Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / एडिटोरियल

आपराधिक कानून

मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाला मामला

    «
 27-Sep-2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

परिचय:

कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) घोटाले के कथित मामले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के विरुद्ध जाँच की अनुमति देने का निर्णय, राज्य की राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम है। सिद्धारमैया तथा उनके मंत्रिमंडल के विरोध के बावजूद, इस निर्णय ने राज्यपाल थावरचंद गहलोत द्वारा जाँच के लिये दी गई स्वीकृति को यथावत रखा है। यह मामला मुख्यमंत्री के परिवार को लाभ पहुँचाने वाले अवैध भूमि अधिग्रहण तथा भेदभावपूर्ण आवंटन के आरोपों पर केंद्रित है, जिससे सत्ता के संभावित दुरुपयोग तथा हितों के टकराव के विषय में प्रश्न उठाये गए हैं।

सिद्धारमैया बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य मामले के आधार क्या हैं?

  • यह मामला मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) से संबंधित कथित करोड़ों रुपये के घोटाले से संबंधित है।
  • तीन भ्रष्टाचार विरोधी सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन पर MUDA घोटाले में संलिप्त होने का आरोप लगाया गया।
  • शिकायतों में दावा किया गया है कि सिद्धारमैया की पत्नी को वर्ष 2013 के आसपास MUDA द्वारा कथित रूप से अवैध रूप से अधिग्रहित 3.16 एकड़ भूमि के बदले में वर्ष 2021 में मैसूर में 14 आवासीय भूखंड मिले, जिसके परिणामस्वरूप राज्य को 55.80 करोड़ रुपये की हानि हुई।
  • 1 अगस्त 2024 को कर्नाटक मंत्रिपरिषद ने एक प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल को मुख्यमंत्री के विरुद्ध दर्ज शिकायतें वापस लेने का परामर्श दिया।
  • इसके बावजूद 16 अगस्त 2024 को राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अंतर्गत मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के विरुद्ध जाँच एवं वाद संस्थित करने की स्वीकृति दे दी।
  • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17A के अंतर्गत सरकारी अधिकारियों द्वारा अपने आधिकारिक कर्त्तव्यों के निर्वहन के दौरान किये गए अपराधों की जाँच एवं वाद चलाने के लिये राज्यपाल की स्वीकृति आवश्यक है।
  • अपने आदेश में राज्यपाल गहलोत ने कहा कि यह एक "असाधारण परिस्थिति" थी और उन्होंने मंत्रिपरिषद के निर्णय की निष्पक्षता और सद्भावनापूर्ण प्रकृति पर प्रश्न उठाया।
  • मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने राज्यपाल के निर्णय को तीन मुख्य आधारों पर कर्नाटक उच्च न्यायालय में चुनौती दी:
    • निजी शिकायत के आधार पर स्वीकृति देने की वैधता, क्योंकि PCA की धारा 17A विशेष रूप से पुलिस द्वारा आरंभ की गई जाँच से संबंधित है।
    • स्वीकृति की प्रयोज्यता, जैसा कि सिद्धारमैया का दावा है कि कथित भूमि अधिग्रहण के समय वह कोई आधिकारिक कार्य नहीं कर रहे थे।
    • सिद्धारमैया का तर्क है कि मंत्रिपरिषद के परामर्श को अनदेखा करने का राज्यपाल का निर्णय भारत के संविधान के अनुच्छेद 163 के विपरीत है।
  • यह मामला राज्यपाल की शक्तियों, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की व्याख्या तथा राज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच संबंधों के विषय में महत्त्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न उठाता है।
  • शामिल मुद्दे
    • क्या किसी निजी शिकायत पर विचार किया जा सकता है।
    • क्या सिद्धारमैया एक ‘लोक सेवक’ थे।
    • राज्यपाल की शक्तियों का मुद्दा।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PCA) के अंतर्गत निजी शिकायतों पर विचार करना:
    • न्यायालय ने कहा कि निजी व्यक्ति भी सार्वजनिक अधिकारियों के विरुद्ध PCA के अंतर्गत शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
