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सांविधानिक विधि

आवारा कुत्तों की रोकथाम

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 09-Aug-2024

स्रोत: द हिंदू

परिचय:

हाल ही में भारत के उच्चतम न्यायालय ने एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया एवं अन्य बनाम पीपल फॉर एलिमिनेशन ऑफ स्ट्रे ट्रबल्स एवं अन्य मामले में एक निर्णय दिया, जो एक 15 वर्ष पुराना विवादास्पद मुद्दा रहा है। यह मामला इस बात पर केंद्रित था कि क्या नगरपालिका और स्थानीय अधिकारी, आवारा कुत्तों की संख्या को नियंत्रित करने और रैबीज को रोकने के लिये आवारा कुत्तों को मार सकते हैं, या उन्हें कुत्तों का बंध्याकरण करने के WHO समर्थित वैज्ञानिक दृष्टिकोण का पालन करना चाहिये।

  • विधिक तौर पर, इस मामले को राज्य/नगरपालिका विधानों के बीच संघर्ष के रूप में प्रस्तुत किया गया था जो आवारा कुत्तों को "मारने" का अधिकार देते हैं, और केंद्रीय पशु क्रूरता निवारण (PCA) अधिनियम और पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम जो कुत्तों को मारने के बजाय बंध्याकरण को अनिवार्य करते हैं। यह ऐतिहासिक निर्णय आवारा कुत्तों के अधिकारों और कल्याण को सुनिश्चित करता है, जो देश में पशु संरक्षण के लिये एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण स्थापित करता है।

एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया एवं अन्य बनाम पीपल फॉर एलिमिनेशन ऑफ स्ट्रे ट्रबल्स एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि और न्यायालय की टिप्पणी क्या है?

  • भारत के उच्चतम न्यायालय के समक्ष मामला पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 और आवारा कुत्तों के प्रबंधन के संबंध में विभिन्न राज्यों के स्थानीय/नगरपालिका विधानों तथा अन्य पशु विधानों से संबंधित है, जो आवारा कुत्तों को मारने ("कुलिंग") की अनुमति देते हैं, तथा केंद्रीय पशु क्रूरता निवारण (PCA) अधिनियम, 1960 और पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2001 से संबंधित है, जिसमें कहा गया है कि आवारा कुत्तों को मारना निषिद्ध है और इसका एकमात्र उपाय बंध्याकरण है।
  • यह मामला भारतीय पशु कल्याण बोर्ड द्वारा दायर अपील से उत्पन्न हुआ, जिसमें 1960 के अधिनियम और मुंबई नगर निगम अधिनियम, 1888 की प्रयोज्यता पर बॉम्बे उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती दी गई थी।
  • समय के साथ, उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में कई आदेश जारी किये, जिनमें वर्ष 2015 का एक आदेश भी शामिल है, जिसमें सभी नगरपालिका प्राधिकारियों को 1960 के अधिनियम और पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2001 का पालन करने का निर्देश दिया गया था।
  • इसके उपरांत, इस मुद्दे पर विभिन्न उच्च न्यायालयों के निर्णयों को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय के समक्ष कई संबंधित अपीलें और विशेष अनुमति याचिकाएँ दायर की गईं।
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विभिन्न उच्च न्यायालयों ने भिन्न-भिन्न विचार रखे हैं, जिनमें से कुछ ने 2001 के नियमों को यथावत् रखा है, जबकि अन्य ने स्थानीय प्राधिकारियों को आवारा कुत्तों को मारने के लिये विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान की हैं।
  • वर्ष 2023 में, केंद्र सरकार ने वार्षिक जन्म नियंत्रण नियम, 2023 को अधिसूचित किया, जिसमें पशुओं को अनावश्यक पीड़ा और कष्ट से बचाने के लिये एक नई व्यवस्था आरंभ की गई।
  • उभरते विधिक परिदृश्य पर विचार करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने लंबित अपीलों और याचिकाओं का निपटारा करने का निर्णय लिया तथा मुद्दों को भविष्य के निर्णय के लिये खुला रखा।
  • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि कुत्तों की विवेकहीन तरीके से हत्या नहीं की जा सकती और प्राधिकारियों को मौजूदा विधान तथा भारत के संविधान के अनुच्छेद 51A(g) में निहित सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया प्रदर्शित करने के संवैधानिक मूल्य के अनुसार कार्य करना चाहिये।

