NCDRC द्वारा गोआईबिबो को रिफंड का मुद्दा सुलझाने का आदेश
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सिविल कानून

NCDRC द्वारा गोआईबिबो को रिफंड का मुद्दा सुलझाने का आदेश

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 22-Aug-2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  

परिचय:

हाल में ही उपभोक्ता विवादों को निपटाने में ऑनलाइन ट्रैवल एजेंसियों की प्रभावशीलता जाँच के दायरे में आ गई है। यह मामला जायसवाल परिवार से जुड़ा है, जिसने गोआईबिबो के माध्यम से हवाई उड़ानें बुक की थीं, परंतु जेट एयरवेज़ के दिवालिया हो जाने के बाद उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ा। रिफंड प्राप्त करने के कई प्रयासों के बावजूद, गोआईबिबो की निष्क्रियता के कारण परिवार को उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों के माध्यम से निवारण की मांग करनी पड़ी।

गोआईबीबो के साथ जायसवाल परिवार के विवाद में फोरम की पृष्ठभूमि और निर्णय क्या थे?

  • पृष्ठभूमि:
    • यह मामला तीन लोगों के एक परिवार से जुड़ा है, जिन्होंने ऑनलाइन ट्रैवल एजेंसी गोआईबीबो के माध्यम से नई दिल्ली से एडमोंटन, कनाडा के लिये एक हवाई उड़ान बुक की थी।
    • यह बुकिंग जेट एयरवेज़ की उड़ानों के लिये थी, जो अक्टूबर 2019 के लिये निर्धारित थी। हालाँकि अप्रैल 2019 में, जेट एयरवेज़ दिवालिया हो गई और उसने सभी उड़ान संचालन बंद कर दिया, जिससे जायसवाल परिवार की उड़ान रद्द हो गई।
    • इसके उपरांत जायसवाल परिवार ने टिकट की राशि, जो 1,83,140 रुपए थी, वापस प्राप्त करने के लिये कई बार गोआईबीबो से संपर्क किया।
    • उनके बार-बार अनुरोध और यहाँ तक ​​कि विधिक नोटिस के बावजूद, गोआईबीबो ने धनराशि रिफंड नहीं की।
    • परिणामस्वरूप, परिवार ने ज़िला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, मोगा, पंजाब में शिकायत दर्ज कराई, जिसमें गोआईबीबो पर सेवा में कमी और अनुचित व्यापार व्यवहार का आरोप लगाया गया।
  • टिप्पणियाँ एवं निर्णय:
    • ज़िला आयोग ने गोआईबीबो को टिकट बुक होने की तिथि से 8% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज सहित टिकट राशि वापस करने का निर्देश दिया।
    • गोआईबीबो ने इस आदेश के विरुद्ध राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में अपील की, परंतु अपील अस्वीकार कर दी गई।
    • इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (राष्ट्रीय आयोग) के समक्ष एक और अपील की गई।
    • राष्ट्रीय आयोग ने, राज्य आयोग की तरह, 'गोआईबीबो अंतर्राष्ट्रीय उड़ान बुकिंग नीति' का उदाहरण दिया, जिसमें कहा गया था कि उपभोक्ता के लिये सभी प्रकार के रिफंड हेतु गोआईबीबो से संपर्क करना अनिवार्य है, क्योंकि एयरलाइन गोआईबीबो के माध्यम से बुक किये गए टिकटों का रिफंड नहीं कर पाएगी।
      • राष्ट्रीय आयोग ने जेट एयरवेज़ द्वारा जारी एक परिपत्र पर भी गौर किया, जिसमें ग्राहकों को ट्रैवल एजेंट या एग्रीगेटर से, जहाँ भी लागू हो, अपना रिफंड लेने का निर्देश दिया गया था।
    • राष्ट्रीय आयोग ने राज्य आयोग के तर्कपूर्ण आदेश से सहमति व्यक्त की और माना कि गोआईबीबो यह दिखाने के लिये कोई प्रबल साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहा है कि उसने जेट एयरवेज़ को भुगतान किया था और जेट एयरवेज़ धन वापसी के लिये उत्तरदायी था।
    • इसलिये, गोआईबीबो उस धनराशि को रिफंड करने के उत्तरदायित्व से बच नहीं सकता था, जो उसे जायसवाल परिवार से प्राप्त हुआ था।

उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग क्या है?

