होम / एडिटोरियल
सिविल कानून
न्याय की देवी की प्रतिमा का पुनर्निरुपण
« »18-Oct-2024
परिचय
भारत के उच्चतम न्यायालय ने परंपरा से हटकर लेडी जस्टिस (न्याय की देवी) की प्रतिमा का नया संस्करण प्रस्तुत किया है। पहले लेडी जस्टिस की आँखों पर पट्टी बंधी हुई थी तथा उनके एक हाथ में तलवार थी, जबकि नई प्रतिमा में लेडी जस्टिस की आँखें खुली रखी गई हैं तथा तलवार की जगह संविधान है। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने इस पुनर्निरुपण के द्वारा यह संदेश दिया कि भारत में न्याय अंधा नहीं है बल्कि बल्कि इसकी दृष्टि में सभी समान हैं।
विधिक प्रणालियों में लेडी जस्टिस की मान्यता एवं प्रतीकात्मकता क्या है?
- परिचय:
- न्याय की देवी को सबसे पहले रोमन सम्राट ऑगस्टस ने प्रस्तुत किया था, जो न्यायप्रियता को सबसे महत्त्वपूर्ण गुण मानते थे।
- देवी की छवि विधिक दर्शन में न्याय की देवी (प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व) के रूप में विकसित हुई।
- पारंपरिक प्रतीक एवं उनके निहितार्थ:
- तराजू: विवाद की स्थिति में दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य का मापन प्रदर्शित करता है।
- आंखों पर पट्टी: इसे बहुत बाद में, 16वीं शताब्दी में जोड़ा गया था।
- ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि आंखों पर पट्टी बांधने का प्रचलन प्रारंभ में व्यंग्य हेतु किया गया था।
- बाद में, इसे निष्पक्षता का प्रतीक माना जाने लगा
- टोगा: यूनानी-रोमन दुनिया के दार्शनिक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है
- तलवार: अधिकार एवं शक्ति का प्रतीक है (हालाँकि कुछ आधुनिक निर्वचन, जैसे कि भारत की नई मूर्ति, इसे हिंसा का प्रतिनिधित्व करने के रूप में मानती हैं)
- समय के साथ-साथ विभिन्न संस्कृतियों द्वारा इसके प्रतीकवाद को अपनाए जाने के साथ मूर्ति का विकास हुआ है।
जस्टिस लेडी में क्या प्रमुख परिवर्तन किये गए?
- आंखों पर से पट्टी हटाना:
- पारंपरिक आंखों पर बंधी पट्टी हटा दी गई है।
- यह परिवर्तन इस तथ्य का प्रतीक है कि "कानून अंधा नहीं है" बल्कि "सभी को समान रूप से देखता है"।
- यह औपनिवेशिक अवधारणा से परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है कि न्याय निष्पक्ष होना चाहिये।
- तलवार का प्रतिस्थापन:
- पारंपरिक तलवार को प्रतिस्थापित कर दिया गया है।
- इसे भारतीय संविधान के साथ प्रतिस्थापित किया गया।
- यह परिवर्तन इसलिये किया गया क्योंकि:
- तलवार को हिंसा का प्रतीक माना जाता था।
- संविधान दण्ड के बजाय विधिक ढाँचे के माध्यम से न्याय का प्रतिनिधित्व करता है।
- दण्डात्मक उपायों की तुलना में संवैधानिक मूल्यों पर बल देता है।
- सांस्कृतिक अनुकूलन:
- प्रतिमा अब पारंपरिक पश्चिमी पोशाक की जगह साड़ी पहनती है।
- यह भारत की सांस्कृतिक पहचान का प्रतिनिधित्व करती है।
- सुप्रीम कोर्ट लाइब्रेरी में स्थापित।
- यथावत रखे गए तत्त्व:
- दाहिने हाथ में तराजू अपरिवर्तित रहता है
- न्याय में संतुलन एवं निष्पक्षता का प्रतीक बने रहना
- दोनों पक्षों के साक्ष्यों के मूल्यांकन का प्रतिनिधित्व करना
- दाहिने हाथ में तराजू अपरिवर्तित रहता है
लेडी जस्टिस प्रतिमा में किये गए परिवर्तन का उद्देश्य क्या है?