इस मामले में मूल विधिक विवाद क्या था और उच्चतम न्यायालय ने इसका समाधान कैसे किया?

  • इस मामले पर उच्चतम न्यायालय का अंतिम निर्णय सहानुभूतिपूर्ण और वैज्ञानिक आधार पर आधारित था।
    • न्यायालय ने माना कि पशु क्रूरता निवारण (PCA) अधिनियम, 1960 के अंतर्गत अधिसूचित नए केंद्रीय पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2023 अब देश के शासकीय विधान का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • ये नियम स्पष्ट रूप से नगर पालिकाओं द्वारा आवारा कुत्तों की हत्या पर रोक लगाते हैं तथा कुत्तों के बंध्याकरण को ही एकमात्र स्वीकार्य उपाय बताते हैं।
  • हालाँकि तथाकथित "कुत्तों से नफरत करने वाले" या "सिनोफोब्स" इन नए नियमों को उच्च न्यायालयों में चुनौती देने का प्रयास कर सकते हैं, परंतु वैज्ञानिक प्रमाण स्पष्ट रूप से यह सुझाव देते हैं कि आवारा कुत्तों को मारना कोई प्रभावी समाधान नहीं है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी विशेषज्ञ संस्थाओं ने आवारा पशुओं की संख्या नियंत्रण के सबसे प्रभावी और मानवीय तरीके के रूप में बंध्याकरण कार्यक्रम का समर्थन किया है।
    • यहाँ तक ​​कि मुंबई नगर निगम ने भी अपने पिछले बयानों में आवारा पशुओं को मारने की निरर्थकता को स्वीकार किया है, परंतु इससे उनकी संख्या पर कोई स्पष्ट प्रभाव नहीं पड़ा है।
  • आशा है कि संविधान के अनुच्छेद 51A(h) के अंतर्गत मौलिक कर्त्तव्यों में निहित वैज्ञानिक स्वभाव और मानवतावाद की भावना इस मुद्दे पर नागरिकों की मानसिकता का मार्गदर्शन करेगी।
    • हमें आवारा कुत्तों को मारने जैसे अवैज्ञानिक और बर्बर तरीकों को त्याग कर, बंध्याकरण के सिद्ध, मानवीय एवं प्रभावी तरीके को अपनाना होगा।
    • न्यायालय ने कहा कि हमने इन पशुओं को लगभग 10,000 साल पहले पालतू बनाया था और हमारा यह दायित्व है कि हम उनके साथ दया का व्यवहार करें तथा उनके कल्याण को सुनिश्चित करें।

आवारा कुत्तों के लिये विधिक प्रावधान क्या हैं?

