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सांविधानिक विधि
असम समझौता मामले में न्यायाधीशों की राय
« »29-Oct-2024
परिचय
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A की संवैधानिक वैधता पर एक ऐतिहासिक निर्णय दिया। असम समझौते के भाग के रूप में 1985 में प्रस्तुत किये गए इस प्रावधान का उद्देश्य बांग्लादेश से असम में बसने वाले प्रवासियों की नागरिकता की स्थिति को संबोधित करना था। असम समझौता भारत सरकार एवं असमिया नेताओं के बीच एक समझौता था जिसका उद्देश्य असमिया पहचान को बनाए रखना था जबकि कुछ प्रवासियों के लिये नागरिकता का मार्ग प्रशस्त करना था।
हालाँकि, धारा 6A को कई याचिकाओं में चुनौती दी गई है, आलोचकों का तर्क है कि यह संविधान का उल्लंघन करता है, विशेष रूप से अनुच्छेद 6, 7, 11, 14, 29 एवं 355 के संबंध में। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डॉ. डी. वाई. चंद्रचूड़ द्वारा न्यायमूर्ति सूर्यकांत एवं जे. बी. पारदीवाला के साथ दिये गए न्यायालय के निर्णय ने अंततः सर्वसम्मति से धारा 6A की वैधता को यथावत रखा।
न्यायालय द्वारा किन प्रमुख मुद्दों की जाँच की गई?
उच्चतम न्यायालय ने धारा 6A से संबंधित कई प्रमुख प्रश्नों की जाँच की, जिनमें शामिल हैं:
- विधायी क्षमता: क्या संसद के पास धारा 6A को लागू करने का अधिकार था, जो असम में नागरिकता के लिये एक विशिष्ट कट-ऑफ तिथि के साथ अलग नियम निर्धारित करता है?
- समता का अधिकार (अनुच्छेद 14): क्या धारा 6A केवल असम पर लागू होने एवं समान प्रवासन मुद्दों वाले अन्य राज्यों पर लागू न होने के कारण अनुचित या भेदभावपूर्ण है?
- सांस्कृतिक पहचान का संरक्षण (अनुच्छेद 29): क्या धारा 6A प्रवासी आबादी में वृद्धि को सक्षम करके असमिया नागरिकों के सांस्कृतिक अधिकारों को खतरे में डालती है?
- आंतरिक सुरक्षा एवं राज्य का संरक्षण (अनुच्छेद 355): क्या धारा 6A के परिणामस्वरूप होने वाला प्रवास सुरक्षा जोखिम उत्पन्न करता है या "आंतरिक अशांति" का कारण बनता है?
- प्रक्रियात्मक निष्पक्षता एवं स्पष्टता: क्या धारा 6A में नागरिकता पंजीकरण को लागू करने के लिये पर्याप्त एवं स्पष्ट निर्देश शामिल हैं?
न्यायाधीशों की राय क्या थी?
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ की बहुमत की राय
CJI डॉ. डी वाई चंद्रचूड़ ने धारा 6A की संवैधानिकता को यथावत रखते हुए प्राथमिक राय दी। उनका विश्लेषण निम्नलिखित बिंदुओं पर केंद्रित था:
- विधायी क्षमता (अनुच्छेद 11):
- CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ ने इस बात पर बल दिया कि संविधान के अनुच्छेद 11 के अंतर्गत संसद को नागरिकता से संबंधित विधान बनाने का अधिकार है।
- अनुच्छेद 11 में स्पष्ट रूप से प्रावधानित किया गया है कि संविधान के पूर्ववर्ती प्रावधानों में कुछ भी “नागरिकता के अधिग्रहण और समाप्ति एवं नागरिकता से संबंधित अन्य सभी मामलों के संबंध में कोई प्रावधान करने की संसद की शक्ति से वंचित नहीं होना चाहिये”।
- इस प्रकार, धारा 6A के माध्यम से असम के लिये एक विशिष्ट प्रावधान लागू करने का संसद का निर्णय उसकी शक्तियों के अंतर्गत था तथा इसने अनुच्छेद 6 एवं 7 में कोई परिवर्तन नहीं किया, जो संविधान के लागू होने के समय मुख्य रूप से नागरिकता से संबंधित थे।
- समता एवं निष्पक्षता (अनुच्छेद 14):
- CJI ने याचिकाकर्ताओं की इस दलील को स्वीकार किया कि धारा 6A असम के साथ भेदभाव करती है क्योंकि यह केवल राज्य पर अलग नियम लागू करती है।
- हालाँकि, उन्होंने कहा कि असम का अनूठा जनसांख्यिकीय एवं प्रवासन का इतिहास एक अलग प्रावधान को उचित सिद्ध करता है।
- ऐतिहासिक एवं भू-राजनीतिक कारकों के कारण असम में बांग्लादेश से बड़ी संख्या में प्रवासी आए हैं, जो इसे अन्य भारतीय राज्यों से अलग बनाता है।
- इस प्रकार, इस विशिष्ट संदर्भ के आधार पर धारा 6A के प्रावधान उचित थे और अनुच्छेद 14 के अंतर्गत असमान व्यवहार के समान नहीं थे।
- सांस्कृतिक अधिकारों का संरक्षण (अनुच्छेद 29):
- असमिया नागरिकों के बीच एक प्रमुख चिंता यह थी कि धारा 6A बड़ी संख्या में प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करके असमिया संस्कृति को कमजोर कर सकती है।
- CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ ने पाया कि धारा 6A ने केवल विशिष्ट श्रेणियों के दीर्घकालिक निवासियों को नागरिकता प्राप्त करने की अनुमति देकर एक संतुलन बनाया है, इस प्रकार असमिया नागरिकों के अपनी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने के अधिकार का सम्मान किया है।
- उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि धारा 6A अनुच्छेद 29 के सांस्कृतिक अधिकार संरक्षण का उल्लंघन नहीं करती है, क्योंकि यह असम के सांस्कृतिक संरचना को बनाए रखने के लिये उपबंधित शर्तों के आधार पर चुनिंदा नागरिकता प्रदान करती है।
- सुरक्षा चिंताएँ (अनुच्छेद 355):
- अनुच्छेद 355 में कहा गया है कि संघ को राज्यों को "बाहरी आक्रमण एवं आंतरिक अशांति" से बचाना चाहिए।
- CJI ने असम के जनसांख्यिकीय बदलावों एवं अनियंत्रित प्रवास से उत्पन्न सुरक्षा चिंताओं को मान्यता दी।
- हालाँकि, उन्होंने पाया कि धारा 6A का उद्देश्य इन मुद्दों को एक संरचित तरीके से प्रबंधित करना है, जो असम की रक्षा करने के संघ के कर्त्तव्य के साथ संरेखित है।
- प्रक्रियात्मक निष्पक्षता:
- धारा 6A की नागरिकता पंजीकरण प्रक्रिया की स्पष्टता एवं निष्पक्षता के विषय में चिंताएँ व्यक्त की गईं।
- CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ ने पाया कि यद्यपि प्रक्रियात्मक सुधार कार्यान्वयन को लाभ पहुँचा सकते हैं, लेकिन मौजूदा नियम पर्याप्त रूपरेखा प्रदान करते हैं।
- विदेशी अधिनियम एवं 1964 के विदेशी (अधिकरण) आदेश के अंतर्गत विदेशी अधिकरण धारा 6A के अंतर्गत नागरिकता आवेदनों का निष्पक्ष मूल्यांकन करने के लिये एक संरचित प्रणाली प्रदान करते हैं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत की सहमति राय
- न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने धारा 6A की संवैधानिकता के मुख्य न्यायाधीश के आकलन से सहमति जताई।
- उन्होंने विशेष विधायी उपचार के आधार के रूप में असम की ऐतिहासिक एवं भौगोलिक विशिष्टता पर प्रकाश डाला।
- न्यायमूर्ति सूर्यकांत की राय ने इस तथ्य को पुष्ट किया कि प्रवास के कारण असम की जनसांख्यिकीय चुनौतियों के लिये धारा 6A के अंतर्गत अलग प्रावधान की आवश्यकता है।
- उन्होंने मुख्य न्यायाधीश के इस दृष्टिकोण को दोहराया कि यह प्रावधान अनुच्छेद 14 के समता सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि असम की परिस्थितियाँ बांग्लादेश की सीमा से लगे अन्य राज्यों से मौलिक रूप से भिन्न हैं।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की सहमति वाली राय
- न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला ने भी बहुमत की राय से सहमति जताते हुए सभी बिंदुओं पर मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ का समर्थन किया।
- उन्होंने जनसांख्यिकी प्रबंधन एवं असमिया सांस्कृतिक संरक्षण के बीच संतुलन बनाने के महत्त्व पर बल दिया।
- न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला इस तथ्य से सहमत थे कि धारा 6A अनुच्छेद 29 के अंतर्गत असमिया नागरिकों के सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती है, क्योंकि यह केवल उन दीर्घकालिक निवासियों को नागरिकता प्रदान करती है जो विशिष्ट मानदंडों को पूरा करते हैं।
न्यायालय का अंतिम निर्णय क्या था?
उच्चतम न्यायालय ने सर्वसम्मति से नागरिकता अधिनियम की धारा 6A को यथावत रखा, तथा पाया कि यह ऐतिहासिक प्रवास से उत्पन्न असम के विशिष्ट जनसांख्यिकीय एवं सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने के लिये संवैधानिक एवं आवश्यक है। न्यायालय ने निर्णय दिया कि:
- संसद के पास संविधान के अनुच्छेद 11 के अनुसार धारा 6A को लागू करने का विधायी अधिकार है।
- धारा 6A अनुच्छेद 14 के अंतर्गत समता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है, क्योंकि असम की स्थिति अलग व्यवहार को उचित सिद्ध करती है।
- धारा 6A अनुच्छेद 29 के अंतर्गत सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती है, क्योंकि यह असमिया सांस्कृतिक पहचान का सम्मान करते हुए चुनिंदा नागरिकता प्रदान करती है।
- धारा 6A अनुच्छेद 355 के अनुरूप है, जो प्रवासन से संबंधित सुरक्षा चिंताओं को संरचित तरीके से संबोधित करती है।
- धारा 6A के अंतर्गत प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय, जिसमें विदेशी अधिकरण भी शामिल हैं, नागरिकता के दावों के लिये एक निष्पक्ष प्रणाली प्रदान करते हैं।
निष्कर्ष
धारा 6A को यथावत रखते हुए न्यायालय ने जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के प्रबंधन, राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने औएवं र असमिया सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने में विधि के महत्त्व को मान्यता दी। जबकि धारा 6A को संवैधानिक रूप से वैध पाया गया, न्यायालय ने कहा कि असम के जनसांख्यिकीय एवं सांस्कृतिक परिदृश्य के निरंतर विकसित होने के कारण इस संतुलन को बनाए रखने के लिये निरंतर समीक्षा एवं समायोजन की आवश्यकता हो सकती है।