- औपनिवेशिक विरासत से दूर हटना:
- ब्रिटिश युग के प्रतीकों एवं परंपराओं से मुक्ति पाना
- विधिक व्यवस्था में एक विशिष्ट भारतीय पहचान बनाना
- औपनिवेशिक युग के विधियों एवं प्रतीकों से दूर जाने के लिये व्यापक सुधारों का हिस्सा
- न्यायिक अवधारणा में परिवर्तन:
- इस बात पर बल देना कि "कानून अंधा नहीं है" बल्कि "सभी को समान रूप से देखता है"
- दण्डात्मक न्याय से संवैधानिक न्याय की ओर अग्रसर होना
- यह दिखाना कि न्यायालय पक्षपात पूर्ण निर्णय लेने के बजाय सचेत एवं युक्तियुक्त निर्णय लेते हैं
- विधिक प्रतीकवाद का आधुनिकीकरण:
- न्याय की समकालीन व्याख्याओं के साथ तालमेल बिठाना
- न्याय के प्रतीकों को आधुनिक भारत के लिये अधिक प्रासंगिक बनाना
- भारत के विधिक ढाँचे के विकास को प्रतिबिंबित करना
- संवैधानिक मूल्यों पर बल देना:
- तलवार को प्रतिस्थापित कर संविधान यह दर्शाता है:
- दण्ड के बजाय संवैधानिक सिद्धांतों पर ध्यान देना
- न्यायालय संवैधानिक विधियों के आधार पर न्याय प्रदान करते हैं
- न्याय प्रदान करने में विधिक ढाँचे का महत्त्व
- सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व:
- भारतीय तत्त्वों (जैसे साड़ी) को शामिल करने से पता चलता है:
- भारत की सांस्कृतिक पहचान को मान्यता देना
- पश्चिमी प्रतीकवाद से दूर जाना
- भारतीय नागरिकों के लिये अधिक प्रासंगिक प्रतीक बनाना
- भारतीय तत्त्वों (जैसे साड़ी) को शामिल करने से पता चलता है:
संवैधानिक मूल्य आधुनिक भारतीय पहचान एवं विधिक दर्शन को किस प्रकार आकार देते हैं?
- संवैधानिक मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करना:
- संविधान ने सत्ता के प्रतीक के रूप में तलवार की जगह ले ली है।
- दण्ड के बजाय संवैधानिक सिद्धांतों पर आधारित न्याय।
- विधि के अंतर्गत समानता एवं निष्पक्षता पर जोर।
- आधुनिक पहचान:
- औपनिवेशिक युग के प्रतीकों एवं विधियों से दूर जाना
- विशिष्ट भारतीय विधिक ढाँचा विकसित करना
- भारतीय सांस्कृतिक तत्त्वों को शामिल करना
- परिवर्तित दर्शन:
- न्याय जो "अंधा न्याय" के बजाय "सभी को समान रूप से देखता है"
- अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों के बीच संतुलन
- पारदर्शी एवं सचेत निर्णय लेना
- मूल सिद्धांत:
- सभी नागरिकों के लिये समान व्यवहार
- संविधान द्वारा निर्देशित न्याय
- विधिक कार्यवाही में निष्पक्षता
- भारतीय मूल्यों के साथ आधुनिक दृष्टिकोण का मिश्रण
निष्कर्ष
लेडी जस्टिस की नई प्रतिमा औपनिवेशिक युग के प्रतीकों से दूर होकर विधिक व्यवस्था में अपनी पहचान की ओर भारत के कदम को दर्शाती है। तलवार की जगह संविधान को स्थापित करके तथा आंखों से पट्टी हटाकर, यह दर्शाता है कि आधुनिक भारतीय न्याय दण्ड के विषय में नहीं बल्कि संवैधानिक मूल्यों के आधार पर निष्पक्षता एवं समानता सुनिश्चित करने के विषय में है। यह परिवर्तन भारत की विधिक प्रणाली को आधुनिक बनाने के एक बड़े प्रयास का हिस्सा है, जबकि इस मूल सिद्धांत को बनाए रखा गया है कि न्याय सभी के लिये संतुलित एवं निष्पक्ष होना चाहिये।