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सांविधानिक विधि
लोक सेवक को रिश्वत देने का अपराध
« »06-Jan-2025
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
परिचय
उच्चतम न्यायालय यह तय करने वाला है कि क्या रिश्वत देना भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (PCA) के अधीन दण्डनीय है, भले ही सरकारी अधिकारी इससे मना कर दे। जबकि PCA में 2018 के संशोधन ने स्पष्ट रूप से रिश्वत देने को अपराध बना दिया है, विभिन्न उच्च न्यायालयों ने 2018 से पूर्व निर्णयों के आधार पर अलग-अलग निर्वचन किया है। यह मामला उड़ीसा में 2016 की एक घटना से सामने आया है, जहाँ एक व्यवसायी ने कथित तौर पर एक पुलिस निरीक्षक को 2 लाख रुपये की रिश्वत का प्रस्ताव दिया, जिसे पुलिस निरीक्षक ने मना कर दिया। 21 जनवरी 2024 को न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता एवं प्रशांत कुमार मिश्रा द्वारा विचारण किये जाने वाले इस मामले में बॉम्बे एवं मद्रास उच्च न्यायालयों के परस्पर विरोधी विचारों को संबोधित किया जाएगा कि क्या 2018 से पहले केवल रिश्वत देना अपराध माना जाता था।
रवींद्र कुमार पात्रा के मामले में 2018 से पहले के PCA का निर्वचन करने में विधिक चुनौतियाँ क्या हैं?
- 16 फरवरी, 2016 को उड़ीसा के बरहामपुर पुलिस को सूचना मिली कि माँ बिरजा प्रोडक्ट्स के स्वामी रवींद्र कुमार पात्रा द्वारा गुटखा बनाने का अवैध व्यवसाय किया जा रहा है।
- गोदामों पर छापेमारी के दौरान पुलिस को गुटखा एवं जर्दा का उत्पादन करने वाली मशीनें भी भारी मात्रा में मिलीं तथा पात्रा को अपने व्यवसाय की वैधता सिद्ध करने वाले दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिये आमंत्रित किया गया।
- दस्तावेज प्रस्तुत करने के बजाय, पात्रा ने कथित तौर पर प्रभारी निरीक्षक को 2 लाख रुपये की रिश्वत का प्रस्ताव दिया तथा उनसे आगे की विधिक कार्यवाही रोकने और जब्त गुटखा को छोड़ने का निवेदन किया।
- जब इंस्पेक्टर ने रिश्वत लेने से मना कर दिया तथा चेतावनी दी कि अगर दोबारा रिश्वत की पेशकश की गई तो विधिक परिणाम भुगतने होंगे, तो पात्रा ने जोर देकर कहा कि वह उसी रात पैसे लेकर वापस आएगा।
- इंस्पेक्टर ने इसकी सूचना पुलिस अधीक्षक को दी, जिसके बाद पात्रा को रंगे हाथों पकड़ने के लिये एक 'ट्रैप टीम' का गठन किया गया।
- जैसा कि अनुमान था, पात्रा पैसे लेकर वापस आया तथा फिर से रिश्वत की पेशकश की, जिसे इंस्पेक्टर ने अस्वीकार कर दिया। बातचीत पर नज़र रख रही ट्रैप टीम आयी तथा ऑफिस की मेज़ पर पैसे बरामद किये।
- पात्रा पर PCA की धारा 12 के अधीन आरोप लगाए गए थे, जो 2018 में संशोधन से पहले अधिनियम की धारा 7 या 11 के अधीन अपराधों के लिये 'दुष्प्रेरण' से संबंधित था।
- जब पात्रा ने CrPC की धारा 239 के अधीन मामले से उन्मुक्ति की मांग की, तो ट्रायल कोर्ट एवं उड़ीसा उच्च न्यायालय दोनों ने मना कर दिया, जिसके कारण वर्तमान उच्चतम न्यायालय के सम्मुख यह मामला सामने आया।
- मामले की जटिलता बॉम्बे एवं मद्रास उच्च न्यायालयों द्वारा इस तथ्य पर अलग-अलग निर्वचन से उत्पन्न हुआ कि क्या रिश्वत का प्रस्ताव देना 2018 से पहले के PCA के अधीन अपराध माना जाता है, भले ही लोक सेवक ने इससे मना कर दिया हो।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 में 2018 के संशोधन के बाद क्या प्रावधान एवं परिवर्तन हुए हैं?
- भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PCA), 1988 (2018 संशोधन के बाद):
- धारा 7: सरकारी कर्मचारियों द्वारा विधिक पारिश्रमिक के अतिरिक्त अन्य कोई रिश्वत लेने को अपराध माना जाता है।
- धारा 11: बिना पर्याप्त प्रतिफल के मूल्यवान चीजें स्वीकार करने वाले सरकारी कर्मचारियों को दण्डित किया जाता है।
- धारा 12: अधिनियम के अधीन अपराधों के लिये दुष्प्रेरण को दण्डनीय बनाया जाता है, भले ही रिश्वत ली गई हो या नहीं।
- धारा 8: सरकारी कर्मचारियों को रिश्वत देने को स्पष्ट रूप से आपराधिक अपराध माना जाता है।
- भारतीय दण्ड संहिता (IPC) के ऐतिहासिक प्रावधान (निरस्त):
- धारा 161: लोक सेवकों द्वारा रिश्वत लेने से संबंधित (PCA धारा 7 द्वारा प्रतिस्थापित)
- धारा 165: इसके अंतर्गत मूल्यवान वस्तुएँ प्राप्त करने वाले लोक सेवक आते हैं (PCA धारा 11 द्वारा प्रतिस्थापित)
- धारा 165A: लोक सेवकों को रिश्वत देने के कृत्य को दण्डित किया गया (PCA में प्रावधानित)
- भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2018 में प्रमुख संशोधन:
- रिश्वत देने के कृत्य को प्रत्यक्ष अपराध के रूप में प्रावधान
- वाणिज्यिक संगठनों के लिये कॉर्पोरेट आपराधिक दायित्व की शुरुआत की गई।
- विवेचना से पहले पूर्व स्वीकृति के लिये प्रावधान जोड़े गए।
- वाद के पूरा होने के लिये समय सीमा की शुरुआत की गई।
- वर्तमान PCA के अंतर्गत प्रावधानित प्रमुख दण्ड:
- रिश्वतखोरी से संबंधित मूल अपराधों के लिये न्यूनतम कारावास 3 वर्ष, जिसे अर्थदण्ड के साथ 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- "आदतन" अपराधियों के लिये 7 वर्ष तक कारावास।
- रिश्वत देने वाले और रिश्वत लेने वाले दोनों के लिये न्यूनतम कारावास 3 वर्ष अनिवार्य है।
- निवारण तंत्र:
- संगठनों को रिश्वतखोरी को रोकने के लिये पर्याप्त प्रक्रियाएँ अपनाने की आवश्यकता है।
- आंतरिक दिशा-निर्देश एवं अनुपालन तंत्र को अनिवार्य बनाता है।
- भ्रष्टाचार की सूचना देने वाले व्हिसलब्लोअर्स को सुरक्षा प्रदान करता है।
- वाणिज्यिक संगठन:
- वाणिज्यिक संगठनों द्वारा रिश्वतखोरी से निपटने के लिये विशिष्ट प्रावधान
- कंपनी के निदेशकों एवं अधिकारियों के उत्तरदायित्व का निर्धारण
- कॉर्पोरेट अनुपालन कार्यक्रमों के लिये आवश्यकताएँ
- विवेचना एवं परीक्षण:
- भ्रष्टाचार के मामलों के विचारण के लिये विशेष न्यायालय
- विवेचना के लिये नामित प्राधिकारी
- भ्रष्टाचार के मामलों के लिये विशिष्ट प्रक्रियात्मक आवश्यकताएँ
- ज़ब्ती के लिये प्रावधान:
- भ्रष्ट तरीकों से प्राप्त संपत्ति की कुर्की एवं जब्ती की अनुमति देता है।
- भ्रष्ट कृत्य द्वारा होने वाले क्षति की वसूली के लिये प्रावधान
- संपत्ति वसूली में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये तंत्र
- प्रासंगिक विधियाँ:
- लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013
- व्हिसलब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2014
- बेनामी संव्यवहार (निषेध) अधिनियम, 1988
- धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अधीन रिश्वत देने के विधिक परिणाम क्या हैं?
