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सिविल कानून

भारत में सड़क सुरक्षा

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 11-Sep-2024

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

"सड़क सुरक्षा पर भारत स्थिति रिपोर्ट 2024" भारत में सड़क सुरक्षा की चिंताजनक तस्वीर प्रस्तुत करती है। अन्य क्षेत्रों में प्रगति के बावजूद, देश सड़क दुर्घटना से होने वाली मौतों को कम करने के लिये संघर्ष कर रहा है। IIT दिल्ली में परिवहन अनुसंधान एवं चोट निवारण कार्यक्रम (TRIP सेंटर) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट, विभिन्न राज्यों में सड़क सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण असमानताओं को प्रकटन करती है। यह सड़क निर्माण, गतिशीलता एवं दुर्घटना रोकथाम के बीच जटिल संबंधों को ध्यान में रखते हुए सड़क सुरक्षा मुद्दों को संबोधित करने के लिये अधिक अनुरूप दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर देती है।

भारतीय राज्यों में सड़क सुरक्षा प्रदर्शन एवं यातायात मृत्यु दर में क्या अंतर है?

  • सड़क सुरक्षा प्रदर्शन भारतीय राज्यों में काफी भिन्न है, उच्चतम एवं निम्नतम प्रदर्शन करने वाले राज्यों के बीच प्रति व्यक्ति मृत्यु दर में तीन गुना से अधिक का अंतर है।
  • तमिलनाडु, तेलंगाना एवं छत्तीसगढ़ में क्रमशः 21.9, 19.2 और 17.6 प्रति 100,000 लोगों पर सबसे अधिक मृत्यु दर दर्ज की गई, जबकि पश्चिम बंगाल एवं बिहार में 2021 में सबसे कम दर 5.9 प्रति 100,000 थी।
  • भारत में होने वाली सभी यातायात दुर्घटनाओं में से लगभग आधी दुर्घटनाएँ छह राज्यों- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान और तमिलनाडु में होती हैं।
  • केवल सात राज्यों में ही 50% से अधिक मोटर चालित दोपहिया यान चालक हेलमेट पहनते हैं, जबकि यह एक सरल सुरक्षा उपाय है, जिससे दुर्घटनाओं और गंभीर चोटों में उल्लेखनीय कमी आ सकती है।
  • केवल आठ राज्यों ने अपने राष्ट्रीय राजमार्गों की आधी से अधिक लंबाई का ऑडिट किया है, तथा बहुत कम राज्यों ने अपने राज्य राजमार्गों के लिये ऐसा किया है।
  • अधिकांश राज्यों में बुनियादी यातायात सुरक्षा उपायों की कमी है, जिसमें यातायात शांत करना, चिह्न एवं संकेत शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, ग्रामीण क्षेत्रों में हेलमेट का उपयोग विशेष रूप से कम है तथा कई राज्यों में आघात देखभाल सुविधाएँ अपर्याप्त हैं।

मोटर यान अधिनियम, 1988 भारत में सड़क सुरक्षा एवं परिवहन विनियमों को किस प्रकार नियंत्रित करता है?

  • भारत में सड़क सुरक्षा राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आती है।
  • मोटर यान अधिनियम, 1988 का प्रशासन परिवहन विभाग द्वारा किया जाता है, जो सरकार के अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण राजस्व-उत्पादक इकाई है।
  • मोटर यान अधिनियम, 1988 भारत की संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जो 1 जुलाई 1989 से लागू हुआ तथा पूरे भारत में लागू है, हालाँकि यातायात विधि के नियमों में दोष, उल्लंघन एवं दुर्घटनाएँ एक ज्वलंत वास्तविकता हैं।
  • मोटर यान अधिनियम, 1988 निम्नलिखित से संबंधित व्यापक विधायी प्रावधान निर्धारित करता है:
    • ड्राइवरों और कंडक्टरों का लाइसेंस
    • मोटर यानों का पंजीकरण
    • परमिट सिस्टम के माध्यम से मोटर यानों का विनियमन
    • राज्य परिवहन उपक्रमों से संबंधित विशेष प्रावधान
    • यातायात विनियमन
    • बीमा आवश्यकताएँ
    • दायित्व निर्धारण
    • अपराध और संबंधित दंड
  • भारत सरकार ने अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन को सुगम बनाने के लिये केंद्रीय मोटर यान नियम, 1989 को प्रख्यापित किया है।
  • उपर्युक्त अधिनियम एवं नियमों के पूरक के रूप में, सड़क उपयोग को नियंत्रित करने के लिये सड़क विनियमन नियम, 1989 की स्थापना की गई है।
  • परिवहन विभाग अपने अनिवार्य कार्यों को निष्पादित करने के लिये मोटर यान अधिनियम, 1988 की धारा 68 के अंतर्गत निर्धारित दो नामित प्राधिकरणों के साथ काम करता है।

