होम / एडिटोरियल
सांविधानिक विधि
भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु
« »13-Sep-2024
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
परिचय:
हरीश राणा के हालिया मामले ने भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु को फिर से चर्चा में ला दिया है। निष्क्रिय इच्छामृत्यु का अर्थ है कि किसी ऐसे व्यक्ति के लिये चिकित्सीय जीवन रक्षा उपचार बंद करना जो अत्यधिक बीमार है तथा ठीक नहीं हो सकता, उस व्यक्ति को कुछ प्रक्रियाओं का प्रयोग कर स्वाभाविक रूप से मरने देना। भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर विधान समय के साथ परिवर्तित हो गए हैं और रोगियों एवं उनके परिवारों के लिये इसका अर्थ भी परिवर्तित हो गया है।
हरीश राणा बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि एवं न्यायालय की टिप्पणी क्या थी?
पृष्ठभूमि:
- 30 वर्षीय हरीश राणा वर्ष 2013 में एक इमारत की चौथी मंज़िल से गिरने के बाद से स्थायी रूप से गंभीर अवस्था में हैं।
- वह 100% विकलांगता के कारण क्वाड्रिप्लेजिया से पीड़ित हैं और विगत 10 वर्षों से बिस्तर पर हैं।
- उनके वृद्ध माता-पिता उनकी देखभाल करते रहे हैं, परंतु अब वे अपनी उम्र एवं आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण संघर्ष कर रहे हैं।
- राणा के माता-पिता ने अपने पुत्र के लिये निष्क्रिय इच्छामृत्यु की मांग करते हुए याचिका दायर की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ:
- उच्चतम न्यायालय ने इच्छामृत्यु की याचिका पर विचार करने से प्रतिषेध कर दिया।
- उच्चतम न्यायालय का तर्क:
- यह निष्क्रिय इच्छामृत्यु का मामला नहीं है क्योंकि राणा पूरी तरह से जीवन रक्षक मशीनों पर निर्भर नहीं था।
- राणा को जीवन रक्षक मशीनों की सहायता से जीवित नहीं रखा जा रहा था और वह बिना किसी बाहरी सहायता के अपना जीवन यापन कर सकता था। (उसे एक फीडिंग ट्यूब के माध्यम से पोषण प्राप्त हो रहा था।)
- न्यायालय ने कहा कि इसे सक्रिय इच्छामृत्यु माना जाएगा, जिसकी भारत में अनुमति नहीं है। सक्रिय इच्छामृत्यु भारत में अवैध है।
इच्छामृत्यु क्या है?
- इच्छामृत्यु, रोगी की पीड़ा को सीमित करने के लिये उसके जीवन को समाप्त करने की प्रक्रिया है।
- इच्छामृत्यु दो प्रकार की होती है-
- निष्क्रिय इच्छामृत्यु (भारत में वैध)
- सक्रिय इच्छामृत्यु (भारत में अभी भी अवैध)
- निष्क्रिय इच्छामृत्यु एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी असाध्य रोग से पीड़ित व्यक्ति को जीवनदायी चिकित्सा उपचार रोककर मरने दिया जाता है।
- सक्रिय इच्छामृत्यु तब होती है जब विशेषज्ञ चिकित्सक, या कोई अन्य व्यक्ति, जानबूझकर कुछ ऐसा करता है जिससे रोगी की मृत्यु हो जाती है, जैसे रोगी को घातक इंजेक्शन देना।
भारत में इच्छामृत्यु पर ऐतिहासिक निर्णयज विधियाँ क्या हैं?
