त है।

   मध्यस्थता अधिनियम 2023

  • विस्तार एवं अनुप्रयोग: 
    • यह अधिनियम भारत में आयोजित मध्यस्थता पर लागू होता है जहाँ:  
      • सभी या दोनों पक्ष भारत में निवास करते हैं या निगमित हैं। 
      • मध्यस्थता समझौता इस अधिनियम के अंतर्गत समाधान निर्दिष्ट करता है। 
      • यह एक अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता है।
      • एक पक्ष सरकारी इकाई है और यह वाणिज्यिक विवाद से संबंधित है। 
      • सरकार द्वारा अधिसूचित कोई अन्य विवाद। 
  • वाद-पूर्व मध्यस्थता: 
    • पक्षकार सिविल या वाणिज्यिक वाद दायर करने से पहले ही स्वेच्छा से वाद-पूर्व मध्यस्थता कर सकते हैं।
    • निर्दिष्ट मूल्य के वाणिज्यिक विवादों के लिये वाद-पूर्व मध्यस्थता अनिवार्य है।
    • वाद-पूर्व मध्यस्थता के लिये मध्यस्थों को मध्यस्थता परिषद के साथ पंजीकृत होना चाहिये या न्यायालय से संबद्ध मध्यस्थता केन्द्रों/विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा सूचीबद्ध होना चाहिये। 
  • मध्यस्थता प्रक्रिया: 
    • मध्यस्थता 120 दिनों के भीतर पूरी की जाएगी, जिसे पक्षों की सहमति से 60 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है। 
    • मध्यस्थ स्वतंत्र, तटस्थ और निष्पक्ष तरीके से पक्षों की सहायता करेगा।
    • मध्यस्थता कार्यवाही गोपनीय होती है। 
    • मध्यस्थता कार्यवाही की ऑडियो/वीडियो रिकॉर्डिंग की अनुमति नहीं है।
  • मध्यस्थता निपटान समझौता: 
    • पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित और मध्यस्थ द्वारा प्रमाणित मध्यस्थता समझौता अंतिम एवं बाध्यकारी होता है।
    • इसे केवल धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार, छद्मवेश अथवा मध्यस्थता के अयोग्य विवादों के आधार पर ही चुनौती दी जा सकती है।
    • चुनौती समझौता होने के 90 दिनों के भीतर दी जानी चाहिये।
  • भारतीय मध्यस्थता परिषद: 
    • मध्यस्थता को विनियमित करने और बढ़ावा देने के लिये एक निगमित निकाय के रूप में स्थापित।
    • इसके कार्यों में मध्यस्थ प्रमाणन, मध्यस्थों का पंजीकरण, मध्यस्थता संस्थानों को मान्यता देने आदि के लिये दिशा-निर्देश निर्धारित करना शामिल है।
  • ऑनलाइन मध्यस्थता: 
    • पक्षों की लिखित सहमति से आयोजित किया जा सकता है।
    • कार्यवाही की गोपनीयता एवं अखंडता सुनिश्चित की जाएगी।
  • सामुदायिक मध्यस्थता: 
    • किसी इलाके में शांति और सौहार्द को प्रभावित करने वाले विवादों के लिये।
    • 3 सामुदायिक मध्यस्थों का पैनल नियुक्त किया जाएगा।
    • निपटान समझौता न्यायालय के आदेश के रूप में लागू नहीं होगा।

मध्यस्थता अधिनियम 2023 के क्या लाभ हैं?

  • इस अधिनियम का उद्देश्य वाद-पूर्व मध्यस्थता को प्रोत्साहित करके भारतीय न्यायालयों पर भार को काफी कम करना, संभावित रूप से अनुपयुक्त दावों के दायर होने में कमी लाना तथा कुशल विवाद समाधान को बढ़ावा देना है।
  • यह मध्यस्थता के लिये एक व्यापक विधिक ढाँचा प्रदान करता है, जिसमें भारतीय मध्यस्थता परिषद की स्थापना भी शामिल है, जो देश भर में मध्यस्थता सेवाओं की विश्वसनीयता एवं व्यावसायिकता को बढ़ाता है।
  • यह अधिनियम मध्यस्थता निपटान समझौतों को न्यायालय के आदेशों का दर्जा प्रदान करता है, जिससे सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत उनकी प्रवर्तनीयता सुनिश्चित होती है, तथा इस प्रकार पक्षों को मध्यस्थता में संलग्न होने के लिये प्रोत्साहन प्राप्त होता है।
  • ऑनलाइन एवं सामुदायिक मध्यस्थता सहित मध्यस्थता के विभिन्न रूपों को मान्यता देकर और कार्यवाही की गोपनीयता सुनिश्चित करके, यह अधिनियम लचीले, लागत प्रभावी तथा संबंधों को सुरक्षित रखने वाले विवाद समाधान तरीकों को बढ़ावा देता है।
  • यह अधिनियम भारत को वैकल्पिक विवाद समाधान में अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं के अनुरूप बनाता है, जिससे संभवतः भारत वाणिज्यिक विवाद समाधान के लिये एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित हो सकेगा। 

मध्यस्थता अधिनियम, 2023 किस प्रकार संस्थागत मध्यस्थता को बढ़ावा देगा और भारत को विवाद समाधान के लिये वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करेगा?