- 2018 के बाद प्रत्यक्ष अपराधीकरण का प्रावधान:
- PCA, 2018 संशोधन ने स्पष्ट रूप से धारा 8 के अधीन रिश्वत देने को दण्डनीय अपराध बना दिया है
- भले ही सरकारी कर्मचारी रिश्वत देने से मना कर दे, लेकिन रिश्वत देने का कृत्य दण्डनीय है
- इस सजा में 7 वर्ष तक का कारावास एवं अर्थदण्ड निहित है।
- 2018 से पहले का प्रावधान:
- 2018 से पहले, रिश्वत देने को PCA की धारा 12 के अधीन 'दुष्प्रेरण' के रूप में माना जाता था।
- विभिन्न उच्च न्यायालयों ने इसका अलग-अलग निर्वचन किया:
- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने माना कि महज प्रस्ताव देना अपराध नहीं है।
- मद्रास उच्च न्यायालय ने इसे वास्तविक अपराध माना है।
असफल रिश्वत के प्रयासों पर वर्तमान विधिक स्थिति:
- रिश्वत का प्रस्ताव करना अपराध है, भले ही:
- लोक सेवक इसे अस्वीकार कर देता है।
- संव्यवहार पूर्ण न हो।
- कोई वास्तविक भ्रष्टाचार का अपराध कारित न हो।
- विशेष प्रावधान:
- धारा 8(2) रिश्वत देने वालों को उन्मुक्ति प्रदान करती है जो घटना की सूचना 7 दिनों के अंदर देते हैं।
- यह सुरक्षा भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित करने के लिये बनाई गई है।
- रिश्वत देने वाले को विधि प्रवर्तन के साथ सहयोग करना चाहिये।
- कॉर्पोरेट उत्तरदायित्व:
- अगर कर्मचारी रिश्वत देते हैं तो कंपनियों को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
- कंपनी के आचरण के लिये उत्तरदायी निदेशकों/प्रबंधकों पर वाद संस्थित किया जा सकता है।
- कंपनियों को यह सिद्ध करना होगा कि उनके पास रिश्वतखोरी को रोकने के लिये पर्याप्त प्रक्रियाएँ हैं।
- दण्ड की रूपरेखा:
- न्यूनतम 3 वर्ष का कारावास
- अधिकतम 7 वर्ष का कारावास
- अतिरिक्त आर्थिक दण्ड
- रिश्वत की राशि जब्त होने की संभावना
- विवेचना की प्रक्रिया:
- रिश्वत देने वाले निजी व्यक्तियों की विवेचना के लिये किसी पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
- रिश्वत का प्रताव देने वालों को पकड़ने के लिये विधि प्रवर्तन एजेंसियाँ 'ट्रैप केस' बना सकती हैं।
- रिश्वत देने के आशय का साक्ष्य अभियोजन के लिये पर्याप्त है।
आगे की राह
- उच्चतम न्यायालय का निर्णय उच्च न्यायालयों के बीच परस्पर विरोधी निर्वचन को सुलझाने एवं 2018 से पहले के रिश्वतखोरी के मामलों को संभालने के लिये एक स्पष्ट उदाहरण प्रस्तुत करने में महत्त्वपूर्ण होगा, विशेष रूप से जहाँ रिश्वत का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन मना कर दिया गया था।
- इस निर्णय का PCA, 2018 संशोधन से पूर्व दायर लंबित भ्रष्टाचार के मामलों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा, संभावित रूप से उन कई मामलों पर असर पड़ेगा जहाँ रिश्वत के प्रस्ताव को वास्तविक स्वीकृति के बिना ही दस्तावेज़ में दर्ज किया गया था।
- यह निर्णय इस तथ्य को भी प्रभावित कर सकता है कि भविष्य में भ्रष्टाचार विरोधी विधान का प्रारूप कैसे तैयार किया जाएगा तथा उसका निर्वचन कैसे किया जाएगा, विशेषकर रिश्वत देने देने के प्रयास एवं भ्रष्टाचार के विफल प्रयासों से जुड़े मामलों में।