Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय कानून

आत्मरक्षा का अधिकार

    «    »
 04-Dec-2023

स्रोत: द हिंदू 

परिचय:

अंतर्राष्ट्रीय विधि के तहत आत्मरक्षा का अधिकार इज़रायल-फिलिस्तीनी युद्ध के समय सुर्खियों में आया। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने हाल ही में कहा है कि हमास के हमले के विरुद्ध आत्मरक्षा के अधिकार का उपयोग करने के बाद इज़राइल को अंतर्राष्ट्रीय विधि के तहत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) से संपर्क करना चाहिये था। अंतर्राष्ट्रीय विधि आत्मरक्षा का अधिकार प्रदान करती है किंतु यह आत्मरक्षा के अधिकार से आगे बढ़कर नागरिकों को हानि नहीं पहुँचा सकती।

आत्मरक्षा का कृत्य गैर-योधकों के विरुद्ध बल की अत्यधिक या अंधाधुंध तैनाती को उचित नहीं ठहराता है। रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि इज़राइल के हमले के दौरान गाज़ा में हताहतों की संख्या इस सदी में अभूतपूर्व है, जो लगभग 15,000 तक पहुँच गई है, जिसमें अधिकांश महिलाएँ और बच्चे हैं।

आत्मरक्षा का अधिकार क्या है?

  • आत्मरक्षा का अधिकार अंतर्राष्ट्रीय विधि में गहनता से समाहित एक मौलिक सिद्धांत है, जो आसन्न खतरों से स्वयं को बचाने के लिये राज्यों और व्यक्तियों के अंतर्निहित अधिकार को दर्शाता है।
  • इसका उल्लेख संयुक्त राष्ट्र चार्टर, 1945 के अनुच्छेद 51 में किया गया है।
  • यह लेख सशस्त्र हमले के विरुद्ध व्यक्तिगत या सामूहिक आत्मरक्षा के अंतर्निहित अधिकार को मान्यता देता है, साथ ही अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने में UNSC की प्राथमिक भूमिका की पुष्टि करता है।
  • अनुच्छेद 51 में प्रयुक्त भाषा, विशेष रूप से आत्मरक्षा के लिये एक सशस्त्र हमले की आवश्यकता, अंतर्राष्ट्रीय कानूनी प्रवचन में भाषांतरण और विचार-विमर्श का विषय रही है।
  • 19वीं सदी के कैरोलिन टेस्ट (Caroline Test) ने अंतर्राष्ट्रीय विधि में आत्मरक्षा के अधिकार के उपयोग को समझाया है।

आत्मरक्षा के अधिकार के कैरोलीन टेस्ट का क्या प्रभाव है?

  • वर्ष 1837 की कैरोलीन घटना, जिसमें कनाडाई विद्रोह के दौरान ब्रिटिश सेना द्वारा संयुक्त राष्ट्र के जहाज़ को जलाना शामिल था, ने प्रसिद्ध "कैरोलिन टेस्ट" को जन्म दिया।
  • तत्कालीन अमेरिकन सेक्रेटरी डैनियल वेबस्टर द्वारा व्यक्त किये गए इस टेस्ट ने उन स्थितियों को सामने रखा, जिनके तहत अग्रिम आत्मरक्षा को उचित ठहराया गया।
  • कैरोलीन टेस्ट के अनुसार, आत्मरक्षा में बल का उपयोग "तत्काल अपरिहार्य होना चाहिये और साधनों का कोई विकल्प तथा विचार-विमर्श के लिये कोई क्षण नहीं छोड़ा जाना चाहिये।"

आत्मरक्षा के अधिकार के प्रकार क्या हैं?

  • स्थूल रूप से आत्मरक्षा दो प्रकार की- पूर्वनिर्धारित और निवारक होती है। पूर्वनिर्धारित और निवारक आत्मरक्षा के बीच अंतर अंतर्राष्ट्रीय कानूनी बहस में विवाद का विषय रहा है।
    • पूर्वनिर्धारित आत्मरक्षा: इसमें आसन्न खतरे के जवाब में बल का उपयोग शामिल होता है, जहाँ हमला आसन्न और अपरिहार्य होता है।
    • निवारक आत्मरक्षा: यह संभावित भविष्य के खतरे का अनुमान लगाती है और इसमें खतरा पूर्ण होने से पूर्व उसे समाप्त करने के लिये बलप्रयोग शामिल होता है।
      • जबकि कुछ लोगों का तर्क है कि निवारक आत्मरक्षा संयुक्त राष्ट्र चार्टर के साथ असंगत है, दूसरों का तर्क है कि इसे कुछ परिस्थितियों में, जैसे सामूहिक विनाश के हथियारों के खतरे में उचित ठहराया जा सकता है।

आत्मरक्षा के अधिकार पर ऐतिहासिक मामले क्या हैं?  

  • निकारागुआ बनाम संयुक्त राज्य अमेरिका (1986):
    • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने कहा कि किसी सशस्त्र हमले पर विचार करने के लिये "पैमाने और प्रभाव" के एक निश्चित स्तर तक पहुँचना होगा; प्रत्येक हमला सशस्त्र हमले के रूप में वर्गीकृत होने के मानदंडों को पूर्ण नहीं करता है।
    • ICJ ने "सशस्त्र हमले" का अर्थ भी स्पष्ट किया जिसके विरुद्ध आत्मरक्षा के अधिकार का प्रयोग किया जा सकता है। इसमें कहा गया है कि यहाँ सशस्त्र हमले का अर्थ "बल के प्रयोग का सबसे भयानक रूप" है, हालाँकि न्यायालय ने "बलप्रयोग के भयानक रूप" का अर्थ स्पष्ट नहीं किया है।
  • इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान बनाम संयुक्त राज्य अमेरिका (2003):
    • ICJ ने पाया कि हमले की घटना को साबित करने के लिये सबूत का बोझ राज्य पर था जो आत्मरक्षा में बल के उपयोग को उचित ठहराने की मांग कर रहा था।

निष्कर्ष:

अभूतपूर्व हताहतों की रिपोर्ट, विशेष रूप से नागरिकों के बीच, यह सुनिश्चित करने के महत्त्व को रेखांकित करती है कि आत्मरक्षा के कृत्य अंतर्राष्ट्रीय मानवीय सिद्धांतों का पालन करते हैं, बल के अत्यधिक या अंधाधुंध उपयोग को रोकते हैं। आत्मरक्षा का अधिकार संयुक्त राष्ट्र चार्टर में पीड़ित राष्ट्र के विनाश को बढ़ाने हेतु तलवार प्रदान करने के लिये नहीं, बल्कि मानवीय अधिकारों की सहायता करने के लिये निहित है।