अरुणा रामचन्द्र शानबाग बनाम भारत संघ (2011)
- पृष्ठभूमि:
- मुंबई के KEM अस्पताल की नर्स अरुणा शानबाग पर वर्ष 1973 में एक वार्ड अटेंडेंट ने यौन हमला किया था।
- इस हमले के कारण उसके मस्तिष्क में चोट लग गई, जिसके परिणामस्वरूप वह दशकों तक 'स्थायी रूप से निष्क्रिय अवस्था' में रही।
- एक पत्रकार और लेखक ने वर्ष 2009 में उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की थी।
- याचिका में शानबाग के जीवन रक्षक उपचार को समाप्त करने की मांग की गई है तथा शांतिपूर्वक मरने के उनके अधिकार का समर्थन किया गया है।
- न्यायालय की टिप्पणियाँ:
- न्यायालय ने विशेष रूप से शानबाग के लिये निष्क्रिय इच्छामृत्यु को अस्वीकार कर दिया और कहा कि वह अभी जीवित है और उसे जीवन रक्षक प्रणाली की आवश्यकता नहीं है।
- इस निर्णय में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार के भाग के रूप में 'सम्मान के साथ मरने के अधिकार' की अवधारणा को स्वीकार किया गया।
- उच्चतम न्यायालय ने सक्रिय एवं निष्क्रिय इच्छामृत्यु के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दे दी।
- इस निर्णय ने स्थायी रूप से गंभीर अवस्था (PVS) में रोगियों के लिये निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दे दी।
कॉमन कॉज बनाम भारत संघ (2018):
- भारत के उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय में व्यक्ति के सम्मान के साथ मरने के अधिकार को मान्यता देते हुए कहा कि असाध्य रूप से बीमार व्यक्ति निष्क्रिय इच्छामृत्यु का विकल्प चुन सकता है और चिकित्सा उपचार से प्रतिषेध करने के लिये वसीयत बना सकता है।
- इसने असाध्य रूप से बीमार रोगियों द्वारा बनाई जाने वाली ‘लिविंग विल’ के लिये भी दिशा-निर्देश निर्धारित किये, जिन्हें पहले से ही अपने स्थायी रूप से गंभीर अवस्था में चले जाने की संभावनाओं के विषय में पता होता है।
- न्यायालय ने विशेष रूप से कहा कि मरने की प्रक्रिया में गरिमा, अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार का ही एक भाग है।
- जीवन के अंतिम समय में किसी व्यक्ति को सम्मान से वंचित करना, उसके सार्थक अस्तित्व से वंचित करना है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा निष्क्रिय इच्छामृत्यु के कार्यान्वयन के लिये हाल ही में क्या संशोधन और दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं?
- अग्रिम निर्देश में संशोधन:
- यदि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से सक्षम है तो वह अपने अग्रिम निर्देश को परिवर्तित कर सकता या वापस ले सकता है।
- परिवर्तन लिखित रूप में किये जाने चाहिये तथा मूल निर्देश के समान प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिये।
- अग्रिम निर्देश की प्रयोज्यता:
- यदि अप्रत्याशित परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाएँ, जो व्यक्ति के निर्णय को प्रभावित करती हों, तो यह निर्देश लागू नहीं होगा।
- अग्रिम निर्देश में अस्पष्टता:
- यदि स्पष्ट नहीं होगा तो निर्देश का पालन नहीं किया जाएगा।
- इसके स्थान पर बिना निर्देश वाले रोगियों के लिये दिशा-निर्देश लागू होंगे।
- अग्रिम निर्देश का अनुपालन न करना:
- यदि कोई चिकित्सालय किसी निर्देश का पालन न करने का निर्णय लेता है, तो उसे ज़िलाधिकारी द्वारा नियुक्त मेडिकल बोर्ड से मार्गदर्शन लेना होगा।
- अग्रिम निर्देश के बिना मामलों के लिये प्रक्रिया:
- गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिये एक प्राथमिक चिकित्सा बोर्ड का गठन किया जाता है।
- बोर्ड परिवार एवं चिकित्सकों से परामर्श करता है तथा चर्चाओं का दस्तावेज़ीकरण करता है।
- यदि उपचार बंद करने पर विचार किया जाता है, तो द्वितीयक चिकित्सा बोर्ड मामले की समीक्षा करता है।
- प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट (JMFC) को इस निर्णय का अनुमोदन करना होगा।
- उच्च न्यायालय को जीवन रक्षक प्रणाली हटाए जाने की सूचना दी जायेगी।
- मृत्यु के बाद तीन वर्षों तक रिकॉर्ड डिजिटल और हार्ड कॉपी में रखे जाते हैं।
- सहमति एवं निर्णय लेना:
- परिवार के सदस्यों या अभिभावकों को उपचार बंद करने के प्रभावों के विषय में अवश्य सूचित किया जाना चाहिये।
- निकटतम रिश्तेदार/अभिभावक से लिखित सहमति आवश्यक है।
- उपचार बंद करने से पूर्व कई स्तरों पर चिकित्सीय समीक्षा अनिवार्य है।
- समय-सीमा:
- प्राथमिक चिकित्सा बोर्ड को केस स्थानांतरित किये जाने के 48 घंटे के भीतर निर्णय लेना चाहिये।
- चिकित्सालय को माध्यमिक बोर्ड के निर्णय के 48 घंटे के भीतर JMFC को सूचित करना चाहिये।
- न्यायिक निरीक्षण:
- JMFC को व्यक्तिगत रूप से रोगी की स्थिति एवं चिकित्सा रिपोर्ट का सत्यापन करना होगा।
- उपचार बंद करने के लिये JMFC की स्वीकृति आवश्यक है।
- उच्च न्यायालय सभी मामलों का रिकॉर्ड रखता है।
अन्य देशों में इच्छामृत्यु पर क्या विधान हैं?