  • मध्यस्थता अधिनियम, 2023 भारत में संस्थागत मध्यस्थता पर ज़ोर देता है, जो मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम में हाल के संशोधनों को प्रतिबिंबित करता है, जिसमें विवाद समाधान के लिये संस्थागत मध्यस्थता को प्राथमिकता दी गई है।
  • अधिनियम में "मध्यस्थता सेवा प्रदाताओं" की अवधारणा प्रस्तुत की गई है, जो न केवल मध्यस्थ सेवाएँ प्रदान करने के लिये अधिकृत संस्थाएँ हैं, बल्कि कुशल मध्यस्थता कार्यवाही के लिये आवश्यक सुविधाएँ, सचिवीय सहायता और मूलभूत ढाँचा भी प्रदान करने के लिये अधिकृत हैं।
  • ये मध्यस्थता सेवा प्रदाता मध्यस्थता संस्थाओं के अनुरूप हैं, जो मध्यस्थता के लिये एक समानांतर संरचना का निर्माण करते हैं जो भारत में संस्थागत मध्यस्थता के लिये स्थापित ढाँचे के अनुरूप है। 
  • भारत में कई मौजूदा मध्यस्थता संस्थाएँ, जो पहले से ही वैश्विक मानकों के अनुरूप मध्यस्थता सेवाएँ प्रदान कर रही हैं, से इस नए अधिनियम के अंतर्गत भारत के मध्यस्थता परिदृश्य को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है। 
  • संस्थागत मध्यस्थता एवं मध्यस्थता दोनों को सुदृढ़ कर, इस अधिनियम का उद्देश्य भारत को वाणिज्यिक विवाद समाधान के लिये एक व्यापक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना है, जिसमें विभिन्न वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र शामिल हैं।

मध्यस्थता अधिनियम, 2023 के महत्त्वपूर्ण प्रावधान क्या हैं?

