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सिविल कानून

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005

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 15-Oct-2024

स्रोत: द हिंदू 

परिचय

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम 2005 भारतीय नागरिकों के लिये भ्रष्टाचार को प्रकटित करने तथा सरकार को उत्तरदायी बनाने का एक शक्तिशाली साधन रहा है। यह लगभग 20 वर्षों से अस्तित्व में है, तथा लोगों को उनके देश के संचालन के विषय में महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त करने में सहायता करता है।हालाँकि, क्योंकि यह इतना प्रभावी है, इसलिये विधि एवं इसका उपयोगकर्त्ता के विरुद्ध प्रयोग किया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार विभिन्न तरीकों से RTI अधिनियम को कमज़ोर करने की कोशिश कर रही है।

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 क्या है?  

  • सूचना का अधिकार (धारा 3):
    • इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन सभी नागरिकों को सूचना का अधिकार है।
  • सार्वजनिक प्राधिकरणों के दायित्व (धारा 4):
    • अभिलेखों को बनाए रखना एवं सूचीबद्ध करना
    • उचित समय के अंदर अभिलेखों को कम्प्यूटरीकृत करना
    • अधिनियमन के 120 दिनों के अंदर संगठन के विषय में विभिन्न विवरण प्रकाशित करना
    • प्रभावित व्यक्तियों को प्रशासनिक या अर्ध-न्यायिक निर्णयों के कारण बताना
  • लोक सूचना अधिकारियों का पदनाम (धारा 5):
    • प्रत्येक लोक प्राधिकरण को केंद्रीय या राज्य लोक सूचना अधिकारी नामित करना होगा।
    • उप-मंडल या उप-जिला स्तर पर सहायक लोक सूचना अधिकारी नामित किये जाएंगे।
  • सूचना प्राप्त करने के लिये निवेदन (धारा 6):
    • अनुरोध लिखित, इलेक्ट्रॉनिक या मौखिक रूप से किया जा सकता है।
    • आवेदकों को जानकारी मांगने के लिये कारण बताने की आवश्यकता नहीं है।
  • निवेदन का निपटान (धारा 7):
    • अनुरोध के 30 दिनों के अंदर सूचना प्रदान की जानी चाहिये।
    • यदि सूचना जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित है, तो उसे 48 घंटों के अंदर प्रदान किया जाना चाहिये।
    • सूचना प्रदान करने के लिये शुल्क लिया जा सकता है।
  • सूचना के प्रकटीकरण से छूट (धारा 8):
    • छूट के लिये विभिन्न आधारों की सूची, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा, वाणिज्यिक विश्वास एवं व्यक्तिगत सूचना निहित है।
    • छूट के बावजूद लोक हित का प्रकटन संभव है।
  • कुछ मामलों में प्रवेश की अस्वीकृति के आधार (धारा 9):
    • यदि निवेदन कॉपीराइट का उल्लंघन करते हों तो उन्हें अस्वीकार किया जा सकता है।
  • पृथक्करणीयता (धारा 10):
    • यदि छूट प्राप्त सूचना को उचित रूप से अलग किया जा सकता है तो रिकॉर्ड के भाग तक पहुँच प्रदान की जा सकती है।
  • तृतीय पक्ष की सूचना (धारा 11):
    • किसी तीसरे पक्ष से संबंधित या उसके द्वारा प्रदान की गई सूचना को संभालने की प्रक्रिया।
  • सूचना आयोगों का गठन (धारा 12-15):
    • केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों की स्थापना
    • सूचना आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया
  • पदावधि एवं सेवा शर्ते (धारा 13 एवं 16):
    • सूचना आयुक्तों के लिये सेवा की शर्तें, वेतन एवं शर्तें
  • सूचना आयुक्तों को हटाना (धारा 14 एवं 17):
    • सूचना आयुक्तों को हटाने के आधार एवं प्रक्रिया प्रावधानित करना।
  • सूचना आयोगों की शक्तियाँ एवं कार्य (धारा 18):
    • आयोग शिकायतों की जाँच कर सकता है तथा उसके पास सिविल न्यायालय की शक्तियाँ होती हैं।
  • अपील की प्रक्रिया (धारा 19):
    • प्रथम एवं द्वितीय अपील प्रक्रियाओं से संबंधित सूचना आयोगों के निर्णय बाध्यकारी होते हैं।
  • दण्ड (धारा 20):
    • अनुचित अस्वीकृति, विलंब या बाधा के लिये लोक सूचना अधिकारियों के लिये दण्ड।
    • लगातार उल्लंघन के लिये अनुशासनात्मक कार्यवाही की अनुशंसा की जाती है।

केन्द्रीय सूचना आयोग क्या है?

  • स्थापना:
    • केंद्रीय सूचना आयोग की स्थापना केंद्र सरकार द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) के प्रावधानों के अंतर्गत 2005 में की गई थी।
    • यह एक संवैधानिक निकाय नहीं है।
  • सदस्यता:
    • आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त एवं अधिकतम दस सूचना आयुक्त होते हैं।
  • नियुक्ति:
    • उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की अनुशंसा पर की जाती है, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता तथा प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री होते हैं।
  • कार्यकाल:
    • मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्त केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्धारित अवधि तक या 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, पद पर बने रहेंगे।
    • वे पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं हैं।
  • CIC की शक्तियाँ एवं कार्य:
    • RTI, 2005 के अंतर्गत मांगी गई सूचना के संबंध में किसी भी व्यक्ति से शिकायत प्राप्त करना तथा उसकी जाँच करना आयोग का कर्त्तव्य है।
    • आयोग किसी भी मामले में उचित आधार (स्वप्रेरणा शक्ति) होने पर जाँच का आदेश दे सकता है।
    • जाँच करते समय, आयोग के पास समन जारी करने, दस्तावेज मांगने आदि के संबंध में सिविल न्यायालय की शक्तियाँ होती हैं।

RTI अधिनियम के अंतर्गत सूचना आयोगों के समक्ष क्या शक्तियाँ एवं चुनौतियाँ हैं?

  • सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम लोगों के सूचना के अधिकार की सुरक्षा एवं सुविधा के लिये अंतिम अपीलीय प्राधिकरण के रूप में सूचना आयोग की स्थापना करता है।
  • सूचना आयोगों के पास व्यापक अधिकार हैं, जिनमें ऐसी सूचनाओं का प्रत्यक्ष प्रकटीकरण भी शामिल है जो सरकार को असुविधाजनक लग सकती हैं।
  • उच्चतम न्यायालय ने सूचना आयोगों, विशेषकर केंद्रीय सूचना आयोग में रिक्तियों को भरने के लिये बार-बार निर्देश जारी किये हैं।
  • वर्ष 2023 में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सूचना आयोगों में रिक्तियों को भरने में विफलता ऐसी स्थिति उत्पन्न कर रही है, जहाँ "संसद के अधिनियम के अंतर्गत मान्यता प्राप्त सूचना का अधिकार एक मृत पत्र बन जाता है।"
  • RTI अधिनियम में प्रोत्साहन एवं हतोत्साहन का एक ढाँचा शामिल है, जिसमें पारदर्शिता विधि के उल्लंघन के लिये दण्ड लगाने की शक्ति भी निहित है।
  • सूचना आयुक्तों के पास उन मामलों में दण्ड लगाने का अधिकार है जहाँ RTI अधिनियम का उल्लंघन किया जाता है, हालाँकि रिपोर्ट बताती है कि इस शक्ति का शायद ही कभी प्रयोग किया जाता है।

भारत में सूचना के अधिकार पर हाल के संशोधनों एवं विधानों का क्या प्रभाव पड़ा है?

  • 2019 संशोधन:
    • केंद्र सरकार को सभी सूचना आयुक्तों के कार्यकाल, वेतन, पेंशन एवं सेवानिवृत्ति के बाद के अधिकारों को निर्धारित करने का अधिकार दिया गया।
    • इस संशोधन से सूचना आयोगों की स्वायत्तता प्रभावित हुई।
  • डिजिटल पर्सनल डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023:
    • RTI कानून में संशोधन के लिये एक स्पष्ट प्रावधान प्रस्तुत किया गया।
    • RTI अधिनियम के अंतर्गत सभी व्यक्तिगत सूचना को प्रकटीकरण से छूट दी गई।
  • RTI अधिनियम की धारा 8(1)(j) में संशोधन:
    • मूल प्रावधान: व्यक्तिगत सूचना देने से मना करने के लिये विशिष्ट शर्तों के माध्यम से गोपनीयता की रक्षा की गई।
    • संशोधित प्रावधान: सभी व्यक्तिगत सूचनाओं को RTI अधिनियम के दायरे से छूट देने के लिये इसका विस्तार किया गया।
  • प्रमुख प्रावधान का विलोपन:
    • उस प्रावधान को निरसित कर दिया गया जो नागरिकों को संसद सदस्यों एवं विधानसभा सदस्यों के समान सूचना का अधिकार देता था।
  • व्हिसिलब्लोवर्स संरक्षण अधिनियम, 2014:
    • 2014 में पारित हुआ लेकिन अभी तक अप्रभावी है।
    • केंद्र सरकार इस अधिनियम को लागू करने के लिये नियम बनाने में विफल रही है।
  • RTI उपयोगकर्त्ताओं पर प्रभाव:
    • ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया के आंकड़ों के अनुसार, RTI अधिनियम का उपयोग करने के कारण लगभग 100 लोगों की हत्या की गई है।
    • हजारों लोगों पर हमला किया गया, उन्हें धमकाया गया एवं मिथ्या आरोपों का सामना करना पड़ा।
  • RTI उपयोग का पैमाना:
    • भारत में प्रतिवर्ष लगभग 6 मिलियन सूचना आवेदन दायर किये जाते हैं।
  • RTI का महत्त्व:
    • RTI कानून लोकतांत्रिक ढाँचे में सत्ता के पुनर्वितरण में सहायक रहा है।
    • इसने सरकार एवं नागरिकों के बीच संबंधों को बदल दिया है।

निष्कर्ष:

RTI अधिनियम नागरिकों को शक्ति अंतरित करने तथा सरकार के साथ उनके व्यवहार को परिवर्तित करने में महत्त्वपूर्ण रहा है। हर वर्ष भारत में लगभग 6 मिलियन सूचना निवेदन दायर किये जाते हैं, जो दर्शाता है कि यह कानून लोगों के लिये कितना महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि, RTI अधिनियम का उपयोग करना खतरनाक हो सकता है - कुछ लोगों की इसके लिये हत्या भी की गई है, जबकि अन्य को धमकियों एवं मिथ्या आरोपों का सामना करना पड़ा है। यदि सरकार इस कानून को कमजोर करना जारी रखती है, तो यह न केवल पारदर्शिता को क्षति पहुँचा रही है, बल्कि लोकतंत्र को भी कमजोर कर रही है।