मोटर यान चालकों के लाइसेंस से संबंधित प्रावधान क्या हैं?

  • धारा 3: ड्राइविंग लाइसेंस की आवश्यकता:
    • कोई भी व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थान पर मोटर यान तब तक नहीं चलाएगा जब तक कि उसके पास यान चलाने के लिये अधिकृत ड्राइविंग लाइसेंस न हो।
    • परिवहन यानों के लिये, ड्राइविंग लाइसेंस में धारक को ऐसे यान चलाने का विशेष अधिकार होना चाहिये।
  • धारा 4: यान चलाने के लिये आयु सीमा:
    • 18 वर्ष से कम आयु का कोई भी व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थान पर मोटर यान नहीं चलाएगा।
    • 50 cc से अधिक इंजन क्षमता वाली मोटरसाइकिल को 16 वर्ष की आयु प्राप्त व्यक्ति द्वारा चलाया जा सकता है।
    • 20 वर्ष से कम आयु का कोई भी व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थान पर परिवहन यान नहीं चलाएगा।
  • धारा 6: ड्राइविंग लाइसेंस रखने पर प्रतिबंध:
    • कोई भी व्यक्ति एक से अधिक ड्राइविंग लाइसेंस नहीं रखेगा।
    • ड्राइविंग लाइसेंस का कोई भी धारक किसी अन्य व्यक्ति को इसका उपयोग करने की अनुमति नहीं देगा।
  • धारा 8: लर्निंग लाइसेंस अभिप्राप्त करना:
    • कोई भी व्यक्ति जो धारा 4 के अंतर्गत अयोग्य नहीं है, वह लर्निंग लाइसेंस के लिये लाइसेंसिंग प्राधिकरण को आवेदन कर सकता है।
    • आवेदन के साथ एक चिकित्सा प्रमाण-पत्र होना चाहिये तथा आवेदक को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित एक परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी।
  • धारा 9: ड्राइविंग लाइसेंस अभिप्राप्त करना:
    • कोई भी व्यक्ति जो ड्राइविंग लाइसेंस रखने या प्राप्त करने के लिये अयोग्य नहीं है, वह ड्राइविंग लाइसेंस के लिये लाइसेंसिंग प्राधिकरण को आवेदन कर सकता है।
    • आवेदक को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित ड्राइविंग योग्यता परीक्षण पास करना होगा।
  • धारा 10: यान चलाने के लाइसेंस का प्रारूप एवं विषय-वस्तु:
    • प्रत्येक लर्निंग लाइसेंस एवं ड्राइविंग लाइसेंस केंद्रीय सरकार द्वारा निर्धारित प्रारूप में होगा तथा उसमें वही सूचना होगी।
  • धारा 13: लाइसेंस की प्रभावशीलता की सीमा:
    • इस अधिनियम के अधीन जारी किया गया लर्निंग लाइसेंस या ड्राइविंग लाइसेंस संपूर्ण भारत में प्रभावी होगा।
  • धारा 14: लाइसेंस की वैधता:
    • लर्निंग लाइसेंस छह महीने के लिये प्रभावी होगा।
    • परिवहन यान चलाने के लिये ड्राइविंग लाइसेंस तीन वर्ष के लिये प्रभावी होगा।
    • अन्य ड्राइविंग लाइसेंस 20 वर्ष या धारक के 50 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, प्रभावी रहेंगे।
  • धारा 15: ड्राइविंग लाइसेंस का नवीनीकरण:
    • कोई भी लाइसेंसिंग प्राधिकरण उसके पास आवेदन करने पर ड्राइविंग लाइसेंस का नवीनीकरण कर सकता है।
    • परिवहन यान लाइसेंस के नवीनीकरण के लिये या 40 वर्ष से अधिक आयु के आवेदकों के लिये, मेडिकल प्रमाण-पत्र की आवश्यकता होती है।
  • धारा 19: लाइसेंसिंग प्राधिकारी के पास अयोग्य घोषित करने की शक्ति:
    • लाइसेंसिंग प्राधिकारी किसी व्यक्ति को विशिष्ट कारणों से ड्राइविंग लाइसेंस रखने या प्राप्त करने से अयोग्य घोषित कर सकता है, जिसमें आदतन आपराधिक आचरण, संज्ञेय अपराध के लिये यान का उपयोग, या छल से लाइसेंस प्राप्त करना शामिल है।