- नीदरलैंड:
- इच्छामृत्यु को वैधता प्रदान करने वाला पहला देश।
- न्यायालयीय मामलों और विधान के माध्यम से स्थापित कठोर शर्तों के अंतर्गत अनुमति दी गई।
- अनुरोध पर जीवन समाप्ति और सहायता प्राप्त आत्महत्या अधिनियम (2001) ने इच्छामृत्यु तथा चिकित्सक सहायता प्राप्त आत्महत्या को वैध बना दिया।
- बेल्जियम:
- वर्ष 2002 में इच्छामृत्यु को वैध बनाया गया।
- असहनीय पीड़ा से पीड़ित वयस्कों के लिये स्वैच्छिक और गैर-स्वैच्छिक इच्छामृत्यु की अनुमति देता है।
- विदेशियों को इच्छामृत्यु का अनुरोध करने की अनुमति देता है।
- लक्समबर्ग:
- वर्ष 2009 में इच्छामृत्यु एवं सहायता प्राप्त आत्महत्या पर अधिनियम बनाया गया।
- गंभीर, असाध्य स्थितियों से पीड़ित वयस्कों के लिए इच्छामृत्यु की अनुमति देता है।
- स्विट्ज़रलैंड:
- इच्छामृत्यु अवैध है, परंतु कुछ शर्तों के अधीन सहायता प्राप्त आत्महत्या की अनुमति है।
- डिग्निटास जैसे संगठन गंभीर रोगियों को आत्महत्या में सहायता प्रदान करते हैं।
- कोलंबिया:
- वर्ष 1997 में संवैधानिक न्यायालय के निर्णय के माध्यम से इच्छामृत्यु को वैध बनाया गया।
- यह विशेष परिस्थितियों में इच्छामृत्यु की अनुमति देता है, जिसमें असाध्य बीमारी के कारण असहनीय पीड़ा भी शामिल है।
- यूनाइटेड किंगडम:
- स्थायी गंभीर अवस्था (PVS) में रोगियों के लिये निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति देता है।
- एरेडेल NHS ट्रस्ट बनाम ब्लैंड (1993) मामले पर आधारित।
- ऑस्ट्रेलिया:
- चिकित्सा उपचार से प्रतिषेध करने एवं अग्रिम चिकित्सा निर्देश देने के अधिकार को मान्यता दी गई है।
- व्यक्ति के सर्वोत्तम हित पर आधारित निर्णय।
- कनाडा:
- वर्ष 2016 में मृत्यु पर विधिक चिकित्सा सहायता (MAID)।
- गंभीर और असाध्य चिकित्सा स्थितियों वाले वयस्कों के लिये उपलब्ध है।
- अमेरिका:
- कई राज्यों ने इच्छामृत्यु या सहायता प्राप्त मृत्यु को वैधानिकता प्रदान की है।
- उदाहरण: ओरेगन का डेथ विद डिग्निटी एक्ट (1997), वाशिंगटन का डेथ विद डिग्निटी एक्ट (2008), कैलिफोर्निया का एंड ऑफ लाइफ ऑप्शन एक्ट (2015)।
- स्पेन:
- वर्ष 2021 में इच्छामृत्यु और सहायता प्राप्त आत्महत्या को वैधता प्रदान की गई।
- यह उन वयस्कों के लिये उपलब्ध है जो गंभीर, असाध्य बीमारियों से पीड़ित हैं और असहनीय पीड़ा का कारण बनते हैं।
- फ्राँस:
- वर्ष 2023 तक, "मृत्यु में सहायता" नामक सहायता प्राप्त मृत्यु के एक रूप को वैध बनाने के लिये विधान बनाने पर विचार किया जा रहा है।
निष्कर्ष:
भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु एक जटिल मुद्दा बना हुआ है। हालाँकि अब कुछ मामलों में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति है, परंतु असाध्य रोगों से ग्रसित प्रियजनों की देखरेख करते समय परिवारों को अभी भी मुश्किल स्थितियों का सामना करना पड़ता है। लंबे समय तक देखभाल की उच्च आर्थिक लागत अक्सर इस भार को और बढ़ा देती है। न्यायालय ने विशेष रूप से कहा कि "मरने की प्रक्रिया में गरिमा” अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार का ही एक भाग है। परंतु फिर भी भारत में सक्रिय इच्छामृत्यु अवैध है।