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अंतर्राष्ट्रीय नियम

उच्चतम न्यायालय द्वारा इज़रायल को सैन्य-निर्यात पर प्रतिबंध अस्वीकृत

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 18-Sep-2024

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

हाल ही में भारत के उच्चतम न्यायालय ने अशोक कुमार शर्मा एवं अन्य बनाम भारत संघ के मामले में एक याचिका को अस्वीकार कर दिया। पूर्व सिविल सेवकों, शिक्षाविदों और कार्यकर्त्ताओं द्वारा दायर इस याचिका में भारत सरकार को चल रहे संघर्ष के दौरान इज़रायल को सैन्य उपकरण निर्यात करने से रोकने की मांग की गई थी। याचिकाकर्त्ता चाहते थे कि मौजूदा लाइसेंस निलंबित कर दिये जाएँ तथा नए लाइसेंस रोक दिये जाएँ। यह मामला इस विषय में महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठाता है कि न्यायालय, विदेश नीति पर सरकारी निर्णयों की किस स्तर तक समीक्षा कर सकते हैं, विशेषतः जब अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार विधि का गंभीर उल्लंघन हो।

अशोक कुमार शर्मा एवं अन्य बनाम भारत संघ मामले में पृष्ठभूमि और न्यायालय की टिप्पणी क्या है?

पृष्ठभूमि:

  • यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत पूर्व सिविल सेवकों, विद्वानों, कार्यकर्त्ताओं और विशेषज्ञों द्वारा दायर की गई थी।
  • इसमें वर्तमान गाजा संघर्ष के दौरान इज़रायल को हथियार एवं सैन्य उपकरण निर्यात करने के लिये मौजूदा लाइसेंस रद्द करने तथा नए लाइसेंस जारी करने पर रोक लगाने का निर्देश देने की मांग की गई।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने भारत के अंतर्राष्ट्रीय विधिक दायित्वों और संविधान के अनुच्छेद 14, 21 तथा 51(C) के उल्लंघन का दावा किया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • न्यायालय ने कई कारणों से याचिका अस्वीकार कर दी: 
    • क्षेत्राधिकार: संविधान के अनुच्छेद 73 के अंतर्गत विदेशी मामलों पर क्षेत्राधिकार केंद्र सरकार में निहित है।
    • संप्रभु प्रतिरक्षा: एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में इज़राइल न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अधीन नहीं है।
    • अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध: लाइसेंस रद्द करने से अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों का उल्लंघन हो सकता है, जिससे भारतीय कंपनियों की वित्तीय व्यवहार्यता प्रभावित हो सकती है। 
    • वैधानिक प्रावधान: यदि आवश्यक हो तो केंद्र सरकार के पास मौजूदा विधानों के अंतर्गत कार्यवाही करने की पर्याप्त शक्ति है।
    • शक्तियों का पृथक्करण: न्यायालय ने विदेश नीति के क्षेत्रों में हस्तक्षेप करने पर आत्म-संयम की स्थिति को व्यक्त किया।
  • न्यायालय ने स्वीकार किया कि अंतर्राष्ट्रीय विधि को राष्ट्रीय विधि का भाग माना जाता है, जब तक कि विधायिका द्वारा स्पष्ट रूप से इसे विलग न किया जाए।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसकी टिप्पणियाँ भारत सरकार या उसके क्षेत्राधिकार के अधीन न आने वाले किसी संप्रभु राष्ट्र की विदेश नीति के संचालन पर किसी राय को प्रतिबिंबित नहीं करती हैं।
  • न्यायालय ने कहा कि सरकार को ऐसे मामलों पर निर्णय लेते समय अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं सहित सभी प्रासंगिक कारकों पर विचार करना चाहिये।
  • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अनुच्छेद 32 के अंतर्गत न्यायिक उपचार इस मामले में मांगी गई राहत के लिये उपयुक्त नहीं हैं।
  • निर्णय में परिणामों के व्यापक विश्लेषण के बिना न्यायालय द्वारा निषेधाज्ञा जारी करने के संभावित खतरों पर ज़ोर दिया गया।
  • न्यायालय ने सरकार को यह अधिकार दिया कि यदि आवश्यक समझा जाए तो वह विदेशी व्यापार (विनियमन एवं विकास अधिनियम) तथा सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 के अंतर्गत प्रतिबंध लगा सकती है।

दक्षिण अफ्रीका ने इज़रायल के विरुद्ध मामला क्यों दायर किया?

  • दक्षिण अफ्रीका ने नरसंहार अपराध की रोकथाम और दण्ड पर कन्वेंशन के अधीन अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में इज़रायल के विरुद्ध मामला दायर किया, जिसमें गाजा में फिलिस्तीनियों के विरुद्ध नरसंहारक कृत्यों का आरोप लगाया गया।
  • ICJ, संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है, जो राज्यों के बीच विधिक विवादों का निपटारा करता है, जिसमें नरसंहार कन्वेंशन की व्याख्या और अनुप्रयोग से संबंधित विवाद भी शामिल हैं।
  • ICJ व्यक्तिगत आपराधिक उत्तरदायित्व पर ध्यान केंद्रित नहीं करता है, बल्कि नरसंहार के लिये राज्य के उत्तरदायित्व पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 94 के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय विवाद से संबंधित पक्षों पर बाध्यकारी होते हैं।
  • ICJ ने जनवरी में इज़रायल के विरुद्ध अनंतिम उपाय करने का आदेश दिया था, जिसमें गाजा में हत्याओं एवं विनाश पर तत्काल रोक लगाना भी शामिल था।
  • संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इज़रायल को हथियार निर्यात करने से मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन हो सकता है तथा अंतर्राष्ट्रीय अपराधों में राज्य की संलिप्तता का संकट भी हो सकता है।
  • ICJ ने अधिकृत फिलिस्तीनी क्षेत्र में इज़रायल की उपस्थिति को विधि-विरुद्ध घोषित किया तथा कहा कि सभी राज्य इस स्थिति को बनाए रखने में सहायता न करने के लिये बाध्य हैं।
  • निकारागुआ बनाम जर्मनी मामले में, ICJ ने सभी राज्यों को सशस्त्र संघर्षों में पक्षों को हथियारों के निर्यात के संबंध में उनके अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों की याद दिलाई।
  • इन विधिक घटनाक्रमों एवं अंतर्राष्ट्रीय विधि के अधीन दायित्वों के मद्देनज़र कई देशों ने इज़रायल को हथियारों का निर्यात रोक दिया है या निलंबित कर दिया है।
  • ICJ की भूमिका राज्यों के बीच विवादों में नरसंहार कन्वेंशन सहित अंतर्राष्ट्रीय विधियों की व्याख्या करना और उसे लागू करना है।

निष्कर्ष:

फिलिस्तीन में मानवीय संकट तथा इज़रायल की कार्यवाहियों की अंतर्राष्ट्रीय निंदा के साथ, भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा इज़रायल को सैन्य सहायता रोकने से प्रतिषेध करने से भारत सरकार के अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुपालन के विषय में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं। इस निर्णय से युद्ध एवं उसके विनाशकारी प्रभावों पर निर्णायक प्रभाव पड़ सकता है, जो वैश्विक विधिक तथा नैतिक मानकों के साथ तालमेल बैठाने के एक गँवाए  हुए अवसर को प्रदर्शित करता है।