    • इसमें कहा गया कि इस अधिकार को अस्वीकार करने से शिकायतकर्त्ता को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत मामला दायर करने के लिये बाध्य होना पड़ेगा, जिससे PCA के अंतर्गत प्राप्त संरक्षण निरर्थक हो जाएगा।
    • न्यायालय ने माना कि निजी व्यक्तियों के लिये सार्वजनिक अधिकारियों के विरुद्ध शिकायत दर्ज करते समय PCA की धारा 17A के अंतर्गत अनुमोदन लेना आवश्यक है।
  • सिद्धारमैया की 'लोक सेवक' के रूप में स्थिति पर:
    • न्यायालय ने कहा कि कथित घोटाला मैसूर में 3.16 एकड़ भूमि से संबंधित कई लेनदेन और स्पष्ट अनियमितताओं से संबंधित है।
    • न्यायालय ने पाया कि सिद्धारमैया के विधायक, उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल के दौरान ही कई महत्त्वपूर्ण कार्य हुए।
    • न्यायालय ने पाया कि लाभार्थी सिद्धारमैया का परिवार था, तथा उसे "बहुत अधिक" लाभ प्राप्त हुआ।
    • न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने कहा कि यदि यह मामला जाँच के लायक नहीं है, तो यह निर्धारित करना कठिन होगा कि अन्य कौन-सा मामला जाँच के लायक हो सकता है।
  • राज्यपाल की शक्तियों पर:
    • न्यायालय ने कहा कि यदि राज्य सरकार की ओर से "पक्षपात की वास्तविक संभावना" हो तो राज्यपाल किसी मुख्यमंत्री या मंत्री के विरुद्ध अभियोजन की स्वीकृति देने के लिये स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकते हैं।
    • न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा नामित मंत्रिमंडल का निर्णय अपने नेता के प्रति पूर्वाग्रह या पक्षपातपूर्ण व्यवहार से मुक्त नहीं होगा।
    • न्यायालय ने माना कि ऐसी असाधारण परिस्थितियों में राज्यपाल द्वारा स्वतंत्र विवेक का प्रयोग अनिवार्य है।
  • अतिरिक्त टिप्पणियाँ:
    • न्यायालय ने कहा कि एक सामान्य नागरिक ऐसी परिस्थितियों में जाँच का सामना करने से नहीं कतराएगा।
    • न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने कहा कि सर्वहारा वर्ग और पूंजीपति वर्ग के नेता के रूप में मुख्यमंत्री को जाँच से बचना नहीं चाहिये।
    • न्यायालय ने पाया कि सिद्धारमैया के परिवार को नियमों के अंतर्गत निर्धारित की गई राशि से कहीं अधिक क्षतिपूर्ति मिली, तथा इसे "अप्रत्याशित लाभ" बताया।
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 163 क्या है?
    • अनुच्छेद 163(1) में यह प्रावधान है कि राज्यपाल को कार्यों के निर्वहन में सहायता एवं परामर्श देने के लिये मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद होगी, सिवाय उन मामलों को छोड़कर जहाँ संविधान राज्यपाल को अपने विवेक से कार्य करने की अपेक्षा करता है।
    • अनुच्छेद 163(2) राज्यपाल को यह निर्धारित करने का अंतिम अधिकार देता है कि कोई मामला उसकी विवेकाधीन शक्तियों के अंतर्गत आता है या नहीं, तथा यह निर्धारित करता है कि राज्यपाल के कार्यों की वैधता को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि उसे अपने विवेक से कार्य करना चाहिये था या नहीं करना चाहिये था।
    • अनुच्छेद 163(3) किसी भी न्यायालय को मंत्रियों द्वारा राज्यपाल को दिये गए परामर्श की प्रकृति एवं विषय-वस्तु की जाँच करने से रोकता है, जिससे मंत्रिपरिषद और राज्यपाल के बीच संचार की गोपनीयता की रक्षा होती है।

निष्कर्ष:

उच्च न्यायालय का यह निर्णय उच्च पदस्थ अधिकारियों को उत्तरदायी ठहराने के लिये एक उदाहरण स्थापित करता है, जिसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि मुख्यमंत्री भी जाँच से परे नहीं हैं। जाँच को आगे बढाने की अनुमति देकर, न्यायालय ने सार्वजनिक कार्यालयों में पारदर्शिता एवं ईमानदारी के महत्त्व को सुदृढ़ किया है। यह निर्णय सरकार की विभिन्न शाखाओं, विशेष रूप से राज्यपाल तथा राज्य मंत्रिमंडल के बीच संबंधों के बीच शक्ति के नाजुक संतुलन को प्रभावित करता है।