  • मध्यस्थता समझौता (धारा 4):  
    • यह खंड परिभाषित करता है कि मध्यस्थता समझौता क्या होता है, इसका प्रारूप क्या है, और इसे कैसे रिकॉर्ड किया जा सकता है। यह इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मध्यस्थता कार्यवाही के लिये विधिक आधार स्थापित करता है।
  • वाद-पूर्व मध्यस्थता (धारा 5):  
    • यह एक महत्त्वपूर्ण खंड है क्योंकि यह स्वैच्छिक वाद-पूर्व मध्यस्थता की अवधारणा का परिचय देता है। यह पक्षों को सिविल या वाणिज्यिक मामलों के लिये न्यायालय में वाद संस्थित करने से पूर्व ही मध्यस्थता का प्रयास करने की अनुमति देता है। 
    • वाद-पूर्व मध्यस्थता की स्वैच्छिक प्रकृति।
    • निर्दिष्ट मूल्य के वाणिज्यिक विवादों के लिये विशेष प्रावधान।
    • मध्यस्थों के प्रकार जो वाद-पूर्व मध्यस्थता कर सकते हैं। 
    • मोटर वाहन दुर्घटना क्षतिपूर्ति के मामलों में मध्यस्थता के लिये विशिष्ट प्रावधान।
  • मध्यस्थता के लिये अनुपयुक्त विवाद (धारा 6): 
    • यह धारा इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें बताया गया है कि किस प्रकार के विवादों को मध्यस्थता के द्वारा नहीं सुलझाया जा सकता। यह अधिनियम की पहली अनुसूची में एक सांकेतिक सूची को संदर्भित करता है।
  • न्यायालय की पक्षकारों को मध्यस्थता के लिये संदर्भित करने की शक्ति (धारा 7): 
    • यह धारा न्यायालयों एवं अधिकरणों को कार्यवाही के किसी भी चरण में पक्षों को मध्यस्थता के लिये संदर्भित करने का अधिकार देती है, भले ही वाद से पूर्व की मध्यस्थता असफल रही हो। यह मध्यस्थता के दौरान पक्षों के हितों की रक्षा के लिये अंतरिम आदेश देने की भी अनुमति देता है। 
  • मध्यस्थों की नियुक्ति: (धारा 8)
    • पक्ष किसी भी राष्ट्रीयता के मध्यस्थ पर सहमत हो सकते हैं, हालाँकि विदेशी मध्यस्थों को निर्दिष्ट योग्यताएँ पूरी करनी होंगी।
    • पक्ष मध्यस्थ एवं नियुक्ति प्रक्रिया पर सहमत होने के लिये स्वतंत्र हैं।
    • यदि पक्ष सहमत नहीं होते हैं, तो आरंभ करने वाला पक्ष नियुक्ति के लिये मध्यस्थता सेवा प्रदाता के पास आवेदन कर सकता है। 
    • सेवा प्रदाता को 7 दिनों के भीतर मध्यस्थ नियुक्त करना होगा, या तो पक्षों की सहमति से या उनके पैनल से।
  • मध्यस्थ के अधिदेश की समाप्ति: (धारा 11) 
    • मध्यस्थता सेवा प्रदाता, मध्यस्थ के अधिदेश को समाप्त कर सकता है:  
      a) किसी पक्ष से आवेदन प्राप्त होना
      b) हितों के टकराव की जानकारी होना
      c)  मध्यस्थ का पीछे हटना
    • हितों के टकराव के मामले में, सुनवाई के उपरांत मामले की समाप्ति हो जाती है, यदि मध्यस्थ की निष्पक्षता के विषय में उचित संदेह हो और कोई पक्ष प्रतिस्थापन चाहता हो।
  • मध्यस्थ का प्रतिस्थापन: (धारा 12) 
    • गैर-संस्थागत मध्यस्थता में, पक्षों के पास समाप्ति के उपरांत नया मध्यस्थ नियुक्त करने के लिये 7 दिन का समय होता है। 
    • संस्थागत मध्यस्थता के लिये, सेवा प्रदाता को समाप्ति के 7 दिनों के भीतर अपने पैनल से नया मध्यस्थ नियुक्त करना होगा।
  • क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार(धारा 13):  
    • यह खंड यह निर्धारित करता है कि मध्यस्थता कहाँ हो सकती है तथा ऑनलाइन मध्यस्थता या पक्षों की आपसी सहमति से न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर मध्यस्थता की अनुमति देता है।
  • मध्यस्थता का प्रारंभ (धारा 14): 
    • यह निर्धारित करता है कि मध्यस्थता कार्यवाही कब प्रारंभ मानी जाएगी, जो विधिक समय-सीमा के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • मध्यस्थता का संचालन (धारा 15):  
    • मध्यस्थ की भूमिका एवं मध्यस्थता प्रक्रिया को निर्देशित करने वाले सिद्धांत, निष्पक्षता और गोपनीयता पर ज़ोर देते हैं।
  • मध्यस्थता पूर्ण करने की समय-सीमा (धारा 18): 
    • मध्यस्थता के लिये 120 दिन की सीमा निर्धारित की गई है, जिसे 60 दिन तक बढ़ाया जा सकता है, जिससे प्रक्रिया के लिये एक स्पष्ट समय-सीमा उपलब्ध हो जाती है। 
  • मध्यस्थता निपटान समझौता (धारा 19): 
    • यह परिभाषित करता है कि वैध मध्यस्थता निपटान समझौता क्या होता है तथा इसका किस प्रकार से दस्तावेज़ीकरण किया जाना चाहिये।
  • मध्यस्थता निपटान समझौते का पंजीकरण (धारा 20): 
    • यह खंड निपटान समझौतों के वैकल्पिक पंजीकरण की अनुमति देता है, जो प्रवर्तन के लिये महत्त्वपूर्ण होता है।
  • गोपनीयता (धारा 22): 
    • यह मध्यस्थता प्रक्रिया की गोपनीयता सुनिश्चित करता है, जो पक्षों के बीच मुक्त एवं स्पष्ट संवाद के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • प्रकटीकरण के विरुद्ध स्वीकार्यता एवं विशेषाधिकार (धारा 23):  
    • कुछ अपवादों के साथ, अन्य विधिक कार्यवाहियों में मध्यस्थता संचार की गोपनीयता की रक्षा करता है।
  • मध्यस्थता की समाप्ति (धारा 24):  
    • उन शर्तों को निर्दिष्ट करता है जिनके अंतर्गत मध्यस्थता कार्यवाही को समाप्त माना जाता है।
  • मध्यस्थता की लागत (धारा 25):  
    • मध्यस्थता की लागत को पक्षों के बीच किस प्रकार साझा किया जाएगा।

निष्कर्ष: 

मध्यस्थता अधिनियम स्पष्ट संदेश देता है कि व्यापारिक विवादों को सुलझाने के लिये न्यायालय पहली पसंद नहीं होने चाहिये। यह मध्यस्थता एवं सुलह (न्यायालय के बाहर विवादों को सुलझाने का एक और तरीका) को समान स्तर पर रखता है। यह विधिक मध्यस्थता जैसी पेशेवर मध्यस्थता सेवाओं को बढ़ावा देता है। इस परिवर्तन से विवादों को शीघ्रता से एवं सुगमता से सुलझाने में सहायता मिलने की आशा है, साथ ही भारतीय न्यायालयों का कार्य-भार भी कम होगा।