  • भारतीय संविधान,1950
    • भारतीय संविधान के अनुसार, देश के प्राकृतिक संसाधनों, जैसे वन, झील, नदियों एवं पशुओं की देखभाल और संरक्षण करना प्रत्येक व्यक्ति का उत्तरदायित्व है।
    • हालाँकि इनमें से कई प्रावधान राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) और मौलिक कर्त्तव्यों में आते हैं- जिन्हें तब तक लागू नहीं किया जा सकता जब तक कि वैधानिक समर्थन न हो।
    • अनुच्छेद 48 A में कहा गया है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के वनों और वन्य जीवन की सुरक्षा करने का प्रयास करेगा।
    • अनुच्छेद 51A(g) में कहा गया है कि भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह “वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे तथा उसका संवर्द्धन करे एवं जीवित प्राणियों के प्रति दया का भाव रखे।”
    • इसके अतिरिक्त, राज्य एवं समवर्ती सूची में पशु अधिकारों के विषय में निम्नलिखित मदें रखी गई हैं।
    • राज्य सूची मद 14 के अनुसार, राज्यों को "पशुधन को संरक्षित करने, बनाए रखने एवं संवर्द्धित तथा पशु रोगों को रोकने और पशु चिकित्सा प्रशिक्षण व अभ्यास को लागू करने" का अधिकार दिया गया है।
    • समवर्ती सूची में ऐसे विधान शामिल हैं जिन्हें केंद्र और राज्य दोनों पारित कर सकते हैं
      • “पशु क्रूरता की रोकथाम”, जिसका उल्लेख मद 17 में किया गया है।
      • "जंगली पशुओं एवं पक्षियों का संरक्षण" जिसका उल्लेख मद 17B के रूप में किया गया है।
  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS):
    • भारतीय न्याय संहिता, 2023 भारत की आधिकारिक दण्ड संहिता है जो आपराधिक विधि के सभी मूलभूत आयामों को समाहित करती है।
    • BNS की धारा 325 में पशुओं को मारने, ज़हर देने, अपंग बनाने या बेकार कर देने जैसे सभी क्रूरतापूर्ण कृत्यों के लिये दण्ड का प्रावधान है।
  • पशु क्रूरता निवारण (PCA) अधिनियम, 1960:
    • यह केंद्रीय विधान आवारा कुत्तों सहित पशुओं के प्रति क्रूरता पर प्रतिबंध लगाता है।
    • इसमें कहा गया है कि आवारा कुत्तों की संख्या के प्रबंधन के लिये एकमात्र स्वीकार्य तरीका मानव द्वारा पशु बंध्याकरण कार्यक्रम है।
    • इस अधिनियम का उद्देश्य पशुओं को अनावश्यक पीड़ा या कष्ट पहुँचाने से रोकना तथा पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम से संबंधित विधानों में संशोधन करना है।
    • अधिनियम में "पशु" की परिभाषा मनुष्य के अतिरिक्त किसी भी जीवित प्राणी के रूप में की गई है।
  • पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2001 और 2023:
    • आवारा कुत्तों की संख्या प्रबंधन के लिये दिशा-निर्देश प्रदान करने हेतु PCA अधिनियम के अंतर्गत 2001 PCA नियमों को अधिसूचित किया गया था।
    • वर्ष 2023 में अद्यतन ABC नियम लागू किये गए, जिसमें आवारा कुत्तों की हत्या करने की बजाय उनकी बंध्याकरण के आदेश को और सुदृढ़ किया गया।
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972:
    • इस अधिनियम का उद्देश्य पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये देश में सभी पौधों और पशुओं की प्रजातियों की सुरक्षा करना है।
    • यह अधिनियम लुप्तप्राय पशुओं के शिकार पर प्रतिबंध लगाता है तथा वन्यजीव अभ्यारणों, राष्ट्रीय उद्यानों और चिड़ियाघरों की स्थापना का प्रावधान करता है।
  • राज्य/नगरपालिका विधानों के साथ संघर्ष:
    • कुछ राज्य और स्थानीय प्राधिकारियों ने आवारा कुत्तों को मारने की अनुमति देने वाले विधान या नीतियाँ बनाई थीं, जो केंद्रीय PCA अधिनियम के विपरीत थीं।
    • इसके परिणामस्वरूप विभिन्न उच्च न्यायालयों में विधिक संघर्ष हुए तथा परस्पर विरोधी निर्णय दिये गए।
  • उच्चतम न्यायालय का हस्तक्षेप एवं निर्णय:
    • वर्ष 2015 में, उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय एवं स्थानीय विधानों के बीच संघर्ष को सुलझाने के लिये अखिल भारतीय स्तर पर मामले की सुनवाई की।
    • अपने अंतिम निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय PCA अधिनियम और वर्ष 2023 के ABC नियमों की प्रधानता को वरीयता दी तथा नगर पालिकाओं द्वारा आवारा कुत्तों को मारने पर रोक लगा दी।
    • न्यायालय ने निर्देश दिया कि नए ABC नियमों को चुनौती देने के लिये संबंधित उच्च न्यायालयों के माध्यम से ही चुनौती दी जानी चाहिये।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51A