मोटर यानों के पंजीकरण से संबंधित प्रावधान क्या हैं?

  • सभी मोटर यानों को सार्वजनिक स्थानों पर चलाने से पहले उनका पंजीकरण कराना अनिवार्य है, पंजीकरण उस क्षेत्राधिकार में किया जाना चाहिये जहाँ स्वामी रहता है या जहाँ यान आमतौर पर रखा जाता है।
  • पंजीकरण प्रक्रिया में आवेदन जमा करना, निरीक्षण के लिये यान प्रस्तुत करना तथा केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित विवरण युक्त पंजीकरण प्रमाण-पत्र प्राप्त करना शामिल है।
  • स्वामियों को स्वामित्व, पता या निवास स्थान (यदि 12 महीने से अधिक समय तक दूसरे राज्य में रखा गया हो) में किसी भी परिवर्तन की सूचना पंजीकरण प्राधिकारी को निर्दिष्ट समय-सीमा के अंदर देनी होगी।
  • अस्थायी पंजीकरण (एक महीने तक) और किराया-खरीद, पट्टे या दृष्टिबंधक करार के अंतर्गत यानों के लिये विशेष प्रावधान मौजूद हैं।
  • यदि यान को सार्वजनिक उपयोग के लिये खतरनाक माना जाता है या उसे नष्ट कर दिया गया है या स्थायी रूप से अनुपयोगी बना दिया गया है, तो अधिकारियों के पास यान पंजीकरण को निलंबित या रद्द करने की शक्ति है।
  • ये पंजीकरण आवश्यकताएँ यह सुनिश्चित करके सड़क सुरक्षा में योगदान करती हैं कि यानों का उचित रूप से दस्तावेज़ीकरण किया गया है, उन्हें ट्रैक किया जा सकता है तथा सुरक्षा मानकों को पूरा करने के लिये उनका रखरखाव किया गया है।

भारत में सड़क सुरक्षा उल्लंघन के लिये दंड का प्रावधान क्या हैं?