  • परिचय:
    • उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग भारत में स्थापित एक संस्थागत तंत्र है, जो राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर अर्द्ध-न्यायिक निकायों के माध्यम से उपभोक्ता शिकायतों तथा विवादों का त्वरित एवं मितव्ययी निवारण प्रदान करता है।
    • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 का अध्याय IV उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग से संबंधित है।
  • भारत में उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग तीन प्रकार के हैं।
    • ज़िला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग
    • राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग
    • राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अंतर्गत ज़िला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग:

  • धारा 28 - ज़िला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग की स्थापना
    • राज्य सरकार प्रत्येक ज़िले में एक ज़िला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (ज़िला आयोग) स्थापित करेगी।
    • ज़िला आयोग में एक अध्यक्ष और 2-5 सदस्य होंगे।
  • धारा 34 - ज़िला आयोग का क्षेत्राधिकार
    • ज़िला आयोग को उन शिकायतों पर अधिकारिता होगी जहाँ वस्तुओं/सेवाओं का मूल्य एक करोड़ रुपए से अधिक नहीं है।
    • शिकायत उस स्थानीय सीमा के भीतर दर्ज की जा सकती है जहाँ विरोधी पक्ष निवास करता है/व्यवसाय करता है, जहाँ कार्यवाही का कारण उत्पन्न होता है, या जहाँ शिकायतकर्त्ता रहता है।
    • ज़िला आयोग ज़िला मुख्यालय एवं अन्य अधिसूचित स्थानों पर कार्य करेगा।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अंतर्गत राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग:

  • धारा 42 - राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग की स्थापना
    • राज्य सरकार राज्य में राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (राज्य आयोग) की स्थापना करेगी।
    • राज्य आयोग सामान्यतः राज्य की राजधानी में कार्य करेगा तथा अन्य स्थानों पर क्षेत्रीय पीठ स्थापित कर सकता है।
    • राज्य आयोग में एक अध्यक्ष और 4-10 सदस्य होंगे।
  • धारा 47 - राज्य आयोग का क्षेत्राधिकार
    • राज्य आयोग के पास निम्नलिखित के लिये क्षेत्राधिकार होगा:
    • ऐसी शिकायतें जहाँ वस्तुओं/सेवाओं का मूल्य 1 करोड़ रुपए से अधिक हो परंतु 10 करोड़ रुपए से अधिक न हो।
    • अनुचित संविदाओं के विरुद्ध शिकायतें, जिनका मूल्य 10 करोड़ रुपए से अधिक न हो।
    • राज्य के भीतर ज़िला आयोगों के आदेशों के विरुद्ध अपील।
    • राज्य के भीतर ज़िला आयोग के समक्ष लंबित या उसके द्वारा विनिश्चित किसी उपभोक्ता विवाद में रिकॉर्ड मंगाना तथा आदेश पारित करना, यदि ज़िला आयोग ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर के क्षेत्राधिकार का प्रयोग किया है या अपने में निहित क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने में विफल रहा है, या अवैध रूप से या अनियमितता के साथ कार्य किया है।
    • इस क्षेत्राधिकार का प्रयोग राष्ट्रपति द्वारा गठित एक या अधिक सदस्यों वाली पीठ द्वारा किया जा सकता है।
    • जहाँ पीठ के सदस्यों की राय भिन्न हो, वहाँ बहुमत की राय मान्य होगी, या यदि राय समान रूप से विभाजित हो, तो अध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य मामले की सुनवाई करेगा और निर्णय करेगा।
    • राज्य आयोग में शिकायत विपक्षी पक्ष के स्थान, कार्यवाही के कारण या शिकायतकर्त्ता के स्थान के आधार पर दर्ज की जा सकती है।
  • धारा 50 - राज्य आयोग द्वारा समीक्षा
    • यदि अभिलेख में कोई स्पष्ट त्रुटि हो तो राज्य आयोग को अपने किसी भी आदेश की समीक्षा करने का अधिकार होगा, वह भी स्वप्रेरणा से या किसी पक्ष द्वारा 30 दिनों के भीतर किये गए आवेदन पर।
  • धारा 51 - राष्ट्रीय आयोग में अपील
    • राज्य आयोग के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आने वाले किसी मामले पर उसके आदेश से व्यथित कोई भी व्यक्ति 30 दिनों के भीतर राष्ट्रीय आयोग में अपील कर सकता है।
    • राष्ट्रीय आयोग 30 दिनों के उपरांत अपील पर विचार नहीं करेगा, जब तक कि विलंब के लिये पर्याप्त कारण न हो।
    • राष्ट्रीय आयोग द्वारा तब तक कोई अपील स्वीकार नहीं की जाएगी जब तक कि अपीलकर्त्ता ने राज्य आयोग द्वारा आदेशित राशि का 50% जमा नहीं कर दिया हो।
    • राज्य आयोग द्वारा अपील में पारित किसी आदेश के विरुद्ध राष्ट्रीय आयोग में भी अपील की जा सकेगी, यदि राष्ट्रीय आयोग को यह विश्वास हो कि मामले में कोई सारवान विधि प्रश्न सम्मिलित है।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अंतर्गत राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग:

