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सांविधानिक विधि
राज्य द्वारा उधार लेने की सीमाएँ
« »12-Nov-2024
स्रोत: द हिंदू
परिचय
वर्ष 2023 में केंद्र सरकार ने केरल राज्य के लिये उधारी की अधिकतम राशि निर्धारित की। उन्होंने इसे 'नेट बॉरोइंग सीलिंग' (NBC) कहा और इसे वर्ष 2023-24 के लिये केरल के सकल घरेलू उत्पाद का 3% निर्धारित किया। यह सीमा न केवल नियमित ऋणों को प्रभावित करती है, बल्कि बाज़ार उधार तथा राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों द्वारा उधार को भी कवर करती है। इसने केरल राज्य के लिये गंभीर समस्याएँ उत्पन्न कर दी हैं, जिसके कारण विकास और कल्याण कार्यक्रमों पर धन व्यय करना कठिन हो गया है। यह मुद्दा इतना गंभीर हो गया है कि केरल राज्य ने उच्चतम न्यायालय में अपील की। यह पहली बार हुआ है, जब न्यायालय को भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 293 की व्याख्या की आवश्यकता पड़ी।
NBC क्या है?
- NBC भारतीय संविधान के अनुच्छेद 293(3) के तहत केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की गई एक सीमा है, जो राज्यों की खुले बाज़ार उधार सहित सभी स्रोतों से कुल उधारी को प्रतिबंधित करती है।
 - केंद्र सरकार इस सीमा से विभिन्न देनदारियों की कटौती करती है, जिनमें राज्यों के सार्वजनिक खातों से प्राप्त देनदारियाँ तथा राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों द्वारा लिये गए उधार शामिल होते हैं, जहाँ मूलधन/ब्याज का भुगतान राज्य के बजट या राजस्व से किया जाता है।
 - वित्त वर्ष 2023 से ऑफ-बजट उधार (राज्य संस्थाओं और SPV द्वारा लिये गए ऋण) को अब राज्य सरकार के ऋण के रूप में गिना जाएगा, जिससे पारदर्शिता में सुधार होगा लेकिन राज्यों के लिये अनुपालन चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
 - कम उधारी सीमा का सामना कर रहे राज्यों को वैकल्पिक वित्तपोषण जैसे कि अर्थोपाय अग्रिम (WMA) और RBI से ओवरड्राफ्ट पर अधिक निर्भर रहना पड़ सकता है।
 - जबकि राज्य आमतौर पर अपने बजट में गारंटीकृत ऋण का खुलासा करते हैं, लेकिन ऑफ-बजट उधार की पूरी सीमा अक्सर अज्ञात रहती है, जिससे प्रत्येक राज्य के लिये सटीक NBC समायोजन निर्धारित करना कठिन हो जाता है।
 - इस प्रणाली का उद्देश्य राज्य के वित्त में राजकोषीय अनुशासन और पारदर्शिता को बढ़ाना है, हालाँकि डेटा सीमाओं एवं महामारी के बाद उधार लेने के पैटर्न के कारण इसके कार्यान्वयन में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
 
क्या केंद्र द्वारा लगाई गई नेट बॉरोइंग सीलिंग केरल की संवैधानिक वित्तीय स्वायत्तता का उल्लंघन करती है?
- संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन: 
- केरल का तर्क है कि राज्य की वित्तीय स्वायत्तता, जिसकी गारंटी भारत के संविधान द्वारा दी गई है, को केंद्र द्वारा अवैध रूप से कम कर दिया गया है।
 - वे केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए नेट बॉरोइंग सीलिंग (NBC) की संवैधानिकता पर प्रश्न उठाते हैं।
 
 - वित्तीय बाधाएँ:
- सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) पर 3% NBC सीमा उनकी उधार लेने की क्षमता को गंभीर रूप से सीमित करती है।
 - इस सीमा में उधार लेने के सभी विकल्पों को शामिल किया गया हैं: 
- खुले बाज़ार के ऋण
 - वित्तीय संस्थान ऋण
 - सार्वजनिक खाता उधारी
 - राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों द्वारा उधारी
 
 
 - विकासीय प्रभाव: 
- इन प्रतिबंधों के कारण केरल के लिये यह कठिन हो गया है कि वह:
 - अपनी नियमित व्यय आवश्यकताओं को पूरा करे
 - विकासीय परियोजनाओं में निवेश करे
 - कल्याणकारी गतिविधियाँ जारी रखे
 - राज्य के वित्त का प्रभावी प्रबंधन करे
 
 - केंद्रीय नियंत्रण का दायरा: 
- संविधान के अनुच्छेद 293 के तहत केंद्र की शक्ति की सीमा पर प्रश्न:
 - समेकित निधि की सुरक्षा पर उधार लेने का अधिकार।
 - राज्य उधार के लिये "सहमति" पर केंद्र सरकार का नियंत्रण।
 