  • इस अनुच्छेद में कहा गया है कि भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा—
    (a) संविधान का पालन करना तथा उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करना।
    (b) उन महान आदर्शों को संजोकर रखना और उनका पालन करना, जिन्होंने हमारे स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया।
    (c) भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रखना तथा उसकी रक्षा करना।
    (d) देश की रक्षा करना तथा आह्वान किये जाने पर राष्ट्रीय सेवा करना।
    (e) भारत के सभी लोगों के बीच धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या सांप्रदायिक विविधताओं से ऊपर उठकर सद्भाव तथा समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना; महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करना।
    (f) हमारी मिश्रित संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्त्व देना और संरक्षित करना।
    (g) वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा तथा संवर्द्धन करना तथा प्राणीमात्र के प्रति दया रखना।
    (h) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद तथा अन्वेषण एवं सुधार की भावना का विकास करना।
    (i)  सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना तथा हिंसा का परित्याग करना।
    (j) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की ओर प्रयास करना ताकि राष्ट्र निरंतर प्रयास तथा उपलब्धि के उच्च स्तर तक पहुँच सके।
    (k) जो माता-पिता, संरक्षक या प्रतिपाल्य है, वह अपने बच्चे को, जैसा भी मामला हो, छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच शिक्षा के अवसर प्रदान करेगा।
  • इसे 2002 के 86वें संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था।

मौलिक कर्त्तव्यों की आवश्यकता

  • मौलिक कर्त्तव्यों का उद्देश्य प्रत्येक नागरिक को यह निरंतर याद दिलाना है कि जहाँ संविधान उन्हें कुछ मौलिक अधिकार प्रदान करता है, वहीं यह नागरिकों से लोकतांत्रिक आचरण और व्यवहार के कुछ बुनियादी मानदंडों का पालन करने की भी अपेक्षा करता है।
  • वे असामाजिक गतिविधियों के विरुद्ध लोगों को चेतावनी देने का काम करते हैं।
  • वे राष्ट्र के प्रति अनुशासन और प्रतिबद्धता को बढ़ावा देने तथा विधानों की संवैधानिकता निर्धारित करने में सहायता करते हैं।

निष्कर्ष:

अपने ऐतिहासिक निर्णय में, भारत के उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 1960 के केंद्रीय पशु क्रूरता निवारण (PCA) अधिनियम और 2023 के अद्यतन पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियमों की प्रधानता को परस्पर विरोधी राज्य  नगरपालिका विधानों पर यथा रूप रखा है। न्यायालय ने आवारा कुत्तों की हत्या पर रोक लगाई है, इस बात पर ज़ोर देते हुए कि मानव द्वारा पशु बंध्याकरण ही वैज्ञानिक साक्ष्य एवं करुणा तथा वैज्ञानिक स्वभाव के संवैधानिक सिद्धांतों के आधार पर एकमात्र स्वीकार्य दृष्टिकोण है। जबकि "कुत्तों से नफरत करने वाले" इन विधानों को चुनौती दे सकते हैं, उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ये विधान एक प्रगतिशील, कल्याण-उन्मुख समाधान को अनिवार्य करते हैं जो इन पशुओं के साथ उस सम्मान के साथ व्यवहार करता है जिसके वे पालतू साथी के रूप में अधिकारी हैं। यह निर्णय भारत में पशु अधिकारों को बनाए रखने और अवैज्ञानिक, क्रूर प्रथाओं को अस्वीकार करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण स्थापित करता है।