  • धारा 53 - राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग की स्थापना
    • केंद्र सरकार राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (राष्ट्रीय आयोग) की स्थापना करेगी।
    • राष्ट्रीय आयोग सामान्यतः राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कार्य करेगा तथा अन्य स्थानों पर क्षेत्रीय पीठें स्थापित कर सकता है।
  • धारा 54 - राष्ट्रीय आयोग की संरचना
    • राष्ट्रीय आयोग में एक अध्यक्ष और 4-10 सदस्य होंगे।
  • धारा 55 - अध्यक्ष और सदस्यों की योग्यताएँ, नियुक्ति एवं कार्यकाल
    • केंद्र सरकार राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की योग्यता, नियुक्ति, पदावधि (5 वर्ष से अधिक नहीं), वेतन, भत्ते, त्याग-पत्र, हटाने एवं सेवा की अन्य शर्तों के संबंध में नियम बनाएगी।
    • अध्यक्ष और सदस्य क्रमशः 70 तथा 67 वर्ष की आयु प्राप्त करने के उपरांत पद पर नहीं रहेंगे।
  • धारा 58 - राष्ट्रीय आयोग का क्षेत्राधिकार
    • राष्ट्रीय आयोग के पास निम्नलिखित के लिये क्षेत्राधिकार होगा:
    • ऐसी शिकायतें जहाँ वस्तुओं/सेवाओं का मूल्य 10 करोड़ रुपए से अधिक हो।
    • अनुचित अनुबंधों के विरुद्ध शिकायतें जहाँ मूल्य 10 करोड़ रुपए से अधिक हो।
    • राज्य आयोगों के आदेशों के विरुद्ध अपील।
    • केंद्रीय प्राधिकरण के आदेशों के विरुद्ध अपील।
    • राज्य आयोग के समक्ष लंबित या उसके द्वारा निर्णीत किसी उपभोक्ता विवाद में रिकॉर्ड मंगाना तथा आदेश पारित करना, यदि राज्य आयोग ने अपने में निहित न किये गए क्षेत्राधिकार का प्रयोग किया है या अपने में निहित क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने में विफल रहा है, या अवैध रूप से या अनियमितता के साथ कार्य किया है।
    • इस क्षेत्राधिकार का प्रयोग राष्ट्रपति द्वारा गठित एक या अधिक सदस्यों वाली पीठ द्वारा किया जा सकता है।
    • जहाँ पीठ के सदस्यों की राय भिन्न हो, वहाँ बहुमत की राय मान्य होगी, या यदि राय समान रूप से विभाजित हो, तो अध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य मामले की सुनवाई करेगा और निर्णय करेगा।
  • धारा 62 - मामलों का स्थानांतरण
    • राष्ट्रीय आयोग न्याय के हित में, शिकायतकर्त्ता के आवेदन पर या स्वप्रेरणा से, ज़िला आयोग या राज्य आयोग के समक्ष लंबित किसी शिकायत को किसी अन्य ज़िला या राज्य आयोग को स्थानांतरित कर सकता है।

उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा आदेश का प्रवर्तन:

  • धारा 71 - आदेशों का प्रवर्तन
    • ज़िला आयोग, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के आदेशों को सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 के प्रावधानों का उपयोग करते हुए, न्यायालय के आदेश के समान ही लागू किया जाएगा।
  • धारा 72 - आदेशों का पालन न करने पर अर्थदण्ड
    • ज़िला आयोग, राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग के आदेश का पालन न करना दण्डनीय अपराध होगा:
      • 1 माह से 3 वर्ष तक का कारावास, और/या
      • 25,000 से 1 लाख रुपए तक का अर्थदण्ड।
    • संबंधित आयोग को ऐसे अपराधों के परीक्षण के लिये प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
    • अपराधों की सुनवाई संबंधित आयोग द्वारा संक्षेप में की जाएगी।
  • धारा 73 - धारा 72 के अंतर्गत आदेशों के विरुद्ध अपील
    • धारा 72 के अंतर्गत आदेशों के विरुद्ध अपील की जा सकती है: 
      • ज़िला आयोग के आदेश से राज्य आयोग तक
      • राज्य आयोग के आदेश से राष्ट्रीय आयोग तक
      • राष्ट्रीय आयोग के आदेश से उच्चतम न्यायालय तक
    • इस धारा में दिये गए प्रावधान को छोड़कर आयोग के आदेशों के विरुद्ध कोई अन्य अपील नहीं की जा सकेगी।
    • अपील 30 दिनों के भीतर दायर की जानी चाहिये, परंतु पर्याप्त कारण बताए जाने पर उच्चतर फोरम विलंब को क्षमा कर सकता है।

निष्कर्ष:

भारत में उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग प्रणाली ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अर्द्ध-न्यायिक निकायों के माध्यम से उपभोक्ता शिकायतों को हल करने के लिये एक संरचित दृष्टिकोण प्रदान करती है। जायसवाल परिवार के मामले में, धनराशि रिफंड को लेकर गोआईबिबो के साथ उनके विवाद को आरंभ में ज़िला आयोग ने सुलझाया था, जिसने गोआईबिबो को राशि वापस करने का निर्देश दिया था। इस निर्णय को राज्य और राष्ट्रीय आयोगों दोनों ने यथावत् रखा, जिन्होंने पाया कि गोआईबिबो अपनी नीतियों के अनुसार रिफंड के लिये उत्तरदायित्व था। आयोग उत्तरदायित्व सुनिश्चित करते हैं और उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा करते हैं।