 - विधिक उदाहरण:
- यह मामला ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पहली बार है, जब अनुच्छेद 293 की व्याख्या उच्चतम न्यायालय के द्वारा की गई है।
 - केरल ने केंद्र की उस शक्ति को चुनौती दी है, जिसके तहत वह उधार लेने पर ऐसी शर्तें लगा सकता है, जिन्हें वह अनुचित मानता है।
 
 - राजकोषीय स्वायत्तता:
- राज्य का तर्क है कि ये प्रतिबंध उनके अपने वित्त का प्रबंधन करने के संवैधानिक अधिकार का अतिक्रमण करते हैं।
 - प्रश्न यह है कि क्या केंद्र द्वारा लगाए गए राजकोषीय विनियमनों ने राजकोषीय समेकन पर भारतीय रिज़र्व बैंक के नियंत्रण को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।
 
 
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 293 क्या है?
- अनुच्छेद 293 को भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 163 से अपनाया गया था और संविधान सभा में इस पर व्यापक चर्चा की गई थी।
 - यह राज्य सरकारों को राज्य की समेकित निधि की सुरक्षा का उपयोग करके भारतीय क्षेत्र में उधार लेने का अधिकार देता है, जो कि उनके संबंधित राज्य विधानसभाओं द्वारा निर्धारित सीमाओं के अधीन है।
 - केंद्र सरकार को संसद द्वारा निर्धारित शर्तों के अधीन, राज्यों को ऋण देने और राज्य ऋणों के लिये गारंटी प्रदान करने का अधिकार होता है।
 - एक प्रमुख प्रतिबंध यह है कि यदि राज्यों पर केंद्र सरकार का कोई ऋण बकाया है, तो वे केंद्र की सहमति के बिना नया ऋण नहीं ले सकते।
 - केंद्र अनुच्छेद 293(4) के तहत राज्य उधारी के लिये सहमति देते समय शर्तें लगा सकता है, जो उसे राज्य उधारी पर महत्त्वपूर्ण नियंत्रण प्रदान करता है।
 - अनुच्छेद 293 को राज्य की स्वायत्तता और उधार पर केंद्रीय निगरानी के बीच संतुलन बनाते हुए राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने के लिये बनाया गया था।
 - संविधान सभा में विवाद के दौरान सदस्य अनंथशयनम अयंगर ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भविष्य की पीढ़ियों पर पड़ने वाले इसके प्रभाव के कारण उधार लेने की जाँच की आवश्यकता है।
 - गवर्नर-जनरल के माध्यम से विवाद समाधान के संबंध में वर्ष 1935 के अधिनियम की धारा 163(4) में मूल प्रावधान को संविधान के अनुच्छेद 293 में शामिल नहीं किया गया था।
 - समकालीन समय में इस अनुच्छेद ने नया स्वरुप प्राप्त कर लिया है, जैसा कि केरल द्वारा केंद्र के उधार प्रतिबंधों को दी गई चुनौती जैसे मामलों से स्पष्ट है तथा यह पहली बार है कि अनुच्छेद 293 को संवैधानिक व्याख्या के लिये सामने लाया गया है।
 
विधिक प्रावधान क्या हैं?
- संवैधानिक प्रावधान (अनुच्छेद 293):
- अनुच्छेद 293(2): राज्य सरकार समेकित निधि की सुरक्षा पर भारत के भीतर उधार ले सकती है।
 - अनुच्छेद 293(3): केंद्र सरकार को राज्य ऋण के लिये सहमति देने और शर्तें निर्धारित करने का अधिकार है।
 - अनुच्छेद 293(4): केंद्र सरकार राज्य ऋण के लिये गारंटी प्रदान कर सकती है।
 - उधार लेने की सीमा क्रमशः संसद और राज्य विधानमंडल द्वारा निर्धारित की जानी चाहिये।
 
 - भारत सरकार अधिनियम, 1935 संदर्भ: 
- धारा 163(3): संविधान के अनुच्छेद 293 के लिये आधार प्रदान करती है।
 - धारा 163(4): में कहा गया है कि संघ निम्नलिखित कार्य नहीं करेगा: 
- ऋण देने से अनुचित रूप से मना करना या देरी करना।
 - जब पर्याप्त कारण न दिखाया जाए तो अनुचित शर्तें लगाना।
 - यह खंड अंतिम संविधान में शामिल नहीं किया गया था।
 
 
 - राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम, 2003: 
- राजस्व की कमी को दूर करने के लिये लक्ष्य निर्धारित करता है।
 - केंद्र के वार्षिक राजकोषीय घाटे के लिये सकल घरेलू उत्पाद का 3% लक्ष्य निर्धारित करता है।
 - केंद्र सरकार से यह सुनिश्चित करने की अपेक्षा करता है कि:
- राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 3% से अधिक नहीं होना चाहिये।
 - कुल सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद के 60% से अधिक नहीं होना चाहिये।
 