    • धारा 177 में अन्यत्र निर्दिष्ट न किये गए उल्लंघनों के लिये 500 रुपए तक का सामान्य अर्थदण्ड लगाया गया है, जबकि धारा 179 में अधिनियम अंतर्गत दिये गए वैध निर्देशों की अवहेलना करने पर समान अर्थदण्ड लगाया गया है।
    • धारा 180 और 181 अनाधिकृत ड्राइविंग को संबोधित करती हैं, जिसमें बिना लाइसेंस वाले व्यक्तियों को गाड़ी चलाने की अनुमति देने या वैध लाइसेंस के बिना गाड़ी चलाने पर 3 महीने तक की कैद और/या 1000 रुपए तक का अर्थदण्ड लगाया गया है।
    • धारा 183 तेज़ गति से यान चलाने से संबंधित है, जिसमें पहली बार अपराध करने वालों के लिये 400 रुपए तक का अर्थदण्ड तथा बार-बार अपराध करने वालों के लिये 1000 रुपए तक का अर्थदण्ड लगाया जाता है।
    • धारा 184 खतरनाक तरीके से यान चलाने पर 6 महीने तक का कारावास या 1000 रुपए तक के अर्थदण्ड का प्रावधान करती है, जबकि धारा 185 नशे में यान चलाने पर 6 महीने तक की कैद और/या 2000 रुपए तक के अर्थदण्ड का प्रावधान करती है।
    • धारा 192 अपंजीकृत यानों का उपयोग करने पर 5000 रुपए तक का अर्थदण्ड लगाती है, तथा धारा 194 ओवरलोड यानों के लिये 2000 रुपए का न्यूनतम अर्थदण्ड एवं अतिरिक्त भार के प्रति टन 1000 रुपए का अर्थदण्ड लगाती है।
    • धारा 177 से 194 तक के इन दण्डों का उद्देश्य उल्लंघनों को हतोत्साहित करके तथा उत्तरदायी ड्राइविंग व्यवहार को बढ़ावा देकर सड़क सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं को प्रवर्तित करना है।

भारतीय विधि में पैदल चलने वालों से संबंधित प्रावधान क्या हैं?

  • भारतीय दंड संहिता (1860):
    • धारा 279 पैदल चलने वालों सहित आम जनता को लापरवाही से यान चलाने से बचाती है।
    • धारा 304, 336, 337 एवं 338 मोटर चालकों की लापरवाही से सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे पैदल चलने वालों को नुकसान पहुँच सकता है।
  • मोटर यान अधिनियम (1988):
    • धारा 7 से लेकर 38 अप्रत्यक्ष रूप से कमज़ोर सड़क उपयोगकर्त्ताओं को गति सीमा पार करने पर मोटर चालकों को दण्डित करके और लाइसेंसों को विनियमित करके सुरक्षा प्रदान करती है।
    • धारा 138 (खंड h एवं i) राज्य सरकारों को मोटर यानों को ड्राइविंग या पार्किंग के लिये फुटपाथ का उपयोग करने से रोकने का अधिकार देती है।
  • सड़क विनियमन के नियम (1989):
    • नियम 8: पैदल यात्री क्रॉसिंग के पास पहुँचने पर ड्राइवरों को अपनी गति धीमी करनी चाहिये।
    • नियम 15: ट्रैफ़िक लाइट के पास, पैदल यात्री क्रॉसिंग या फुटपाथ पर पार्किंग प्रतिबंधित है।
    • नियम 11: ड्यूटी पर मौजूद पुलिस अधिकारियों की अनुमति के बिना मोटर यानों को फुटपाथ या साइकिल लेन पर जाने की अनुमति नहीं है।
  • नगर निगम अधिनियम:
    • बिना पूर्व अनुमति के सभी अवरोधों को अवैध घोषित करके सार्वजनिक सड़कों एवं गलियों की सुरक्षा करना।
    • सार्वजनिक सड़क की चौड़ाई के आधार पर फुटपाथ की चौड़ाई निर्धारित करने का अधिकार।

निष्कर्ष:

भारत में सड़क सुरक्षा को बेहतर बनाने के लिये, रिपोर्ट में कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाने का सुझाव दिया गया है। इसमें घातक दुर्घटनाओं के लिये एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने एवं इस जानकारी को सार्वजनिक रूप से सुलभ बनाने की अनुशंसा की गई है। इससे विशिष्ट जोखिमों को समझने एवं विभिन्न हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने में सहायता मिलेगी। रिपोर्ट में केंद्र एवं राज्य सरकारों दोनों को सड़क सुरक्षा उपायों को प्राथमिकता देने और बढ़ाने की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया गया है। कुल मिलाकर, सड़क दुर्घटनाओं को कम करने एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा लक्ष्यों को पूरा करने के लिये अधिक केंद्रित और डेटा-संचालित दृष्टिकोण आवश्यक है।