 - वर्ष 2025-26 तक: सरकार का लक्ष्य राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.5% से कम करना है।
- FRBM संशोधन अधिनियम, 2018।
 - केंद्र सरकार को राजकोषीय घाटे की निगरानी करने की आवश्यकता है।
 - राज्यों ने घाटे को नियंत्रित करने के लिये अपने स्वयं के राजकोषीय कानून बनाए।
 - इसका उद्देश्य निम्नलिखित उपायों के माध्यम से वित्तीय अवरोध बनाए रखना है:  
- राजस्व की कमी को दूर करना
 - राजकोषीय घाटे में कमी
 
 
 
 - भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 163(3): 
- 'सहमति' प्रदान करने की शक्ति पर चर्चा करता है।
 - ऋण देने के लिये शर्तों को निर्दिष्ट करता है।
 - गारंटीकृत प्रावधानों से संबंधित है।
 - मूल रूप से इसे इसलिये शामिल किया गया था क्योंकि प्रशासन को संभालने के लिये एक अलग एजेंसी की अपेक्षा की गई थी।
 
 - ये प्रावधान सामूहिक रूप से निम्नलिखित को नियंत्रित करने वाला विधिक ढाँचा बनाते हैं: 
- राज्य की उधार लेने की शक्तियाँ
 - केंद्र-राज्य वित्तीय संबंध
 - राजकोषीय उत्तरदायित्व उपाय
 - राज्य स्वायत्तता के लिये संवैधानिक सुरक्षा उपाय
 
 
उचित ऋण प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिये अनुच्छेद 293 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते समय केंद्र को किन दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिये?
- वित्त आयोग के समान एक आयोग को ऋण अनुमोदन के संबंध में उठने वाले मुद्दों पर निर्णय लेने के लिये आवश्यक माना जाता है, जिसमें निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाता है:  
- राज्यों की वित्तीय स्थिति
 - राजकोषीय घाटे को सीमित करने का केंद्र का लक्ष्य
 
 - संविधान के अनुच्छेद 293(4) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते समय केंद्र को उचित दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा। ये दिशा-निर्देश इस प्रकार होने चाहिये: 
- केंद्र और राज्यों के बीच संतुलित राजकोषीय ढाँचा बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिये।
 - सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना चाहिये।
 
 - अनुच्छेद 293(4) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते समय केंद्र को निम्नलिखित दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिये: 
- निर्णय लेने में पारदर्शिता।
 - सुनिश्चित करना कि उधार स्वीकार करने/अस्वीकार करने की प्रक्रियाएँ और मानक जनता के लिये पारदर्शी हों।
 - परामर्श प्रक्रिया अपनाएँ, विशेष रूप से राज्य सरकारों के साथ कार्य करते समय।
 - सहकारी शासन को बढ़ाने वाली स्थितियों पर विचार करना।
 
 - अतिरिक्त दिशा-निर्देशों से यह सुनिश्चित होना चाहिये:
- शक्तियों का प्रयोग निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से किया जाता है।
 - संतुलित राजकोषीय प्रबंधन का समर्थन करना।
 - सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना।
 - शक्तियों का प्रयोग इस तरह से न किया जाए जिससे राजकोषीय अनुशासन बाधित हो।
 - अनियंत्रित उधारी या अत्यधिक प्रतिबंधात्मक स्थितियों से बचना।
 
 - दिशानिर्देशों में निम्नलिखित की गारंटी होनी चाहिये:
- उधार लेने की शर्तों को लागू करते समय न्यायसंगत व्यवहार।
 - सभी राज्यों में प्रतिबंधों का एक समान अनुप्रयोग।
 - कोई पूर्वाग्रह या पक्षपात नहीं।
 - राजकोषीय स्वायत्तता का सम्मान।
 - राज्य बिना किसी अनुचित बाधा के प्रभावी ढंग से वित्त का प्रबंधन कर सकते हैं।
 
 
निष्कर्ष
भविष्य को देखते हुए केंद्र सरकार राज्य उधार पर अपनी शक्तियों का उपयोग कैसे करती है, इसके लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश होने चाहिये। राज्य ऋण के बारे में निर्णय लेते समय, केंद्र को पारदर्शी प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिये, राज्यों से परामर्श करना चाहिये और सभी राज्यों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करना चाहिये। नियमों को दो मुख्य लक्ष्य प्राप्त करने चाहियें: वित्तीय अनुशासन बनाए रखना और साथ ही राज्य की स्वायत्तता का सम्मान करना। राज्यों पर लगाए गए कोई भी प्रतिबंध उचित होने चाहिये तथा किसी राज्य की अपने वित्त का प्रबंधन करने की क्षमता को अत्यधिक सीमित नहीं करना चाहिये। भारत जैसे देश में स्वस्थ संघीय संबंधों को बनाए रखने के लिये यह संतुलन महत्त्वपूर्ण है।